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प्रेम क्षितिज




पार्टी में समीर को देखकर आशा को लगा मानों उसका अतित उसके सामने आ गया है ।

आशा मुम्बई के एक मल्टी स्टोरी बिल्डिंग में अपने पति अवनीश और दो बेटियाँ , मुस्कान और प्रीती के साथ रह रही थी । खुशहाल परिवार था उनका ।

कोई नहीं जनता था , आशा के अतित के बारें में । समीर को आज चालीस वर्ष बाद देखकर एक पल तो उसकी आँखों को यकीन नहीं हो रहा था । चहरा भी थोड़ा बदल गया था । बालों में सफेदी भी आ गयी थी । एक पल तो लगा मानो कोई ख़्वाब देख रही थी । उसकी उलझन देख समीर ने आगे आकर उससे कहा ,"कैसी हो आशा ? मुझे पहचाना ? मैं समीर । "

आशा को लगा उसके दिल की धड़कन एकदम से बंद हो गयी और फिर एकदम से ज़ोर ज़ोर से दिल धड़कने लगा ।

अब पार्टी में उसका मन नहीं लग रहा था । उसने सर दर्द का बहाना किया और अपने कमरे में चली गयी ।

कमरे में बेचैनी से इधर उधर घूम रही थी । रात का चन्द्रमा भी उसको छेड़ रहा था ।

उसके सामने था एक पार्क जहाँ समीर ने शाम छः बजे मिलने का वादा किया था । कॉलेज से आशा सीधे पार्क ही चली गयी थी । पार्क में लोग घूम रहे थे । बच्चे खेल रहे थे । युगल प्रेमी एक दूजे की बाँहों में खोये हुए थे । आशा को गुस्सा आ रहा था समीर आज भी लेट हो गया था । ये कोई नयी बात तो न थी , पर आज तो आशा का जन्मदिन था । मन ही मन समीर पर गुस्सा उतार रही थी ।

पर आज समीर नहीं आया । पता नहीं क्यों पर आज वो नहीं आया । थक हार कर आशा अपने घर चली गयी । घर में उसके माता पिता ने पूछा ," कहाँ थी इतनी देर तक ? "

आशा चुप चाप अपने कमरे में चली गयी। वहां उसने अपना पर्स फेंका , और औंधे मुँह बिस्तर पर रोने लगी । रात नो बजे उसने सबके साथ खाना खाया पर उसका मूड ऑफ ही था । किसी ने कुछ नहीं कहा उससे और दौबारा अपने कमरे में चली गयी । ऐसा नहीं की उसके माता पिता को उसकी परवाह नहीं थी पर वे जानते थे कि आशा उनसे कुछ नहीं छुपाती थी । उनको समीर और आशा के बारे में भी पता था ।

रात करवट बदलते कट गयी । सुबह उसका मन नहीं हो रहा था कि कॉलेज के लिए तैयार हो । उसने मम्मी से कहा , " माँ आज तबियत ठीक नहीं सो घर पर ही आराम करुँगी ।"

दिन गुज़रते गए , महीनों बीत गए , एक दिन आशा के पिताजी ने कहा ," आशा बेटा , तुम्हें देखने कुछ लोग आ रहे हैं । शाम को तैयार रहना । "

आशा ने अपने पापा की तरफ़ देखा तो वे बोले ," मैं जानता हूँ कि तुम समीर से प्यार करती हो । हमने तुमसे एक बात छुपाई थी ,पिछले महीने ही समीर की शादी हो गयी । उसका कार्ड आया था और फ़ोन भी । तुम परेशान हो जाओगी सोच हमने तुम्हें कुछ नहीं बताया । ज़िन्दगी में आगे चलना होगा । और मैं जानता हूँ मेरी बिटिया बहादुर हैं ।"

आशा को लगा जैसे उसके दिल के टुकड़े टुकड़े हो गए । उसको अपने कमरे का टुटा शीशा दिख गया । जो शायद पहले ही जानता था कि एक दिन आशा का दिल भी ऐसे ही टूटने वाला हो ।

पीछे से किसीने उसके कांधे पर हाथ रखा । सामने अवनीश था । अवनीश के सीने से लगकर खूब रोई । अवनीश थोड़ी देर तक खामोश रहा । फिर उसने आशा से कहा ," आशा , समीर को मैंने ही बुलाया था । वो मेरे बचपन का दोस्त है । मैं तुम दोनों के बारे में शादी के पहले से जानता था । पर तुम समीर के बारे में नहीं जानती । तुमको लगा वो तुमसे मिलने नहीं आया क्योंकि वो तुमसे प्यार नहीं करता । पर उसकी मजबूरी ने उसको आने न दिया । उसके पड़ोस में एक लड़की थी शिखा जिससे उसकी अच्छी दोस्ती थी । उस दिन जब वो तुम्हारे पास आ रहा था उसने शिखा के घर से तेज़ तेज़ आवाज़ सुनी । जब उसके घर गया तो पता चला कि शिखा पेट से थी ,और उसके प्रेमी का एक ट्रक एक्सीडेंट में मौत हो गयी थी । दोनों की जल्द ही शादी होने वाली थी । शिखा यह सुन बेहोश हो गयी ।अस्पताल ले गए तो पता चला उसके बच्चे की गर्भ में ही मौत हो गयी थी ।शिखा के घर में सिर्फ उसकी माँ थी और कोई न

ही। शिखा की मानसिक हालत ऐसी थी कि उसने शिखा से ही शादी कर ली । पर कुछ महीनो बाद उसकी भी मृत्यु हो गयी । वो तुम्हारे घर गया था पर वहां उसको अपनी शादी के बारे में पता चला । सो लौट गया वो । आज वो तुमसे ही मिलने आया था । अपनी बात को कहने ।

दूर कहीं ज़मीन और आसमान एक हो रहे थे । रोती हुई आशा अवनीश की बाँहों में सिमटती चली गयी । आसमान में एक तारा टुटा । आशा को लगा उसके प्रेम के क्षितिज ने आज फिर एक नया जन्म लिया है ।

कल्पना भट्ट