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नया सवेरा - (सवेरे का सूरज) - 1

नया सवेरा - (सवेरे का सूरज)

यशवन्त कोठारी

(1)

खट। खट।।

’’कौन ? ‘‘

’’जी। पोस्टमैन। बाबू जी आपकी रजिस्टी है। आकर ले लें। ‘‘अभिमन्यु घर से बाहर आया। दस्तखत किये। लिफाफा लिया। खोला। पढ़ा। और खुशी से चिल्ला पड़ा।

‘‘मॉ। मॉं मुझे नौकरी मिल गयी। ‘‘

अभिमन्यु तेजी से दौड़ पड़ा। खुशी के मारे उसके पांव जमीन पर नहीं पड़ रहे थे। पिछले तीन वर्पो से वह निरन्तर इधर उधर अर्जियां भेज रहा था, साक्षात्कार दे रहा था मगर नतीजा वही ढाक के तीन पात। हर बार या तो उसकी अर्जी निरस्त हो जाती या फिर साक्षात्कार में उसे अयोग्य घोपित कर दिया जाता। मगर इस बार उसे पूरी उम्मीद थी क्योंकि यह नौकरी मेरिट के आधार पर दी जानी थी और मेरिट में उसका स्थान पहला था। तमाम सिफारिशी लोग रह गये और अभिमन्यु को यह नौकरी मिल गयी। उसने घर के अन्दर आकर मॉं बापू के चरण छुए। उन्होंने आशीप दी। बूढ़ी, पथरायी, पनियल ऑंखों में खुशी के आंसू छलक पड़े उनके बुढ़ापे की एक मात्र आशा थी अभिमन्यु। अभिमन्यु की आंखों में भी खुशी छा गयी। कमला ने पूछा।

‘‘ भैया कैसी नौकरी है और कहां लगी है ’’ ?

‘‘ अरी पगली। नौकरी तो अध्यापक की है, मगर साथ में मुझे छात्रों के छात्रावास का वार्डन भी बनाया गया है। यहां से पचास किलामीटर दूर जो कस्बा है न वहीं पर जाना है, सोचता हू परसों सोमवार को ड्यूटी पर लग जाउं। अब देर करने से क्या फायदा। ’’ क्यों बापूं।

‘‘ हां बेटा अब जाकर भगवान ने हमारी सुनी है तुम तो मन लगाकर काम करना। ईश्वर में आस्था रखना। ईमानदारी व सच्चाई का दामन थामे रखना। ’’ कमला इसका सूटकेस तैयार कर दे। भागवान रास्ते के लिए कुछ बना देना ताकि जाते ही बेटे को तकलीफ न हो ’’

‘‘ अरे तो क्या सारी नसीहतें आज ही बॉंट दोगे। जाओ जाकर सबसे पहले गली-मोहल्ले में यह खुशखबरी सुनाओ और सुनों सबको मिठाई भी बंटवा दो। ’’ अभिमन्यु की मॉं ने कहा।

अभिमन्यु के बापू गली मौहलो में यह समाचार सुनाने के लिए बाहर चले गये। अभिमन्यु अपने दोस्तों से बतियाने चला गया। कमला और उसकी मॉं ने अभिमन्यु के जाने की तैयारी शुरू कर दी।

अभिमन्यु का गांव एक छोटा सा गांव है। ग्रामीण परिवेश के बावजूद अभिमन्यु ने पास के कस्बे में रहकर पढ़ाई की। पढ़ाई में हमेशा अव्वल आता था। छात्रवृत्ति, ट्यूशन तथा घर की खेती के सहारे पढ़ गया। अध्यापक की टेनिंग भी कर ली। वह नौकरी की तलाश के साथ-साथ गांव के बच्चों की ट्यूशन करता रहा। वह एक हंसमुख, खूबसूरत जवान लड़का था जो अपने गांव में एक आदर्श के रूप में देखा जाता था उसने गांव के स्कूल को सेकण्डरी स्कूल में बदलने के लिए काफी कोशिश की, लगातार सरकार को लिखता रहा। अफसरों से मिलता रहा स्कूल की आवश्यकता पर उसने स्थानीय अखबारों में भी लिखा और अन्त में अपने गांव में स्कूल खुलवाने में कामयाब हुआ। दूसरी ओर वह प्रतियोगी परीक्षाओं में भी बैठने की तैयारी कर रहा था।

उसके मां-बाप औसत भारतीय ग्रामीण लोगों की तरह सीधे, सच्चे और सरल थे। कुछ खेतीबाड़ी थी, मोटा खाते थे मोटा पहनते थे, तथा घर में कुल चार प्राणी थे अभिमन्यु उसकी छोटी बहन कमला और मां-बाप। कमला भी पढ़ रही थी। अभिमन्यु उसकी पढ़ाइ्र की ओर विशेप ध्यान देता था।

