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92 गर्लफ्रेंड्स भाग ७

इसके बाद राकेश ने कहा कि अभी कुछ माह पहले ही मेरे पास रात में दस बजे के आसपास एक लडकी रमनदीप का फोन आया उसने कहा कि सर मैं बहुत तकलीफ में हूँ, मेरे पेट में तीन चार दिन से बहुत तकलीफ हो रही है। मै यही हास्टल में रहकर पढ़ाई कर रही हूँ और हम लोग सागर के रहने वाले है। मेरे परिवार में पिताजी अकेले है एवं बीमार होने के कारण तुरंत आने में असमर्थ है। मुझे मेरे पड़ोसी से आपके बारे में जानकारी प्राप्त हुई कि आप काफी मददगार व्यक्तित्व हैं। मैंने उसकी बात सुनकर उससे पूछा कि आपने किसी डाक्टर को दिखाया या नही ? वह बोली कि मैंने दिखाया था परंतु मुझे कोई आराम नही मिला। यह सुनकर मैंने कहा कि तुम चिंता मत करो मैं अपनी गाडी भेज रहा हूँ और अपने मित्र के हास्पिटल फोन करके तुम्हारी जाँच की व्यवस्था करवा देता हूँ। वहाँ पर डाक्टर ने उसकी सोनोग्राफी की जाँच के बाद मुझे फोन करके बताया कि इसे पेट में अल्सर है और यदि ये एक दिन भी और देर करती तो शायद इसके प्राण संकट में पड जाते। मुझे अभी रात में ही इसका आपरेशन करना होगा। इसके बाद मैंने उस लडकी से बात की तो उसने बताया कि सर यहाँ पर आपरेशन का पूरा रूपया पहले ही जमा करने के लिए कहा जा रहा है परंतु इस समय मेरे इतना रूपया नही है, मैं अभी आधा रूपया ही जमा करवा सकती हूँ और बाकी रूपये का भुगतान मेरे पिताजी के आने के बाद कर दिया जायेगा। मैंने कहा कि तुम चिंता मत करो मैं बात कर लेता हूँ। इस प्रकार उस लडकी का आपरेशन हो गया।

अगले दिन उसके पिताजी मुझसे मिले और कहा कि आपने इसका आपरेशन किसी सरकारी अस्पताल में क्यों नही करवाया। मेरे पास अस्पताल का बिल भरने के लिए इतना रूपया नही है। मैं उनकी बात सुनकर आश्चर्यचकित रह गया मैंने उन्हें समझाया कि उस समय स्थिति बहुत गंभीर थी और समय पर आपरेशन होना बहुत जरूरी था अन्यथा आपकी बेटी की जान को खतरा था। उनको बहुत समझाने के बाद भी वह केवल इसी बात पर अडे रहे कि उसे सरकारी अस्पताल में भर्ती कराना था जिससे उसका इलाज मुफ्त में हो जाता। अंततः अस्पताल के बिल का बाकी रूपया मुझे अपनी जेब से भरना पड़ा। इस घटना से मैंने कान पकड लिये कि आज के समय में बहुत सोच समझकर ही मदद करनी चाहिए अन्यथा होम करते हाथ जले की स्थिति बन जाती है। यह बात सुनकर गौरव और आनंद भी आश्चर्यचकित रह गये कि जिनको अहसान मानना चाहिये था वो अहसान मानने के बजाए उलाहना दे रहे हैं।

अब आनंद ने बताया कि उसके एक परिचित डाक्टर के क्लीनिक में दीपिका नाम की लडकी कार्य करती थी। वह गजब की खूबसूरत एवं चंचल थी। क्लीनिक के आय व्यय का पूरा हिसाब किताब दीपिका रखा करती थी। उसने कुछ माह के उपरांत डाक्टर साहब को सलाह दी कि आप अपनी फीस बढा दीजिए। उसकी बात मानते हुए डाक्टर ने ऐसा ही किया। अब डाक्टर साहब की आमदनी काफी बढ़ गई जिसका श्रेय वह दीपिका को देते थे। दीपिका की खूबसूरती से डाक्टर साहब भी प्रभावित थे और आमदनी बढने के कारण वह उससे और भी ज्यादा प्रभावित हो गये थे। दोनो के बीच धीरे धीरे प्रेम संबंध बन गये थे। डाक्टर साहब को दीपिका पर इतना विश्वास था कि उन्होने उससे हिसाब किताब पूछना भी बंद कर दिया और उसे चाहे जब तरह तरह गिफ्ट देने लगे जिनमें कीमती आभूषण भी शामिल थे।

