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नया सवेरा - (सवेरे का सूरज) - 5

नया सवेरा - (सवेरे का सूरज)

यशवन्त कोठारी

(5)

इस कस्बेनुमा गांव में प्रधान जी का बोलबाला था। वे ही यहां के सर्वेसर्वा थे। आने वाला हर अफसर उनकी चौखट पर हाजरी देता था। मगर सामन्तशाही के विदा होने के साथ साथ प्रधान जी का रोबदाब कम होता जा रहा था। वे इस बात से परेशान थे। इधर नया विकास अधिकारी भी उन्हें कुछ नहीं समझता था। प्रधान जी का मकान कस्बे के बीचोंबीच था। वे जिले के मुख्यालय से छपने वाले स्थानीय पत्र को पढ़ रहे थे। पत्र में विद्यालय में पर्यावरण का्रर्यक्रम तथा वृक्षारोपण का समाचार विस्तार से छपा था। वे इस समाचार से नाराज थे। मगर कुछ कर नहीं पा रहे थे।इसी समय विद्यालय के प्राचार्य महोदय आये। और अभिवादन कर बोले।

‘‘आपने बुलाया था । ’’

‘‘ जी हां, आपके यहां जो नया लड़का आया है और जो छात्रावास का वार्डन भी है। क्या नाम है उसका ? ’’

‘‘ जी अभिमन्यु बाबू। ’’

‘‘ हां उसे थेाड़ा समझा देना। मेरे से पंगा लेकर वह ठीक नहीं कर रहा है। यहां पर हकूमत हमारी है। ये ठीक है कि वृक्षारोपण का हो गया। विकास अधिकारी की बात चल गयी। मगर अब आगे किसी नये काम में हाथ नहीं डालें तो ठीक होगा। ’’

‘‘ लेकिन वो हमारी जमीन थी और हमने उसका उपयोग किया। इसमें गलत क्या था ? ’’

‘‘ सवाल सही या गलत का नहीं है सवाल ये है कि क्या ये कल के छोकरे मुझे पढ़ायेंगे। ’’

‘‘ आप गलत समझ रहें है। अभिमन्यु बाबू ने केवल छात्रों तथा विद्यालय के हित में काम किया है। तथा र्प्यावरण में सुधार से सभी का फायदा है। वर्पा समय पर होगी। गरमी कम पड़ेगी। वातावरण ठीक रहेगा। पशुओं, पक्षियों, मनुप्यों, पेड़, पौधों सभी को शुद्ध वायु मिलेगी। ’’प्रचार्य ने विस्तार से समझाया।

‘‘ मुझे भाषण मत दो। मैं सब जानता हू। हम उस जमीन का अधिग्रहण कर सकते थे। मगर मैंने यह ठीक नहीं समझा। मेरी पहुच राजधानी तक है। ’’

‘‘ आप के प्रभाव से मैं इन्कार नहीं करता। ’’ प्राचार्य बोले।

‘‘ सवाल ये है कि मैं अपने आदमियों को कैसे समझाउं, वे कहीं कुछ कर बैठे तो तुम्हारे अभिमन्यु बाबू बड़ा कप्ट पायेंगे। ’’

‘‘ ठीक है सर मैं चलता हू। ’’

‘‘ हॉं उन्हें किसी सामाजिक झझंट से दूर रहने की सलाह देनां चुपचाप आये कक्षा लें और वेतन लें। ’’

प्राचार्य महोदय चले गये। उनके मन में कइ्र तरह के विचार आ रहे थे। वे प्रधान जी के निहित स्वार्थे तथा घटिया हथकण्डों से परिचित थे। इधर अभिमन्यु बाबू एक युवा उत्साही अध्यापक थे वे उनके उत्साह को भी बनाये रखना चाहते थे।

वे जब विद्यालय की ओर बढ़ रहे थे तभी छात्रावास का प्रोक्टर अवतार सिंह व कुछ अन्य छात्र दौड़ते हुए आये प्राचार्य से बोले-

