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मेरा गाँव मेरा देश

मेरा गाँव मेरा देश
​नैनसी कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी से ’एम फील’ की परीक्षा उत्तीर्ण कर गयी। उसका शोध का विषय था ’’इण्डियन कल्चर ड्यूरिंग ब्रिटिश राइन’’। शोध-पत्र तैयार करने के क्रम में नैनी को सम्पूर्ण इतिहास पढ़ने और जानने को मिला। भारत की धर्म-संस्कृति, कला, राजे-महराजे, उनकी वीरांगना रानियों, किले, महलों, झीलों, अस्त्रों-शस्त्रों के बारे में काफी कुछ जानकारियां मिलीं। पढ़ाई के दौरान नैनसी की अभिरुचि भारत के प्रति गहरी होती गयी। पढ़ाई समाप्त होते ही भारत को अपनी आंखों से देखने के लिए उतावली हो गयी।
​नैनसी लंदन से गुआयना के जार्ज टाउन आ गयी। यहीं उसका घर एवं उसके पिता की आॅटो मोबाइल कम्पनी थी।
​ नैनसी अपने घर आते ही भारत भ्रमण की अपनी योजना लेकर मां ग्रेब्रियेला, पिता रैमसन एवं भाई कृसिनसन से आवश्यक मंत्रणा कर रही थी ताकि उसे भारत जाने की सहमति मिल जाय।
​नैनसी के पिता रैमसन का गुआयना के जार्ज टाउन में आॅटोमोबाईल की प्रसिद्ध कम्पनी थी जिसमें मंहगी लक्जरी कारें बनती थीं।इसलिए देश के टाॅप टेन इन्डस्ट्रियलिस्ट में गिने जाते थे। उनकी व्यस्तता व्यापारिक कार्यों के कारण बहुत ज्यादा थी। बेटा कृसिनसन एवं पत्नी ग्रेब्रियेला भी कम्पनी के कार्यों में हाथ बंटाते थे।रैमसन बेटी नैनसी को भी अपनी कम्पनी की पी॰आर॰ओ॰ बनाना चाहते थे। परन्तु नैनसी के भारत भ्रमण की इच्छा प्रकट करने के बाद अपने प्रस्ताव पर फ़िलहाल चुप्पी साध लिये। चेहरे के आव-भाव से लग रहा था वे कुछ याद कर रहे हैं।
​पिता की चुप्पी पर कृसिनसन ने टोका - डैड, आप कहां खो गये ?
नहीं मैं खो नहीं गया हूँ बल्कि अपने ग्रेंडफादर की उस बात को यादकर रहा हूँ जो 50 वर्षों पहले उन्होंने कहा था।
​ डैड, क्या कहा था उन्होंने ? नैनसी ने व्यग्रता से पूछी।
उन्होंने कहा था- मेरा बेटा तो नहीं जा सका भारत, पर ग्रेंडसन तुम भारत जरुर जाना। तुम्हारी देह में भारतीय रक्त बह रहा है। भारत तुम्हारे लिए चर्च से कम नहीं ।भारत जाने के बाद ही मेरा परलोक सार्थक होगा।
​ आपके बाॅडी में भारतीय रक्त बह रहा है। यह कैसे ? पुत्र कृसिनसन एवं पुत्री नैनसी एकबारगी पूछने लगी।
​ बताता हूँ, जो कुछ मेरी मेमोरी (स्मृति)में है। ग्रेंड फ़ादर हेरिसिंग यानी हरि सिंह ने अपनी मृत्यु से कुछ माह पूर्व मुझे बताया था। उन्होंने कहा - मेरे पिता रणजीत सिंह भारतीय सिपाही थे। जब अंग्रेज़ कमाण्डरों के खिलाफ विद्रोह हुआ तब वे भी विद्रोही बन गये। भारतीय सिपाही और अंग्रेज सिपाहियों में मार-काट मच गयी। ईस्ट इण्डिया कम्पनी का शासन था। यह घटना 1857 ई॰ की है। कम्पनी के अंग्रेज सिपाहियों द्वारा विद्रोही सिपाहियों को गिरफ्तार कर लिया गया। कैदी सिपाहियों को भारत के अंडमान निकोबार ’सेलुलर जेल’ में बंदी बनाकर रखा गया। सेलुलर जेल को ही कालापानी भी कहा जाता है। अंडमान निकोबार समुद्री द्वीपों का समूह है। ग्रेंडफादर रणजीत सिंह बीस वर्ष का गठीला जवान थे उस समय ,जब उन्हें गिरफ्तार कर कालापानी भेजा गया था।