गांव छोटा था, मगर आपसी सौहार्द था। भाईचारा था। गांव के झगडे आपस में मिल बैठ कर निपटा लिये जाते थे। बड़े बुजुग्रेा का सम्मान था। छोटों के पगति स्नेह और बराबरी के लोग आपस में प्रेम भाव रखते थे। सांप्रदायिक झगड़ों से कोसों दूर था गांव। सर्वधर्मसमभाव था।

अभिमन्यु घर से बाहर निकला तो उसे अकबर मिल गया। जो कभी उसके साथ पढ़ता था, मगर अपनी पुश्तैनी दुकान पर बैठकर व्यापार में व्यस्त रहता था। उसने अकबर से कहा-

‘‘ अकबर। सुन मुझे नौकरी मिल गयी है। और मैं सोमवार को जा रहा हूं।’’

‘‘ अच्छा। बहुत बहुत बधाई। ओर सुन अब मिठाई खिलाने वापस आयेगा या अभी खिलायेगा। ’’

‘‘ मिठाई तो मां-बाबूजी बांट रहे हे। ’’

‘‘ अब हमारी किस्मत में तो दुकान लिखी है, सो भुगत रहे हैं। ’’

‘‘ इसमें भुगतना क्या है, भाई , मुझे परिस्थितियों के कारण नौकरी करनी पड़ रही है। ’’

‘‘ अच्छा सुन। वहां रहकर हमें भूल मत जाना, गांव आते जाते रहना। ’’

‘‘ कैसी बात करता है अकबर तू भी। तू मेरा सबसे प्यारा दोस्त है और रहेगा।’’

‘‘ अच्छा आ गांव का चक्कर लगाकर आते हैं। ’’

‘‘ कल जाने की तैयारी करूंगा और सोचता हूं वहीं रहकर प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी भी करूं ।’’

‘‘ ठीक है। तुम्हें पढ़ने का शौक है और हमें मस्त रहने का। ’’ दोनो हंस पड़े।

***

अभिमन्यु की नियुक्ति जिस छोटे कस्बे के आवासीय विद्यालय में हुई थी, उस का नाम राजपुर था। यह जिला मुख्यालय के पास था। और यहां पर सभी प्रकार की सुविधाएं भी थी। अभिमन्यु प्रातः ही अपने सामान के साथ चल पड़ा और बस से राजपुर आ गया। राजपुर में अभिमन्यु सीधा अपने विद्यालय में चला आया। वहां पर आते आते दस बज चुके थे। उसने विद्यालय में प्रवेश किया। और मन ही मन विद्या के मन्दिर को प्रणाम किया। विद्यालय बहुत बड़ा नहीं था मगर अन्य स्थानों की तुलना में भवन आदि ठीक थे। पास में ही छात्रावास था, जहां पर इस विद्यालय के छात्र रहते थे। उसने कदम प्राचार्य कक्ष की ओर बढ़ाये। बाहर बैठे चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी से उसने पूछा-

‘‘ प्रिंसिपल साहब हैं ? ’’

‘‘ हां है। मगर व्यस्त हैं। ’’

‘‘ उनसे कहना अभिमन्यु बाबू मिलना चाहते हैं, मेरी नियुक्ति इसी विद्यालय में हुई हैं ’’

‘‘ ओह। आप इन्तजार करें मैं प्रिंसिपल साहब को खबर करता हू .

चतुर्थश्रेणी कर्मचारी अन्दर गया। शीघ्र वापस आया और अभिमन्यु को आदर से अन्दर जाने के लिए कहा।

अभिमन्यु ने अन्दर जाते ही प्राचार्य का अभिवादन किया। प्राचार्य ने मुस्करा कर उसका स्वागत किया। बैठने को कहा और बोले।

‘‘ देखो अभिमन्यु। तुम युवा हो। उत्साही हो और सबसे बड़ी बात ये कि तुम मेरिट से चुनकर आये हो। मुझे पूरा विश्वास है कि तुम अपनी प्रतिभा के बल पर इस विद्यालय के छात्रों को और भी आगे बढ़ाओगे। अध्ययन के अतिरिक्त तुम्हें विद्यालय के छात्रावास का भी अधीक्षक कमेटी ने बनाया है क्योंकि यह जरूरी था। सभी छात्र परिसर में ही रहते हैं ताकि उनका सर्वागीण विकास हो। ’’

‘‘ अभी तुम कहां ठहरे हो ? ’’

