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नया सवेरा - (सवेरे का सूरज) - 2

नया सवेरा - (सवेरे का सूरज)

यशवन्त कोठारी

(2)

वह शहर के दक्षिणी भाग की और चल पड़ी। सामने विश्वविद्यालय की लम्बी, उंची बहुमंजिली ईमारतें दिखाई दे रही थी। शिक्षा, सृजन और शैक्षणिक दुनिया का एक अनन्त विस्तार या सुनहरी रेत के पार का संगीत की धाराओं का अनोखा मिलन। दूर तक फैली मासूम धरती। सुहागन की गोद में सोया हुआ मासूम जगत। इस शांत पड़ी झील के तट पर। प्यास का अन्तहीन सिलसिला। प्यास केवल प्यास। जिसके बुझने की आस कभी नहीं रही मेरे पास। सृजन का सुख या समपर्ण का अनोखा संसार। धाराओं के धोरी और आग उगलता विस्तार शिक्षा जगत का, जहां से भाग कर वो यहां पर आई है। अन्ना समझ नहीं पा रही । इस के आगे का अन्तहीन विस्तार उसे किस मोड़ तक पहुंचा देगा। क्या यह सम्भव है कि वो अतीत की परते खोले बिना आगे बड़ जाये। मां बचपन में चल बसी पिता व्यापार और पैसे में व्यस्त। उसका अकेलापन भटकाव बढ़ाता ही चला जा रहा था।

वह एक नई राह पर चल पड़ी सामने केन्द्रीय पुस्तकालय था। शाम अलसाने लगी, एक चिरपरिचित गन्ध की तरह शाम ढलने लगी धूप के कुछ टुकडे खिडकी की राह से अन्दर हॉल में आकर चुपचाप बैठ गये। कुछ चिड़ियाएं भी न जाने कहां से अन्दर घुस गई थी। वह यो ही मन को समझाने हेतु अन्दर हाल में आ गई।

इधर-उधर दीवारों पर एक उदास भूरा रंग। धूसरे धूसरे चेहरे और एक उदास मुस्कान। उसने अपना सर एक सचित्र पत्रिका में गड़ा दिया।

तभी उसे किसी की आवाज सुनाई पड़ी।

’’ हैलो।‘‘ उसने चौंक कर सिर उठाया। एक अजनबी लेकिन मोहक लड़की उसे सम्बोधित कर रही थी।

’’ नई आई हो।‘‘

’’ हां ‘‘

’’ एम.ए. करने। ‘‘

’’ नहीं। ‘‘

’’ तो फिर‘‘

’’ फिर । ‘‘

’’ फिर। ‘‘

और दोनों खिलखिलाकर हंस पड़ी।

’’ तुम्हारा नाम। ‘‘

’’ अन्ना और तुम्हारा। ‘‘

’’ आशा। ‘‘ लगा जैसे सैकड़ों नन्हे सूरज एक साथ उग पड़े हों, याकि चांदनी जाग गइ्र हो। वह समझ नहीं पाई अचानक हुई इस मुलाकात का क्या होगा। लेकिन बात बन गई। उसे फिर याद आया। सुबह की ताजा धूप के टुकड़ों को जी लो। पता नहीं कब चांद घाटी में चरने चला जाये। क्वारेपन की कच्ची धूप उस लड़की की आंखों में टिमटिमा रही थी उसका मन बोराएं पक्षी की तरह फड़फड़ा रहा था। वह नहीं समझ पायी की क्या करें मगर वृक्ष में फड़फड़ाती हवाएं रास्ता ढूंढ़ रही थी और वे एक दूसरे को जानने समझने के लिए केन्टीन की ओर बढ़ गई। अन्ना के लिए यह गाढ़ी और सूखी धुन्धनुमा धूप थी। केन्टीन के एकान्त कोने में दोनों जम गई।

आसपास की मेजें भी भरी पड़ी थी। चिड़ियों की तरह चहचहाती लड़कियां और मंडराते लड़के। कहीं कोइ चिन्ता या भटकाव या उलझाव का नाम नहीं।

‘‘ हां तो अब बताओं अपनी राम कहानी। ’’ यह कह कर आशा फिर खिलखिला कर हंस पड़ी। पहली बार अन्ना ने उसे ध्यान से देखा। सुर्ख तांबई रंग, हलके घुंघराले बाल। मुंह पर अनोखा तेज और हंसती बोलती आंखें। शायद जमाने की धूप और सर्द हवाओं से उसका चेहरा अभी बचा हुआ था।