‘‘ सर अभिमन्यु सर पर कातिलाना हमला हुआ हे वे बेहोश है। हम आपको खबर करने आये हैं कुछ अन्य छात्र अस्पताल ले गये हैं। ’’

‘‘ चलो अस्पताल चलते हैं। ’’ प्राचार्य व छात्र तेजी से अस्पताल की ओर चल पड़े। डाक्टर प्राचार्य से परिचित थे। बोले-

‘‘ घबराने की बात नहीं है। मामूली चोट आई है शायद हमलावर ज्यादा कुछ कर नहीं पाये। शीघ्र ही होश आ जायेगा।’’

तभी पुलिस वाले भी आये। अभिमन्यु बाबू एक खाट पर लेटे थे। सिर पर पट्टी थी। उन्होंने आंखे खोली। प्राचार्य व छात्रों को देख कर मुस्कराने की कोशिश की। कमला उनके पास ही खड़ी थी। प्राचार्य के पूछने पर अभिमन्यु बाबू ने पुलिस कार्यवाही के लिए मना कर दिया।

‘‘ ये छोटे मोटे हादसे तो होते रहते हैं सर। इनमें थाना, पुलिस, कोर्ट, कचहरी की नहीं आपसी समझ और सदभाव की जरूरत है। वे लोग अपनी गलती समझ जायेंगे। क्योंकि प्रधान जी के आदमी शायद जमीन के मामले में मेरे से नाराज थे। ’’अभिमन्यु बाबू ने शान्त स्वर में कहा।

‘‘ हां ये तो उन्होंने मुझसे भी कहा था। ’’ प्राचार्य बोल पड़े।

‘‘ सर आपकी इजाजत हो तो हिसाब-किताब बराबर कर दें। ’’ अवतार सिंह बोल पड़ा।

लिम्बाराम और असलम ने भी हां भरी। मगर अभिमन्यु बाबू तुरन्त बोल पड़े।

‘‘ नहीं नहीं। कभी नहीं। हमें हिंसा से नहीं प्यार और भाईचारे से उन्हें जीतना है। ’’

तभी खबर पाकर मिसेज प्रतिभा तथा अन्ना भी आ गयी। अभिमन्यु बाबू की देखरेख का जिम्मा प्राचार्य ने छात्रों को दिया। रात में व्यवस्था हेतु निर्देश देकर वे चले गये। अभिमन्यु बाबू आराम करने लगे।

कुछ दिन तक कस्बे में तनाव रहा मगर अभिमन्यु बाबू की सूझबूझ तथा छात्रों पर उनके नियंन्त्रण के कारण कोई अप्रिय घटना नहीं घटी। बीमारी के दौरान अभिमन्यु बाबू ने घर पर खबर नहीं होने दी। वे स्वयं बीमारी से आत्मबल से लड़े और जल्दी ठीक हो गये। छात्रावास में आकर अभिमन्यु बाबू ने वृक्षारोपण की अपनी योजना को पुनः जारी रखा। वे सुबह क्लास लेते। सांयकाल वृक्षारोपण कार्यक्रम को देखते ओर रात में प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करते। बारिश का मौसम आ गया था। नन्हें नन्हें पौधे धीरे धीरे बढ़ रहे थे प्रकृति ने एक हरी मखमली चादर ओढ़ रखी थी। पौंधेां को देखकर अभिमन्यु बाबू अक्सर खुश होते। उन्हें लगता मानों सैकड़ों बच्चें एक साथ खिलखिला रहे हों।

लिम्बाराम और साथी मॉनीटरों ने छात्रावास के कमजोर छात्रों की एक सूची बनाकर उनको पढाने की व्यवस्था की। इससे छात्रों में एक नये उत्साह का संचार हुआ। असलम ने फुटवाल की टीमें बनाई और रोजाना मैदान पर अभ्यास करने लगा।

अवतार सिंह ने एक रोज आकर बताया कि छात्रावास के कमरा नम्बर पच्चीस में रहने वाला छात्र रंजन आजकल गुमसुम और अकेला रहता है। अभिमन्यु बाबू ने एक रोज शाम के समय रंजन को अपने कक्ष में बुलाया और उससे प्यार से पूछा।

