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लेखक - एक अजीब प्राणी

लेखक - एक अजीब प्राणी

खुशी सैफी

आज मैं एक लेखक के बारे में बताने जा रही हूं। लेखक.. एक ऐसा प्राणी है जो आज कल हर दूसरे मोहल्ले में मिल जाता है। अरे जनाब वो ज़माने और थे जब कभी कभी सुनने मिलता था और सुनने वाले बड़े शोक से कहते "अरे वाह जनाब, आप लेखक है" पर आज कल ऐसा नही। लेखक बोले तो कौन? वो जो अपने विचारों को कागज़ के ज़रिए दूसरों के दिमाग मे उतारने की कोशिश करता है। कभी कभी अपने कर्म से सफल हो जाता है तो कभी पढ़ने वाले वाले बस "क्या बकवास है" कह कर छोड़ देते हैं।

हमारे हिंदी साहित्य में बहुत से महान लेखकों व कवियों की रचना कुछ यूं हैं जैसे बगीया में अनेकों प्रकार के फूल, जो समय समय से लोगो के जीवन को महकाते रहते हैं। जहां तक मैं समझती हूं इन फूलों में कहीं कहीं कांटे भी है जो पढ़ने वाले के जीवन मे चुभ कर उन्हें दर्द का एहसास दिलाते हैं। हमेशा से लेखक अपनी कलम से समाज सुधारने ही क्षमता रखता है। इतिहास उठा कर देखें तो बहुत सी ऐसी सबक अमेज़ कहानियां मौजूद है जो पढ़ने वाले को गलत करने से रोकती है। फूलों के साथ वाले कांटों की चुभन से हुए दर्द का एहसास उन्हें अपने जीवन को अच्छी राह पर चलने के लिए प्रेरित करते हैं।

असल में जब कोई लेखक के बारे में सुनता है तो एक छवि दिमाग मे आती है "सफेद कुर्ता पायजामा पहने, हाथ मे एक कपड़े का सीला हुआ झोला लटकाये, जो कंधों पर यूँ लटका है जैसे उसमे बहुत से ख्वाब, बहुत से सपने, बहुत सी अधूरी ज़िम्मेदारी भरी हैं जिन को वो कागज़ के टुकड़ों पर उतर चुका है और अब वो उस थैले में बंद है जो उसने अपने मज़बूत कंधों पर लटकाया हुआ है, चलिए अब थैले से वापिस लौट कर मुख की ओर ध्यान दें, चेहरे पर कुछ ऐसे तासुरात होते हैं जैसे पूरी दुनिया को आज ही सुधारना है और इसी फिक्र में हाथ मे कलम होता है कि कुछ विचार आया और फ़ौरन थैले से एक खाली कागज़ निकल पर फ़टाफ़ट उतार दिया।

पर आज कल ज़माना बदल गया है हम लेखक भी बदल गए हैं। अब तो लेखक जीन्स टीशर्ट ओर सूट बूट में होते हैं और थैले की जगह एक खूबसूरत से महँगा वाला एंड्राइड मोबाइल होता है, कोई विचार आया नही कि फ़ौरन जेब से मोबाइल निकाल कलम नुमा अंगूठे से टाइपिंग करनी शुरू कर दी। ये यूँ अचानक टाइपिंग कभी कभी सामने वाले को शक में भी मुब्तला कर देती कि ज़रूर ये बन्दा किसी लड़की या गर्लफ्रैंड से चैटिंग कर रहा है क्योंकि भेष भूषा तो कही से कहीं तक लेखकों वाली है ही नही और ऐसा क्यों ना हो भाई, उन्हें भी तो फ़ैशन करने का पूरा पूरा अधिकार है। और क्यों ना हो, क्या वो इस समाज के प्राणी नही।

खैर ये तो हुई वेश भूषा की बात। अब आ जाएं आज के लेखक के रचनाओं की ओर। इंटरनेट की दुनिया के रहते ये काम भी आसान हो गया है। आज कल बहुत ऐसी एंड्राइड एप्लीकेशन लॉन्च चुकी है जो घर बैठे लेखक की रचना ई-बुक के रूप में पब्लिश कर पाठकों के मोबाइल तक भेज देते हैं जैसे हमारी अपनी मातृभार्ती एप्लीकेशन। इससे लेखन और पाठन दोनो को ही बढ़ावा मिला है जो हिंदी साहित्य के लिए एक अच्छी बात है।

बिताबें, ई-बुक के साथ साथ लेखक अपने विचारों का छोटा छोटा दर्शन फेसबुक, ट्विटर व ब्लॉग पर भी करते रहते हैं। इसके भी अनेक फायदे होते हैं। पहला पाठकों को जुड़े रहने में मदद मिलती है। दूसरा नए नए आयाम या ऑफर्स मिलते रहते हैं। फायदे तो और भी बहुत हैं पर ठहरिये.. क्या सब कुछ मुझसे ही जानना चाहते हैं। इस बारे में एक ही बात कहूंगी “लेखक बनो खुद जान जाओ”

अंत में पूछूँगी मेरे विचारों से कौन कौन सहमत है ज़रूर बताएगा और जो लोग सहमत नही हैं उनसे माज़रत चाहती हूं पर असहमति का कारण ज़रूर जानना चाहूंगी। इसी उम्मीद के साथ अलविदा कहती हूँ।

अरे.. एक बात तो बताना ही भूल गयी। मैं भी एक लेखिका हूँ और मुझसे जुड़ने के लिए आप मेरे फेसबुक पेज को लाइक कर सकते है जो इसी ई-बुक के आस पास आपको लिंक मिल जायेगा।

तहे दिल से शुक्रिया.. खुशी सैफी