Achchaaiyan - 5 books and stories free download online pdf in Hindi

अच्छाईयां - ५

भाग – ५

सूरज की आँखे विश्वास नही कर पाई की ये आवाज उनकी हो सकती है ? सूरज उनकी ओर देख के हैरान हो गया...!! सूरज को लगा की उनकी आँखोंमें जो आजतक प्यार ही प्यार था वहा से आज अंगारे उगल रहे थे |

सूरजने उनकी आवाज और उनकी आँखों का गुस्सा नजर अंदाज किया और वो पास जाकर उनके पैरोमें बैठ गया, वैसे ही जैसे वो जब छोटा था तब बैठा करता था....! उनके पैरो की छाँव में सूरज को शुकून मिलाता था | वो उसके प्यारे दादाजी पंडित दीनानाथजी थे |

सूरजको पैरोमें बैठता हुआ और अपने पाँव छूते देखकर दादाजी तो दो कदम दूर हो गए और फिरसे बोले, ‘ सूरज तुम वापस क्यों आये?’ अभी भी उनकी आँखोंमें गुस्सा था और लग रहा था की वे सालो से सूरज के प्रति गुस्सा दबाये बैठे थे |

‘अच्छा तो ये सूरज है...’ वहां खड़े सारे स्टूडेंट्स भी आपसमें बाते करने लगे और थोड़ीदेर पहले जो सूरज के गीत पर नाच उठे थे वे भी उससे नाराज हो वैसा वर्ताव करने लगे |

‘ये सूरज यहाँ क्यों आया है...? उसे यहाँ से निकालो...!’ एक लड़केने तो जोरसे आवाज भी लगाईं और बाकी के छात्रोंने उनके सूर में सूर मिलाया | हालाकि संगीत के सूर से ये लोग अनजान थे मगर सूरज की बुराइओ के सूरमें ये सभी एक हो गए | कुछदेरमें वहा सबकी नाराजकी के सूर सुनाई देने लगे |

‘तुम सभी अपने अपने क्लासमें जाओ....!’ दादाजीने सब छात्रो की ओर देखके कहा | दादाजी का हुक्म सुनकर सारे छात्र इधरउधर चलने लगे और थोड़ीदेरमें वहां पर दादाजी, सूरज और सुगम तीन ही खड़े रह गए |

‘दादाजी इस अंकलने हमारा पियानो ठीक कर दिया....!’ सुगम दादाजी के पास गई और सूरज की तारीफ़ करने लगी मगर दादाजीने सुगम की आवाज सुनी ही न हो वैसे अपनी ऑफिस की और चलने लगे |

सूरज भी छोटे बालक की तरह उनके पीछे पीछे चलने लगा | सूरजने देखा तो कोलेज के सारे क्लास ज्यादातर बंध पड़े थे | सालो पहले जहाँ पे सूर और सरगम बज रही थी वे सारे खामोश हो गए थे |

कुछ कदम आगे एक बड़ी खुली जगह के बाद दो सीडीयां आती थी | पहली मंजिल पर जाने के लिए सबको यहाँ से ही गुजरना पड़ता था | सूरजकी नजर वहा पर रुक सी गई, वहां बिचमे एक बड़ी ट्रोफी रखी गई थी, ‘ये तो वो ट्रोफी है जो हमने विश्व संगीत प्रतियोगितामें जीती थी |’ सूरज उसको देखके काफी खुश हुआ, वो जल्दी से उसके नजदीक गया और उसके दिलमे वो दिन फिरसे याद आने लगे.... सूरज की आंखोमे फिरसे चमक आ गई | वो ट्रोफी को देखता रहा... दादाजी का भी ये सपना था की अपनी कोलेज का नाम पुरे विश्वमें सबसे ऊँचा हो... और हम सबने मिलके वो काम पूरा भी किया था |

सूरज की नजर उसके नीचे लिखे गए नाम पर गई... सरगम...रज्जू... गुंजा... मुस्ताक... पवन... श्रीधर... निहाल... झिलमिल...! ये उनकी सात सूरोवाली टीम थी | जिसमे सबके नाम सात सूरो के पहले अक्षरों से बने थे | जैसे सा से सूरज और सरगम, रे से रज्जू, गा से गुंजा, म से मुस्ताक, प से पवन, ध से श्रीधर, नि से निहाल और झिलमिल तो हम सात सूरो को सही तरह से जोड़ के रखती थी |

सूरज अपना नाम ढूंढ रहा था.... मगर ये क्या....??? सबसे नीचे उसका नाम था और किसीने उसको मिटाने के लिए उस पर काला निशान कर भी दिया था...!!

