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प्यार की एक कहानी

प्यार की एक कहानी

प्यार एक खुबसुरत शब्द ही नही एक खुबसुरत एहसास भी है। लेकिन बदकिस्मती से कुछ साल पहले अंकुर से मिलने से पहले मैं इस खुबसुरत शब्द से नफरत करती थी। लेकिन शायद मेरी किस्मत को कुछ और मंजुर था, उस वक्त मुझे यह पता ही नहीं था कि शब्द प्यार मेरी पूरी दुनिया बन जाएगा।

मैं जानती हूँ कि अब आप यह सोच रहे होगें कि मैं प्यार जैसे खुबसुरत शब्द से नफ़रत क्यों करती थी इसके पीछे एक कहानी है। लेकिन इसके पहले मैं आपको अपना परिचय देती हूँ। मैं अहाना जो कि एक सख़्त खडुस व अकेले रहने वाली लड़की थी जिसकी पूरी जिंदगी ही बदल गई। पाँच साल पहले मैं रिश्ब नामक एक लड़के से बहुत प्यार करती थी और मुझे लगा की वह भी मुझसे सच्चा प्यार करता है। लेकिन ऐसा नही था उसका प्यार सिर्फ एक दिखावा था छल था एक शर्त को पूरा करने के लिए उसने मेरा इस्तेमाल किया था। यह बात जानने के बाद ऐसा,लगा मानो किसी ने मुझे मार ही डाला हो,मुझे खोखला कर दिया हो जैसे जीने के लिए कुछ बचा ही नही हो। जिंदगी मेरे लिए बस एक धोखा बन कर रह गई थी और प्यार, प्यार पर से तो मेरा विश्वास ही टूट गया था। मैने तो मान ही लिया था कि प्यार जैसा कुछ नही होता। अपने चारों ओर एक दीवार बना लिया था, क्योंकि मैं नही चाहती थी एक बार फ़िर कोई मेरी जिंदगी मे आए और फ़िर मुझे छोड़कर चला जाए। ऐसा नहीं था कि मैं नहीं चाहती थी की कोई मुझसे प्यार करे या मेरा ख्याल रखे। दिल ही दिल से चाहती थी की कोई हो जो मुझसे प्यार करे, मेरा ख्याल रखे लेकिन डरती थी कि कहीं इतिहास खुद को ना दोहराए कि कहीं फिर मेरा दिल न टूट जाए क्योंकि दोबारा यह सब शायद मुझसे सहा नही जाता। लेकिन पाँच साल बाद अचानक से एक लड़का या यूँ कहूँ एक फरिसता जिसने मेरी जिंदगी बदल के रख दी। मुझसे पहली बार मिलते ही अंकुर ने न जाने मुझ में ऐसा क्या देखा कि वह मेरे पीछे ही पड़ गया। हर वक्त मुझे हँसाने की जत्तोजहत मे लगा रहता। उस वक्त उसे यह पता नही था कि वह अनजाने मे ही सही मुझसे प्यार कर बैठा है। वह होता है न फिल्मों में “पहली ही नज़र में प्यार” कुछ ऐसा हुआ था अंकुर के साथ और मेरे साथ भी पर वो क्या था न कि एक बार प्यार मे ऐसी ठोकर लगी थी कि दिल दोबारा प्यार करने से डर रहा था। यह मानने से डर रहा था कि रेहाना तुझे प्यार हो गया है, या फिर यूँ कहूँ कि दिल तो ज़ोर ज़ोर से कह रहा था कि मुझे अंकुर से प्यार हो गया है लेकिन में बार बार उसे अनसुना कर रही थी। एक बात और मैं आपको बताना भूल ही गई थी कि मैं एक अनाथ हूँ, मेरे माँ-बाप मुझे देवी माँ के मंदिर में छोड़ कर चले गए थे और तब से मैं देवी माँ को ही अपनी माँ मानती हूँ । हर रोज़ उनकी मंदिर जाना, उनसे अपनी दिल की बातें करना बहुत अच्छा लगता था। लेकिन रिश्ब के उस धोखे के बाद मेरा विश्वास उन पर से भी उठने लगा था। ऐसा लगने लगा था कि मैं दोबारा से अनाथ हो गई हूँ । मै यह भूल गई थी की माँ तो हमेशा अपने बच्चों का भला सोचती है। यह बात मुझे अंकुर से से मिलने के बाद पता चली।