एक दिन डाक्टर साहब का मेरे पास फोन आया कि दीपिका तुम्हारे बारे में मुझसे पूछ रही थी और तुम्हारी बहुत तारीफ कर रही थी। मैं उससे मिलने के लिए क्लीनिक पहुँचा। डाक्टर ने मुझे एक कमरे में बैठा दिया और थोडी देर बाद दीपिका भी आ गई। धीरे धीरे हमारी लगभग रोज ही मुलाकात होने लगी। कुछ समय पश्चात हमारे बीच में अंतरंग संबंध भी बन गये। हमारी अंतरंगता बढने पर वह रोज ही मेरे से मँहगी मँहगी चीजों की माँग करने लगी। एक दिन तो हद ही हो गई जब उसने किसी मेडिकल कोर्स को करने के लिए मुझसे एक लाख रू. की माँग की । यह सुनकर मैंने विनम्रतापूर्वक उसे समझा दिया कि इतनी रकम मैं नही दे सकता हूँ। इसके बाद मैंने डाक्टर को यह बात बताई। डाक्टर ने मुझसे कहा कि मैं इसको चार पाँच लाख रू. दे चुका हूँ परंतु फिर भी इसे संतोष नही है। इसी दौरान अनायास ही मेरे मुँह से निकल पड़ा कि जब वह इतनी लालची है तो तुमने अपना पूरा हिसाब किताब उसके भरोसे क्यों छोड रखा है ? मेरी बात सुनने के बाद कुछ समय पश्चात डाक्टर ने अपना हिसाब किताब जाँचा तो पाया कि उसमें काफी गड़बड़ी है। उसने मुझे यह बताने के लिए तुरंत फोन किया और मुझसे पूछा कि अब क्या करना चाहिए। मैंने उससे कहा कि पुलिस में मत जाना अन्यथा तुम्हारी भारी बदनामी होगी। जो रूपया गया उसे भूल जाओ और तुरंत उस लडकी को हटा दो। इसके बाद कामकाज की व्यस्तता के चलते मेरी डाक्टर काफी समय तक मुलाकात नही हुई। एक दिन मैं किसी काम से वहाँ से निकला तो सोचा कि चलो मिल लिया जाए। वहाँ पहुँचकर मेरी आँखे फटी की फटी रह गई जब मैंने दीपिका को वहाँ काम करते हुये देखा। मैंने डाक्टर से पूछा कि तुमने इसे निकाला क्यों नही इसने काफी रूपयों की गडबडी की थी तो डाक्टर की बात सुनकर मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ उसने कहा कि मैं उसके प्यार में अंधा हो चुका हूँ और चार पाँच लाख रूपये का हेर फेर मेरे लिये कोई बडी बात नही है आखिर उसी की वजह से तो मेरी आमदनी बढी थी। उसकी बात सुनने के बाद मैं चुपचाप वहाँ से खिसक गया और सोचता रहा कि वाकई आदमी प्यार में सब कुछ भूल जाता है। यह सुनकर राकेश और गौरव खिलखिलाकर हंस पड़े और बोले कि इश्कबाज हो तो ऐसा हो।