‘‘ क्या बताउ। मेरे डैड ने मुझे अपनी जन्म भूमि राजस्थान देखने को भेजा है। मां बचपन में ही चल बसी। डैड ने ही पाल पोस कर इतना बड़ा किया समाज विज्ञान में एम.ए. हूं। देश-विदेश घूमी। मगर मन है कि भटकता ही रहता है। पहाड़ों में, मैदानों में, दिशाओं में मैं इस भटकाव को ढूंढती फिरती हूं। इस बार अपनी जन्म भूमि देखने आई थी स्वर्गादपिगरियसी यह भूमि कैसी है, रेतके टीबे या जिन्दगी की रोशनी या फिर बैलगाड़ियों और उंटों के काफिले। ’’

‘‘ अच्छा। अच्छा बन्द कर अपनी कविता और सुन मेरी। ’’

‘‘ अरे हॉं मैं तो भूल गई थी कुछ अपने बारे में भी तो बता। ’’

मैं अपने बड़े भाई के साथ यही यूनिवर्सिटी क्वाटर्स में रहती हॅू। केमेस्टी में एम.एस.सी. कर रही हू और भैया यहीं समाजविज्ञान के प्रोफेसर हैं। ’’

‘‘ अच्छा। ’’ फिर तो तुम्हारे भैया से मिलना चाहिए। ’’

‘‘ लो पहले चाय पीलो। चाय ठण्डी हो रही है। ’’

‘‘ अच्छा भाई। चलों जयपुर में कुछ सुकून मिल जायेगा। ’’

‘‘ अच्छा एक बात बताओ यूरोप तुम्हें कैसा लगा। ’’

‘‘ बस कुछ ज्यादा पसन्द नहीं आया। सीमित दिमाग और सीमित जीवन सब कुछ स्वयं में सिमटा हुआ। दीन-दुनिया से कटा सा। ’’

‘‘ सिमटा हुआ जीवन भी कोई जीवन है। हमारे देश में सब कुछ विस्तृत और महान्। इस महान देश की परम्पराऐं भी महान हैं। ’’

‘‘ तो कब तक रहेगी यहॉं ? ’’

‘‘ जब तक मन लग जाये। शायद पूरा जीवन या कल सुबह ही चली जाउॅ। कहना मुश्किल है। रमता जोगी और बहते पानी की तरह है मेरा मन। पल में तोला और पल में माशा। फिर भी शायद यहां पर कुछ समय तक रह जाउॅगी। अच्छा तुम्हारे भाई से कब मिलाओगी। ’’

‘‘ तुम कहां ठहरी हो। ’’

‘‘ स्टेशन के पास के होटल में। ’’

‘‘ ऐसा कर तू घर ही आ जा। ’’

‘‘ लेकिन। ’’

‘‘ लेकिन, लेकिन क्या। पूरा बड़ा क्वार्टर है और हम केवल दो। ’’ ‘मैं ओर भाईजान। ’’

‘‘ ठीक है। ’’

***

फरवरी मार्च के ये दिन। हवा बौराई हुई बहती रहती है। शहर का वातावरण, फूलों से लदा फदा रहता है वासन्ती फूलों का एक खिला संसार यूनिवर्सिटी में महक रहा है। बड़े-बड़े शानदार बंगलेा के लॉनों में बोगनबेलिया की लताएं इठला रही थी। सुबह का कुवांरा मैासम हो तो फूलों की महक और भी मोहक लगती है। टीचर्स होस्टल को जाने वाली सड़क पर अन्ना और उसकी नई बनी सहेली आशा चली जा रही थी। अचानक पीछे से कार के हार्न की आवाज से वे दोनों चौंक पड़ी। आशा ने मुड़कर देखा भाईजान थे।

‘‘आओ अन्ना। ये मेरे भाई हैं। सोशियोलोजी के प्रोफेसर और ये अन्ना है। अभी अभी मेरी सहेली बनी है और अब हमारे घर चल रही है। ’’

अन्ना सकुचाकर कार में बैठ गई। वे घर आ गये। प्रोफेसर अपनी स्टडी में चले गये। वे दोनों बैडरूम में गपशप करने आ गइ्र।

अन्ना घर तो तुमने बहुत ही खूबसूरती से सजा रखा है हर चीज करीने से और सुन्दरता ऐसी की स्थान से हटाने मात्र से असुन्दर दिखने लगती है।

‘‘ अरे ये मेरा नहीं भाई का शौक है, वे हर चीज करीने से और व्यवस्थित पसन्द करते हैं इसी मारे तो अभी तक कुंवारे हैं और ष्शायद आगे भी ऐसे ही रहेंगे। ’’