​इधर गिरफ्तार सिपाहियों में हट्ठे-कट्ठे युवकों को चुन-चुन कर चुपके-चुपके ईस्ट इण्डिया कम्पनी के ब्रिटिश अधिकारियों द्वारा मजदूरी कराने की नियत से इंगलैंड के विभिन्न शहरों में जहाज द्वारा भेजा भी जा रहा था।ग्रैंडफ़ादर रणजीत सिंह को भी जहाज पर कैदियों के साथ बांधकर चढ़ाया जा रहा था। विरोध करने पर कोड़ों से पीटा भी जाता था। संयोग से उसी जहाज पर एक अंग्रेज सैनिक आॅफिसर की विधवा माग्रेट भी जा रही थी। उसके मृत पति के साथ रणजीत सिंह से मिलना जुलना और काफ़ी घनिष्ठता थी।इसलिए क्वार्टर पर आते-जाते थे। माग्रेट ने ग्रेंडफादर को जैसे ही पहचाना उसने एक सैनिक को इशारा देकर पास बुलाया और कहा- रणजीत सिंह को मेरे पास लाओ।वह मेरे केबिन में बैठकर जाएगा।
​ रणजीत सिंह ने माग्रेट मेम को देखकर सेल्यूट दिया।
माग्रेट मेम रणजीत सिंह को भारतीय सिपाही होने के बावजूद काफी प्रेम देती थी। रणजीत सिंह भारत के बारे में माग्रेट को बताता रहता था। माग्रेट मेम के हसबैंड ’विलिस’ के मारे जाने की सूचना पर रणजीत सिंह बहुत रोया था। जहाज़ पर अचानक माग्रेट को देखकर ग्रेंडफादर पुनः रो पड़े थे। परन्तु माग्रेट ने ही हिम्मत दी। ’रोना नांय’ तुम मेरे साथ हाय, मेरे को कोई साॅरी नांय। तुम मैनचेस्टर जाता। मेरा भी घर वहीं हाय, तुम मुझसे मिलता रहेगा।
​ सचमुच में मैनचेस्टर के एक पेपर फैक्ट्री में रणजीत सिंह यानी ग्रेंडफादर को मजदूर बना दिया गया।वहीं माग्रेट बराबर आकर मिलती ।एक दिन माग्रेट ने मजदूर बने ग्रेंडफादर को पेपर फैक्ट्री के मालिक को कुछ पौंड देकर खरीद लिया। माग्रेट को एक ’मोटर रिपेयरिंग फैक्ट्री’ थी। उसी में ग्रेंडफादर को नियुक्त कर लिया। बाद में ग्रेंडफादर से माग्रेट ने शादी कर ली।उनकी शादी का अंग्रेजों ने विरोध किया, तब वे दोनों भागकर ब्रिटिश गायना के इस जार्ज टाउन में आ गये। फिर यहीं नये सिरे से मोटर गैराज का काम शुरु किया ।मिहनत के बल पर मोटर हैरान एक बड़े "आॅटोमोबाइल फैक्ट्री"के रुप में विकसित हुआ। ग्रांड ग्रेंडफादर रणजीत सिंह, रेणजोटसिंग हो गये।उन दोनों के पुत्र रूप में मेरे ग्रेंड फ़ादर हेरिसिंग पैदा हुए जो पढ़-लिखकर अपने उद्योग को काफी आगे बढ़ाया।हेरिसिंग से मदर मारिया की शादी 1890 में हुई। मेरे डैड लक्समेन 1901 में पैदा हुए। मेरे पिता लक्समेन की शादी बाॅवीजोन से हुई। मेरा जन्म 1945 में हुआ। मेरा नाम रैमसन नहीं रामसिंह रखा गया था। ग्रेंडफादर हेरिसिंग हरि सिंह थे तथा डैड लक्समेन लक्ष्मण सिंह थे। इस तरह नाम में इण्डियन होने की परम्परा चल रही है। ग्रेंडफादर रणजीत सिंह अपने घर में भारतीय नाम ही रखते थे जो यहां अंग्रेजी उच्चारण में बदल जाता था। अपने घर के ड्राइंग रुम में देखो राम और कृष्ण की पेन्टिंग्स लगी है। यह भारतीय हिन्दू धर्म के गाड हैं। चार पीढ़ियों के रक्त मिश्रण के कारण मेरा रंग-रुप बिल्कुल गुयनीज की तरह हो गया। मेरी शादी जिस समय ग्रेब्रियेला से हो रही थी कोई भी यह नहीं मान रहा था कि मैं भारतीय मूल का हूँ। मानता भी कैसे, अपने घर तो कुछ भी ऐसा शेष नहीं था जिस पर भारतीय और हिन्दुत्व की बात होती सिर्फ दो पेन्टिंग्स और मेरे नाम की हिन्दू प्रणाली। तुम्हारे पैदा होने के बाद तुम्हारा नाम मैंने कृष्ण सिंह रखा जो ’कृसिनसन’ उच्चारित होता है। अपने बेटे की ओर मुखातिब होकर रैमसन ने कहा। पर बेटी नैनसी, मैं किसी भारतीय गोडेस का नाम नहीं जानता था, फलस्वरुप तुम्हारा गुआयनीज नाम रखना पड़ा मुझे।
