Mann Kasturi re - 4 books and stories free download online pdf in Hindi

मन कस्तूरी रे - 4

मन कस्तूरी रे

(4)

रात भर बतियाई थीं दोनों! माँ जानती हैं किसी को आज सुबह जागने की जल्दी नहीं! उन्होंने कमला से धीरे काम करने को कहा ताकि उन बातूनी सहेलियों की नींद में कोई खलल न पड़े! सुबह माँ को एक बहुत जरूरी कार्यक्रम में जाना था। जाते हुए दोनों के लिये नाश्ता बना गई थीं वे ताकि दोनों को कोई परेशानी न हो। माँ आखिर माँ है। वे घर ने रहें या बाहर दोनों के स्वाद और पसंद का ख्याल रखना उनकी आदत में शामिल है! वे जानती हैं रोशेल को उनके हाथ के बने आलू के परांठे और दही का नाश्ता कितना पसंद है!

दोनों ने जमकर नाश्ता किया और बातों के पिटारे को खुलने में फिर से कोई देर नहीं लगी!

ये प्रेम भी न अजीब शय है। दो अजनबी कब एक दूसरे के साथ एक धरातल पर खड़े हो जाते पता ही नहीं चलता।“ स्वस्ति के कहे जब ये शब्द हवा में गूंजे तो उसकी निगाहें सामने दीवार पर लगी एक पेंटिंग पर स्थिर थीं!

“जानती हो रोश, कभी-कभी लगता है हम दोनों समय की एक रेखा पर खड़े हैं। समयरेखा नहीं, समझो हमारे प्रेम की टाइमलाइन। मैं पच्चीस पर खड़ी हूँ और शेखर पैंतालीस पर। मैं हर कदम पर एक साल गिनते हुये शेखर की ओर बढ़ रही हूँ और वे एक-एक कदम गिनते हुये मेरी दिशा की ओर लौट रहे हैं। ठीक दस कदमों के बाद हम दोनों साथ खड़े हैं, कहीं कोई फर्क नहीं अब, न समय का और न ही आयु का। इस खेल का मैं मन ही मन भरपूर आनंद लेती हूँ।

हम्म समयरेखा यानि लव एट टाइमलाइन, इंटरेस्टिंग है ये कांसेप्ट स्वस्ति। रोशेल सुनते हुए भी मानो मन में कुछ गुन रही है। शायद कोई सम्बन्धित कोट।

काश कि असल जीवन में भी ये फर्क ऐसे ही दस कदमों में खत्म हो जाता। पर मैं तो जाने कब से चले जा रही हूँ और ये फर्क है कि मिटता ही नहीं। डू यू नो रोशेल.... कभी-कभी मेरे और शेखर के बीच बीस साल का यह फासला इतना लंबा प्रतीत होता है कि लगता है मेरा पूरा जन्म इस फासले को तय करने में ही बीत जाएगा।

बीस साल स्वस्ति और शेखर की उम्र के बीच के ये बीस साल। क्या इससे स्वस्ति को कोई फर्क पड़ता है? यदि नहीं तो किसे फर्क पड़ता है इन बीस वर्षों के फासले से? किनके लिए परेशान है स्वस्ति?

कुछ पल कमरे में उदासी का राज है। ख़ामोशी की भी एक आवाज़ होती है और सन्नाटे का भी शोर होता है जो इस वक़्त कमरे में सायं सायं कर रहा है।

रोशेल ने कॉफ़ी का एक सिप लेकर मग टेबल पर रखा और स्वस्ति की ओर देखने लगी। उसके चेहरे पर कुछ पढने की उसकी मंशा बेकार गई क्योंकि खिड़की पर जा खड़ी स्वस्ति का चेहरा बाहर की ओर है। वह एकटक खिड़की से, बाहर आकाश में उड़ते हुए पक्षियों को देख रही है।

कोई पक्षियों से उनकी उम्र क्यों नहीं पूछता, रोशेल? क्या उम्र केवल मनुष्यों के लिए ही रूचि का विषय है? कभी कभी मुझे लगता है यह दुनिया की सबसे अधिक दिलचस्पी वाली बात है कि शेखर मुझसे बीस वर्ष बड़े हैं। अब देखो ना, दुनिया भर की दिलचस्पी मेरी और शेखर की उम्र के अंतर को लेकर है जैसे लोगों के लिए इससे जरूरी न तो कोई बात है और न कोई काम। उफ़ ये दुनिया और इसके लोग। आई ऍम रियली फेडअप!!