‘‘ बोलो रंजन तुम्हें क्या परेशानी है, मैंन सुना है तुम कोई नशीली दवा खाने लगे हो। ’’

प्रारम्भ में तो रंजन मना करता रहा। मगर बाद में सहानुभूति पाकर बोल पड़ा।

‘‘ सर। मैं अत्यन्त दुखी और परेशान हू। मेरे माता-पिता के पास धन तो बहुत है मगर मेरे लिए समय बिल्कुल नहीं है इसी कारण छात्रावास में रहता हू। बचपन में महीनों मैं अपने पिता से बात नहीं कर पाता था। मम्मी अलग सामाजिक कार्यो में व्यस्त रहती थी। एक रोज मेरे मित्र ने मुझे यह डग का रास्ता दिखा दिया। ’’

‘‘ क्या छात्रावास में तुम्हारे अलावा भी कोई ऐसी दवा लेता है ? ’’

‘‘ नहीं। प्रारम्भ में मैंने एक आधा कश लिया मजा आया। फिर मैं आदि होने लगा। ’’

‘‘ अच्छा तुम मेरे साथ डाक्टर के चलो। ’’

पूरी बात सुनकर डाक्टर साहब बोले-

‘‘ नशीली दवाओं का सेवन एक विश्वव्यापी समस्या है मगर रंजन अभी प्रारम्भिक अवस्था में है। कुछ दवाओं और कुछ स्नेहभाव से ठीक हो जायेगा। ’’

अभिमन्यु बाबू ने रंजन के कमरे में लिम्बाराम की ड्यूटी लगा दी और रंजन में धीरे धीरे खोया हुआ आत्मविश्वास वापस आने लगा। उन्होंने प्राचार्य को कह कर रंजन के पिता को भी बुलाया। रंजन के पिता को सब कुछ समझाया गया। उन्होंने प्रतिमाह रंजन को देखने आने का वादा किया। अगली बार रंजन के माता पिता आये। रंजन उस दिन बहुत खुश था। मां बाप के जाने के बाद रंजन ने डग छोड़ने का निश्चय किया। अभिमन्यु, लिम्बाराम व अन्य छात्रों ने रंजन को अपने साथ रखा। धीरे-धीरे रंजन ठीक हो गया।

रंजन अब नशीली दवाओं के शिकंजे से बच गया था। वह छात्रावास के अन्य छात्रों को इन दवाओं, तम्बाकू आदि के कहर से अवगत कराने लगा। पढ़ाई के साथ साथ रंजन को इस काम में मजा आने लगा।

अभिमन्यु बाबू ने नशे से बचने के लिए छात्रों में जागरूकता लाने के उद्देश्य से डाक्टर साहब की एक वार्ता छात्रावास में कराने का निश्चय किया। डाक्टर साहब इस कार्य हेतु सहर्प तैयार हो गये।

सायंकाल के समय छात्रावास के कॉमनहाल में अभिमन्यु बाबू ने सभी छात्रों को एकत्रित होने का निर्देश दिया। प्रारम्भिक उद्बोधन के बाद डाक्टर साहब ने अपनी बातचीत प्रारम्भ की। उन्होंने कहा- मैं भापण देने के बजाय आन लोगों के साथ एक संवाद कायम करके अपनी बात कहूंगा ताकि आप लोग नशे की बुराईयों और उसके दुप्प्रभाव को आसानी से समझ सकें। ’’

‘‘ वास्तव में मादक द्रव्यों का प्रयोग एक गंभीर विश्वव्यापी समस्या है। आज की पीढ़ी की सामाजिक, व मानसिक स्थिति कल की पीढ़ी से अलग है। पीढ़ियों के इस अन्तराल के कारण एक संवादहीनता की स्थिति बन गयी है, ओर आज का युवा इस संवादहीनता का हल नशीली चीजों में तलाशता है। रंजन ने यही किया था। उसके पिता माता से उसका संवाद नहीं हो रहा था। क्यों रंजन। ’’

‘‘ जी हां डाक्टर साहब मैं अकेलेपन और उपेक्षा से उब गया था । ’’