डैड ! आपने मेरे साथ नाइंसाफी की है। आपको नाम ढूढ़ने का प्रयास करना चाहिए हिन्दू धर्मग्रन्थों से-नैनसी ने कहा।
"एक ईसाई के घर हिन्दू धर्मग्रन्थ कैसे लाता। वैसे भी मेरे पढ़ने के लिए वक्त की कमी है।’’ रैमसन (राम सिंह) ने अपनी मजबूरी जतायी। तुम भारत जा रही हो, खुद अच्छा सा नाम ढूंढ लेना।
तो क्या मैं भारत जा रही हूँ। आपने अनुमति दे दी। नैनसी खुशी से उछल पड़ी।
तुम्हारे भारत जाने की अनुमति देने से स्वंय मेरी इच्छा पूर्ण हो रही है। मैंने ग्रेंडफादर की इच्छा आजतक पूरी नहीं कर सका। उसे तुम पूरी करोगी। तुम भाग्यशाली हो। तुम उस देश को देखने जा रही हो जहां की मिट्टी, हवा और पानी हमारी नस्ल में विद्यमान है। तुम जितने चाहो, डाॅलर ले जाओ। भारत का दर्शन करो। रैमसन की सहमति में कृसिनसन एवं ग्रेब्रियेला की भी सहमति थी।
नैनसी भारत जाने की सरकारी प्रक्रिया में लग गयी। उसने अपने देश के विदेश मंत्रालय एवं भारतीय दूतावास में अर्जी दे दी। जहां सारी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद पासपोर्ट, वीजा और भारत प्रवास की अनुमति-पत्र प्राप्त हो गये। अनुमति-पत्र के अनुसार जनवरी में यात्रा की तारीख मिली। इस तरह भारत प्रस्थान में लगभग 15 दिनों का वक्त शेष था। भारत प्रस्थान से पूर्व वह कुछ अन्य सूचनाएं एकत्र करने में जुट गयी। उन श्रोतों व सूत्रों की खोज में लग गयी जिसके सहारे वह भारत में अपने पुरखों के घर तलाशेगी।नैनसी मैनचेस्टर के मिलों की खाक छान मारी। हर जगह एक ही जवाब मिलता कैदी मजदूर समूह में लाए गये थे। इसलिए उसका सिर्फ इतना ही विवरण है कि वे भारत से आये थे और सभी सिपाही थे। नैनसी उस पेपर मिल की खोज कर रही थी जहां सर्वप्रथम उसके ग्रेंडफादर 1860 में कार्य पर लगे थे। संयोग ऐसा था कि पेपर मिल अब बंद हो चुका था। थोड़ा और प्रयास के बाद पता चला कि पेपर मिल बाद में लेदर फैक्ट्री में तब्दील हो गया है। नैनसी लेदर फैक्ट्री के मालिक से पुरानी पेपर फैक्ट्री की रजिस्टर प्राप्त कर ली। वहां रणजीत सिंह का पता कलकत्ता अंकित था। साथ ही सैनिक छावनी खिदिड़पुर का नाम भी था। इस तरह अपने बाप से प्राप्त जानकारी से अधिक उसे कोई अन्य जानकारियां रणजीत सिंह के घर और प्रांत के बारे में नहीं मिल सकी। फिर भी नैनसी के मन में संकल्प लिया- ’’वह भारत जाकर पता-ठिकाना ढूंढ़ कर ही दम लेगी।’’
जनवरी के प्रथम सप्ताह का वह स्वर्णिम दिन भी आ गया जिस दिन ब्रिटिश एयरवेज से नैनसी उड़ान भरी। भारत जाने के समय नैनसी में अदम्य उत्साह भरा था। आंखों में एक विशिष्ट चकम थी। मां, बाप और भाई भी हवाई अड्डे तक आये थे। उनलोगों की आंखों से विदाई और खुशी के आंसू एक साथ झरने लगे।
तीस घंटे की यात्रा के बाद नैनसी कलकत्ता के दमदम अन्तर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा पर सुबह में उतरी। विदेश विभाग के अधिकारियों ने नैनसी को चैकिंग के बाद हवाई अड्डा से बाहर लाया। फिर कार से वह ग्रांड आॅबराय होटल के अपने आरक्षित कूपे में पहुंचायी गयी। होटल में पूरा एक दिन नैनसी ने विश्राम किया और मन ही मन कुछ योजनाएं भी बनाती रही। साथ के सभी कागजातों को संभालकर एक छोटे बैग में रख ली।
