Aatma-Ram ki salaah books and stories free download online pdf in Hindi

आत्मा-राम की सलाह .....

आत्मा-राम की सलाह....

राजाराम की आत्मा पिछले चार इलेक्शन तक ‘पार्टी- सेवा’ में मशगुल थी | वे पार्टी में ‘पकड’ के लिए वे जाने जाते थे | वे हर इलेक्शन के घोषणा-पत्र के रचयिता हुआ करते थे | उनके बगैर पार्टी की कोई टिकट बटती नहीं थी |

ज़रा सी उनकी छींक –जुकाम में, पार्टी के दफ्तर में ताला जड जाता था | पार्टी के लोग व्याकुल हो जाते थे | मन्दिरों में प्रार्थनाएँ, घरों में दुआओं का दौर शुरू हो जाता था |

उनमें हरारत काबिज होने भर से, देश भर में पंखे, कूलर, ए.सी, फूल स्पीड में चलने लगते थे |

पार्टी में, उनकी बी.पी. का ख्याल, भरपूर रखा जाता था | जो राजाराम को पसंद नही, वो पार्टी का मुद्दा बन जाए, ऐसा होते कभी देखा ही नही गया |

न जाने कब पार्टी वालों को, राजाराम के अस्सी बसंत पार करने का अनुमान लगा ?

एक फ़िल्म लाइन के बाद, राजनीति ही ऐसी दूसरी जगह है जहाँ उम्र और आयु का अनुमान सही आदमी के लिए, सही समय पर नहीं लगाए जाने की परंपरा है | जिसका निर्वाह अदब से किया जाता है |

उनके अस्सी बाद के, ‘सठियाये ‘ हुए होने का एहसास होते ही पार्टी में कानाफूसी का दौर शुरू हो गया |

उनकी गैर जानकारी में प्रश्न उठने-उठाने के लिए मीटिंग्स बुलाये जाने लगे | राजनीति में ‘साठा सो पाठा’ की कहावत को बल देने वाले कहते रहे कि अस्सी-नब्बे वालों को राजनीती से परहेज की खुद सोचना चाहिए कि नहीं ?

पाँव कब्र पर लटके हुए हैं और ‘दुल्हन श्रृंगार टाइप’ महावर –मेहदी की फरमाइशे हो रही हैं ? कौन झेलेगा भला इतना नखरा?

जो उम्र लोगो की दुआ-सलाम लेने और सही जवाब देने भर की हो.... उसमे आप प्रवचन की गुंजाइश निकालो, तो किसके पास बकवास सुनने की रत्ती-भर भी है फुरसत?

राजाराम ने इन बातों की तरफ गौर न ही किया हो ऐसी बात नहीं ?वे अपने जमाने के घुटे हुए, घाघ पालिटीशियन में से एक थे | उड़ती चिड़िया के पर गिन लेने का तजुर्बा था |

वे अपने खिलाप हुए, निर्णय पर, पार्टी की क्रियाकलापों का बखूबी चिंतन -मनन करके, तह तक जाने की सोच रहे थे | पार्टी ने उनकी टिकट काट दी थी | ये खबर एक अचंभा, आश्चर्य, और ह्रदय की ओर जाने वाली रक्त धमनियों से रक्त के थक्के जमा देने वाले समाचारों में से एक था |

‘ब्रेकिंग न्यूज’ वालो ने प्रतिक्रिया देने वालो की लाइन लगा दी थी | स्टूडियो में पक्ष-विपक्ष के लोगो का मजमा लगा कर बातों का तमाशा शुरू कर दिया गया था |

कोई षड्यंत्र या, साजिश बता रहा था तो कोई पार्टी के रसातल में जाने की भविश्यवाणी कर रहा था |

राजाराम को अपनी आगे की रणनीति का कोई ओर-छोर पकड़ में नहीं आ रहा था | वे इस सिचुएशन के कभी ‘आदी’ कहाँ रहे थे ?

पत्नी व्याकुल सा चेहरा लिए मंत्रणा को आई | एजी अब क्या होगा ?

पत्नी के इन दो शब्दों में उन्हें पिछले पच्चीस सालों का इतिहास आप ही आप नजर आ गया| सोना-चांदी, जमीन जायजाद, प्रापर्टी क्या कुछ नही दिया या पाया उसने | भाई-भतीजा, साले-बहनोई सभी तर गए|

एजी.… वाले प्रश्न का समाधान टिकट खोये किसी नेता के पास कब रहा ? सो राजाराम भी निरुत्तर रहे |

सब के सब धोखेबाज निकले, आप को पता नहीं चला ?आपको तो रास्ता चलते लोग भी बुद्धू बना दें !अस्सी सालो तक क्या ख़ाक राजनीति की ?

आपको केवल हम पर ही हुकुम चलाना आया ....बस ....?

अब कैसे भी हो .....कहीं से भी हो.... टिकट ढूढ़ के लाओ .....?

पत्नी के जहर बुझे तीरों ने मानो आपातकालीन हमला किया | अगर जवानी में छक के घी-दूध-मलाई न खाए-पिए होते, तो आघात सहन नहीं होता | खैर बच गए |

अब किसको कहें ? हमने अपनी अंतरात्मा को टटोला |

“अगर तू ने अपने राजनीति के जीवनकाल में किसी दूसरे दल के राजनेता को बिना किसी स्वार्थ-छल के अपना बनाया है तो उसका नाम -पता तो बता ?

वो शायद एक अदद टिकट का जुगाड़ कर दे | ”

अंतरात्मा की, ‘नो-रिप्लाई’ मोड़ में चले जाने से, ये बिलकुल साफ हो गया कि, इस विषय में आगे की सोचना व्यर्थ समय गंवाना है |

अंतरात्मा ने ये सलाह बिना मांगे दे डाली कि आजकल का फैशन ‘दिखावा’ हैं राजाराम !

तू इन बातों को झटक के खड़े हो जा, जैसे तेरे खिलाफ कुछ हुआ ही नहीं हो | मीडिया को अपनी रोनी सुरत मत दिखा |

चहेते लोगो के बीच घुस | उन्हें आम- मतदाता के माफिक बता- बता के लोगों को समझा, कि तेरी परवाह न करके पार्टी ने कितनी बड़ी गलती की है ? तेरे पास आज भी बहुमत फिदा है |

उन अपने लोगों से ‘जनमत’ मांग कि वे तुझे निर्दलीय खड़ा होते देख, फील-गुड करे ?

आखिर तू उनका उद्धारक है , उनकी लड़ाई का परचम लिए उनके कष्टों का निवारण किया है | खुद, कितने कष्टों को सहते हुए भी मैदान में उनकी खातिर डटा रहा है | ...

तेरी अस्सी बाद वाली डगमगाती नय्या को वे जरुर पार लगायेगे ?

खैर ! आज देश की ५४२ जगहो की कमोबेश यही विडम्बना है| किसी न किसी कारण, कुछ ठुकराए हुए ‘राजारामो’ की कमोबेश यही स्थिति है |

वे इस पार्टी से ठुकराए गए तो उधर का दरवाजा खटखटा लिए, दरवाजा नहीं खुला या बात नहीं बनी तो, निर्दलीय होने से इन्हें कौन रोक सका है ?

भाइयो! कुछ चालाक किस्म के लोग ‘आत्माराम की बात’ को अनसुनी करके, बहती हवा के साथ, रुख बदल लेने को तत्पर रहते हैं | वे लोकतंत्र में इसे ही सहूलियत, समझदारी और फायदेमंद समझते हैं, ये अलग बात है |

सुशील यादव