‘क्या मैं लोगोके दिलसे और ईस ट्रोफीके हिस्सेदारी से भी निकल गया हूँ ?’ सूरज अन्दर से बैचेन हो गया | मैं कितनी उम्मीदे और प्यार का सपना ले के वापस आया हूँ ... मगर यहाँ पर तो ये कोलेज.... दादाजी.... ये मेरी संगीत की टीम... सरगम.... सब लोग मुझे नफ़रत करते हो ऐसा लग रहा है...!!’ सूरजके पास अब आंसूके सीवा और कोई सहारा नही था |

फिर भी वो अपनी अच्छाई और सच्चाई लेके दादाजी की ऑफिस की और चलने लगा | सुगमभी दादाजी के साथ अपनी बांसुरी को लेके चलने लगी | श्रीधर भी ऐसे ही बांसुरी बजाता था, जो आज सुगम छोटी उम्र में बांसुरी बजा लेती थी | सुगम बारबार मुड मुड के सूरज की ओर देख रही थी, लगता था की वो सूरज के साथ बातें करना चाहती थी, मगर दादाजीने उसे घर भेज दिया | वो जाते जाते सूरजको घर आनेका और उनकी मम्मीसे जरुर मिलना ऐसा कहने लगी, हालाकि दादाजीको ये अच्छा नही लगा |

सूरज ये सब देखता रहा और सोचाता रहा, ‘इतने सालोमें सबकुछ बदल गया है, जो लगता था की मेरा है वो सब मुझसे दूर हो गया है | सरगम, दादाजी और इस कोलेज को देखने के लिए मैं कितना बैचेन था, मगर आज सभी लोग मुझे नफ़रत करते है..!! सरगमने तो वादा भी किया था की तुम संगीत की वर्ल्ड चेम्पियनशिप जीतके दिखाओ बादमे तुम्हे ऐसी गिफ्ट दूंगी जो तुम उम्रभर याद रखोगे | जब सरगम कोलेज का नाम पुरे विश्वमें फर्स्ट आया तो सब एक दुसरे से चिपक गए थे और सरगम तो सबसे पहले सूरजसे चिपक गई थी, वो कुछ कहना चाहती थी मगर चारोओर म्युझिक की आवाजमें कुछ सुनाई नहीं दे रहा था |’

सूरज के कदम दादाजी की ऑफिस के आगे रुक गए | दादाजी अन्दर थे, वो कभी उनकी इजाजत के बिना अन्दर नहीं जाता था | सूरज को पता था की आज दादाजी उन्हें अन्दर नही आने देंगे फिर भी वो दादाजी की ओर देखने लगा |

सूरजने देखा तो दादाजी की ऑफिस भी पहले जैसी नही रही | सामने दादाजी और सरगम की पुरानी फोटो लगी थी | सरगम कितनी प्यारी लग रही थी, कितने साल गुजर गए की उनको देखा, अब वो कैसी दिखती होगी ? सूरज दरवाजे पर सोचमें डूबा था |

‘तुम वापस क्यों आये?’ दादाजीने बहार खड़े सूरज को देखके उनकी और फिरसे गुस्सेमें कहा |

सूरजने तुरंत जवाब दिया, ‘ये तो मेरा घर है, मैं यहाँ न आउ तो जाऊ कहाँ ?’ फिर वो चुप हो गया |

‘तुम कही पर भी जाओ, हमें अपने हाल पर छोड़ दो...!’ दादाजी अपनी खुर्शी परसे खड़े होकर दूसरी ओर मुंह फेर लिया |

‘इस कोलेज का ये हाल कैसे हो गया ?’ सूरजने पूछा |

दादाजीने सूरज की ओर अपना मुंह किया और बोले, ‘तुम अभी भी पुछ रहे हो की ये सब कैसे हुआ ?’ थोड़ी देर वो रुके और बोले, ‘फिरभी जो तुम जानना चाहते हो की ये कैसे हुआ तो जानलो की ये कोलेज की ऐसी हालत के पीछे एक ही व्यक्ति का हाथ है....!!!’

‘कौन...??’ सूरज बेताब था ये जानने के लिए की किसने कोलेजको बेहाल कर दिया |

क्रमश:..............

डॉ. विष्णु प्रजापति

9825874810