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जमना-1

जमना

(बीते लम्हो की कहाँनी-१)

कड़कड़ाती धूप, और साथमे हवाका धीमा धीमा ज़ौका चल रहा है.. गाव मे रोज की तरह शोर बकोर है, इस गाव मे ज्यादातर औरते ही रहेती है अपने बच्चे और बुजुर्ग सास ससुर के साथ मर्द लोग काम के सिलसिलेमे पास के शहर मे रहेते है और महीने मे एक बार घर आते है.... इतने मे तभी इक वान गाव मे आती है जिसको देख कर सभी औरते खुश हो जाती है और खरीदी करने के लिये उसके पीछे बाहर नीकल पडती है ये वान हर मंगलवार को ही आती है, सभी औरते खरीदी के लिये बाहर नीकलती है और साथ मे नीकलती है जमना.. जी हा हमारी कहानी की नायीका-जमना नाम जैसा ही गुण है , बडी ही खुबसुरत और लावण्यमय है जमना और नमणीनार, किंतु दुख की बात यह है की जमना के पति मधुर का एक बस एक्सिडंट मे देहांत हो गया था और तब से वो अकेली अपने सांस ससुर के साथ रहेती है. पुरे गाव मे जमना जैसी खुबसुरत ओर कोइ नही है सब औरते उनकी इस खुबसुरती से जलती है किंतु कहेती कोइ नही और गाव मे मर्दो का बसेरा तो ज्यादा है नही तो इसका कोइ खौफ नही है इसिलिये सब मुक्त मन से गाम मे घुमती रहेती है बिना कोइ चिंता, संकोच और बीना कोइ डर के...

सभी औरते उस वान के पास पहुच जाती है और जमना सबके पीछे खडी है सब अपनी अपनी मन पसंद चीज़ खरीद ने मे मग्न है किंतु जमना बस वही की वही खडी खड़ी सबको देख रही है और मन ही मन अंदर से इक दुख की आहत सी महेसूस कर रही होती है की काश वो भी अपनी मन पसंद चीज़े खरीद पाती...काश वो भी रंगबेरंगी चुनरी ओढ़ पाती, लाली लगा सकती, पैरो मे पायल पहेन सकती..काश... इस तरह वो वहा खड़ी होती है की हमारी वान के ड्राईवर और उसका मालीक मोहन की नज़र जमना पर पडती है वो उसके पास आता है और बोलता है..जी आपको कुछ नही खरीदना..आज सब नयी नयी डीजाईन के कपडे है ..ये सुन कर जमना तुरंत बोलती है जी..जी नही..नही...मुजे नही खरीदनी कोइ चीज़...ऐसा कह कर वो वहा से तुरंत चली जाती है किंतु जाते जाते वो मोहन के दिल मे कई सवाल पैदा कर जाती है .की इतनी खुबसुरत और वो कुछ खरीदना नही चाह्ती और यहा वान तक आती है, सबको देखती है, मन ही मन कुछ असमजस मे पडती है और फिर पुछने पर चली जाती है .इससे मोहन बडा ही संशयमे पड जाता है .. तो वो वहा आयी हुयी जमना की सहेली से पुछता है ..अजी सुनीये बहनजी..तो वो कहेती है जी बोलिये.. वो ऐसे भाग कर क्यु चली गयी ? तो जमना की सहेली जमना की तरफ देखती हुयी बोलती है बडे दुख के साथ....ओह्ह जमना...नाम सुनते ही मोहन के अंदर एक अहेसास का गजब का उतार होता है और तुरंत बोलता है ..हा..हा...जमना... तो वो कहेती है की बिचारी...खडी खडी यहा करती भी क्या..खरीद कर कुछ पहेन तो नही सक्ती ये सब चीज़..इस बिचारी ने भर यौवन मे अपने पति को खोया है..और साथ ही मे अपना श्रिंगार और अपना सँवरनाभी...अब आप ही बताओ इस हालत मे वो क्या करती..? मोहन तुरंत बोलता है ..हा.हा..आप सही कहेती हो... फिर वो अपनी खरीदी मे व्यस्त हो जाती है...और मोहन जमना के बारे मे ऐसा सुनकर खुश होता है की शायद जमना के लिये उसके दिल मे जो अहेसास जगा है जो प्यार की तरंगे फुटी है उसे कीनारा मिल जाये और दुसरी तरफ जमनाकी ये व्यथा और हालात देख कर दुखी भी होता है..