‘‘ तुम ठीक कहते हो रंजन। उपेक्षा के कारण व्यक्ति नशे की और प्रव्रत होता है। शहरी परिवेश, समाज, पाश्चात्य संस्कृति आदि कारण भी युवा को नशे की आंर धकेलते हैं। ऐसी स्थिति में कोई साथी उन्हें दवा की पहली खुराक देता है, मजा आता है और फिर व्यक्ति उसका आदि हो जाता है। आज प्रतिवर्प लाखों लोग तम्बाकू के सेवन से मर रहे हैं। तम्बाकू के अलावा, गांजा, चरस, अफीम, हेरोहन, बा्रउनश्शुगर, स्मेक आदि दवाओं का घातक असर ह्दय संस्थान, फेफडों, दिमाग आदि पर होता है। ’’

‘‘ लेकिन सर क्या नशे से पीडित व्क्ति को सामाजिक तिरस्कार से ठीक किया जा सकता है ? ’’ लिम्बाराम ने पूछा।

‘‘ नहीं बेटे। नशे से पीड़ित व्क्ति को सहानुभूति चाहिए। उस कारण का पता लगना चाहिए जिससे वह नशे का आदि होता है। तभी उसे नशे की लत से छुटकारा दिलाया जा सकता है। ’’डाक्टर साहब ने शंका समाधान किया।

नशे वाले युवा को प्यार, सहानुभूति से ठीक किया जा सकता है। उन्होंने उपसंहर किया।

छात्रों पर वार्ता का बहुत अधिक असर हुआ।

रंजन व कुछ अन्य छात्रों ने मिलकर कस्बे के युवाओं को तम्बाकू सेवन के नुकसान बताने हेतु एक शिविर लगाया। शिविर से कस्बे में एक जागरूकता आई। परिणाम स्वरूप कई युवाओं ने तम्बाकू के सेवन से बचने की कसम खाई।

मगर प्रधान जी के आदमी इस धटना से फिर नाराज हो गये। उनके ही आदमी डग बेचते थे। अभिमन्यु बाबू के इस प्रयास पर फिर एक रोज प्राचार्य को टेलिफोन पर कहने लगे।

‘‘ देखो प्रिंसिपल साहब ये सब ठीक नहीं है। ’’ अभिमन्यु बाबू इसी तरह करते रहे तो हमें दूसरे रास्ते काम में लाने होंगे। ’’ प्राचार्य को धमकी देते हुए प्रधान जी बोले।

‘‘ वो तो आप अजमा चुके हैं। अभिमन्यु बाबू पर हमला हो चुका है। ’’

वो मेरा काम नहीं था। मैं उन्हें हटवा दूंगा। न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी। ’’

‘‘ देखिये प्रधान जी अध्यापक का जो दायित्व हैं वही अभिमन्यु बाबू कर रहे हैं। इस लड़ाई में मैं उनके साथ हू। क्योंकि सच्चाई, इमानदारी और नैतिकता हमारे साथ है हमारा रास्ता इन्साफ का रास्ता है। ’’प्राचार्य बोले।

‘‘ मैं तुम्हें भी समझा रहा हू। ’’

‘‘ मैं जानता हू आप क्या कहना चाहते हैं मगर अध्यापक के पास नैतिक बल के अलावा है ही क्या, हम इसी बल पर जिन्दा हैं और रहेंगे। ’’

‘‘ जैसी तुम्हारी मर्जी। मैं अपने आदमियों को नाराज नहीं कर सकता।’’ ये कहकर प्रधान जी ने टेलिफोन रख दिया।

प्राचार्य ने एक गहरी सांस ली और स्टाफ रूम की ओर चल पड़े। वहां पर अभिमन्यु बाबू व अन्य अध्यापक थे। प्राचार्य ने संक्षेप में प्रधान जी से हुई बातचीत का ब्योरा दिया। तो गणित के गुप्ता जी बोल पड़े।

‘‘ हमें इन सब झगड़ो में पड़ने की जरूरत क्या है ? ’’