इतना सुनने के बाद गौरव ने एक वृतांत बताया कि यह बात काफी पुरानी है जब एक मशहूर कवियत्री कृतिका शहर में रहती थी और उनका बहुत नाम था। महीने में पंद्रह से बीस दिन तो शहर से बाहर के कार्यक्रमों में भाग लेने चली जाती थी। वह देखने में बहुत सुंदर और बहुत मिलनसार थी। एक बार अपने क्लब के एक कार्यक्रम में मैंने भी उन्हें आमंत्रित किया था उसमें उन्होंने मुझे केंद्रबिंदु रखते हुए बडी शानदार दो तीन रचनाएँ सुनायी। कार्यक्रम समाप्ति के बाद मैंने उन्हें धन्यवाद दिया। बातचीत के दौरान उन्होंने हमारे क्लब के द्वारा किये जा रहे सेवा कार्यो की तारीफ करते हुए मुझे घर पर चाय के लिए आमंत्रित किया। मैं उनका आमंत्रण स्वीकार करके नियत समय पर उनके घर पहुँच गया। उन्होंने मेरी बडी आवभगत की और बड़े अपनत्व से चाय नाश्ता कराया। इसके बाद कभी कभार हम लोग साहित्यिक चर्चा के संबंध में मिलने लगे। उनके पति अक्सर बीमार रहते थे और उनकी देखभाल के लिए उन्होने नर्स की व्यवस्था की हुई थी।

एक दिन उन्होंने फोन पर मुझे बताया कि अपने कार्यक्रम के सिलसिले में पचमढ़ी जा रही है और मुझे भी साथ चलने का आग्रह किया। मैं भी उनके इस प्रेम भरे आग्रह को टाल नही पाया और एक दिन के लिए उनके साथ पचमढी चला गया। वहाँ पर कार्यक्रम रात्रि में जल्दी समाप्त हो गया और हम लोग होटल वापिस आ गये। होटल में मैं अपने कमरे में व्हिस्की पी रहा था कि अचानक ही कृतिका भी कमरे में आ गयी मैंने उसे बैठने के लिए कहा और हमारे बीच औपचारिक बातचीत चलती रही तभी उसने मुझसे कहा कि सारी बोतल अकेले ही खत्म कर दोगे या मेरे लिए भी कुछ छोडोगे। मैंने उनसे क्षमा माँगते हुए कहा कि मुझे नही मालूम था कि आप भी इसकी षौकीन है। इतना कहकर मैंने एक पैग बनाकर कृतिका को दिया। उसने चीयर्स कहते हुए एक बार में ही पूरा पैग खत्म कर दिया और अपने लिए दूसरा पैग खुद ही बनाने लगी।

इसी दौरान हमारी बातचीत अब उसके निजी जीवन पर जा पहुँची। उसने बहुत मायूस और उदास होकर कहा कि अब केवल शराब ही मेरा सहारा रह गयी है। मैंने उससे पूछा कि तुम ऐसा क्यों कह रही हो ? उसने कहा कि इसके कई कारण हैं। मैं बहुत भावुक महिला हूँ और साहित्य प्रेमी हूँ। मेरा पति कई सालों से बीमार है और अब तो डाक्टर ने उसे लंबी बीमारी की वजह से कैंसर हो जाने के कारण अपने हाथ उठा दिये है। पूरे घर का खर्च, बच्चों की पढाई, सामाजिक दायित्व आदि सब कुछ मेरे कंधों पर है जो कि मेरी संपत्ति से आने वाले किराये से चलता है। यह कवि सम्मेलन वगैरह तो सिर्फ शौक और साहित्य के प्रति प्रेम की वजह से हैं अन्यथा इससे से तो स्वयं का पेट भरना भी मुश्किल है। मैं शादी के पहले अपने एक सहपाठी को बहुत चाहती थी परंतु मेरे माता पिता ने मेरी शादी यहाँ कर दी। शादी के बाद से ही मैंने देखा कि इनका व्यवहार मेरे प्रति बहुत रूखा था और पता करने पर मालूम हुआ कि इनका संबंध किसी और लडकी से था। मेरे विरोध करने पर बात मारपीट तक आ गई और समझौता इस शर्त पर हुआ कि दोनो अपना अपना जीवन अपने अपने ढंग से जियेंगे। कोई भी किसी के मामले में हस्तक्षेप नही करेगा। मैंने अपना सारा जीवन साहित्य के लिए ही समर्पित कर दिया और आज समाज में मान सम्मान से रह रही हूँ। इस प्रकार बातचीत करते करते काफी रात हो गई और कृतिका अपने कमरे में विश्राम के लिए चली गयी।