और मन ही मन बोलता है..हाय रे इस भर जवानी मे बीचारी जमना की ये दशा...फीर यही सोचते सोचते वो अपनी वान पेक करता है और फीर जमना के प्रती अपनी हम दर्दी को साथ मे लेकर वहासे चला जाता है. और इधर जमाना अपने घर मे आकर आयने के सामने खड़ी हो जाती है और आयनेमे अपना वही पहेले वाला रूप उसे नजर आता है क्या वो बीता लम्हा था प्यारभरा पल था. वो माथे पर टीका हाथो मे मेहंदी सर पर लाल चुनरी वो गहेने ...क्या समय था इतने मे उसकी सास अंदर आती है और जमना अपने अतीत से बाहर..सांस पुछती है क्या हुआ जमना बेटी, तु क्यु तुरंत वापस आ गयी ?, तो जमना कहेती है की कुछ नही माजी ऐसे ही वहा कुछ नया नही था, वही पुराने कपडे, और सभी चीज़े थी. तो वो देखके वापस आ गयी, जमना अपनी भावनाओ को समेटते हुये कहेती है किंतु जमनाकी साँस जमना की इस भावनाओ को समज जाती है और उसे गले लगा लेती है और दोनो की आंखे भर आती है, जमनाके सांस ससूर बहुत ही अच्छे है उसे बिल्कुल अपनी बीटीयाकी तरह रखते है वो चाहते है की यदी कोइ अच्छा लडका मील जाये तो फीर से जमनाको उसके साथ ब्याह दे. किंतु ये बात उन लोगोने जमना पर छोड रखी है

.और उधर मोहन को भी जमना को देखने के बाद कही चैन नही पडता है वो भी अकेला ही है इस संसार मे मा-बाप तो बचपन मे ही उसे छोड के चले गये है. तब से अकेला जिवन व्यतीत कर रहा है इसि कारन वो जमनाकी स्थीती भलीभाती समज सकता है. अपने घर आकर वो वान को उसकी जगह पार्क करके घर के अंदर आता है एक लोटा पानी का भर कर मुह् धोता है फिर मुह पोछता हुअ बबडता है ..ना जाने आज के समय मे इन सभी लोगो को क्या हो गया है ..? रस्मे रीवाजो मे बीचारी जमना जैसी औरतो को को जकड के रखते है, ऐसी तो दुसरी कई औरते होगी.., जमना...अब तो वो ना ही कही जा सकती है और नाही अपने जीवन का आनंद ले सकती है, यदी जिवन ऐसे जीने का हो तो उससे बेहतर तो मर ही जाना अच्छा है, ऐसी जिंदगी कोइ जींदगी होती है...बीचारी जमना....क्या बीत रही होगी उस पर, ऐसा कह कर वो चार पाई पर लेटता है और फीर उनके खयालो मे खो जाता है.. अब धीरे धीरे मोहन जमना की और खीचा आ रहा था, ना जाने उसको क्या हुआ की हर जगह वो उसीके बारे मे ही सोचता और खोया रहेता था, धीरे धीरे ये हमदर्दी मोहन की आदतसी बन गयी और जब हमदर्दी किसिकी आदत बन जाती है तो समजलेना चाहीये की उसने इश्क़ की दुनीयामे अपना प्रवेश कर लीया है. हर सप्ताह के मंगल्वार को मोहन गाव आता था और सभी औरते खरीदी करने आती थी किंतु जमना वही अपने घर की दहेलीज पे खडी खडी मोहन और उसकी वान की ओर ताकती हुयी वही खडी रहेती थी और मोहन भी अपनी वान के पास खडा खडा जमना को ताकते रह जाता...दोनो मे ना जाने क्या जुडने लगा था की दोनो दूर खडे खडे भी एक दुजे की सारी बाते समजने लगे अपने अंदर छीपी भावनाओ को पहेचानने लगे. मोहन से अब रहा नही जाता, वो जमनासे बात करना चाहता है, उसके साथ कुछ पल दो पल बिताना चाहता है की जिससे वो अपने दील की बात उसको केह सके, अपना गम उसके साथ बांट सके., किंतु कैसे कहे उंनको ये सब ?, कैसे करे उसके साथ बात? दोनो ही वक्त के मारे थे दोनो को जो चाहीये था वो एक दुसरे के पास था. फिर एक मंगलवार को मोहन वापस जा रहा होता है और जमना पानी भरके वापस घर की और आ रही होती है जमना को सामने से आते देख कर मोहन बडा रोमांचित हो उठता है और सामने जमनाभी थोडी असमंजस अंदर ही अंदर महेसूस करती है..