‘‘ हम अपनी कक्षा ले और आराम करें।’’ चन्द्र मोहन शार्मा बोल पड़े। कुछ अन्य अध्यापकों ने भी उनका साथ दिया। तभी मिसेज प्रतिभा ने कहा हम सब मिलकर यदि किसी अच्छे काम में साथ नहीं दे सकते तो हमारे होने का अर्थ ही क्या रह जाता है ? ’’

अभिमन्यु बाबू ने लड़कों में नशीली दवा की आदत छुड़ाने के प्रयास किये तो सभी को अच्छा लगना चाहिए। आखिर यह एक विश्वव्यापी समस्या है और एक पूरी पीढ़ी के भविप्य का प्रश्न है। क्या गुमराह पीढ़ी को सही रास्ता दिखाना हमारा कर्तव्य नहीं है। ’’

‘‘ समस्या का निदान यह तो नहीं कि हम कस्बे के प्रभावशाली लोगों से लड़ें। ’’

‘‘ हम कहां लड़ रहें हैं। ’’प्राचार्य बोले। ‘‘और न ही हमें लड़ना है। ’’

‘‘ हमारी जिम्मेदारी हमारे छात्र और उनका सर्वागींण विकास है। हमें नैतिक मूल्यों की रक्षा करनी है। ’’

‘‘ आप ठीक कहते हैं सर। ’’पहली बार अभिमन्यु बोल पड़ा।

‘‘ समाज में व्याप्त बुराई का यदि एक अत्यन्त छोटा सा हिस्सा भी हम नप्ट कर सकें तो यह हमारी एक बड़ी सफलता होगी और इस सफलता के लिए हमें कुछ सहन भी करना पड़े तो करना चाहिए। ’’ अभिमन्यु ने दृढ स्वर में कहा।’’ और फिर समस्याओं से भागकर हम जायेंगे कहॉं, वे तो साये की तरह हमारे पीछे लगी रहेगी। हमें समस्याओं से निपटना पड़गा। चाहे वे सामाजिक हो या आर्थिक या राजनैतिक या फिर मानसिक। ’’

‘‘ ठीक है। प्राचार्य बोल पड़े। अगले महीने हम विद्यालय में भी कुछ सांस्कृतिक कार्यक्रम करेंगे। मैं चाहता हूं कि इन कार्यक्रमों की बागडोर मिसेज प्रतिभा आप संभाले।’’

‘‘ जैसा आप उचित समझें। ’’

छुट्टी की घन्टी बजी।

सभी लोग अपने अपने घरों की ओर चल पड़े।

***

सायंकाल का समय था। अन्ना और मिसेज प्रतिभा टहलती हुई छात्रावास में आई। कमला वहीं थी। वे तीनों बातें करने लगी। थोड़ी देर में अभिमन्यु बाबू मेस की व्यवस्था देखकर लौटे, तो बोले।

‘‘ अन्ना जी आपका प्रोजेक्ट कैसा चल रहा है ? ’’

‘‘ ठीक चल रहा है। अगले माह प्रोफेसर यहॉं आयेंगे तब पूरी जानकारी हो सकेगी।’’

‘‘ अच्छा तब सांस्कृतिक कार्यक्रम में उन्हें ही मुख्य अतिथि बना लें। ’’ प्रतिभा ने कहा।

‘‘ हां हां क्यों नहीं यह तो खुशी की बात होगी।’’ अन्ना बोल पड़ी। अभिमन्यु ने भी सहमति जता दी।

सेचती हूं इस बार सांस्कृतिक कार्यक्रम में कुछ नया करें। आप क्या सोचते है।’’

‘‘ नया अवश्य करें, मगर समस्या-प्रधान चीजें लें, तोकि हम नई पीढ़ी को कोई सन्देश दे सकें। बालविवाह, बालिका शिक्षा, नशीली दवाओं से बचाव आदि पर कोई वाद विवाद या नाटक किया जा सकता हे। ’’

हम नशाबन्दी, मिलावट, अर्थशुचिता, पर भी कुछ कार्यक्रम कर सकते हैं। ’’ अभिमन्यु ने विपय सुझाये। अन्ना ने कहा।