कुछ दिनों के बाद उसका फोन आया कि उसका पति गंभीर रूप से बीमार है और मैं अपने मन की तसल्ली के लिए उन्हें मुंबई ले जा रही हूँ, मेरा आपसे अनुरोध है कि अगर आप भी मुंबई आ सके तो मुझे बहुत आत्मबल और शान्ति प्राप्त होगी। मैं भी कृतिका के इस दुख भरे अनुरोध को नही ठुकरा सका और दो तीन दिन बाद मैं भी वहाँ पहुँच गया। कृतिका दिन भर अस्पताल में रहती थी और शाम को हम लोग भोजन के समय मिला करते थे। वह अपने पति के स्वास्थ्य के बारे में सबकुछ जानती थी और मानसिक रूप से किसी भी स्थिति के तैयार थी। मै दो तीन बाद वापिस लौट आया। दो तीन बाद ही मुझे पता चला कि उसके पति की मृत्यु हो चुकी है। मै भी शोक संवेदना के लिए उसके घर गया। इसके बाद हमारा मिलना बहुत कम हो गया। एक दिन मुझे जानकारी मिली कि कृतिका के शहर के कुछ माफिया लोगों के साथ भी संबंध हैं यह जानकारी मिलने पर मैंने व्यस्तता का बहाना बनाते हुए उससे यदा कदा मिलना भी बंद कर दिया।

एक लंबे अंतराल के बाद एक दिन रात में एक बजे के आसपास उसका फोन आया। मैंने पूछा कि क्या बात है इतना रात गये फोन क्यों किया। वह बोली कि जिंदगी का क्या भरोसा। तुम्हारी याद आयी तो तुम्हें फोन लगा लिया। इसके बाद वह काफी देर तक फोन पर बात करती रही और मेरे प्रति अपनी षुभकामना देकर फोन रख दिया। अगले दिन सुबह दस बजे के लगभग मुझे सूचना मिली की कृतिका की हृदयाघात के कारण मृत्यु हो गई। यह सुनकर मैं अवाक रह गया और पिछली रात ही उससे फोन पर हुई बातचीत को लेकर सोचता रहा कि क्या इसे अपने मृत्यु का पूर्वाभास हो गया था ? गौरव की बात सुनकर राकेश और आनंद आश्चर्यचकित रह गये कि तुम्हारी मित्रता और उसका तुम्हारे प्रति समर्पण अनुकरणीय था। षायद इसलिये उसने रात में फोन करके तुमसे अंतिम बार बात करके अपनी संतुष्टि कर ली और इस दुनिया से विदा हो गयी।

राकेश ने कहा कि अपनी ट्रेन लेट हो गई है ऐसा लगता है कि हम लोग दो तीन घंटे लेट पहुँचेंगें। तभी मानसी आकर कहती है कि ट्रेन दो घंटे लेट है और आने वाले स्टेशन पर आपको एक सरप्राइज मिलेगा। हम लोगों ने पूछा कि क्या बात है तो उसने कहा कि आप खुद ही देख लीजियेगा। इतना कहकर वह वापिस अपने केबिन में जाकर सो गई।

