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प्यार का जन्म - भाग 1

प्यार का जन्म

दिल को छू लेने वाली प्रेम कथा

आकिल अहमद सैफ़ी

(1)

06,सितम्बर 1999, मैं बेहोशी की हालत में पड़ी थी, करीब 2:25 मिनट पर मुझे होश आया | मुझे कुछ ठीक से याद नहीं | चारों तरफ अफरा — तफरी का माहौल बना हुआ था, मुझे नहीं पता था की यह क्या हो रहा है | और मैं कहाँ हूं | ये शायद कोई दुर्घटना थी, हवाई दुर्घटना |

काला धुँआ नीले बादलों में छाया हुआ था, जो नीले बादलों के रंग को बिगाड़ रहा था | लोग इधर से उधर दौड़ रहे थे, कुछ लोग दर्द से चीख रहे थे, तो कुछ जख्मी पड़े थे, कुछ मरे पड़े थे | कुछ लोगों का चेहरा बुरी तरह बिगड़ चुका था, उनकी पहचान कर पाना बहुत ही मुश्किल था | मै भी बुरी तरह से जख्मी पड़ी थी, मेरे हाथ — पाँव बुरी तरह से छिले गए थे, मेरा पूरा जिस्म ज़ख़्मी हो गया था | अब तक काफी खून बह चुका था | मेरे जिस्म में बिल्कुल भी ताकत नहीं बची थी, मै बहुत थका हुआ महसूस कर रही थी, और बहुत दर्द भी हो रहा था | मौत के फ़रिश्ते मुझे लेने आते ही होंगे यही डर सता रहा था |

ज़िन्दगी में अभी कुछ देखा भी नहीं था कि मौत का फरमान आ गया था | या यूँ कहूं कि हमेशा — हमेशा के लिए इस दुनिया से अलविदा कहने का वक़्त आ गया था | ज़ख्मी मुसाफ़िर मदद की गुहार लगा रहे थे, मगर उनकी आवाज़ सुनने वाला वहां कोई ना था | चारों ओर घना जंगल और पेड़ो की छाँव का घना अँधेरा छाया था | कहीं दूर से पानी के पठारों की आवाज़ आ रही थी....

पानी के पत्थरों से टकराने की आवाज़.......|

शायद कुछ दूरी पर विशाल नीला समुद्र होगा | जिसका शायद ही कोई अंत हो | यह एक ऐसा हादसा था जिसका सच कभी दुनिया के सामने नहीं आया | और न ही आने वाला था, इस हादसे में करीब — करीब 79 लोगो की मौत हो चुकी थी | और 59 लोग बुरी तरह से ज़ख़्मी हो गए थे | कुछ लोग अब भी लापता थे जिनका कोई अता-पता न था | इस हादसे में मुश्किल से कुछ लोग ही ज़िन्दा बच पाए थे, और उन खुश - नसीबों में से मैं भी एक थी, मरियम |

06,सितम्बर 1970 , को मेरा जन्म सोसेन स्काई सेन (मरीनो) में हुआ | एक छोटे से क़स्बे में, ऐसा क़स्बा जिसे बहुत कम लोग जानते थे | इस क़स्बे में बहुत ही कम लोग रहा करते थे | तक़रीबन पांच सौ लोग ! मेरा छोटा सा क़स्बा एशिया के एक छोटे से भाग में था जहाँ केवल एक ही सिनेमाघर, एक नाइट क्लब , एक बैंक और एक डाक घर था, जो हाल ही में बने थे | और यहाँ इन के अलावा एक मस्जिद और एक स्कूल भी था , बहुत छोटा स्कूल | जो उच्च शिक्षा के लिए पर्याप्त नहीं था | गावं से पाचं किलोमीटर दूर शहर में ही उच्च शिक्षा के लिए विधालय उपलब्ध थे, अगर कोई उच्च शिक्षा पाना चाहता था तो उसे गाँव से पांच किलोमीटर दूर शहर में जाना पड़ता था | वो भी पैदल ! बड़े बाज़ार भी शहर में ही उपलब्ध थे |

मेरा जन्म एक क्रिस्चियन परिवार में हुआ था | मेरे पिता एक किसान थे और आमतौर पर घर से बाहर ही रहते थे | क्यूंकि खेतों की देखभाल जो करनी होती थी ! और मेरी माँ एक घरेलु महिला थी | मेरा न तो कोई भाई था और न ही कोई बहन, मै अपने घर में अकेली थी, बिल्कुल अकेली ........!'''

