mere dil ka haal part-2 books and stories free download online pdf in Hindi

मेरे दिल का हाल भाग-2

मायरा अली के साथ दिल्ली आ गई। अली ने मायरा का सारा काम करा दिया था। कॉलेज में एडमिशन, हॉस्टल में रहने का इंतजाम अली ने सारा काम बखूबी करवा दिया था। दिल्ली से चलते वक्त अली ने मायरा को हिदायत दी थी कभी भी किसी भी तरह की मदद की जरूरत हो तो मुझसे कहना। 

"थैंक्स अली... तुमने मेरी इतनी हेल्प की" मायरा अली को उसके नाम से ही बुलाती थी। 

"बस बस थैंक्स की जरूरत नहीं है.. ये तो मेरा फर्ज था" 

मायरा को कॉलेज आए हुए 4 महीने हो गए थे। वो मेहनत से पढ़ाई कर रही थी। कॉलेज से हॉस्टल और हॉस्टल से कॉलेज मायरा का बस यही रूटीन था। मायरा बीच में एक बार घर भी गई थी। 

"मायरा दिल्ली में है...ये बात मुझे सायमा से पता चली और ये क्या बात हुई अपना घर होते हुए बच्ची हॉस्टल में रहे"  एजाज को जब पता चला कि मायरा दिल्ली में है और हॉस्टल में रह रही है तो उन्हें बहुत तकलीफ हुई और यही बात पूछने के लिए वो अहमद के पास आए थे। "माना के तुम मुझसे बहुत गुस्सा हो लेकिन ऐसी भी क्या नाराजगी कि तुम ने बेटी को हॉस्टल भेज दिया... मेरा घर नहीं था क्या... मैंने मायरा को हमेशा अपनी बेटी की तरह ही समझा है और बेटियां घर में रहती हुई अच्छी लगती है हॉस्टल में नहीं" 

"मैं तुम्हें परेशान नहीं करना चाहता था" अहमद ने कहा ।

"नहीं अहमद ये सब तुमने गुस्से की वजह से किया... यार एक बार फिर मैं तुमसे माफी मांगता हूं' एजाज ने अहमद के सामने खड़े होते हुए कहा।

"क्या यार बार-बार माफी मांग कर मुझे शर्मिंदा मत कर" अहमद ने एजाज़ को गले लगा लिया। 

"तो फिर ठीक है अब मायरा हॉस्टल में नहीं मेरे घर में रहेगी... तुम मायरा को फोन करके बता दो"

मायरा एजाज अंकल के घर नहीं जाना चाहती थी   जईम की वजह से लेकिन जब सब ने उसे समझाया तो उसे सब की बात माननी पड़ी। 

'हाय... मैं शायान हूं आपके एजाज अंकल का बेटा हम आपको लेने आए हैं आपका सामान किधर है" शायान ने एक सांस में कहा। 

मायरा के सामने एक कम उम्र लड़का खड़ा था। गौर से पहचानने पर मायरा ने उसे पहचान लिया था। वो एक बार एजाज़ अंकल के साथ गांव भी आया था और वो आज भी ऐसा ही था। 

"हेलो.. कहां हैं आप.. पॉप्स आपका बाहर इंतजार कर रहे हैं" शायान ने मायरा के आंखों के आगे हाथ हिलाते हुए कहा।

"पोप्स कौन.... मायरा के समझ में नहीं आया। 

"आपके एजाज अंकल यानी के मेरे अब्बा... मैं उन्हें पोप्स कह कर बुलाता हूं"

"ओह"  मायरा के मुंह से बस इतना ही निकला। 

"मायरा बच्चे तुम दिल्ली में 4 महीनों से हो और अपने अंकल से एक बार भी मिलने नहीं आई" एज।ज़ ने कार में बैठते हुए कहा।

"बस अंकल पढ़ाई में ध्यान ही नहीं रहा" मायरा ने कार का दरवाजा बंद करते हुए कहा। 

"आप मेरे ही कॉलेज में है लेकिन मैंने आपको कभी देखा नहीं" शायान ने ड्राइव करते हुए कहा। 