‘‘ अरे क्यों ? ’’

‘‘ ऐसा ही है। ’’ आशा ने बात टाल दी। ’’ अच्छा चलो बाहर बैठकर चाय पीते हैभाई भी वहीं आ जायेंगे। ’’

सुन्दर मखमली-लॉन के किनारें पर वासन्ती फूल और लताएं। धीमी हवा के झकोंरें

भाई आये। गम्भीर चाल। मोटा चश्मा। विद्व्रता की एक छाप जो आदमी को समान से जरने का हक दिलाती है।

‘‘ आजकल तुम्हारी क्लासेज का क्या हाल है ? ’’

‘‘ हाल बड़े बेहाल है भाई जी। यूनिवरसिंटी में अब पढ़ने कौन आता है सब मटरगस्ती करने आते हैं। ’’

‘‘ मगर तुम्हे तो पढ़ना है भाई। नही तो चाची कहेंगी लड़की को पढ़ा भी नहीं सका, इतना भी नहीं हुआ। ’’ और वे खिलखिलाकर हंस पड़े।

अन्ना ने देखा दुग्ध श्वेत दन्तपंक्ति, जैसे कई हॅंस एक साथ उड़ पड़े हों और हवा में देर तक तैरती रही वो हंसी।

‘‘ अच्छा और तुम्हारी इस सहेली अन्ना का क्या कार्यक्रम है। कब तक रहेगी । ’’

‘‘ जी अभी कुछ तय नहीं है, सोच रही हू निकल जाउं। ’’

‘‘ कहां। ’’

‘‘ इस प्रदेश को देखने समझने और जीने। ’’

‘‘ तुम एक काम क्यों नहीं करती। ’’

‘‘ जी ’’

‘‘ मेरे पास एक प्रोजेक्ट आया हुआ है राजस्थान के गांवों में कस्बों में महिलाओं और बच्चों का सामाजिक अध्ययन। कई दिनों से इस पर काम करने की सोच रहा था। तुम चाहो तो इस प्रोजक्ट पर काम कर सकती हो। काम का काम और घूमना भी । इसी बहाने तुम राजस्थान के लोक-जीवन और संस्कृति को भी नजदीक से देख सकोगी। ’’

अचानक अन्ना सोच में डूब गई उलझाव के इन दिनों यह प्रोजेक्ट भी क्या बुरा है, लेकिन अन्ना हॉं भरने से पहले कुछ और सोचना चाहती थी।

‘‘ कितने समय रूकना होगा। ’’

‘‘ ये तो तुम पर है। वैसे प्रोजेक्ट कई वर्पो तक चल सकता है प्रारम्भ में एक वर्प समझ लो । ’’

‘‘ ठीक है मुझे स्वीकार है। ’’

अन्ना और आशा दोनों हॅंस पड़े।

‘‘ तो कल विभाग में आकर जोइन कर लो। ’’ यह कहकर प्रोफेसर अपनी स्टडी में चले गये।

रात को पलंग पर लेटे अन्ना ने आंखे बन्द कर ली उसके सामने नये पुराने कई दृश्य आये गये। कई दिन बीत गये। कई रातें रीत गई। दोपहर। शाम। रात। हवा। सूरज। चांद। कहीं मोहित करने वाले बन्धन। कहीं कमल की तरह खिली स्वतन्त्रता। सब कुछ ऑखों के सामने गुजर गया अचानक वह किस बन्धन में बंध गई क्या वह प्रोजेक्ट को सहेज सकेगी। लेकिन जीवन में यह मोड़ उसे भा गया था। रेत के टीबों से मेवाडी पहाड़ों तक की यात्रा का यह सुनहरा अवसर वह खोना नहीं चाहती थी। स्टडी में अभी भी लाईट जल रही थी। शायद प्रोफेसर सिंह अध्ययन कर रहे थे। अन्ना और आशा एक ही कमरे में सो गई।

प्रातः तैयार होकर अन्ना ने समाज शास्त्र विभाग में जाकर ज्वाइन किया और राजस्थान में महिलाओं और बच्चों के सामाजिक अध्ययन के प्रोजेक्ट पर काम करने के लिए राजपुर रवाना हो गई। जाते समय प्रोफेसर साहब ने राजपुर के तहसीलदार के नाम एक पत्र भी दे दिया।