मेरे पिता जी एक किसान होने के बावजूद भी वह मुझे पढ़ाना चाहते थे ! वह यह नहीं चाहते थे की मेरी बेटी मेरी तरह अनपढ़ रह जाए या कभी भी दूसरों से मदद की गुहार लगाए, या कभी भी किसी बात के लिए शर्मिंदा होना पड़े | वह तो हमेशा से यही चाहते थे कि मेरी बेटी पढ़-लिख कर एक कामयाब इंसान बने, इज्जत से सिर उठा कर जिये और शान से जिये, जहां भी रहे खुशरहे !'' .

मैं जल्दी ही बोलना सीख गई | तक़रीबन दो साल की उम्र में | मेरा गाँव के स्कूल में जल्दी ही दाखिला करा दिया गया | और मैं विधालय जाने लगी, बिना रोये, माँ-पिता जी को परेशान किये बगैर | जैसा ओर छोटे बच्चे करते हैं | कुछ दिनों बाद मेरा दाखिला गाँव की मस्जिद में भी करा दिया गया | जहाँ मैं उर्दू—अरबी पढ़ने जाया करती थी | क्यूंकि माँ कहती थी इंसान को ज्यादा से ज़्यादा पढ़ना चाहिए, और भाषाओँ में क्या रखा है | धर्म भगवान की नहीं इंसान की देन है | सुबह मैं स्कूल जाती थी और शाम को करीब चार बजे मस्जिद में पढ़ने | मैं एक र्किस्चियन लड़की होने के बावजूद भी उर्दू सीख रही थी |

मुझे पढ़ने का शुरू से ही बहुत शोक था, मैं हमेशा से ही एक मशहूर शायर बनना चाहती थी | जिसे ज्यादा से ज्यादा लोग जानते हों | लोग मेरी शायरी को गुनगुनाएं, बड़ी तादाद में चाहने वाले हों, और चारों ओर मेरा ही बोल-बाला हो |

कुछ ऐसी पहचान.....|

मुझे नई-नई जगहों पर घूमना बेहद पसंद था और हमेशा से ही कुछ अलग, कुछ नया करने का जुनून सवार था | शायद इसलिए कुछ नया करने के चक्कर में कभी-कभी कुछ काम बिगाड़ भी देती, उसके लिए माँ से डांट भी पड़ती | जीवन में नई उमंगो के साथ पूरे विश्व का चक्कर लगाना चाहती थी, दुनिया को करीब से जानना चाहती थी | अपनी जीत का परचम लहराना चाहती थी, लेकिन वक़्त के हाथों अभी मजबूर थी |

मैं बहुत छोटी थी शायद इसीलिए वोह सब करने में असफल थी जो मैं करना चाहती थी |

छोटी सी उम्र से ही मैंने डायरी लिखना शुरू कर दिया था | और उसी परंपरा को मैं आज तक निरंतर निभाती चली आ रही थी | आज तक मैं अपनी जिन्दगी का हर वो पल लिखती आ रही हूँ जो पल हसीन थे या दर्द भरे थे ....|

सुबह जब सूरज अपनी लाल किरणें बिखेरता, लहराता हुआ उल्लास की ओर बढ़ रहा होता तब मैं उस सुहाने मौसम में बहती फिजाओं के उस बहाव में स्कूल के लिए घर से निकला करती और जिस रास्ते से मैं स्कूल जाया करती थी उस रास्ते के दोनों तरफ गेहूं के खेत लहराते रहते थे एक अजब सी खुशबू उन लहराते गेहूं के खेतों से आती थी जो मन को झकझोर देती थी वो बहती फिजायें न जाने क्या कहना चाहती थी .....|

मैं स्कूल में हमेशा अव्वल आती थी और ज्यादा किसी से बात नहीं करती थी जिसकी वजह से मेरा कोई दोस्त भी नहीं था | हमेशा अपनी ही दुनिया में खोयी रहती |

स्कूल में मेरा जब भी खाली पीरियड होता या आधी छुट्टी होती तो मैं कक्षा से निकल कर एक पेड़ के नीचे जाकर लेटी रहती और अपने खयालों की दुनिया में खो जाया करती या फिर पेड़ की घनी छाँव में लेट कर बादलों में कुछ नया तलाशने की कोशिश करती रहती, कभी दौड़ता हुआ घोड़ा, कभी हाथी तो कभी चिड़िया |