एक अंगुली गाल पर टिकाये रोशेल कुछ पल सोच रही है। सोचने की इस बनावटी गम्भीर सी मुद्रा में कितनी फनी लगती है स्वस्ति को रोशेल। रोशेल को अपना कोट मिल गया है। शरारत से मुस्कुराते हुए वह बताती है, मार्क ट्वेन ने कहा था "उम्र कोई विषय होने की बजाय दिमाग की उपज है। अगर आप इस पर ज्यादा सोचते हैं तो यह मायने भी नहीं रखती।"

उसकी इस खोज की कामयाबी और उसकी मुखमुद्रा पर स्वस्ति खिलखिलाकर हँस देती है, हंसी के उजले फूल पूरे कमरे में बिखर जाते हैं। कमरे की उदासी चुपके से बाहर सरक रही है। ख़ामोशी सो गई है और सन्नाटा सिर झुकाए हुए शर्मिंदा है।

रोशेल भी न, स्वस्ति का मोटा चश्मा लगाये गम्भीर चेहरे वाली पढ़ाकू दोस्त कोई मौका नहीं चूकती। स्वस्ति को मक्सिम गोर्की की एक कहानी याद आ रही है। पूरी कहानी एक रेलवे स्टेशन पर ही चलती है। वही रेल और रेलवे से जुड़े लोग इस कहानी के पात्र थे। इन्ही में उसका एक पात्र है निकोलाई पेत्रोविच। स्टेशन मास्टर का सहायक, पेत्रोविच। जो बिल्कुल यही करता था। धीर-गम्भीर, विलक्षणता का दुशाला ओढ़े वह अपनी बौद्धिकता सिद्ध करने का एक भी अवसर चूकना नहीं चाहता। उसके पास हर बात, हर अवसर के लिए कोट्स हैं। गम्भीर मुद्रा बनाकर वह हर बात के अंत में एक बौद्धिक उद्धरण चिपकाने से बाज़ नहीं आता ताकि सामने वाला उसके ज्ञान के अथाह समुद्र में डूबकर खुदकुशी कर ले। अपनी रोशेल कहाँ कम है। प्रेम से ठीक पहले तक किताबों की संगति उसका भी तो फेवरेट शगल रहा है। मैक्सिम गोर्की की कहानी के पात्र निकोलाई पेत्रोविच की तरह वह भी जाने कहाँ-कहाँ से ऐसे कोट ढूंढ लाती है।

उसके ये कोट्स और उन्हें प्रस्तुत करने का ड्रामाई अंदाज़!!! स्वस्ति जैसी गम्भीर लड़की को भी अपनी गम्भीरता छोड़ हंसी आ जाती है। शायद यही वे क्षण होते हैं जब वह खुलकर हँसती है। घर में तो हमेशा एक अजीब-सी चुप्पी छाई रहती है। उस चुप्पी के आवरण में उसकी उम्र जैसे कुछ और बढ़ जाती है। तब वह और उसकी मुस्कान दोनों जैसे मुरझा से जाते हैं। यूँ भी मुस्कान उसके लिए आकाश का एक फूल है। उसकी पहुँच और कामना से बाहर की चीज़।