***

राजपुर में उतरते ही अन्ना ने सोचा सबसे पहले स्थानीय तहसीलदार से ही मिलना चाहिए। प्रशासक के नाते आंकड़ों की भापा में तहसीलदार साहब ने उसे विकास, प्रगति, उपलब्धियॉं, आदि के बारे में कुछ इस तरह बताया कि अन्ना शीघ्र ही उन्हें सफल प्रशासक मान बैठी। तहसील से निकल ही रही थी कि उसे पास में ही आवासीय विद्यालय का विशाल प्रांगण नजर आया। उसने कस्बे में महिलाओं और बच्चों की स्थिति के बारे में इस विद्यालय के स्थानीय अध्यापकों तथा छात्रों से बात करने का निश्चय किया। वह सीधे ही स्टाफ रूम में चली गई। वहां पर हिन्दी की अध्यापिका मिसेज. प्रतिभा से उसने परिचय किया और बोल पड़ी-

‘‘ मैडम। मैं जयपुर से महिलाओं और बच्चों की सामाजिक स्थिति की परियोजना पर काम करने यहॉं आई हू। मैं गांव में महिलाओं और बच्चों की सामाजिक स्थितियों का अध्ययन करना चाहती हू। आप शायद इसी जगह की हैं। अतः शायद मेरी कुछ मदद कर सकें। मैं आपकी आभारी रहूंगी। साथ ही यदि आप अन्य साथी अध्यापकों से भी मेरा परिचय करा सकें तो मुझे सुविधा होगी। ’’

मिसेज प्रतिभा ने खुशी खुशी अन्ना का परिचय अपने सहयोगियों से कराया।

‘‘ ये मि. एन्टोनी अंग्रेजी पढ़ाते हैं।’’ अन्ना ने शा लीनता से हाथ जोड़े।

ये हैं गणित के महेश गुप्ता साहब।

‘‘ नमस्कार। ’’

‘‘ नमस्कार। ’’

इसी समय अभिमन्यु ने स्टाफ रूम में प्रवेश किया। अन्ना ने देखा। अपरिचय के विन्ध्याचल बीच में खड़े थे। लेकिन एक आकर्पण था। मिसेज प्रतिभा ने परिचय कराया।

‘‘ ये है विज्ञान के अध्यापक अभिमन्यु बाबू। कल ही आये हैं और छात्रावास के अधीक्षक भी हैं। ’’

‘‘ ये अन्ना है यहां पर महिलाओं और बच्चों की स्थिति पर शोध करेंगी।’’ ‘‘ अच्छा। नमस्कार। ’’

‘‘ नमस्कार। ’’ अन्ना के दोनों हाथ स्वतः शालीनता से जुड़ गये। अन्ना ने पूछा-

‘‘ इस कस्बे में महिलाओं और बच्चों की स्थिति कैसी है क्या अन्य जगहों की तरह ही है ? ’’

मिसेज प्रतिभा बोल पड़ी।

‘‘ यहां स्थिति कुछ ठीक इस कारण है कि जनता में जागृति है, वे शिक्षा के महत्व को समझ रहे हैं, और अपनी लड़कियों को स्कूलों में भेज रहे हैं। कस्बें में कन्याओं और महिलाओं हेतु पढ़ाई की व्यवस्था भी है। राजनैतिक जागृति भी है। ’’

‘‘अच्छा यह तो बड़ी अच्छी बात है। ’’

‘‘ अब घर की महिला अपने तथा बच्चों के स्वस्थ्य के बारे में भी जागरूक हैं तथा नियमित रूप से सरकारी सुविधाओं का लाभ लेना जानती है। आपको यह जानकर खुशी होगी कि पिछले कई वर्पो से यहां पर बाल विवाह जैसी कोई घटना नहीं घटी है’’ मिसेज प्रतिभा ने फिर कहा।

‘‘ अच्छा। ’’ अन्ना को आश्चर्य हुआ।

अभिमन्यु बोल पड़ा।

‘‘ इसमें आश्चर्य की क्या बात है सामाजिक कुरितियों के बारे में यदि जनता को सही तरीके से समझाया जाये तो बात समझ में आ जाती है, और एक बार बात समझ में आ जाने के बाद लोग बाग उस बात पर अमल करते हैं। गांव की पंचायत, जाति की पंचायत, बड़े बूढे़ सब मिल बैठकर समस्या को खतम कर देते हैं, और ऐसा तो अक्सर होता रहता है। ’’

‘‘ लेकिन क्या दहेज, बहू जलाना, तलाक, आदि की घटनाएं भी नहीं होती है। ’’