और न जाने क्या क्या ........|

***

आज मैं बहुत खुश थी बेहद खुश, क्योंकि कुछ समय पहले एक घोषणा हुई थी जिसे सुन कर मैं फूली ना समा रही थी, मेरा एक सपना जल्दी ही पूरा होने वाला था और वो सपना था, शायर बनने का | स्वयं को लोगों के सामने प्रस्तुत करने का मौका |

जल्दी ही स्कूल में एक कार्यक्रम का आयोजन होने वाला था | जिसमें खेल—कूद , नाचना गाना, कविता, शेर-ओ-शायरी जैसे कार्यक्रमों को शामिल किया गया था | शेर-ओ-शायरी और कविता के लिए मुझे चुना गया था |

वो दिन भी जल्दी आ गया, स्वयं को सबके सामने प्रस्तुत करने का दिन | आज ही का दिन था जिसका मुझे वर्षों से इंतज़ार था | मैने कुछ किताबों से अपने पसंदीदा शायरों के जुमले इकट्ठे कर लिए थे | वह जुमले जो मैं आज बोलने वाली थी | मैं तैयार हो कर परदे के पीछे इंतज़ार कर रही थी, मुझे डर लग रहा था कि इतने सारे लोगों के सामने मैं कैसे बोल पाऊँगी | अगर कुछ गलत हो गया तो क्या होगा,

लोग क्या कहेंगे........|

यह मेरी जिंदगी में पहली बार था जब मैं किसी मंच पर जा रही थी | यही डर मुझे बार-बार सता रहा था, अपने आपको मंच पर पेश करने की ख़ुशी भी थी दूसरी ओर एक डर भी था | बस यही सब सोच कर मैं परेशान थी न जाने अब क्या होगा मेरा.... कैसे सुनाउंगी मैं लोगों को अपनी शायरी |

जब मैं बैठी गहरी सोच में डूबी कुछ विचार कर रही थी, तभी अचानक एक कड़े स्वर में आवाज़ आई,

मरियम,..... मरियम

प्लीज़ कम ऑन दी स्टेज |

मैं अपने उन्ही खयालों में खोई हुई थी एक धीमी सी आवाज आई |

मरियम...... मरियम......

मैने अपने ख़यालों की दुनिया से बाहर निकल कर उस आवाज़ पर ध्यान दिया, मैं अचानक हड़बड़ाई अरे यह तो मेरा नाम बोला गया है |

मैंने डरते हुए, थोड़ा घबराते हुए मंच की ओर चलना शुरू किया | जैसे ही मैंने मंच पर पहला कदम रखा, मेरी धड़कने तेज़ हो गई सांसें मानो थम सी गई |

मैं डरी हुई थी मेरी जुबां से एक शब्द भी नहीं निकल रहा था ऐसा लग रहा था जैसे किसी ने मेरे मुह पर ताला लगा दिया हो | जो शायद कभी खुलेगा ही नहीं , सांसे रुक गई थीं, माहौल थम सा गया था सभी लोग मेरी ओर बड़े गौर से देख रहे थे |

शायद कुछ कहना चाहती थी कि बस अब मुझसे न होगा |

क्या पहली बार सभी के साथ ऐसा ही होता है ?

मैं नहीं जानती लेकिन मेरे साथ तो यही सब हो रहा था |

कुछ बिल्कुल अलग, जिसकी मुझे उम्मीद भी ना थी.....कुछ समय बाद बिना सोचे-समझे मैने अपनी आँखें बंद करके गहरी सांस लेते हुए मैने बोलना शुरू किया ........!"

टुकड़े - टुकड़े दिन बीता,

धज्जी - धज्जी रात मिली......||'

जिसका जितना आंचल था,

उतनी ही सौगात मिली......||"

रिमझिम - रिमझिम बारिश में,

ज़हर भी है और अमृत भी......||"'

आखें हंस दी दिल रोया,

यह अच्छी बरसात मिली.....||""

जब चाहा दिल को समझे,

हंसने की आवाज सुनी.......|| "'

जैसे कोई कहता हो,

ले फिर तुझको मात मिली ||

मैं अभी बोल कर रुकी भी नही थी, कि पूरा होल तालियों की गढ़—गढ़ाहट से गूंज उठा | मैं बहुत खुश थी , क्योंकि आज मेरा वर्षों का सपना सच जो हो गया था | सभी लोग मेरी तारीफ कर रहे थे, मुझसे हाथ मिला रहे थे | कार्यक्रम के समाप्त हो जाने के बाद विजेताओं को पुरुस्कार दिये गए, जब मंच पर मेरा नाम पुकारा गया मेरी ख़ुशी का ठिकाना ना रहा | मुझे पुरस्कार से सम्मानित किया गया |

