Andhayug aur Naari - 44 books and stories free download online pdf in Hindi

अन्धायुग और नारी - भाग(४४)

जब शबाब सोचने लगी तो हमने उनसे पूछा....
"क्या हुआ?क्या सोच रहीं हैं आप"?
तब वो बोलीं...
"आप कमसिन हैं,ये ज़हन,ये हुस्न,ये नजाकत और ऐसा शौहर"
"जो भी हो,हम है तो आखिर औरत ही ना,अगर औरत से कोई गलती हो जाती है तो ये जमाना उसे कभी माँफ नहीं करता,शायद हमें उसी गलती की सजा मिली है,बड़े अब्बा को हमारे लिए जो मुनासिब लगा सो उन्होंने वही किया",हमने कहा...
"कुछ भी हो लेकिन चम्पे की कली को उन्होंने ऊँट की दुम पर बाँध दिया है,आपको देखकर तो दुख के मारे हमारी छाती फटी जा रही है",शबाब बोली...
"अपनी सौत से इतनी हमदर्दी",हमने मुस्कुराकर कहा...
"आपकी बदनसीबी पर हमें बहुत रोना आ रहा है",शबाब बोली...
"अब यही हमारा नसीब है,चाहे हँस कर बरदाश्त करें या रोकर,लेकिन बरदाश्त तो करना ही पड़ेगा",हमने कहा....
"ऐसा ही हाल हमारा भी हुआ था",शबाब बोली....
"मतलब क्या है आपके कहने का,आज आप हमसे कुछ मत छुपाइए,सब कह दीजिए",हमने कहा...
तब शबाब ने हमारी ओर राज भरी नजरों से देखा और कुछ देर सोचने के बाद वो हमसे बोली....
"हमारे निकाह को इतना अरसा बीत गया है,निकाह के वक्त हम आपसे भी ज्यादा कमसिन और खूबसूरत थे,लेकिन अफसोस की बात है कि इतने सालों बाद भी हम क्वाँरे हैं,जैसे कि निकाह की पहली रात थे"
ये सुनकर हम भीतर तक हिल गए और हमारी आँखें फटी की फटी रह गईं और हमने शबाब से कहा....
"ये आपने क्या कह दिया शबाब बेग़म,भला ऐसा कैसें हो सकता है"?
"हाँ! इतने सालों में हम कभी नवाब साहब की हवेली में नहीं गए और ना ही उन्होंने हमारी ड्योढ़ी लाँघीं, नवाब साहब किसी भी तमाम रात हमारे साथ नहीं रहे",
ये सुनकर डर के मारे हमारे होश उड़ गए और हमने उनसे कहा....
"तो ...फिर..."
फिर शबाब बोली....
"शुरू में हमने इन सब बातों पर ज्यादा गौर नहीं किया,क्योंकि हम एक बदमिजाज लड़की थे,माँ की लाड़ली और अपने अब्बा की इकलौती बेटी थे और उनकी जायदाद की इकलौती वारिस भी हम ही थे, उस समय हमारी अम्मी हमारे साथ रहने लगी थीं और अब्बा अपने शहर में अपना कारोबार सम्भाल रहे थे,उस दौरान जब भी नवाब साहब हमसे मिलने आते तो हँस बोलकर चले जाते थे,उस समय हमारी उम्र भी कम थी,इसलिए उनके नजदीक जाने की बात हमारे मन में नहीं आई,लेकिन जैसे जैसे हमारी सहेलियों के निकाह होते गए और वे अपने शौहरों के किस्से हमसे सुनाती तो हमारे मन में भी कुछ ख्वाहिशें उठने लगीं और हमने इन सब बातों का जिक्र नवाब साहब से किया तो उन्होंने हमें बहुत लताड़ा",उन्होंने हमसे कहा...
"तो अब आपकी जवानी ज्यादा जोर मारने लगी है,कहीं किसी के साथ मुँह काला तो नहीं कर चुकीं आप",
उनकी बात सुनकर हमें बहुत गहरा सदमा लगा,हमारे जवान जिस्म की जरुरतों को नवाब साहब पूरा नहीं कर सकते थे,उन्होंने कभी भी हमारे नजदीक आने की कोशिश ही नहीं की....
और ऐसा कहते कहते शबाब की आँखें भर आईं....
"तो क्या नवाब साहब.....",
हम इतना कहते कहते रुक गए तो शबाब आँखें नीची करके बोली...
"हाँ...वो नाकाबिले मर्द हैं"
"याह..अल्लाह",और ऐसा कहकर हम आगे कुछ ना कह सके...
तब शबाब बोली...
"ये तो सिर्फ़ वो वजह हुई,जिसकी वजह से वो अपनी बीवियों के संग रात नहीं बिताते,दूसरी वजह ये है कि उन्हें कोढ़ है,उनका जिस्म सफेद दागों से भरा है"
अब ये सब सुनकर हमारा सिर चकराने लगा और हमें लगा कि हम बेहोश हो जाऐगें,हमारी हालत देखकर शबाब बोली....