राकेश बताता है जब मैं कालेज में पढ़ता था तो मेरे मोहल्ले में मेरे मित्र डा. अभिषेक का दवाखाना था। मेरी अक्सर उससे मुलाकात हुआ करती थी। एक दिन डाक्टर ने बताया कि एक लडकी सारिका उसके पास प्रतिदिन आती है और जो पुरानी दवाईयाँ है उन्हें ले जाकर गरीब बच्चों में बाँट देती है। उसने ऐसे सामाजिक काम के लिए मोहल्ले में कई जगह कई मकानों के आगे डब्बे लगा रखे ताकि बची हुयी दवाईयाँ लोग फेंकने के बजाए उसमें डाल दे। एक दिन मैंने उससे कहा कि सारिका तुम दिखने में जितनी सुंदर हो तुम्हारी आत्मा भी उतनी पवित्र है। वरना आज के समय में लोग कहाँ किसको पूछते हैं। मुझे यह जानकर बहुत खुशी हो रही है कि तुम इस काम को और बढ़ाकर दूसरे मोहल्लों में भी ऐसी सेवा आरंभ करने के लिए कृतसंकल्पित हों। मेरा एक मित्र राकेश है कुछ माह पहले उसने भी मुझे ऐसी सेवाएँ प्रारंभ करने के लिए पूछा था तो मैंने उसे कहा कि पुरानी दवाईयाँ तो प्राप्त हो जायेंगी परंतु उनको छाँटकर उनमें से खराब या अंतिम तिथि निकल चुकी दवाईयों को छाँटकर हटाना बहुत कठिन काम है और इसमें बहुत सेवाभाव की आवश्यकता है। यह सुनकर सारिका बोली कि क्या आप मेरी मुलाकात उनसे करा सकते है। हम लोग मिलकर जनहित के इस कार्य को करने का प्रयास करेंगें। मैंने राकेश को शाम के सात बजे दवाखाने आने की खबर भिजवा दी। वह नियत समय पर दवाखाने पहुँच गया, हम लोग सारिका के आने का इंतजार कर रहे थे। थोडी ही देर में वह भी आ गई और डाक्टर ने मेरा उससे परिचय कहाकर कहा कि आप लोग आपस में बातचीत कर लें तब तक मैं अपने मरीजों को देखकर आता हूँ। राकेश ने सारिका से कहा कि मेरी भी ऐसी ही योजना है। इस काम को करने के लिए मुझे दो तीन डाक्टरों ने भी अपनी सेवाएँ देने के लिए आश्वस्त किया हैं। हमें सिर्फ पुरानी दवाईयें इकट्ठी करके उनके पास पहुँचाना है। वे उनमें से खराब दवाईयों को हटाकर बाकी बची दवाईयों को उपयोगिता के अनुसार विभाजित कर देंगे। यह जानकर सारिका बहुत खुश हुयी और हम लोग इस सेवा कार्य के सिलसिले में रोज ही मिलने लगे। एक दिन मैंने उसे अपने साथ फिल्म देखने के लिए कहा, वह तैयार हो गई। फिल्म देखने के बाद हम लोगों ने शाम का भोजन रेस्टारेंट में लिया। वह मुझे कहती थी कि तुम इतने बड़े घर के लडके हो इसके बाद भी तुम्हारी सोच गरीबों के हित के लिए है यह बहुत बडी बात है। यह तुम्हारे परिवार के अच्छे संस्कारों का प्रतीक है।

अब हम दोनो के बीच में अप्रतिम प्रेम जाग्रत हो गया और हम दोनों को बिना मिले चैन नही मिलता था। जब डाक्टर अभिषेक को यह बात पता हुई कि हम लोगों के बीच में प्रेम संबंध बन गये तो उन्होंने मुझे बुलाकर आगाह किया कि तुम इस प्रेम के चक्कर में शादी मत कर बैठना। तुम्हारे परिवार का बहुत मान सम्मान है इसे डुबोना मत। एक दिन राकेश उसे लेकर पचमढी घूमने चला जाता है। वहाँ पर दोनो एक साथ प्यार करते हुए घूमते फिरते हैं। एक दिन सारिका राकेश से पूछती है कि क्या तुम मेरे साथ शादी करोगे। राकेश स्पष्ट रूप से मना कर देता हैं परंतु साथ में यह भी कहता है कि तुमको आत्मनिर्भर बनने के लिए जो भी जरूरत हो मैं पूरा करने के लिए तैयार हूँ। यह सुनने के बाद सारिका कहती है कि मैं एक ब्यूटी पार्लर खोलना चाहती हूँ ताकि मेरे पास एक आजीविका का साधन बन सके। यह सुनकर राकेश अपनी सहमति दे देता हैं। वहाँ पर दोनो अपनी सीमाओं को भूलकर प्यार में इतना खो जाते है कि दो जिस्म एक जान हो जाते है। हम लोगों के वापिस आ जाने के बाद सारिका ब्यूटी पार्लर खोलने के लिए एक जगह पसंद करती है। जब उस जगह की कीमत मुझे पता चली तो मेरे होश फाख्ता हो गये। वह दुकान पंद्रह लाख रूपये की थी और सौंदर्य सामग्री एंव साज सज्जा में करीब दस लाख रू. का और खर्च था इस प्रकार पच्चीस लाख रू. का बजट मेरे सामने आ गया। मेरे लिए इतना खर्च करना संभव नही था। मैंने अपने मन में सोचा था कि दो तीन लाख रू. में यह हो जाएगा। मुझे मजबूरन उसे ना कहना पड़ा परंतु वह इस बात से नाराज हो गई और मुझे धोखा देने की बात कहते हुए उलाहना देने लगी। इसके बाद हम लोगों का मिलना बंद हो गया। कुछ माह बाद पता चला कि उसका विवाह हो गया था।