मैं स्कूल से हाथ में पुरुस्कार लिए घर आई माँ को देखते ही मैंने अपना हाथ पीछे की ओर छुपाना चाहा,

मरियम क्या छुपा रही हो,

क्या है तुम्हारे हाथ में,

दिखाओ मुझे..... माँ ने मुझसे कहा |

मैंने अपना पुरस्कार माँ-पिताजी को दिखाते हुआ कहा माँ मुझे आज प्रतियोगिता में ये इनाम मिला है माँ-पिताजी दोनों बहुत खुश थे |

ज़िन्दगी में बहुत आगे बढ़ना बेटी, खूब नाम कमाना अपने पिताजी का नाम रोशन करना,,,, माँ ने कहा |

***

आज मेरी ज़िन्दगी का गाँव के स्कूल में अंतिम दिन था मतलब स्कूल का आखिरी साल या यह कह लो कि कक्षा का अंतिम पड़ाव |

आज सुबह जब मैं स्कूल के लिए चली तो कुछ अजीब सा महसूस हुआ, ना जाने क्यूँ डर सा लग रहा था,

जैसे कुछ बुरा होने वाला है,.....

जब मैं स्कूल पहुंची तो आज कुछ अलग ही माहौल था ,बिल्कुल विपरित, जैसे जब स्कूल शुरू होता था तो बच्चों के आने की आहट , खेल मैदान से बच्चों के प्रार्थना करने की आवाज़, कक्षाओं से आती छात्रों की एक साथ पाठ दोहराने की आवाज़, अध्यापको की डांट व डंडे की आवाज | लेकिन आज तो ऐसा कुछ भी नहीं था, सब कुछ शांत था, यहाँ तक की गाँव में भी आज बहुत शांति थी, मैंने आते हुए महसूस किया था ना तो कोई बच्चा स्कूल जा रहा था और ना ही गाँव के लोग अपने — अपने कामों पर |

ऐसा लग रहा था जैसे आज कोई छुट्टी है या फिर रविवार, क्योंकि साल के अंत में एक दिन ऐसा होता था जिसमें ना तो कोई गाँव का व्यक्ति काम पर जाता था और ना ही विधार्थी स्कूल जाते थे, आज का दिन कुछ बच्चों के लिए स्कूल में अंतिम दिन था |

आज का दिन सभी दोस्तों से आखरी बार मिलने का था, उनके साथ ढेर सारी बातें करने का दिन था, एक-दूसरे को विदाई देने का दिन......|

मैं जाकर अपनी डेस्क पर बैठ गई | कुछ गाँव के लोग मेरी कक्षा के खाली पड़ी बैचों पर चुप बैठे थे और अध्यापिका अपनी कुर्सी पर बैठी थी कुछ देर बाद अध्यापिका उठी और बड़े ही मधुर स्वर में कहा, मेरे प्यारे बच्चों , आज यह हमारी अंतिम मुलाकात है क्योंकि अब तुम्हे आगे की शिक्षा के लिए........अब तुम यहाँ तक पहुच चुके हो तो .......कोई भी काम कल पर मत टालना .......अब यहीं मत रुक जाना आगे भी पढ़ते रहना .......तुम्हारे माँ-बाप भी तुम्हारी पढ़ाई के बारे में कितने परेशान रहते है, वोह चाहते तो तुम्हे भी अपने साथ काम में लगा लेते, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया वो ....और काफी समय तक ऐसे ही चलता रहा और लगभग 2 घंटे बाद अध्यापिका जी का भाषण खत्म हुआ |

मरियम सुनो तुम..... अध्यापिका ने कुछ कहना चाहा लेकिन तभी स्कुल के ख़त्म होने की घंटी बजी और अध्यापिका ने बिना कुछ बोले ,हाथ से ही इशारा किया शायद कुछ कहना चाहती थीं |

स्कुल ख़त्म हो गया है — अब आप जा सकते है |"

कितना दर्द भरा दिन रहा आज सब दोस्तों से अलविदा कहने का दिन...… सभी ने अलविदा कहा और अपने घरों की ओर चल दिए |

समय इतनी जल्दी बीत गया कि कुछ पता ही नहीं चला कि कब स्कूल छोड़ने का वक्त आ गया | अभी तो मेरी मदरसे की भी पढाई पूरी नहीं हुई थी कि मैंने स्कूल छोड़ने के साथ-साथ अपनी मदरसे की पढ़ाई भी छोड़ दी |

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