"तुम कॉलेज जाते ही कब हो और अगर जाते भी हो तो क्लासेस कब अटेंड करते हो" एजाज ने शायान से कहा "तुम्हारी तो आवारागर्दी ही खत्म नहीं होती" 

"पॉप्स आप मेरी बेइज्जती तो मत कीजिए ओप्स के सामने" 

"ओप्स...ये ओप्स क्या है" 

"जैसे मैं आपको पॉप्स बुलाता हूं वैसे ही इन्हें आपी ना कहकर ओप्स बुलाऊंगा"

पॉप्स के बच्चे... तुम मायरा को आपी ही बुलाओगे समझे" एजाज ने शायान को डांटा। 

"पॉप्स... आपी बड़ा ओकवर्ड सा लगता है" 

"मायरा अब तुम आ गई हो ना तो देखना ये बातें कर करके तुम्हारा दिमाग खा जाएगा ये चुप बैठता ही नहीं है" 

"कोई बात नहीं अंंकल.. शायान को देखकर जावेद की याद आ गई वो भी बिल्कुल शायान जैसा ही है" 

"मतलब मैं आपसे कभी भी बात कर सकता हूं" शायान ने मिरर से मायरा को देखा। 

"जब चाहे जितना जी चाहे मुझसे बातें कर सकते हो लेकिन मेरी भी एक शर्त है... तुम मुझे आपी ही कहोगे" 

"चले आप की ये शर्त हमें मंजूर है" 

एजाज़ अंकल का बंगला बहुत बड़ा था। जहां वो अपने दोनों बेटों के साथ रहते थे और साथ में आमना अपने शौहर असगर के साथ रहती थी। आमना खाना बनाने और साफ-सफाई का काम करती थी जबकि असगर वॉचमैन और गार्डन को साफ करने का काम करता था। उन दोनों का क्वार्टर बंगले के साइड में ही था। 

मायरा को 2 दिन हो गए थे यहां आए हुए वो शायान के साथ ही कॉलेज जाती थी और ये भी अच्छा था कि उसका अभी तक ज़ईम से सामना नहीं हुआ था क्योंकि वो शहर से बाहर गया हुआ था।

  "अम्मो मैं आपकी मदद कर देती हूं नाश्ता बनाने में" मायरा ने किचन में आते हुए कहा। वो भी शायान की तरह आमना को अम्मो कहने लगी थी। 

"अरे मैं बनाती हूं ना तुम्हें कॉलेज के लिए देर हो जाएगी" आमना ने कहा। 

"कॉलेज जाने में अभी वक्त है तब तक मैं आपकी हेल्प कर देती हूं"

आमना के ना ना करने के बावजूद मायरा ने आमना के साथ मिलकर नाश्ता बनवाया। 

"मायरा बच्चे तुम्हारा यहां मन तो लग गया ना" 

"जी अंकल... शायान भी तो है ये मेरा मन लगाए रखता है अपनी बातों से" वो तीनो नाश्ते की टेबल पर मौजूद थे। 

"जब से तुम यहां आई हो तो ये यहां दिखाई दे रहा है वरना ये सारा वक्त बाहर ही होता है... इसे ये भी परवाह नहीं कि अपना थोड़ा सा वक्त अपने बाप को दे दे" एजाज ने चाय पीते हुए कहा।

"पॉप्स आपी नई जनरेशन की है उनके साथ बातें करना वक्त बिताना अच्छा लगता है और आप ओल्ड हो चुके हैं..... आपको में  ज्यादा से ज्यादा अपना आधा घंटा ही दे सकता हूं" शायान ने बेचारगी से कहा। 

शायान की बात पर एजाज हंस दिए थे "देखा तुमने सामने वाले के मुंह पर साफ बात बोलता है और इस तरह से कि उसे बुरा भी ना लगे" 

"अंकल इन 2 दिनों में मैं इतना तो जान गई हूं कि शायान हंसमुख चंचल और मुंहफट है" मायरा ने हंसते हुए शायान को देख कर कहो।

"आप मेरी तारीफ कर रही है या बुराई" शायान ने कुछ सोचते हुए कहा "देख लिया है मैंने सबको... कोई मुझसे प्यार नहीं करता भाई के अलावा" 

