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वैश्या वृतांत - 9

औरत: कथाएँ और व्यथाएँ

यशवन्त कोठारी

(1)दहेज

वे आपस में एक दूसरें को प्यार करते थे । (क्योंकि करने को कुछ नहीं था) वे एक दूसरे के बिना नहीं रह सकते थे । (बिना नहीं रह सकने का मतलब अकेले रहने से है.... अकेलेपन से बचने हेतु वे साथी बदल लेते थे) समय आने पर मां-बाप ने लड़के की शादी दहेज के लिए कर दी ।

लड़का दहेज स्वीकार करने के अलावा कर क्या सकता था लड़की अधिक लालची परिवार में गयी।

दहेज की मांग को लेकर स्टोव फटा और लड़की चल बसी ।

लड़के ने अपना ट्रांसफर अन्यत्र करवा लिया ।

क्योंकि उस शहर में दहेज में जले मांस की बदबू आ रही थी मगर यह बदबू तो हर शहर में है ।

(2) माँ का कहना

‘देखो रमेश समय आ गया है कि हम दोनों कोई निर्णय ले लें । मेरी माँ मेरी शादी अन्यत्र कर रही है ।’

‘लेकिन इसमें मैं क्या कर सकता हूं ।’

‘वो तो जाति बिरादरी के बाहर कुछ सोच ही नहीं सकती ।’

‘तो बताओं मैं क्या करूं ।’

‘कुछ करो रमेश....कुछ भी करो.....मैं......मैं तुम्हारे बच्चे की मां बनने वाली हूं ।’

‘हूं..... तो ये बात है..... पता नहीं तुम किसका पाप मेरे सिर पर मढ़ रही हो । अच्छा, तुम अपनी मां का कहना मान जाओ ।’

और उसने मां का कहा मान लिया ।

आजकल रमेश उसके बच्चों का मामा है ।

(3) मुनाफा

‘पीए’

‘यस सर ।’

‘तुम कल शाम कहां थी ?’

‘जी, घर पर ।’

‘झूठ बोलती हो । मैंने फोन किया था, कुछ अर्जेन्ट लेटर्स टाइप करने थे ।’

‘आज शाम को क्या कर रही हो ?’

‘फ्री हूं ।’

‘हूं, तो कुछ गेस्ट आये है.... उन्हें एंटरटेन करना है ।’ और गेस्ट से कंपनी को पांच लाख का मुनाफा हुआ ।

(4) समय

रात अपने यौवन पर थी । मिस राघवन तीन पेग ले चुकी थी । उसकी आंखे लाल थीं । सुनहरे बाल हवा में तैर रहे थे । डा. चौधरी ने पूछा, ‘थोड़ी और ?’

‘नही यार, बहुत हो गया ।’

‘अच्छा चौधरी, अब तुम जाओ । रात आधी हो चुकी है मि. शर्मा आता ही होगा । उसे 12 बजे का समय दिया था ।

घंटी बजी....

डा. चौधरी बाहर निकले और मि. शर्मा से हाथ मिलाकर गाड़ी में बैठकर चले गये। मि. शर्मा ने मिस राघवन की कमर में हाथ डाला और बैडरूम की ओर बढ़ गये ।

(5) देवर

गांव का घर..... लालटेन की रोशनी ओवरी का दरवाजा उढ़का हुआ था..... भौजी चुपचाप पड़ी थी । नींद कोसों दूर थी । ये मुंह बोला देवर भी कैसा है । रोज भैंस चराकर रात को आयेगा और बिना भौजी से मिले नहीं जायेगा । कहीं हरिया को पता चल गया तो गंडासे से चीर डालेगा । लेकिन हरिया अब घर रहता ही कहां है, तहसील में ही सोता, बैठता है । कहां फुरसत ।

अरे रात इतनी हो गयी, देवर नहीं आया क्या बात है.... दूध गरम करने के बहाने वह फिर उठी.....देवर आया और किवाड़ फिर बंद हो गये ।

(6) पोजिशन

‘सर, इस बार मेरी पोजीशन आ जाये ।’ लड़की ने कहा ।

‘आ जायेगी ।’

विभागाध्यक्ष बोले, ‘प्रीवियस में कितने मार्क्स हैं ?’

‘सर पचपन प्रतिशत ।’

‘हूं, तो इस वर्ष सत्तर से ऊपर चाहिए ।’

‘जी हां, यदि आप कृपा कर दें ।’

‘ठीक है, शाम को घर आकर नोट्स ले जाना ।’

लड़की लगातार जाती रही । पोजीशन आयी । मैंने उससे पूछा, ‘पोजीशन आयी ?’

‘अपना सबसे कीमती आभूषण देकर खरीदी है मैंने पोजीशन ।’

मेरा सिर शर्म से झुक गया ।

(7) शहर

शहर का फ्लैट । आया बैडरूम से बाहर निकलने लगी । साहब ने रोक लिया ।

‘एक बार और, जाने मन....मन नहीं भरा । तम्हें देखकर तो भूख और बढ़ती है ।’

‘साहब, मेम साहब के आने का टाइम हो गया है ।’

‘अरे बस एक बार.....’

‘छोड़ो साहब, क्या करते हो....’दरवाजे की घंटी बजती है । साहब दरवाजा खोलते हैं ।

‘कहां रहती हो बेगम.....यहां एक कप चाय को तरस जाते हैं ।’

‘क्यों, आया नहीं आयी ?’

‘क्या पता, आया-फाया से मुझे क्या करना है, बस एक कप चाय बेगम तुम्हारे हाथों की....’ और साहब बेगम साहिबा को बाहों में ले चूम लेते हैं ।

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यशवन्त कोठारी

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