Achchhaiyan - 3 books and stories free download online pdf in Hindi

अच्छाईयां - 3

भाग – ३

सूरजने सालो बाद उनका पहला कदम कोलेज के अंदर रखा | काफी छोटा था जब वो इस कोलेज में पहलीबार आया था, आज फिर उन्हें वो दिन याद आये | उसवक्त दादाजी उसे यहाँ ले के आये थे, उन्होंने ही मुझे सड़को की दुनिया से मुक्त किया था, उसवक्त मेरी इतनी समझ थी की दुनिया के लोग जहा भी ले चले वहा चलते जाना है | मेरे बाबा हाथमें एकतारा लेके वो प्यारा सा गीत गाते थे और वो धून मुझे भी शिखाते थे |

आज तेरा कोई न हो तो कल तेरा जहाँ होगा

तुझे बस अपनी अच्छाइयो के साथ चलना होगा.....

दुख का दर्पण तेरी आँखों को जब भी रुलाएगा

एक प्यारी सी मुश्कुराहट से उसे ठलना होगा

तुझे बस अपनी अच्छाइयो के साथ चलना होगा.....

दुःख देनेवाले भी तुम्हे सुख का तोफा देंगे

तेरी जिंदगी से वो भी कुछ नया शिखेंगे

तुम्हे परवरदिगार से प्यार करना होगा

तुझे बस अपनी अच्छाइयो के साथ चलना होगा....

वो सूर कौन सा था वो पता नहीं मगर जिंदगी को उर्जान्वित करनेवाला ये गीत सूरजका मनपसन्द गीत था | आज कोलेज में वो फिर यही गीत को गुनगुनाते हुए, अपने विशवास को बढाते हुए आगे चलने लगा |

सूरज के कदमो के साथ उनकी यादें भी तेज होने लगी, उस यादो में सरगम की आवाज उनके कानो में गूंजने लगी | सालो पहले इसी जगह पर सरगम जब छोटी थी तब मेरे पास आई थी और वो हँसते हँसते बोली थी, ‘ सूरज तुम अच्छा गाते भी हो और बजाते भी हो..... क्या तुम मुझे ये शिखाओगे और मेरे दोस्त बनोगे .?’

उसी वक्त मै भी उनकी उम्र का था, मैंने भी पहलीबार दोस्ती का नाम सूना था... मेरा जीवन फूटपाथ पर गुजरा था.. सड़क पर मैं और मेरे बाबा भीख माँगते थे, वो बाबा हाथमें एकतारा लेके गाते थे और लोगो के सामने भीख माँगते थे, वो मेरा सहारा थे या मै उनके भीख माँगने का सहारा था वो मुझे कभी समझमें नहीं आया था | उनका एकतारा जैसे जैसे बजने गया उसके साथ मेरे गले का सूर मिल गया और हमारी जिंदगी गुजरने लगी थी... वो कहते थे की तुम मुझे छोटे थे तब जंगलो से मिले थे.... बाबा कौन थे वो मुझे पता नहीं था लेकिन वो अच्छे थे.... वो एक शहर से दूसर शहर मुझे लेके घुमते रहते थे... इस शहर मै एक कोनेमें बांसुरी बजाते हुए लोगो के पास से भीख मांग रहा था.... उसवक्त एक इंसान मुझे दूर से देख रहा था और मेरे सूरो को सुन रहा था... उसने मेरे पास कई गीत गवाए.... मुझे लगा की मुझे अच्छे पैसे मिलेंगे..... उनके साथ मेरी उम्र की छोटी लड़की थी... वो उनको बारबार कह रही थी की मुझे भी इनके जैसी बंसरी बजाना सिखना है.... और उसवक्त मेरी जिंदगी बदल गई... उस इन्सान मुझे वो बाबा के पास से अपने पास ले आये.... वो मेरी जिंदगी बदलने वाले इन्सान थे, पंडित दीनानाथजी, जो संगीत के प्रखर ज्ञाता थे... ये कोलेज उनका था... और वे उस छोटी लड़की के दादाजी थे |

