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नियत और नियति

"नियत और नियति"
(कहानी)
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मुंचुन आज बहुत खुश थे कारण बाबूजी गाड़ी से
 बहन के पास जाने को परमिशन(अनुमती) दे दे दिए थे।
वैसे तो गाड़ी चलाना मुंचुन छ्ठी क्लास में ही सिख लिए थे,
लेकिन पैर छोटा होने के कारण 
कभी परफेक्ट ड्राइविंग नही कर पाए।

ऊपर से बाबूजी के मामा के लड़के यानी ममेरे भाई आए थे
बेचारे मुंचुन चोरी से चाभी लिए और गाड़ी हौंक दिए।
इलेक्ट्रॉनिक राजदूत वजन एक क्यूंटल कबतक सम्भाल में आता
जबतक गाँव से बाहर थे बेचारा औकात में था जैसे ही गाँव मे घुँसा
फड़फड़ाने लगा। नया उमंग उम्र केे लपेट में एक्सीलेटर दबा गया।
कुल मिला के छह-सात बाल बुत्रु को बचा दिए, गाँव के ब्यासजी भी
 बेचारे मरते मरते बचे लेकिन अंतिम में गाड़ी लेईजाके मनोहर काका के
दीवाल में ठोक दिए। 
जख्म तो कुछ ज्यादा नही हुआ पर गाड़ी कबाड़ी हो गई।

बाबूजी जाने तो गरम हो गए पूछे चाभी काहे दिए बेचारे ममेरे भाई जाने
तब न कुछ बतावें खड़े-खड़े मुंडी हिलाते रहे। गाड़ी का मरम्मत हुआ
और वो चले गए। लेकिन बाबूजी के मन मे एक डर बैठ गया कहीं 
गाड़ी उड़ाने में बेटा ऊपर न उड़ जाए सो फैसला हो गया
 आज से गाड़ी छूना नही है नही तो
हड्डी पसली सब एक बराबर। तब से मुंचुन के जीवन मे कभीकाल ही 
उड़नसुख के दर्शन हो पाते थे।

अब हुआ यूँ की रक्षाबंधन का दिन था बाबूजी थे बहुत ही व्यस्त।
बहनों के पास हर साल जाना ही होता है और संयोग से एक बहन की
अभी-अभी शादी हुई थी सो न जाने का सवाल ही नही था।
अब करें तो क्या करें सो बोले मुंचुन गाड़ी से दीदी के पास चल जाएगा
आज माववादी सब बन्द किये हुए है सिर्फ दू चक्का ही चल रहा है।
भई मन मे लड्डू फूटे मोतीचूर के एक सेकेंड को देर न भई
मुंचुन फटाक बोल बैठे काहे नही जरूरत चले जाएँगे।

बेमन ही सही बहुत सारा उपदेश देने के बाद ठीक से चलना
कोई को बैठना नही गाड़ी  लूट लेगा सब जल्दी रोकन नही,
मेंन सड़क से ही जाना आदि-आदि बाबूजी गाड़ी हाँथ में सौंप दिए।
जैसे ही चलने को तैयार हुए उनसे छोटा भाई चुनमुन भी चलने को जिद
पकड़ बैठा आखिर बाबूजी साथ में उसको भी लगा दिए।

दोनो जन मस्ती में चल दिये। 
मुंचुन दशवी में थे उमर पन्द्रह-सोलह गाड़ी तूफान मेल भई थी 
और मन उड़न खटोला। साहब सच पूछिए तो मरने का डर तो
 बुढ़ापे में ही होता है ये नौजवानी तो हूट-हुर्रर्र करती है।
भाई तो चिपटकर जोड़ से पकड़े हुए था कहीं भईया कांड न कर दें।
खैर दोनो सही सलामत बहन के पास पहुँचे और राखी बंधवाई।
खाना-पीना सबकुछ होने के बाद फिर लौटने को हुआ।
घर से ही निर्देश था आलूराज है
दिन माहौल सब ठीक नही चल रहा था सो तुरंत लौट आना है।