की यदी मोहन ने यहा उसको रोका और कुछ बाते की तो ..क्या कहेगी वो ?, और बाते की और यहा पर यदी किसीने उन दोनो को साथ देख लीया तो क्या होगा ? इसि डरके साथ जमना और मोहन एक दुसरे के पास पहुच जाते है और दोनो को एक दुसरे के पास आते ही जमनाके पैर ठहर जाते है और मोहन की वान भी ठहर जाती है ..दोनो ही एक दुसरे को देखते है और मन ही मन शर्माते है और संकोच करते है की बात क्या करे..? और कहासे शुरु करे ..? इतनेमे जैसे रेगीस्तान मे भटकते हुये पानी के प्यासे इंसान को सामने दूर म्रुगजल दीखाय दे और उसे पानी मान कर उसे पीने के लिये दौड पडे और जो हिम्मत आती है वैसी ही हिम्मत करके मोहन आखीर मे पुछ ही लेता है और कहेता है की...कैसी हो जमना ?, जमना थोडा शर्माते कहती है बस जैसी दीख रही हु बिलकुल वैसी ही हु, कल भी वैसी ही थी और आज भी वैसी ही हु. ना वक्त बदला है और नाही ये हालात... तो मोहन फिर कहेता है ...तो बदलदो अपना वक्त और हालात.. ये सुनकर जमना बोल उठती है की...काश..ये ह्मारे बस मे होता तो कब का बदल चुके होते...पर ये तो हमारे हाथ से कौसो दूर है... फिर मोहन धीरे से वान से बाहर आता है और उसकी नजदीक आके पुछता है की तुम वान पे क्यु नही आती ? और खरीदी भी कुछ नही करती .. तो जमना इतराते हुये कहेती है की क्या करु वहा आके...मेरे लिये और मेरे लायक कुछ है ही नही खरीदी करने को तो..तुरंत मोहन बोलता है की..अरे हम है ना...ये सुन कर जमना तो अवाक ही रह जाती है और मोहन के सामने एक ही नजर देखती रहती है..और फिर वो चुपचाप वहासे अपने घरकी और चलने लगती है और मोहन उनको बस वहा खडा खडा देखता ही रहेता है और जब उसे जमना दीखाय देने नही लगी तब तक वहा उसे देखता रहा और फीर अपनी वान मे बैठकर चला जाता है. इधर जमना घर आके फटाफट पानी के मटके उनकी जगह रख कर सीधी अपने रूम मे चली जाती है और मोहन ने जो बोला वो अभी भी उनके कानो मे गुंज रहा है. और फिर सोच रही है अब वो क्या करे ? उस पार जाये तो इस पार का क्या करे.और इस पार जाये तो आने वाले कल और उनके दिल मे मोहन के प्रती जो लगन लग रही है उसका क्या करे..? और इधर मोहन अपने घर आता है और अपनी वान पार्कींग मे पार्क करके फीर किचन मे आके पहेले अपना मुह धोता है और फिर पानी पीता है और बाद मे अपना मुह पोछते पोछते बोलता है की आज कलके ये समाज के रीत रीवज भीना ...ये तो कोइ बात हुयी इंसान को अपनी जिंदगी जीने भी नही देते ठीक से...अरे ये तो कोइ जिंदगी हुयि बीचारी जमनाकी..उसकी तो अभी उम्र भी कम है..अरे अभी तो उसकी असली जिंदगी जीनेकी शुरात हो की उसके पहेले ही उसकी ये जिंदगी उससे छीन ली..ना वो सज सवर सकती है..ना वो घुमफीर सकती है, ना कोइ त्योहार वो बडी खुशी के साथ धाम धूम से मना सकती है...ये तो कोइ ज़ीना हुआ...बीचारी जमना अकेली करे तो भी क्या करे.?. किंतु अब मै उनको इस रीत रीवाजो के बंधन से मुक्ति दीलाउंगा... ऐसा कहेते हुये वो जमनाके खयालोमे खो जाता है और फीर अपने बिस्तर पर लेट जाता है....बीचारी..जमना....