वो लडकीने भी मेरे गंदे कपडे पर ध्यान नही दिया मगर उसने उस छोटी उम्र में मेरा संगीत सुना था और मुझे दोस्त कहा था... वो लड़की सरगम थी... और वो मेरी जिंदगी की पहली दोस्त थी | दादाजीने मुझे कोलेज के पास ही मेरे छोटे बच्चों की हॉस्टल में रहने का इन्ताजाम किया और मुझे अच्छे से अच्छी सी जिंदगी दी | मुझे बाबा को छोड़ते हुए डर लगा था, मगर बाबाने कहा था की, ‘ सूरज... शायद भगवान को यही मंजूर होगा... और मुझे भी अब हिमालय जाना है... देखो भगवान भी हमारे बारे में हमसे अच्छा सोचता है.. अब तेरी जिंदगी बदलनेवाली है, मुझे लगता है की तुम अब तेरे सही मुकाम पर जा रहे हो... भगवान ने तेरे लिए भी कुछ अच्छा सोचा होगा...’

और मैंने उस दिन उनको छोड़ दिया था.... हम गरीब थे मगर उनको छोड़ते हुए मुझे दुःख लगा था, मगर वो उसवक्त ऐसे निकल गए थे मानो हमारा रिश्ता ख़त्म हो गया हो.... वो उसी धून को गाते गाते मेरे सामने ही निकल गए थे... मैं उनको देखता रहा था |

उसके बाद ये कोलेज और पंडित दीनानाथजी जिनको भी मै दादाजी कहने लगा और मेरी दूसरी जिंदगी शुरू हो गई थी | कई दिनों तो मैं दादाजी के घर भी रहता था, मुझे उनके और सरगम के साथ अच्छा लगता था....

सूरज कोलेज में अपनी पुरानी यादो के साथ आगे बढ़ रहा था और उनके कदम एक जगह पर रुक गए.......

ये वो जगह थी जहा पर सूरज और सरगमने एक बड़ा पियानो बनाया था.... वो पियानो इतना बड़ा था की एक इन्सान के लिए उसे बजाना मुश्किल था | कोलेज में कोई भी आते थे तो इस पियानो को देखके हैरान हो जाते थे.... किसीने इतना बड़ा पियानो कही पर भी नहीं देखा होगा | सूरज को एक साल लग गया था ये पियानो बनाने में, उसवक्त सरगम और श्रीधरने काफी मदद की थी | श्रीधर सरगम का चचेरा भाई था और वो भी इस कोलेजमें था ओर मानो की हम सब साथ ही रहते थे |

सूरज वो पियानो के पास पहुंचा तो लगा की वो सालो से बंध पड़ा था | सूरजने वो बजाने की कोशिश की मगर, वो भी बेसूरा हो गया था | सूरज को लगा की ये तो इस संगीत कोलेज की शान और पहेचान था मगर इसको क्या हो गया ?

सूरज और सरगम यहाँ पर तो कई बार अपने गीत बनाते थे, साथ में गाते थे और उनका पूरा ग्रुप उनकी धून पे नाच गान कर लेते थे |

वो कितने अच्छे दिन थे... सरगम और मैं साथ मिलके यहाँ पर ये पियानो बजाते थे और हमारी वो धून जिसने सारे विश्वमें तहलका मचा दिया था... वो सब आज कहा चला गया ? कहा गए सारे लोग ? कहा गई इस कोलेज की रोनक ?

सूरज की आँखों से निकले आंसु वो पियानो पे जा गिरे...

वो अब अपने प्यारे पियानो की हालत ऐसे देख नहीं शकता था इसलिए सूरजने तुरंत वो पियानो फिर से ठीक करना शुरू किया... वो सोचने लगा की मैं केवल इस पियानो को ही नहीं साड़ी कोलेज को भी फिरसे ठीक कर दूंगा.....

वो फिर खो गया उस पियानो को सही करनेमें...... और उसको पता नही था की कोई दूर से उसे कब से देख रहा था.....

क्रमश:..............

डॉ. विष्णु प्रजापति

9825874