रोशेल जानती है स्वस्ति किस कशमकश से गुज़र रही है। वह और उसका बेमेल प्रेम यानि पच्चीस की प्रेमिका स्वस्ति और पैंतालिस का प्रेमी शेखर। उसे उसके साथ की इस समय कितनी जरूरत है। उसकी हंसी के उजले फूल आखिर इस उदास कमरे की आबोहवा में कितनी देर खिले रह सकते हैं। वह न उन्हें मुरझाते देख सकती है और न ही स्वस्ति को। उसका बस चले तो स्वस्ति की इस मुस्कराहट को हमेशा की तरह संजो लेगी रोशेल पर काश ऐसा हो पाता। वह हर समय तो स्वस्ति के साथ नहीं रह सकती। उनकी मुलाकातें भी रोज कहाँ होती हैं। रोशेल की नौकरी और फिर आजकल अपने डार्लिंगऋत्विक के साथ समय बिताने के बाद वक़्त ही कहाँ बचता है रोशेल के पास। वैसे भीं फोन में देर तक बतियाना स्वस्ति को बहुत पसंद नहीं! तो दोनों अपनी बातों को टेप की तरह भरकर रखती चली जातीं हैं ताकि अगली मुलाकात पर सारे गिले शिकवे दूर किये जा सकें!

अच्छा चलो डिअर, जरा मार्किट चलते हैं। चलते-चलते थोड़ी गपशप करेंगे, मैक-डी में बर्गर,फ्रेंच फ्राइज खायेंगे और हाँ स्वस्ति, आर्चीज भी जाना है, कार्ड्स लेने हैं, ऋत्विक के लिए गिफ्ट्स भी। यू नो वैलेंटाइन आ रहा है।

एकाएक मूड बदलने के लिए रोशेल ने कहा तो स्वस्ति को लगा सच में इस खराब मूड में इससे बेहतर कुछ नहीं। कम से कम कुछ देर घूमेगी तो मूड बदलेगा और ध्यान भी बदलेगा। तो रोशेल की फरमाइश पर स्वस्ति उसके साथ चल पड़ी। मार्किट बहुत दूर नहीं थी तो कुछ देर बाद दोनों रिक्शे में थीं। रिक्शा मार्किट में घुस चुका था पर रोशेल ने तय किया कि पहले वे लोग मैक-डी यानि मैकडोनाल्ड रेस्तरां जाएँगी। स्वस्ति आज हर बात पर जी मैडमकहने के मूड में थी।

मैक-डी में घुसते ही सामने की टेबल पर नज़र गई तो स्वस्ति कुछ झिझक गई। सामने स्वस्ति और रोशेल के कुछ दोस्त बैठे हैं जो संयोग से शेखर के स्टूडेंट्स भी रहे हैं और दोनों के रिश्ते से भी पूरी तरह वाकिफ हैं। कुछ ठिठक गई उन्हें देखकर स्वस्ति। अगर रोशेल साथ न होती शायद बाहर से ही उलटे पांव लौट गई होती। पर अब नहीं लौट सकती।

उहूँ...सो कॉल्ड फ्रेंड्स...सबके सब मजाक बनाने वाले। जैसे मैं और शेखर प्रेम नहीं कोई गुनाह कर रहे हैं। बस मौका मिले तो इन्हें एक मौका नहीं छोड़ते टॉन्ट करने का। उफ़, कैसे पीछा छुडाऊँ इन स्पॉइल ब्रेट्ससे। स्वस्ति की बुदबुदाहट को कैच नहीं कर पाई रोशेल और लपककर सामने की टेबल पर पहुँच गई। अब कोई रास्ता नहीं बचा था। मजबूरन स्वस्ति को भी उन्हें ज्वाइन करना पड़ा।