"बस इतना सुनकर ही घबरा गईं छोटी बेग़म",
"जब आपको सब पता चल ही गया था तो आप ने उन्हें छोड़कर किसी और मर्द का हाथ क्यों नहीं थाम लिया",हमने शबाब से पूछा...
"उसके पीछे भी वजह थी",शबाब बोली...
"ऐसी क्या वजह थी,जो आपने अपनी जिन्दगी बर्बाद कर ली",हमने शबाब से पूछा....
"हमारे अब्बा का किसी सौदागर ने खून कर दिया था,उनके जाने के बाद उनके ग़म में अम्मी बीमार रहने लगीं और कुछ वक्त बीमार रहने के बाद उनका इन्तकाल हो गया और हमारी जिन्दगी की बागडोर पूरी तरह से नवाब साहब के हाथों में आ गई,इसलिए हम उन्हें छोड़ नहीं पाएँ",शबाब बोली...
"तो आपने अपनी पूरी जवानी यूँ ही जल जल कर काट दी",हमने शबाब से पूछा....
"इसके सिवाय और कोई रास्ता नहीं था हमारे पास,हमारे दिन यूँ ही रो रोकर और रातें बिस्तर पर तड़प तड़प कर बीत रहीं थीं,फिर हमें एक साथी मिला और उसने हमारी जरुरतों को पूरा किया",शबाब बोली....
"कौन था वो खुशनसीब,जिसने आपको सहारा दिया"?हमने शबाब से पूछा....
"उसके बारें में हम आपको फिर कभी बताऐगेँ",शबाब बोली...
"ठीक है जैसी आपकी मर्जी लेकिन हमें तो हमारे गुनाहों की मुनासिब सजा यहीं मिल गई,इस दोज़ख की आग में अब हमें उम्र भर जलना पड़ेगा",हमने शबाब से कहा....
"आप और गुनाह,आप तो सीरत से फरिश्ता दिखतीं हैं ,आपसे भला कौन सा गुनाह हो गया",शबाब ने पूछा...
तब हमने शबाब की गोद में अपना सिर रखकर रोते हुए कहा...
"हम अपने नन्हे मुन्ने को,अपने कलेजे के टुकड़े को कहीं और छोड़कर आए हैं",
"ये क्या कहती हैं आप"?,शबाब ने पूछा...
"हाँ! ये सच है"
और उस दिन शबाब को हमने सबकुछ बता दिया,फिर शबाब ने हमें सीने से लगाते हुए कहा....
"बड़ी हौसले वाली हैं आप तो ,अब से हम और आप एक हैं और अब साथ में ही मुसीबतों का सामना करेगें और हमारी एक बात गाँठ बाँधकर रख लीजिए,अपने बड़े अब्बू की जायदाद जो आपके नाम पर है उसे कभी भी नवाब साहब के नाम मत कीजिएगा",
"अब हम उस जायदाद क्या करेगें",हमने कहा...
"ऐसी नादानी कभी मत कीजिएगा,जरा हमें देखिए,हमने अपने अब्बू की जायदाद अभी भी अपने नाम कर रखी है"शबाब बोली....
"जैसा आप कहेगीँ,हम वैसा ही करेगें",
और फिर शबाब ने हमने अपने सीने से लगा लिया....
और उसी समय उस कमरें में एक लड़की हाजिर हुई और वो शबाब के पास आकर बोलीं....
"तो ये हैं आपके नवाब साहब की छोटी दुल्हन,माशाअल्ला चेहरे से तो नूर ही नूर टपक रहा है,लेकिन इनकी तनहाई कुछ ही दिनों में इनका नूर खतम कर देगी,जैसे आपका नूर खतम कर दिया था"
"शमा! तू बहुत बोल रही है,अभी जा यहाँ से",शबाब ने उससे कहा....
"मुझे तो दाल में कुछ काला लग रहा है,आपने तो छोटी दुल्हन को अपने सीने से ऐसे लगा रखा है जैसे कि ये आपकी सगी हों"शमा बोली....
"अब तू कुछ ज्यादा ही गुस्ताखी कर रही है",शबाब ने उससे कहा....
"माँफ कीजिएगा बेग़म! और जो आपने गुस्ताखियाँ की हैं,वो क्या थीं,वो सब बाते मेरे सीने में दफन हैं, अगर आप इजाज़त दे दे तो जाकर नवाब साहब को बता दूँ",शमा बोली...
"तू यहाँ क्यों आई है"?शबाब ने उससे पूछा....
"इस महीने सीने में दफन राज का पैसा नहीं मिला,आप शायद मेरे घर भिजवाना भूल गईं",शमा बोली...
"तू अभी जा यहाँ से,हम जल्द ही तेरे घर पैसा भिजवा देगें",शबाब बोली....
"जी! शुक्रिया!"
और ऐसा कहकर शमा वहाँ से चली गई....
क्रमशः....
सरोज वर्मा....