इस बार गणित के महेश जी बोल पड़े।

‘‘ बहन जी ये सब शहरों के बड़े लोगों के चक्कर है गांव में बहू का मान बेटी के बराबर होता है, बेटी को दुख देना और बहू को दुख देना एक ही बात है बहू घर की लक्ष्मी है और लक्ष्मी का अनादर हमारी परम्परा या संस्कृति में कभी नहीं रहा। ’’

‘‘ लेकिन फिर भी क्या सभी कुछ अच्छा ही है। ’’

‘‘ नहीं है सब कुछ अच्छा नहीं है औसत भारतीय कस्बों, गांवों की तरह यहॉं भी पेयजल का संकट है, सरकारी तंत्र में अनियमितताएं है, मगर इन सब के बावजूद एक चीज है आशा, उमंग, उल्लास, खुशी, और जीवन को भरपूर जीने की इच्छा जो हमें हमारी परम्परा से जोड़ती है। प्रजातन्त्र की आवश्यकता है, इसी कारण उसकी कीमत भी देनी पड़ती है। ’’ अभिमन्यु का स्वर कुछ तल्ख हो उठा। मगर सभी ने उसकी बात को सराहा। कुछ पल को वह रूका फिर बोल पड़ा।

‘‘ प्रजातन्त्र के मूल्यों में आस्था रखना ही परम धर्म है जो अनैतिक है उसे समाप्त करने का प्रयत्न किया जाना चाहिए। स्थिति बच्चों की हो या पुरूपों की या महिलाओं की साक्षरता और सत्त शिक्षा से ही सुधार हो सकता है। आखिर बच्चों तथा महिलाओं के बिना एक सम्पूर्ण और सुन्दर विश्व की कल्पना कैसे की जा सकती है ? बच्चे प्रकृति का सबसे खूबसूरत उपहार हैं और महिलाएं वो उपहार हम तक पहुचाती है। ’’

‘‘ लेकिन अभिमन्यु बाबू सवाल ये है कि सब इसके लिए क्या कर सकते है ? अन्ना जी इतनी दूर से यही सब जानने-समझने आई है। ’’ मिसेज प्रतिभा ने बहस के एक जीवन्त मोड़ देने की सफल कोशिश की।

‘‘ हां हम क्या कर सकते हैं ? ’’ महेश जी भी बोल पड़े।

अन्ना ने भी प्रश्न वाचक दृप्टि से देखा।

अब अभिमन्यु बोल पड़ा।

‘‘ मैं तो एक कम उम्र का नौजवान हू युवा होने के कारण अधीर हू और जल्दी से जल्दी मंजिल चाहता हू मगर मैं यह भी जानता हू कि मन्जिल न तो आसान है और न ही बहुत पास। मगर सुनहरे भविप्य के सपने तो देखे जा सकते हैं। ’’

‘‘ सपने हकीकत तो नहीं बन जाते। ’’ अन्ना ने फिर प्रश्न का तीर मारा।

‘‘ सपनों को हकीकत बनाने की कोशिश ही जीवन और संधर्प का दूसरा नाम है। ’’ तभी घन्टी बजी।

‘‘ माफ करें। मैं कक्षा लेकर अभी आता हू। ’’ अभिमन्यु अपनी कक्षा में विज्ञान पढ़ाने चला गया। अन्ना स्टाफ रूम में बैठी बतियाती रही। उसे रह रह कर अभी हुई बहस पर विचार करने में सुख का अहसास हो रहा था। वह सोचने लगी यदि इस प्रोजेक्ट पर काम ही करना है तो इसी कस्बे को आधार बनाकर करना ठीक रहेगा।

मिसेज प्रतिभा पूछ बैठी ।

‘‘ अन्ना तुम कहॉं ठहरी हो। ’’

‘‘ अभी तो आई हू। सोचती हू किसी डाक बंगले में रूक जाउं। ’’

‘‘ मगर डाक बंगला तो यहां से बहुत दूर है। तुम ऐसा करो मेरे पास रह लो। मैं भी अकेली रहती हू मेरे मिस्टर जिला मुख्यालय पर कार्यरत हैं। हम दोनों मिलकर खाना भी बना लेंगे और अपना अपना काम भी करते रहेंगे ।’’

‘‘ मगर आपको असुविधा होगी। ’’

‘‘ असुविधा कैसी। अभी छुट्टी होती है तो अपन दोनों साथ साथ चलते हैं। विद्यालय से पांच मिनट का रास्ता है। ’’

तभी विद्यालय की छुट्टी की घन्टी बजी। ढ़ेरों बच्चे ऐ साथ निकल पड़े मरनो प्रकृति के उपहार धरती पर चल पड़े हों।

अन्ना और मिसेज प्रतिभा भी चल पड़ी।

***