‘‘ हम छात्र-श्क्षिा संबन्धों पर भी चर्चा कर सकते हैं। विपयों की कमी नहीं है। ’’

‘‘ हां विपय तो और भी हो सकते हैं, विधवा विवाह, दहेज, कालाबाजारी, गांवों से पलायन, स्वरोजगार आदि। मगर कार्यक्रमों का स्वरूप कैसा हो ? ’’ मिसेज प्रतिभा ने जानना चाहा।

‘‘ कार्यक्रम जनरूचिकर तथा शिक्षप्रद भी हो।’’ अभिमन्यु की बाते मिसेज प्रतिभा को जम गयी।

अब बातचीत का विपय अन्ना का प्रोजक्ट हो गया। तभी कमला चाय बना लाई। चाय पीते हुए अन्ना बोली।

‘‘ पुरूप प्रधान समाज में नारी की स्थिति कैसे सुधर सकती है ? ’’

‘‘ ष्शायद आप गलत सोचती हैं। नारी ही नारी की सबसे बड़ी शत्रु है। एक नारी दूसरी नारी का शोपण करती है। धर में भी और समाज में भी। मामला दहेज का हो या शिक्षा का। नारी नारी का साथ नहीं देती। ’’ अभिमन्यु बोला।

‘‘ मैंने यूरोप में भी देखा और अपने देश में भी। वहां भी मन भटकता है। यहां भी भटकता है भटकाव ही औरत की जिन्दगी है क्या ? ’’

‘‘ नहीं। भारतीय परम्परा और संस्कृति में नारी मन में भटकाव नहीं है भटकाव पाश्चात्य संस्कृति की देन है। और अभी भी औरत स्त्री भटकाव में नहीं लगाव में जीती है और यही कारण है कि हमारे देश में शादी एक पवित्र बन्धन है। ’’ अभिमन्यु बोला।

‘‘ हां ये तो है। ’’ मिसेज प्रतिभा ने कहा।

इसी कारण पश्चिम की तुलना में हमारे समाज में स्थायित्व है। मन धर परिवार में एकाकार हो जाता है। आस्थावादी विचारों के कारण भारतीय जन मानस स्वयं का ही नहीं सम्पूर्ण विश्व का कल्याण करता है वह सब को साथ लेकर चलता है। सब के प्रति समभाव। धर्म हमारे लिए एक साधन है। बाधा नहीं। ’’ अभिमन्यु ने कहा।

तभी छात्रावास के चौकीदार ने आकर अभिमन्यु के हाथ में तार दिया। तार अभिमन्यु बाबू के धर से आया था उनके पिताजी की तबियत ठीक नहीं थी।

अभिमन्यु बाबू ने तुरन्त कमला से कहा तैयार हो जाओ। हम अभी गॉंव चलेंगे। ’’

मिसेज प्रतिभा ने कहा-‘‘ आप बापू व मां को यहीं ले आईयें ’’

अन्ना ने भी कहा-‘‘ हां यहीं ठीक रहेगा यहां पर चिकित्या की सुविधा भी अच्छी है। ’’

अभिमन्यु बाबू बोले-‘‘ मैं तो शुरू से ही इसी कोशिश में था। मगर मॉं बापू मानते ीही नहीं थे। अब जाकर ले ही आता हू। ’’

‘‘ आप ज्यादा चिन्ता नहीं करे। इैश्वर सब ठीक करेगा। उसमें आस्था से जीवन की हर कठिन घड़ी गुजर जाती है। ’’ मिसेज प्रतिभा ने अभिमन्यु को सांत्वना दी।

‘‘ अमंगल में मंगल छिपा है। सब ठीक हो जायेगा। ’’ अन्ना ने भी कहा।

‘‘ अच्छा हम चलते हैं। आप बापू-मां को लेकर जल्दी आईयेगा। ’’ ये कहकर अन्ना मिसेज प्रतिभा चल पड़ी।

अन्ना व मिसेज प्रतिभा के जाने के बाद अभिमन्यु व कमला ने बस पकड़ी और गांव पहुंच गये।

***