इधर गाव मे जमना को बस मोहनकी कही हुयी बाते ही सुनाय दे रही है ना जाने क्यु उसे ऐसा महेसुसु होता है की कुछ नया होने वाला है उनकी जिंदगीमे...तभी वो पानी का मटका लेती हुयी अपनी सांस से कहेती है..माजी मै पानी भरने के लिये जा रही हु...तो उसकी सांस भी कहेती है हा बेटी जा..पर सम्भलकर जाना और जल्दी वापस आ जाना...तो जमना कहेती है जी ठीक है..जमना चल पडती है पानी भरने के रास्ते पर और चलते चलते उनको बस मोहन के खयाल ही आते है इतनेमे उसको दूर से मोहन की वान आती हुयी दीखाय देती है तो वो थोडी अंदर से सिसकजाती है और धीरे धीरे आगे चलने लगती है और सामने मोहन भी जमनाको देख कर खुश होता है और उनके पास आ कर वान रोक देता है जमनाभी वही रुक जाती है तो मोहन पुछता है ...कहा...पानी भरने जा रही हो ? , तो जमना सिर्फ अपना सिर हा के इशारेमे हिलाती है और ऐसे ही खडी रहती है मोहन देखता है की आज जमनामे कुछ पहेलेसे बदला बदलासा लग रहा है तो वो वानमे से नीचे उतरता है और फिर जमनाको पुछता है क्या मै तुमको कुए तक छोड सकता हु..?, ये सुन कर जमना तुरंत मोहन के सामने देखती है और शर्माके बोलती है जी..पर यदी किसिने मुजे यहा देख लीया तो ..तो मोहन आसपास मे नजर करके बोलता है...अरे इस ग्रीष्म की धूप मे कौन बाहर निकलता है..सिवाय मेरे और तुम्हारे जैसे लोग को छोड कर .. यहा कोइ नही है ...अब तुम चाहो तो मेरी वान मे बैठ सकती हो...तो जमना शर्मा जाती है और लम्बे अरसे के बाद किसीने उसको वान मे बैठ ने को कहा है तो उसने कहा ठीक है चलो...तो मोहन ये सुनकर खुश होता हुआ उसके पास से मटका तुरंत ले लेता है और पीछे वान मे रख देता है फीर जमना आगे मोहन की बाजुवाली सीट पर बैठ जाती है और मोहन वान को घुमाके कुए की और चलाने लगता है ..आज जमना वान मे बैठ कर थोडा थोडा शर्मा रही है और वो बाहर से आते हुये पवन के ज़ौको के सामने मुस्कुरा रही है ..तो मोहन भी उसको देख कर मुस्कुराता है और वो बीच का आयना घुमाता है और ऐसे सेट करता है की उसे कही नज़र घुमाये बीनाही जमना दीखाय दे..तभी पवन के एक ज़ौके से ज़मनाके लम्बे काले बाल लहेराते है तो मोहन उसको ही देखता है और जमना ऐसा महेसूस करती है के जैसे उसके सपनो की उडान शरु हुयी हो उसके अरमानो की पहेल हुयी हो आज वो अंदर ही अंदर खुश है वो कच्ची सड़क की वजह से रास्ते मे आते हुये छोटे छोटे खड्डो की वजह से कभी कबार जमना का सीर मोहन के कंधे पर आ जाता था और तब मोहन को ऐसा लगता था की जैसे उसके बरसो पुराना सपना अब सच हो गया हो...और फिर दोनों एक दुसरे के सामने देख कर मंद मंद हसते है ...इतनेमे वो बड़ा पिपल का पेड आता है जिसके पास मे ही कुआ है ..तो मोहन अपनी वान वही उसके पास रोक देता है और निचे उतरता है फिर जमनाकी ओर आकर उसकी साईड का दरवाजा खोलता है तो जमनाभी नीचे उतरती है...फिर मोहन कहेता है...लो आपका कुआ तो आ गया...जमना बोलती है जी हा..