बड़ी बहनें थी पाकिट-वाकिट गर्म कर दोनों भाई चल दिये।
सच पूछिए तो बच्चों को राय उतनी ही दीजिये की चलबन जाए।
अब मुंचुन का दिमाग सोंचने लगा बाबूजी नहर वाले रास्ते से काहे
मना किये कुछ खास बात होगा और छोटका के मना करने पर भी
नहर पकड़ लिए। असल में नहर का रास्ता सेफ सुरक्षित नही था 
आए दिन लूट-खसोट होते रहता था और इसी से बाबूजी मना किये थे।

गाड़ी अपने रंग में आगे बढ़े जा रही थी तभी सामने बैशाखी के सहारे
एक लंगड़ा व्यक्ति खड़ा हाँथ दे रहा था। छोटका बोला मत रोकिये पापा
मना किये हैं परंतु आत्मा जवाब दे गया, गाड़ी रुकी और अपाहिज
हमारे साथ था। भाई बोला अगर कोई गाड़ी छीन ले या कुछ कर ही दे
तो क्या करेंगे या मार ही दे।

मुंचुन बोले बाबा हमेशा कहते थे 
होनी-अनहोनी यश-अपयश लाभ-हानि सब दैव के हाँथ में है 
और हम तो कठपुतली हैं।
हमारी नियति की ये हमे मिले और हमारी नियत की हमने इन्हें बैठाया बाकी
इनकी नियति और नियत जो ये जाने। इस बात के डर से कि कुछ 
गलत न हो जाए हम अच्छे काम को करना छोड़ देंगे तो भला अच्छाई और
बुराई में फर्क क्या रहेगा। कल को बॉर्डर पे खड़ा सिपाही सोंच ले कि
उसके मरने के बाद उसके परिवार का क्या होगा या अन्य राष्ट्र समर्पित ही
सोंचे कि मेरे न रहने पे मेरे परिवार का क्या होगा तब तो हो गया कल्याण।
कुछ लोग अलग सोंचते हैं और देश समाज उन्ही से जिंदा है।
अब तुम ही बड़ा हो के मुझे पटक देगा इस बात के डर से मैं अपने हिस्से के
मिठाई खिलाना और दूध पिलाना बन्द तो नही कर सकता।

खैर सारी बाते समझ आई कि नही पर ये दूध वाली बात समझ में आगई
और काम बन गया बबुआ चूप हो गया और सहमत भी हो गया।
थोड़ा दूर चलने पर ही संग बैठे अपाहिज आदमी ने हमे रोकने को कहा
और मुंचुन ने गाड़ी रोक दी।  सामने को एक पगडंडी जा रही थी मुंचुन ने
कहा ताऊ कुछ आगे छोड़ दूँ क्या उन्होंने मना कर दिया और आगे बढ़ने लगे।
ये क्या दोनो बैशाखी कंधे में दबाए सर झुकाए ताऊ आगे बढ़े जा रहे थे
धीरे-धीरे चले जा रहे थे। पूरा माजरा तो समझ मे आया पर लगा 
अब बढ़ना चाहिए क्योंकि दो-तीन लोग सामने से ताऊ को ही देख रहे थे
और शायद कुछ मंत्रणा कर रहे थे।
 एक बार उन्होंने पलट कर देखा हाथ हिलाया और मुंचुन मुस्कुरा के चल दिये।
शायद फिर एक अंगुलिमाल अहिंसक हो गया था या फिर एक खड्ग सिंह
 प्रायश्चित में था।

घर पहुँचे रास्ते मे ही तय हो गया था कि ये नहर वाली बात किसी को
बताना नही है नही तो जितनी हमे पड़ेगी उतनी तुम हमसे पिटेगा।
बात ऐसी थी कि बाबूजी जब हौंकते थे तो रेल कर देते थे, मुंचुन के पिटाई पे
बगल वाले पड़ोसी बच्चे मूत देते थे। भाई गाँव मे पैदा होइए तो लठ तो पड़ेगी।
खैर ये बात दोनो भाइयों के बीच ही रह गई चुनमुन समझदार निकला 
और मुस्कुरा रहा था शायद इस बात पे की भाई बच गए और मुंचुन मुस्कुरा रहे थे
आज जिंदगी ने कुछ सिखाया और समय जीने को एक आयाम दे गया
नियति हमारे बस में नही वो दैव के वश में है पर नियत हमारे वश में है।
नियति कुछ भी करे पर ये नियत दृढ़ बलशाली और प्रभावशाली रहेंगे।

(समाप्त)

लेखक ~ रवि प्रताप सिंह("पंकज")