उन दोनों को अचानक सामने देख विनय, इरफ़ान, शनाया, शैली और आकाश... सब चीख पड़े। स्वस्ति और रोशेल से काफी समय बाद मिल रहे थे सब। सब बोल रहे हैं पर कुछ समझ नहीं आ रहा, कौन क्या बोल रहा है। सब एक साथ जो बोल रहे हैं। अचकचा उठी है स्वस्ति। उफ़.... आखिर क्यों इतना शोर करते हैं ये लोग। उसे मिस सीरियस, मैम जीनियसकहकर पुकारने वाले इन दोस्तों के साथ कभी सहज नहीं रह पाती स्वस्ति। जानती है कि इम्प्रेस होकर कम और व्यंग्य से ज्यादा बोलते हैं ये लोग। उनके लिए तो वह मैडम बोरिंगही है। बचकाने और बेहूदा लगते हैं उसे इनके जुमले और नॉन वेज जोक्स। अब भी लगे हुए है।

लैंग्वेज तो देखो इन लोगों की। और ये आसपास की टेबल वाले भी क्या सोच रहे होंगे। मछली बाज़ार बना रखा है इन लोगों ने। द सो कॉल्ड यंग जेनेरेशन। इनमें शैली और आकाश कपल हैं। कैसे चिपक कर बैठे हैं। आकाश उसे चूम भी लेता है सबके सामने। उनका पब्लिकली बिवेहियर कितना बोल्ड है न। जब तक वहां से बाहर नहीं निकली स्वस्ति, यूँ ही बेचैनी से फ्रेंच फ्राइड कुतरते हुए फ़ोन के व्हाट्स एप मेसेसेज पढ़ते हुए पहलू बदलती रही। बीच में वे सब ठहाके लगाते तो वो भी फीकी सी हंसी हंस देती।

फिर एक पल को उसे लगा वे सब तो एक जैसे हैं। ठीक वैसे ही जैसे कोई युवा हो सकता है! यहाँ अगर कोई आउटडेटिड है तो वह है। एक वही तो है जो जजमेंटल हुए जा रही है। क्या गलत करते हैं ये लोग। ये लोग तो अपने वक्त को जी रहे हैं, बस स्वस्ति ही कहीं पीछे छूट गई है...शायद बहुत पीछे। इस उम्र के ज्यादातर यंगस्टर ऐसे ही बर्ताव करते हैं। कोई अलग है तो बस स्वस्ति। इस बिल में वही कभी फिट नहीं बैठी तो इन सबका क्या कसूर। स्वस्ति का गुस्सा थोड़ा कम होने लगा हालाँकि उसका मन थोड़ा उदास जरूर हो गया था।

इस सड़क के पार और सामने गोलचक्कर के राईट हैण्ड पर आर्चीज गैलरीहै। आर्चीज का गुलाब के फूल वाला लोगो देखते ही दोनों को पुराने दिन याद आ गये। द...गुड... ओल्ड ....कॉलेज.... डेज। ढेर सारे कार्ड्स और गिफ्ट्स के बीच अच्छा वक़्त गुजरता है रोशेल का। आर्चीज का माहौल कितना युवा है। इतना फ्रेश और इतना युवा कि स्वस्ति फिर अपने आप को आउटडेटिड फील करने लगती है। उसे फिर से बेचैनी होने लगी। वह ऐसा फील होने से उबरने की कोशिश कर रही है।

वैलेंटाइन डे नजदीक ही है। हिसाब लगाया स्वस्ति ने हाँ चार दिन बाद ही तो है वैलेंटाइन डे। आर्चीज में हर ओर धूम मची है। चारों और ढेर सारे वैलेंटाइन कार्ड्स, रोजेज, नये नये गिफ्ट्स हैं। उन लाल गुलाबी कार्ड्स और गिफ्ट्स में उलझी हंसती-खिलखिलाती लड़कियों की टोली को देखकर जाने क्यों स्वस्ति का मन हुआ वह भी शेखर के लिए एक कार्ड खरीदे। पहला कार्ड। कैसा कार्ड पसंद आएगा उन्हें। ये लाल-गुलाबी तो कतई नहीं।

