dil mera kagaj ka panna.. books and stories free download online pdf in Hindi

दिल मेरा कागज का पन्ना..

 आज सुबह से ही सब स्टूडेंट्स खुशी खुश थे.. आज कॉलेज का लास्ट दिन जो था..... कुछ पल में सब अपने दोस्तो से दूर हो जायेगे... फिर न जाने कब कहा अचानक या जान बूझकर मिलना होगा भी  या नहीं........

कॉलेज के दिन  फास्ट चले  गए पता ही नहीं चला... 
कल तो आया.था,  मेरी मा,  पिताजी ने कितने अरमान  का  वास्ता देकर  भेजा था, मुजे....   ओर वो  मेरी    छोटी बहन चापलूस सिटी...
मुझसे कुछ
साल  अलग होने
का वक़्त देख थोड़ी मायूस.    
जरूर 
हो गई थी.. पर..
चापलूसी करना... नहीं छोडा था,
भैया.. कॉलेज  से एक  खूबसूरत  भाभी चाहिए मुजे.. 

मुजे मा के सामने शर्मिंदा कर दिया... ट्रेन प्लैटफॉर्म पर आ गई थी.. मेरी सीट मेरा इंतज़ार करती थी.. मेने ढूंढ निकाला.. ओर....दूर सुदूर तक मेरी नजरे मेरे गाव को अनिमेष देखते देखते कब नींद में खो गए.. पता ही नहीं चला, सुबह के 5 बजे गए थे.... चाय समोसे वालो की बूम ओर शोर से मे जाग गया.. 
चाय पी रहा था कि मेरी नजर सामने बैठी एक लड़की पे अटकी... वो सायद अभी आई थी,, 
मेरी नजर लाख बचाने के बावजूद भी उसकी ओर चली जाती थी.... मुह पर बांधे पंचरंगी दूपट्टे मे छुपे उसके चहेरे को देखने  मेरा दिल भी इंतज़ार में था... 

दिल को इंतज़ार ज्यादा नहीं करना पड़ा.. उसने अपना रूहानी.. फेस पेश कर ही दिया.. 
मैने कई बार तिरछी नजर से संपूर्ण चेहरा देखने का मौका ढूंढा.. लेकिन.. नाकामयाब, 

मेरी मंजिल आ पहुची थीं..मे अपना बिस्तर बैग लेकर नीचे उतरा की मेरा चचेरा भाई किरण आहि गया था..... वो लड़की भी इसी शहर मे आयी थी.. पता नहीं कहा जाएगी.. ऎसे खयाल के साथ मे  भाई  के घर पहुचा.. 

कॉलेज मे मे ही एकला नया नहीं था.. मेरे साथ जुड़ने वाले सभी स्टूडेंट्स नए ही थे... सब का परिचय हुआ.... ओर अचानक मेरी नजर वही पंचरंगी दुपट्टा वाली लड़की पे ठहरी... 
अरे, वो.. वो तो वही थी... 
उसने भी मुजे देख लिया था.... मे पहले से लड़कियों के मामले में थोड़ा बेबाक था.. मुजे डर सा महसूस होता था.... मे दूर ही रहता था.. पर दिल मे उन्हों के लिए इज्ज़त ओर प्यार भी तो था.... उसका नाम निमिषा था.. 

कुछ दिन  ऎसे ही बीत गए.. पता नहीं चल पाया... कब फ़र्स्ट इयर से सेकंड.. ओर थर्ड भी आ गया... 
मे अपने दिल की बात उसे कह नहीं सकता था.. 
ओर अब एक महीना ही तो बचा था.. कॉलेज लाइफ का.... 
मेने एक तरकीब ढूंढ निकाली.. 
मेरी हैंडराइटिंग अच्छी थी.. ओर एक कला भी थी मेरी हैंडराइटिंग में.... 
सभी स्टूडेंट्स की राइटिंग की मे कॉपी कर सकता था... अरे कई बार तो मैंने प्रोफेसर की भी नकल की थी.. 

मैंने आज क्लास के सबसे बदमाश लड़के वीनू के नाम से एक लव लेटर लिखा... वो भी निमिषा के आसपास फील्डिंग करता था... ओर ब्रेक टाईम... निमिषा के बुक्स मे रख दिया... 
क्लास स्टार्ट हुई.. मेरी नजर निमिषा ओर वीनू को बार बार देखती थी.. मे जानना चाहता था कि कही निमिषा उसे अपना तो नहीं लेती... 

पर ये क्या... निमिषा ने कंपलेन कर दी.. वीनू बेचारा.. हालात का मारा.. ज़ोर से  चिल्लाते कहता ये मेने नहीं लिखा... फिर भी उसकी प्रोफेसर ने एक ना सुनी... ओर गाल को लाल टोमेटो जेसा बना दिया.... 

2 दिन बाद फिर पुनीत के नाम से निमिषा की बुक्स मैंने ख़त रख दिया.... पुनीत भी मेरी तरह एक तरफा लव करता था.. निमी से,... 
लेकिन उसको भी वीनू के माफिक प्रसाद मिला... 
मेरी नजर में जो सभी लड़के निमिषा को चाहते थे.... सबका एक एक कर के खुलासा करवा दिया 
.. 
किसीकी भी लेटर निमिषा ने रखी नहीं.. बल्की बिना वजह बदनाम जरूर किया.... 

मुजे खुशी थी निमिषा क्लास के सभी लड़को को रिजेक्ट करती थी 
अब मेरी बारी थी... पर.. 

मुजे डर सा लगता था कही मेरी भी हालत सबके जेसी न हो.. सो मे हिम्मत न कर सका.. अपनी बात कहने की... मुजे अफसोस था.... 


आज कुछ घंटे बाद सब अपने अपने मुकाम की ओर चले जायेगे.. साथ ले जायेगे तो सिर्फ़ यादे... हा यादे... मेरी तरह..... 

प्रोफेसर एंड सभी ट्रस्टी लोगो का लेक्चर खत्म हुआ... सब सभी को गले मिले ओर  जुदा हुए...... 

में अभी भी निमिषा को जी भरकर देखना चाहता था... वो सायद फिर कभी नहीं मिलने वाली थी... 
इसलिए आज मे सबसे लास्ट पैदल चलता चलता कैंपस से बाहर निकला ही था... की गेट के पास से आवाज़ सुनाई..... आकाश..... 
आवाज़ सुनी सुनी थी.. निमिषा की  तो थी.. 
मेने उसको देखा.. एक नजर मे जी भरकर देख लिया... मेरे रोम रोम में कई तरंग चलने लगे.... 

में शर्मिंदा हो गया ओर बोला... हा, 
 वो मुस्कुराते हुए बोली... मेरा एक काम करोगे.. 

में भला केसे ना बोल सकता था... मुस्कान के साथ बोला... हा, क्यू नहीं.... 

निमिषा.. ज़ोर से मुस्कुराई.. ओर बोली.. 
एक लव लेटर लिखोगे.. कहते हुए कागज की एक पर्ची मेरे हाथ में थमा दी 
मेने पर्ची पढ़ी... लिखा था 


बेवकूफ़... गधा.. 
मे जानती थी जो लेटर मेरी बुक्स मे मिलते थे वो सब तु ही रखता था.. मे तेरे लेटर का हर बार इंतज़ार करती पर तु डरपोक कही का..... दिल की बात नहीं कह सका..,

ये मेरा अड्रेस हे.. मे तेरे लव लेटर का इंतज़ार करूँगी..
ओर. हा, नाम तेरा ही लिखना.. 

निमिषा.... विथ लव यू... 

हसमुख मेवाड़ा.. ?