अभिमन्यु ने ध्यान से देखा। प्राचार्य महोदय एक प्रौढ़ और शालीन व्यक्तित्व के धनी थे। चश्में के पीछे से जिज्ञासा भरी आंखें उसे देख रही थी।

‘‘ जी अभी तो मैं सीधा बस स्टेण्ड से आ रहा हू . ’’

‘‘ ठीक है। तुम्हारे रहने की व्यवस्था भी छात्रावास में ही होगी उन्होंने घंटी बजाई और चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी को बुलाकर निर्देश दिये।

‘‘ सुनो रामलाल। ये अभिमन्यु, बाबू हैं हमारे नये विज्ञान अध्यापक तथा छात्रावास के अधीक्षक। इनका सामान छात्रावास-अधीक्षक-आवास में रखवा दो। ’’ ‘‘ जी बहुत अच्छा सरकार। ’’

‘‘ और अभिमन्यु बाबू आप भी फ्रेश होकर आ जायें। आज से आप की ड्यूटी शुरू है। ’’

‘‘ जी बहुत अच्छा। धन्यवाद, नमस्कार ’’

‘‘ नमस्कार। ’’

रामलाल के साथ अभिमन्यु बाबू छात्रावास में आ गये। छात्रावास में कुल पचास कमरे थे। हर कमरे में दो छात्र थे। कुछ अन्य छात्रावास भी थे। अभिमन्यु को छात्रावास तथा विद्यालय का वातावरण भा गया। उसे नौकरी मिलने की खुशी तो थी ही इस मनेारम और स्वच्छ स्कूल के वातावरण को देखकर और ज्यादा खुशी हुई।

रामलाल सामान रखकर जा चुका था। अभिमन्यु ने छात्रावास के चौकीदार को बुलाया। अपना आवास साफ कराया। नहा धेाकर तरेताजा हो गया। अब तक छात्रावास में यह खबर जंगल की आग की तरह फैल चुकी थी कि नये अधिक्षक विज्ञान के अध्यापक भी हैं और उन्होंने अपना काम संभाल लिया है। अभिमन्यु ने छात्रावास के छात्रों को अपने कक्ष में उपस्थित होने के निर्देश दिये। सभी छात्र आज यथाशीर्घ अपने गणवेश में नये अधिक्षक से मिलने के लिए आ गये। अभिमन्यु ने देखा सभी छात्र मध्यम वर्गो से आये हुए थे। कुछ पढ़ाई में तेज थे, तो कुछ खेलकूद में और कुछ संस्कृतिक कार्यक्रमों में रूचि रखते थे।

छात्रावास की व्यवस्था सुचारू रूप से चलाने के लिए अभिमन्यु ने यर्वप्रथम हर पच्चीस छात्रों पर एक मॉनीटर तथा चार मॉनीटरों पर एक प्रोक्टर नियुक्त करने की बात कही, सभी छात्रों ने इसे सहर्प स्वीकार कर लिया। विंग अ का मानीटर अभिमन्यु ने पढ़ाई में सबसे तेज छात्र लिम्बाराम को बनाया। विंग ‘‘ब’’ का मॉनीटर असलम को बनाया गया, जो खेल-कूद में होशियार था। और विंग ‘‘स’’ का मॉनीटर सुरेश शर्मा को बनाया विंग ‘‘द’’ का मॉनीटर राजेन्द्र सक्सेना को बनाया गया। इन मॉनीटरों पर विंग के छात्रों की जिम्मेदारी डाली गयी। उसने शारीरिक दृप्टि से सबसे सुदृढ़ अवतारसिंह को जो सबसे उंची कक्षा का विद्यार्थी था प्रोक्टर नियुक्त कर दिया।

अब छात्रों को सम्बोधित करते हुए कहा-

‘‘ प्रिय छात्रों, मैं आपका अध्यापक या छात्रावास का अधीक्षक मात्र नहीं हूं बल्कि आपका स्थानीय अभिभावक भी हूँ । आप अपनी किसी भी समस्या के निराकरण हेतु कभी भी मेरे पास निस्स्ंकोच आ सकते हैं। मेरी कोशिश होगी कि आपकी समस्या का समाधान हो तथा आप अपना पूरा समय पढ़ाई तथा अन्य गतिविधियों में लगा सकें। पिछले कुछ वर्पो से यह विद्यालय जिले में अव्वल आता रहा है, मेरी कोशिश होगी कि यहां के छात्र पढ़ाई, खेलकूद तथा सांस्कृतिक सभी क्षेत्रों में अपना वर्चस्व स्थापित करें।’’