कार्ड की तलाश में स्वस्ति थोड़ा आगे बढ़ी। ये एक दूसरे में लिपटे प्रेमिल जोड़ों वाला कार्ड भी नहीं। और ये टेडी बियर वाले कार्ड तो बिल्कुल भी नहीं। काफी ढूंढने के बाद उसने एक सुंदर कोटेशन वाला सिम्पल-सा कार्ड पसंद किया। भूरे रंग के प्लेन बैकग्राउंड वाले इस कार्ड पर जो लिखा है उसकी इबारत ने स्वस्ति के मन को छू लिया। कितना प्यारा लिखा है। कितनी सार्थक पंक्तियाँ ऐसे जैसे उसके ही मन की आवाज़। ये कार्ड्स बनाने वाले ऐसी पोयम्स कहाँ से ढूँढ़ लाते हैं। हाँ, ये एकदम परफेक्ट है शेखर के लिए। ये परफेक्ट कार्ड जरूर है पर परफेक्ट चॉइस कहाँ? क्या शेखर इसे पसंद करेंगे? अगर इसकी जगह कोई किताब होती तो शेखर को ज्यादा अच्छा लगता। बेहद करीब से गुज़रे इस इस ख्याल ने स्वस्ति को छुआ तो उसने कार्ड वापिस रख दिया और आगे बढ़ गई। उसे भी एकाएक लगने लगा ये कार्ड वार्ड देना बहुत चाइल्डिशहै। बेहतर है कोई अच्छी सी किताब ही खरीदी जाए शेखर के लिए।

ओके... लुक एट दिस स्वस्ति। अच्छा है न?

रोशेल ने एक बहुत सुंदर वैलेंटाइन कार्ड पसंद किया है ऋत्विक के लिए। वही सेड्यूसिंग से कोट्स और प्यार से एक दूसरे से लिपटे, एक दूसरे को डीपली किस करते टेडी बियर्स का प्रेमिल जोड़ा। उस कार्ड को देखकर शायद रोशेल को ऋत्विक की फ्रेंच किसयाद आ गई है। उस कार्ड का सारा गुलाबीपन रोशेल के चेहरे पर सिमट आया है। पता नहीं क्यों पर इस गुलाबीपन के आगे स्वस्ति को हर रंग फीका महसूस होने लगा। उसके पहली बार महसूस हुआ प्रेम का रंग गुलाबी है।

हाँ बहुत अच्छा है। बहुत प्यारा।

ऋत्विक को पसंद तो आएगा न यार?”

अरे हाँ, क्यों पसंद नहीं आएगा। बेहद पसंद आएगा। ये है ही इतना प्यारा तुम्हारी ही तरह। तुम्हारी चॉइस नम्बर वन है डियर.... स्वस्ति ने उसका गाल थपथपाते हुए कहा और गैलरी से बाहर निकल आई। यहाँ से वह अकेले घर जाएगी क्योंकि रोशेल यहीं से अपने पीजी चली जाएगी। शाम वह अपने ऋत्विक के साथ बिताएगी। स्वस्ति को भी शेखर की याद सताने लगी।

लौटते ही उसने शेखर को फोन लगाया पर उनका फोन व्यस्त था! कुछ देर बाद उनका फोन आया तो देर तक बतियाने की स्वस्ति की चाहत पूरी न हो सकी क्योंकि शेखर को कहीं बाहर निकलना था! अपने अधूरे मन के साथ अधूरी कामना से जूझती स्वस्ति कितना कुछ बताना चाहती थी शेखर को! वह चाहकर भी वैलेंटाइन की बात जुबान पर न ला सकी! पता नहीं शेखर को कैसा लगे! उनसे ऐसी बचकानी बातें करते हुए खुद भी तो झेंप जाती है स्वस्ति! रात को एक बार उसका मन हुआ शेखर को फिर से फोन करके वैलेंटाइन की याद दिलाये पर उनकी संभावित प्रतिक्रिया याद करके ही उसका सारा उत्साह ठंडा पड़ गया और वैलेंटाइन का ख्याल उसके मन के किसी कोने में ही खिला और मुरझा गया!

क्रमशः