ज़ईम के जिक्र पर मायरा का कोई रिएक्शन नहीं था जबकि एजाज साहब बोल पड़े थे।

"कहां है तुम्हारा भाई.... 2 दिन को बोल कर गया था और आज 5 दिन हो गए हैं एक फोन तक नहीं किया" एजाज साहब गुस्से में थे। 

"रात मेरी बात हुई थी भाई से कह रहे थे कि एक-दो दिन और लगेंगे आने में" शायान ने एक नजर मायरा पर डाली।

ज़ईम को जब पता चला कि मायरा यहां आकर रहने वाली है तो उसको बड़ा गुस्सा आया था। 

"हमारा घर क्या कोई धर्मशाला है कि कोई भी आकर रह लेगा" 

"तुम्हें क्या परेशानी है अगर मायरा यहां आकर रहेगी" एजाज ने अखबार पढ़ते हुए कहा ।

"मुझे क्या परेशानी होगी उसके यहां रहने से' ज़ईम चिड़ गया था। 

"भाई ऐसा तो नहीं कि आप मायरा का सामना करने से बच रहे हैं" शायान ने सोचने कैसे अंदाज में कहा। 

"जस्ट शट अप..  मै क्यों उस गवार से बचना चाहूंगा"   ज़ईम ने शायान को देखा। 

"बस बहुत हो गया... बार बार ये गवार अल्फाज मत बोला करो... जैसा तुम सोचते हो मायरा ऐसी बिल्कुल नहीं है" एजाज़ साहब गुस्से में खड़े हो गए थे। 

"मैं आपको ये बताने आया था कि मैं दो-तीन दिनों के लिए अहमदाबाद जा रहा हूं मशीनें देखने"  ज़ईम अपनी बात कह कर जा चुका था।

"समझ में नहीं आता कि आखिर ये लड़का चाहता क्या है" 

"पॉप्स आप क्यों परेशान होते हैं। आपको तो पता है कि भाई किस नेचर के हैं" शायान ने कहकर बात खत्म कर दी थी और तब से ज़ईम का कुछ पता नहीं था। 

"चले आपी कॉलेज के लिए देर हो जाएगी" 

"खुदा हाफिज अंकल" मायरा ने चेयर से उठते हुए कहा। 

"खुदा हाफिज बेटा "

आज इतवार होने की वजह से मायरा देर से उठी थी और शायान उसके पास चला आया था। शायान ने जोक सुना सुना कर उसके पेट में दर्द कर दिया था। 

मायरा के हंसते हंसते पेट में दर्द हो गया था तो उसने शायान को रोका था। 

"अच्छा ये बताइए दिल्ली में आप ने क्या क्या देखा" 

"अभी तो कुछ भी नहीं "

"वॉट..... आप 4 महीने से दिल्ली में हो और अभी तक आप दिल्ली नहीं घूूूमी"  शायान ने हैरत से पूछा। 

"बस पढ़ाई के चक्कर में घूमने के बारे में सोचा ही नहीं" 

"चलिए तो आज हम आपको दिल्ली घूमाते हैं" शायान ने खड़े होते हैं कहां। और मायरा ने शायान के साथ सारे हिस्ट्री कल पैलेस देखें, शॉपिंग की और अच्छे से रेस्टोरेंट में खाना खाया। शाम को 7:00 बजे उन दोनों की वापसी हुई। 

"शायान तुमने तो आज मुझे बहुत थका दिया" मायरा ने शॉपिंग बैग सोफे पर डालें। 

"आपको मजा आया ना" 

"हा.. बहुत"

"तो बस इस मजे के आगे थकन कुछ भी नहीं" 

"शायान ज़ईम बाबा तुम्हारे बारे में पूछ रहे थे तो मैंने कह दिया तुम मायरा के साथ बाहर गए हो" आमना ने किचन  में से आते हुए कहा।

"फोन आया था भाई का" 

"नहीं वो अपने कमरे में है" आमना ने वापस किचन में जाते हुए कहा। 

 "भाई कब आए" शायान एकदम सोफे से खड़ा हो गया।

"ज़ईम बाबा तो दोपहर में ही आ गए थे"  आमना ने किचन से कहा। 

शायान ज़ईम के कमरे की तरफ बढ़ गया जबकि मायरा अपने कमरे की तरफ ।

"भाई कैसे हैं आप"  शायान ज़ईम के गले लग गया। 

"फुर्सत मिल गई तुम्हें घूमने से" 