अचानक अभिमन्यु ने देखा कि प्राचार्य महोदय भी चुपचाप आकर पीछे खड़े हो गये हें एक क्षण को उसने अपना वक्तव्य बन्द किया मगर उनकी मोन अनुमति पाकर वह पुनः बोलने लगा।

’’ मित्रों। आज जीवन में सभी चीजों का महत्व है। न केवल पढ़ाई, न केवल खेलकूद बल्कि हर क्षेत्र में काम करना पड़ता है हमारे इस छात्रावास में सभी प्रकार के छात्र है और हम सभी को समान अवसर देकर आगे बढ़ाने की कोशिश करेंगे। मेस की व्यवस्था के लिए भी एक समिति बना दी जायेगी। जो ठेकेदार के काम की देखरेख करेंगी।

यह कहकर अभिमन्यु ने प्राचार्य की ओर देखा। और कहा।

’’ प्राचार्य जी भी आपसे कुछ बातें करेंगे। ‘‘

प्राचार्य ने कहा-’’छात्रों अभिमन्यु बाबू के रूप में आप लोगों को एक नये, उत्साही अध्यापक मिले हैं, जो पूरी लगन तथा मेहनत से आपके साथ कंधे से कंधा भिडाकर काम करेंगे और मुझे विश्वास है कि आप विद्यालय की गरिमा को और उॅचा करेंगे। मेरी शुभकामनाएं आपके और अभिमन्यु बाबू के साथ हैं। कल से नियमित सत्र तथा अध्यापन शुरू हो जायेगा। आप लोग कल सुबह 10 बजे विद्यालय प्रांगण में एकत्रित हो वहीं पा आगे बातचीत होगी। ‘‘

यह कहकर प्राचार्य ने अभिमन्यु बाबू को छात्रावास की मिटिंग समाप्त करने की आज्ञा दे दी।

***

विद्यालय का पहला दिन। विद्यालय के स्टाफ रूम में सभी अध्यापक व अध्यापिकाए उपस्थित हैं। लगभग 30 अध्यापक व 3 अध्यापिकायें प्राचार्य स्वयं भी आज अपने कक्ष के बजाय यहीं पर आ गये हैं छात्र विद्यालय प्रांगण में एकत्रित हो रहे हैं।

प्राचार्य ने अभिमन्यु बाबू का परिचय अन्य साथी अध्यापकों एवं अध्यापिकाओं से कराया। सभी ने अभिमन्यु बाबू को हाथों हाथ लिया। अभिमन्यु बाबू के सौम्य व शालीन व्यक्तित्व से सभी प्रभावित थे। एक दो अध्यापक इस बात से दुखी थे कि वे छात्रावास के अधीक्षक नहीं बन सकें। मगर बात बिगड़ी नहीं थी। सब ठीक था। प्रांगण में छात्र पंक्तिबद्ध खड़े थे। प्रार्थना शुरू हुई। पी.टी. हुई प्राचार्य ने छात्रों व अध्यापकों का स्वागत किया। उद्बोधन दिया। उन्हें देश के श्रेप्ठ नागरिक बनने की नसीहत दी। प्रजातान्त्रिक मूल्यों के बारे में बताया और फिर नियमित कक्षा में पढ़ने को भेज दिया। अभिमन्यु बाबू के ष्शुरू के दो कालांश खाली थे। इस समय का सदुपयोग उन्होंने साथी अध्यापकों से परिचय में गुजारा। अंग्रेजी पढ़ाने वाले एग्लो इण्डियन अध्यापक थे एन्टनी। गणित के अध्यापक थे महेश गुप्ता। हिन्दी की अध्यापिका मिसेस प्रतिभा और कॉमर्स के अध्यापक चन्द्र मोहन ष्शर्मा थे। कुछ अन्य अध्यापक भी थे।

एक बात अभिमन्यु को लगी कि हो न हो विद्यालय के अध्यापकों में गुटबाजी जरूर होगी। लेकिन उसने इस ओर ध्यान देने के बजाय अपने अध्यापन काय्र हो ही प्राथमिकता देना उचित समझा। पीरियड लग चुका था। वह हाजरी रजिस्टर, चाक, डस्टर लेकर कक्षा दस के कक्ष की ओर चल पड़ा। आज कक्षा में उस का पहला दिन था और वो मानता थाकि प्रथम दिन पूरी मेहनत से अपना प्रभाव जमाना पड़ता है। उसने आत्मविश्वास के साथ पड़ाना शुरू किया, छात्र दत्तचित्त हो कर उसका व्याख्यान सुन रहे थे। कालांश की समाप्ति पर वह पुनः स्टाफ रूम में आ गया।