6 सितंबर का वह दिन जो मैं अपने सपने मे भी नही भूल सकती। उस दिन मेरे और अंकुर में बहस हुई थी क्योंकि उसने मेरा नाम “ रोमियो जूलिएट “ नाटक के लिए बिना मुझसे पूछे लिखवाया था। वह चाहता था कि मैं उस नाटक मे जूलिएट का किरदार निभाऊँ। दिल के किसी कोने मे चाहती तो मैं भी यही थी पर बार-बार रिश्ब का दिया धोखा याद आ जाता और मैं पीछे हट जाती। उस दिन अंकुर ने मुझसे घर छोड़ने कि जिद्द की ना-ना करते करते मैने करते हाँ कर ही दी। मुझे क्या मालुम था कि मेरी हाँ और अंकुर की जिद्द हमें इतनी भारी पड़ेगी। जैसे कि हमारे कॉलेज मे सब जानते थे कि एक बार हमारी बहस शुरु हुई तो उसे रोक पाना किसी के भी हाथ में नही था। हम कॉलेज से थोड़े ही दूर बड़ी ही थे की हमारा झगड़ा फिर से चालू और वह भी कार मे जिसके वजह से हम एक दुर्घटना का शिकार हो गए और उस दिन मुझे अपने प्यार का एहसास हुआ जब मैने अंकुर को जिंदगी और मौत से लड़ते हुए देखा था। उस दिन ऐसा लगा मानो कि सिर्फ अंकुर ही नही उसके साथ मैं भी जिंदगी और मौत के बीच में हूँ। ऐसा लग रहा था जैसा की साँस अटक रही हो। एक पल के लिए लगा जैसे सब खत्म हो गया, लेकिन जब डॉकटर साहब ने कहा कि वह अब ठीक है और खतरे से बाहर है तो ऐसा लगा मानो जैसे मुझे जीने की एक नई उम्मीद मिल गई हो या यूँ कहूँ कि मुझे एक नई जिंदगी मिल गई हो। मैं बस अपना हर एक पल अंकुर के साथ गुजारना चाहती थी लेकिन उससे पहले मैं अंकुर को मेरे बीते हुए कल के बारे में सब कुछ बताना चाहती थी, पर डॉकटर ने उस वक्त अंकुर ये बात करने से मना किया था इसलिए मुझे और कुछ दिन, जब तक की वह पुरी तरह ठीक न हो जाए चुप रहना पडा। कुछ दिनों बाद अंकुर पूरी तरह ठीक हो गया। मैं बहुत खुश थी की अब सब ठीक हो जाएगा। मैं अंकुर से सब कुछ कह दूँगी। लेकिन इससे पहले कि मैं उससे कुछ कहती वह आया और मुझे अपने कार मे बिठा के ले गया। कहाँ यह तो मुझे भी नहीं मालूम था। अंकुर मुझे देवी माँ के उसी मंदिर मे ले गया जहाँ मैं अक्सर जाया करती थी। मुझे लगा की वह मुझसे मेरे गुज़रे हुए कल के बारे में पुछेगा, लेकिन उसने ऐसा कुछ नही पूछा। उसने कहा कि उसे कोई फर्क नहीं पड़ता।

उसने मुझसे शादी के लिए पूछा और मैने भी हाँ कर दी, और बस अब हम एक साथ या एक दूजे के लिए अपनी जिंदगी जी रहें हैं।