तो मोहन बोलता है तुम्हे कभी सजने सवरने का मन नही करता...?, कभी घुमना.फिरना... .बाकी सब औरतो की तरह जिंदगी जीने का मन नही करता ? तो जमना बोलती है की मन तो बहुत करता है कि मै भी उन सभी की भाती घुमु-फीरु—सजु सवरु और सज सवर कर किसीकी राह देखु और वो आये और मुजे मेरे इस सवरे हुये रूप मे देखे ..मुजसे बाते करे..पर वो लम्हा तो बीता हुआ कल बन गया है जो कभी लौटके वापस नही आ सक्ता.. काश ऐसा हो पाता...पर अब ये मुमकीन नही ..तो मोहन बोलता है की यदी तुम चाहो तो यह मुमकीन हो सकता है ...तो जमना कहती है की वो भला कैसे..? तो मोहन तुरंत कहेता है की अभी ...तो जमना चकीत हो के बोलतीं है अभी ? मोहन कहेता है की...क्या तुम अभी मेरे लीये सज सवर सकती हो..?, मै तुम्हे वही रूप मे देखना चाहता हु जिसमे तुम पहेलेवाली जमना दीखाय दो..वो जमना जो पानी की लहेरो की तरह गुनगुनाती थी...वो मस्तानी..और रंगीले स्वभाव वाली जमना....ये सुनकर तो जमना पल दो पल सन्न रह जाती है और फिर उसे अहेसास होता है की कितने सालो के बाद किसिने फिर उसे सजने सवरने को कहा... उसके मुल रूप को जताया...किंतु उसे एक और डर भी है की अब वो ऐसा नही कर सकती किंतु आज वो अपने आपमे नही है..वो खुद को रोक नही पा रही है और फिर शर्माते हुये धीरे से मोहन को कहेती है की ठीक है...मै आज आपकी खातीर श्रुंगार करुंगी..इतना ही सुनते मोहन के शरीर मे मानो की बिजली प्रवेश कर गई हो ऐसे उसमे गजब की इक चमक और तरखराट आ जाता है और वो तुरंत वान मे से एक लाल चुनरी निकालता है और कहेता है लो इसे पहेन लो और इसके साथ तुम्हे जो भी चीज़े पसंद हो वो तुम अपने आप ही लेलो तो जमना लाल चुनरी की और देखती ही रहेती है और फीर बोलती है लाल चुनरी....!! तो मोहन कहेता है जी हा...एक बार इसमे सज-सवर कर मै तुम्हे देखना चाहता हु बस..मेरी यही एक तमन्ना है ..तो जमना धीरे धीरे अपना हाथ उस लाल चुनरी की ओर बढाती है वो लाल चुनरी ले लेती है और उसके लिये जरूरी टीका, पायल, झुमके..वगेरे सब चिज़े लेकर वो पीपल के पेड के पीछे चली जाती है और सज सवरने लगती है और यहा मोहन अधीर बना हुआ वान के पास ही खडा है.. और कब जमना सामने आये उसकी राह देख रहा है इतनेमे पीपल के पैडके पीछेसे जमना धीरे धीरे बाहर आती है और जैसे जैसे वो बाहर आती है वैसे वैसे मोहन और भी अधीर होता जा रहा है...और फिर जमना मोहन के सामने आ ही जाती है और उसको देखकर मोहन बस देखता ही रहेता है...आज जमना इस लाल चुनरी, सर पे टीका, पैरो मे पायल...हाथो मे कंगन, माथे की बींदी के साथ अप्सारे कुछ कम नही लग रही थी..जमना का सर जुका हुआ था इतनेमे मोहन जल्दी से वान मे से एक बडा आयना नीकालता है और जमनाके नजदीक उनके सामने आकर बोलता है ...जरा नजरे तो उठाइये...तो जमना धीरे धीरे अपनी नजरे उठाती है और जैसे ही सामने देखती है तो आयने मे अपना एक नयाही रूप उसको दीखाय देता है जिसको वो सदैव देखना चाहती है .बिलकुल वैसा ही...