सूरज ढलने लगा था। धूप के टुकड़े खिड़की के रास्ते अभिमन्यु के चेहरे पर पड़ रहे थ। उसका चेहरा संतोप के सुख से जगमगाने लगा था। वह उठा, सुराही से पानी पिया और पुस्तकालय की ओर बढ़ गया।

***

जैसे ही ट्रेन मुड़ी अन्ना अचकचा कर धक्के से हिली। जागी। खिड़की के बाहर हल्की रोशनी हो रही थी। सुबह का मनोरम वातावरण बन रहा था। गाड़ी मद्रास से थेाड़ी ही आगे आई थी अब गाड़ी तीस घन्टों से ज्यादा चल चुकी थी।

गाड़ी में चौतरफा बन्द दीवारों के अन्दर बन्द वे दोनों। दूसरी सहयात्री अन्ना के लिए अजनबी, थी। कितना आश्चर्य, साथ साथ लेकिन अलग-अलग। एक दूसरे के लिए अजनबी, शुरू में सहयात्री ने कुछ आगे बढने की कोशिश की थी लेकिन अन्ना की उपेक्षापूर्ण हां, हूं से निराश होकर सो गई थी।

सोई हुई महिला को देख कर उसने मुंह बिचकाया। वह तौलिया ले बाथरूम में धुस गई फ्रेश होकर बाहर आई तो गाड़ी दिल्ली के पास कहीं रूकी पड़ी थी। वह यादों के धुंधलके में खोने लगी।

उसे याद आये पापा, मम्मी। पिछले साल का यूरोप का ट्रिप । महानगरों की जिन्दगी। कॉलेज के दिन। पापा उसे बताते थे महाराणा प्रताप का बलिदान और स्वतन्त्रता संग्राम में राजस्थन का योगदान। उनके अनुसार भारत में शिवाजी और प्रताप का कोई सानी नहीं था। बिजोलिया का किसान आन्दोलन, जैसलमेर के सागरमल गोपा का बलिदान जोधपुर के पैलेस और पुराने कवियों के कवित्त। चतरसिंहजी बावजी की सिखावन, राजिया रा दूहा। मीरा ओर बिहारी की धरती पर वह पहली बार पांव रखने जा रही थी। कैसा होगा राजस्थान ? कैसी होगी उदयपुर की पहाड़ियॉं, जैसाणा और जेाधाणा की रम्मतें।गुजरात के सदा बहार मज़े कठियावाड की मस्तियाँ भी याद हो आई .

उसने सर को हल्का सा झटका दिया यादों के धुंधले आसमान के क्षितिज पर फिर एक लाल सूरज डूबने लगा।

गाड़ी चलने लगी उसके यादों के सितार पर फिर उॅगलियां दौड़ने लगी। रागों की एक अजनबी पहचान उसे महसूस होने लगी। क्या करेगी वह राजस्थान जाकर। अपनी पुरखों की माटी को सर पर लगा लेने से ही क्या हो जयेगा। क्या उसे मन की शान्ति मिल पायगी। क्या उसे घुटन से मुक्ति मिल पायेगी। लेकिन अब वो कर ही क्या सकती थी ?

कभी अमेरिका में, कभी यूरोप में कभी भारत में और अब अपनी मातृभूमि के सहोदरों के बीच। यह कैसी प्यास है जो बुझती नहीं बढ़ती ही चली जाती है क्या कोई नदी कभी तृप्त होती है। बाढ़ के बावजूद नदी की प्यास क्यों नहीं बुझती।

दोपहर का सूरज तेज हो रहा था। गाड़ी जयपुर स्टेशन पर आकर रूकी उसने अपना झोला उठाया और प्लेटफार्म के बाहर आ गई।

उसने अपने मन में एक नई खुशी महसूस की की मम्मी पापा की लाड़ली बेटी फिर एक महानगर की विशाल सड़कों पर अपनी जड़ो की खोज में भटकने लगी थी। उसे समझ नहीं आ रहा था अब वह क्या करेगी। अकेलापन। भटकाव। उलझाव। फिर भटकाव। क्या भटकाव ही जिन्दगी है। या कोई एक अनिवार्यता, जीवन की सार्थकता की खोज में भटकाव। बस भटकाव, उसे फिर याद आया, अनन्त की खोज में, जीवन एक बिन्दु है। और इस बिन्दु से होकर समस्त बिन्दु संसरण करते हैं यह संसरण के बिन्दु की खोज ही भटकाव है। भटकाव ही अनिवार्यता है। सच पूछा जाये तो क्या जीवन की खेाज रिश्तों की उप्णता की खोज की एक चाह नहीं है।

***