राकेश अब आगे दूसरा वृतांत बताता है। उसका एक दोस्त रणजीत सिंह दवाईयों का थोक व्यापारी था और वह सैनिक अस्पताल में दवाईयों की आपूर्ति करता था। वहाँ पर मेजर पिल्ले के साथ उसकी मित्रता थी। एक दिन रंजीत मुझे अपने साथ उनके पास ले गया। वे बहुत ही जिंदादिल हंसमुख और खुले विचारों के व्यक्ति थे जिन्हें मदिरापान का शौक था। उनकी पत्नी श्रीमती पिल्ले सैनिक अस्पताल में नर्सिंग हास्टल में वार्डन थी। वे भी बहुत संभ्रांत एवं व्यवहारकुशल महिला थी। रंजीत को उस दिन अपने व्यक्तिगत काम के संबंध में जल्दी जाना था। यह सुनकर मेजर पिल्ले ने उससे अनुरोध किया कि आपके मित्र से आज मेरी पहली मुलाकात हुई है। हम लोग कुछ समय और साथ में व्यतीत करना चाहते हैं। यह सुनकर रंजीत मुझे उनके पास छोडकर वापिस चला गया। कुछ समय बाद हास्टल की दो लडकियाँ राजलक्ष्मी और मेहमूदा वहाँ पर आयी और मिसेज पिल्ले से बोली की हमें शहर जाना था परंतु उनको ले जाने वाली गाडी कमांडेट साहब की ड्यूटी में लगी हुई है। हमें कुछ सामान खरीदना बहुत जरूरी हैं। कृपया हमारे जाने के लिए कुछ प्रबंध करा दीजिए। मेजर पिल्ले ने उनको कहाँ की आप थोडी देर रूकिये, ये मेरे मित्र राकेश है एवं कुछ देर बाद आपको शहर छोड देंगे। वे लोग दूसरे जगह बैठकर मेरे जाने का इंतजार करने लगी। मैंने भी कुछ देर बाद मेजर साहब जाने की इजाजत मांगकर उन लडकियों का साथ लेकर चला गया। वे दोनो बहुत खुले विचारों की थी। उन्होंने मुझसे पूछा कि आप मेजर साहब को कैसे जानते हैं ? मैंने उसे बताया मेरा दोस्त सैनिक अस्पताल में दवाईयों की आपूर्ति करता हैं उसके कारण मेरा मेजर साहब से मिलना हुआ। इस प्रकार बात करते करते षहर आ गया और मैंने उन्हें बाजार में छोड दिया और कहा कि यदि आपको कोई भी परेशानी हो तो मेरे नंबर पर संपर्क कर सकती है। अगले दिन ही उन दोनो लडकियों का फोन आया कि कल रात आपसे बातचीत करके बहुत अच्छा लगा अगर आप के पास समय हो तो हम लोग बाहर घूमने जाना चाहते हैं। मैंने मन ही मन सोचा कि नेकी और पूछ पूछ। मैं उनको शहर के कुछ दूरी पर स्थित एक रमणीय स्थल पर घुमाने ले गया। उनसे बातचीत के दौरान पता हुआ कि मेहमूदा कविताएँ, गजलें इत्यादि लिखती है। मैंने उससे एक कविता सुनाने का आग्रह किया। उसने एक कविता सुनायी:-

प्रेम हैं श्रद्धा

प्रेम है पूजा

प्रेम है वसुधा का आधार

प्रेमी रहें प्रसन्न

प्रेममय हो उनका संसार

दिलों को जीतों प्रेम से

प्रकृति भी देगी साथ

प्रेम बनेगा जगत की

सुख शांति का आधार

प्रेम की ज्योति करेगी

सपनों को साकार

प्रेम से जीना

प्रेम से मरना

सबसे करना प्यार

विश्व शांति का स्वप्न

तभी होगा साकार।