वो ये देखकर शरमाती है और फीर मादक हसती है और इसकी ये हसी मोहन को कातील लगती है...उसके दिल मे सन्न सी उतर जाती है...मोहन तो बस उसको देखे ही रहेता है जैसे की उसने पहेली बार ही कोइ लडकी देखी हो वैसे...इतनेमे वो अपने जोश मे से होश मे आता है और वो भी जमनाके सामने देखकर कहेता है...कितनी खुबसुरत दीखती हो तुम..इस श्रिंगार मे ?.. तो जमना उसके सामने बस शर्माती हुयी एक मुस्कान ही करती है...और फीर गमगीन हो जाती है तो मोहन पुछता है ..की क्या हुआ? तो जमना कहेती है की ये श्रुंगार तो बस पल दो पल का ही महेमान है उसके बाद फीर वही हाल है...तो मोहन उसके नजदीक आते हुए कहेता है की यदी तुम्हे कोइ आपती ना हो तो एक बात पूछूँ तुमसे.. तो जमना कहेती है की जी कहो...तो मोहन कहेता है की क्या तुम मुजसे ब्याह करोगी...? ये सुनकर जमना तो धरी की धरी ही रह गयी आज तक किसिने उसे ऐसा नही पुछा..आज पहेली बार किसिने उसे इस तरह का प्रस्ताव दीया.. एक दो पल के लिये तो वो कुछ बोल ही नही पा रही थी फिर वो कहेती है की नही ऐसा नही हो सकता..मै दुसरी शादी नही कर सकती..तो मोहन पुछता है की..लेकीन क्यु ..? तुम दूसरी शादी क्यु नही कर सकती ?, क्या तुम्हे तुम्हारे सास ससूर मना करते है ?, तो जमना जवाब देती है की जी नही वो तो उल्टा यही चाहते है की मेरी शादी हो जाये, पर मै नही चाहती, तो मोहन पुछता है ...क्यु ?, तुम क्यु नही चाहती ?, तो जमना कहेती है की यदी मेरी दूसरी शादी हो गयी तो वो बीचारे अकेले हो जायेंगे , उसका मेरे सिवा अब इस दुनियामे ओर कोइ नही है इसिलिये मै अपने सास ससूर को इस हालतमे छोड़ नही सकती. तो मोहन एक दो पल के लिये सोचकर बोलता है की यदी मै तुम्हारे सास ससूर को भी अपने साथ ले लु तो ?, ये सुनकर तो जमना चकीत हो जाती है और वो कुछ बोले उससे पहेले ही मोहन फीर बोलता है...जी हा जमना, मेरा भी इस दुनियामे कोइ नही है..यदी वो मेरे साथ आयेंगे तो मुजे भी मा बाप मिल जायेंगे और साथ ही मे तुम भी, सच कहेता हु जमना मैंए जबसे तुमको देखा बस तबसे एक तुमको ही मैंने तुजे अपना माना और इसि अपनेपन के सहारे ये जिंदगी जीता आ रहा हु, इक इसी आशाके साथ की एक दीन मै तुम्हे अपने घर ले जाउंगा...ये सुनकर तो जमना अंदर ही अंदर बहुत ही खुश होती है और तुरंत वो वापस पीपल के पेड के पीछे जाती है और अपने कपडे बदल लेती है जल्दी जल्दी से पानी भरने लगती है और यहा मोहन को ऐसा लगता है की जमना को उसकी इन बातो का बूरा लग गया है इसिलिये वो परेशान सा होता है और जमना पानीका भरा हुआ मटका लेकर कुछ्भी बोले बगेर चलने लगती है और थोडे दूर आगे जाकर पीछे मूड कर वो बोलती है की मै तुम्हारा इंतज़ार करुंगी....और चलने लगती है...ये सुन कर मोहन खुशीके मारे समा नही रहा होता है..और उसकी आंखो मे से इस खुशीके मारे आंसु निकल आते है और वो कहेता है की मै गुरुवार को आउंगा...तुम्हारे घर ..फीर वो अपनी वान सीधे अपने घर के रास्ते की और चलाता है...