"वो बस जरा आपी को दिल्ली घूमाने निकल पड़ा था" 

"अच्छा तो तुमने उस गवार से रिश्ता भी बना लिया" 

"मायरा आपी बहुत अच्छी है भाई... जैसा आप सोचते हैं वो ऐसी नहीं है" शायान को अपने भाई की सोच पर अफसोस हुआ। 

"अच्छा और ज्यादा तरफदारी मत करो अपनी उस आपी की" ज़ईम ने आपी शब्द को लंबा खींचा। 

रात को खाने की टेबल पर तीनों बाप बेटा मौजूद थे बस मायरा नहीं थी। वो ज़ईम का सामना नहीं करना चाहती थी। 

"मायरा कहां है" एजाज ने शायान से पूछा। 

"आपी को भूख नहीं है पॉप्स... हमने शाम को बाहर खाना खा लिया था मैं उन्हें बुलाने गया था खाने के लिए लेकिन उन्होंने ये कहकर मना कर दिया कि उन्हें भूख नहीं है" 

तीनों खामोशी से खाना खा रहे थे। एजाज़ उस वाक्य के बाद से ज़ईम से जरा कम ही बोलते थे। 

"मैंने मशीनों का ऑर्डर दे दिया है एक हफ्ते बाद मशीनें आ जाएंगे" ज़ईम ने चुपचाप खाना खाते एजाज से कहा। 

"मशीने अगर अच्छी हो तभी लेना" एजाज़ ने ज़ईम  की तरफ देखे बिना कहा ।

"मैंने मशीनो को अच्छी तरह से चेक किया है...सब  ठीक है बाबा" 

"बस वर्कर को कोई परेशानी ना हो और जैसा तुम ठीक समझो"  एजाज खाना की टेबल छोड़ कर उठ खड़े हुए।

"बाबा मुुुझसे कब तक नाराज रहेंगे" ज़ईम ने शायान से कहा। 

"अगर आपको पॉप्स की नाराजगी की इतनी ही परवाह है तो कर लीजिए उनकी पसंद की लड़की से शादी"

"वो तो कभी नहीं हो सकता" ज़ईम ने ग्लास टेबल पर पटका। 

शायान ज़ईम को देखता रह गया।

"आपी आए नाश्ता कर ले" 

"नहीं शायान आज मेरा मन नहीं है" मायरा ने बहाना बनाया।

"ये क्या बात हुई" 

"आज मेरा मन नहीं है तुम नाश्ता करो फिर कॉलेज के लिए निकलते हैं" 

"लगता है आज मुझे अकेले ही नाश्ता करना पड़ेगा" 

"क्यों क्या हुआ और अंकल कहां है" मायरा ने बेताबी से पूछा। 

"पॉप्स और भाई तो ऑफिस के लिए जल्दी निकल गई... उन्हें ऑफिस जल्दी जाना था.... लगता है आज मुझे अकेले नाश्ता करना पड़ेगा" शायान ने वापस जाते हुए कहा। 

मायरा कुछ सोचते हुए बाहर आ गई "अम्मो जल्दी से नाश्ता लाइए" 

"आप तो कह रही थी कि आपका मन नहीं है" शायद ने टोस्ट खाते हुए कहा। 

"मैंने सोचा तुम्हें कंपनी दे दो" 

"मायरा ने ज़ईम की मौजूदगी में खाना और नाश्ता करना छोड़ दिया था। अभी तक मायरा और ज़ईम का आमना-सामना नहीं हुआ था। ज़ईम नाश्ता सबके साथ करता जबकि रात का खाना ज्यादातर  घर    से बाहर ही खाता। वो जब भी खाना नाश्ते की टेबल पर होता है तो मायरा बहाना बना देती थी। आखिर वो कब तक ऐसा करती।  शायान नेे उसकी ये चोरी पकड़ ली थी। 

"आप भाई से छुप क्यों रही है" शायान ने आज मायरा को पकड़ लिया था।।  

                               बाकी अगले भाग मे