इधर जमना को आज पुरी रात निंद नही आयी..वो आज दोपहर मे जो हुआ उसके बारेमेही सोचती रही. उसका वो रूप जो पुरी तरह से सजा सवरा था वो बार बार उसकी नज़रके सामने आता था और कहेता था की जमना देखो मै कैसी लग रही हू..मुजे पहेनो तुम...मुजे ओढलो तुम..और जमना एक नाजुक सी हसी निकाल कर शर्मा जाती थी...वो आज बेहद ही खुश थी. और मोहन भी आज फुले नही समा रहा था मानो कि जैसे कोइ नया नयाँ फिल्म मेकरने अपनी पहेली ही फिल के लिये ओस्कार जीत लियाँ हो वैसी ही खुशी मोहन को हो रही थी.. और फीर वो गुरुवारकी तैयारीमे लग जाता है..

गुरुवार..यानी की जमना के सालोका इंतज़ारको खत्म करनेवाला दीन...आज जमना सुबह सुबह से ही सारे काम निपटा रही है बडी तेज़ी से ..उसका आज का ये रवैया देखकर उसके सास ससूरभी अचम्बे है की आज ये बहु को हो क्या गया है..जो पहेले धीर गम्भीर थी वो आज अचानक इतनी तेज़ और चमकीली कैसे हो गयी...किंतु उसके इस परीवर्तन से वे दोनो खुश थे..क्युनी वे दोनो भी जमना को बहुत ही प्यार करते है..जमना सारा घरका काम पुरा करके घरके दरवाजेपे खडी खडी रास्ते पर नजरे टीकाये मोहन के आने की राह तक रही है ...सुबह से लेके दोपहर होने को है लेकीन अभी तक नाही मोहन आता हुआ दीखाय दीया और नाही मोहन की वान...जमना पुरा दीन उस दरवाजे पे ही खडी रही मोहनकी राह देखती हुई किंतु मोहन नही आया..अब तो रात होने को आयी...फिर भी कोइ...नही..अंततह जमना बडे दुख के साथ वापस घरके अंदर चली जाती है और आयनेके सामने देखती रहेती है इतनेमे इसकी आंख मे से आंसु निकलते है जो आयने को दो हिस्सोमे बाट देते है...और आज पुरी रात जमना को निंद नही आयी यही सोच मे की आखीर मोहन आया क्यु नही ? क्या हुआ होगा ?, कल आयेगा क्या ..? इसि सोच विचार मे वो सारी रात जागती रही..और फीर सुबह हुयी और फीर इंतज़ार करना शुरु....किंतु कोइ नही आया..ऐसे दीन पर दीन ...महीने...बीत गये और आर आज तक मोहन का कुछ पता नही..जमना को जब उसकी बहुत याद आती है तो वो कुएँ के पास चली जाती है पानी भरने और वहा वो उस पीपल के पेड को देखती रहेती है और फिर थोड़ी देर के बाद वापस लौट आती है ..अब जमना के पास उस बीते लम्हो के अलावा और कुछ नही था...और उसी लम्हो के सहारे वो आज भी मोहन की राह देखती हुयी जी रही है..इसी उम्मीद के साथ की काश उसका मोहन उसके पास आये और फिर से वो नयी दुल्हन के रूप मे सज कर उसके सामने जाये...