दूसरे दिन नैनसी, होटल से एक गाइड को साथ किया और चल पड़ी खिदिड़पुर सैनिक छावनी जहां उसके परदादा रणजीत सिंह पदस्थापित थे। छावनी के मुख्य गेट पर नैनसी के कागजातों की जांच हुई। फिर उसे ब्रिगेडियर श्रीनिवासन नायडू के पास पहुंचाया गया। ब्रिगेडियर ने फौजी संग्रहालय अभिलेखागार में प्रवेश की अनुमति वहीं कार्यरत एक कर्नल रणधीर चैहान की गाइडेंस में दी।
वर्ष 1860 से लगातार पीछे के वर्षवार नियुक्तियों एवं पंजियों के पन्नों पर रणजीत सिंह का फोटो और पता ढूढ़ने लगी। कर्नल रणधीर चैहान भी नैनसी की मदद में जुट गया। लगातार एक सप्ताह की मिहनत के बाद भी कोई सूत्र हाथ नहीं लगा, तब नैनसी दुःखी हो गयी। उसे लगा भारत पहुंचकर भी शायद वह उस जगह को नहीं देख सकेगी जहां जाना उसकी दिली तमन्ना है।
अचानक कर्नल रणधीर चैहान के मन में गिरफ्तार कैदियों को सेलुलर जेल (अंडमान) भेजने के कागजात देखने का विचार कौंधा।कर्नल ने खोजते-खोजते एक बंडल से वह सूची ढूंढ निकाली जिसमें रणजीत सिंह के घर का पूरा पता मिल गया। पता के अनुसार वह बेगूसराय के कल्याणपुर गांव का रहने वाला था। कर्नल ने नैनसी से कहा-’’यू आर लकी, आइ एम बिहारी, योर फोरफादर इज बिहारी, इट मिन्स यू आर बिहारी इण्डियन।’’
नैनसी पता पाते ही फौजी कर्नल रणधीर चैहान के गाल और ललाट पर एक सांस में दर्जनों चुम्बन जर दी।
कर्नल हतप्रभ रह गया। नैनसी की खुशी देखकर उसे भी आत्मिक खुशी मिली।
नैनसी ने अपनत्व से कहा - ’’विल यू एकोमपेनी मी ? (क्या तुम मेरा साथ दोगे) ’’यस’’, कर्नल बिना सोचे मानो जादू में बँधकर बोल दिया। ’’बट आई विल हेव टू टेक आर्डर आॅफ ब्रिगेडियर।’’
कर्नल एवं नैनसी ब्रिगेडियर श्री निवासन नायडू से परमिशन प्राप्त कर लिये। कर्नल को एक सप्ताह नैनसी के मिशन में मदद करने की अनुमति मिली। चूंकि नैनसी एक सिपाही विद्रोह के सैनिक की तीसरी पीढ़ी की संतान थी, इसलिए फौज के लिए भी यह गौरव की बात थी कि एक गुआयनीज को भारत के उसके मूल निवास तक पहुंचायें।
कलकत्ता के हावड़ा स्टेशन से नैनसी और कर्नल रणधीर चैहान मिथिला एक्सप्रेस से बरौनी पहुँचे । बरौनी से टैक्सी कार से बेगूसराय आ गये। बेगूसराय में एस॰पी॰ एवं डी॰एम॰ कार्यालय जाकर भेंट की और एक गुआयनीज नागरिक के बेगूसराय आगमन की सूचना दर्ज करायी। आगमन का उद्देश्य बताया।
स्टेट गेस्ट हाउस में जिला प्रशासन की ओर से दोनों को सरकारी अतिथि के तौर पर ठहराने का प्रबंध किया गया। थोड़ी देर आराम और फिर भोजन लेने के बाद जिला प्रशासन की सरकारी कार से दोनों बेगूसराय से 30 किलोमीटर दूर कल्याणपुर पहुंच गये। गांव बेगूसराय खगड़िया राष्ट्रीय उच्चपथ-31 की बगल में ही था।
गांव पहुंचे एक फौजी कर्नल और अंग्रेज लड़की को देख कुछ ही देर में भीड़ लग गयी। दोनों युवक-युवती आपस में अंग्रेजी में बातें कर रहे थे। लड़की तो फर्राटेदार इंगलिश बोल रही थी। ये लोग गांव के विद्यालय प्रांगण में कार से उतरकर खड़े थे। वहीं अगल-बगल से कुर्सियां लायी गयी और उन दोनों को बिठाया गांव वालों ने। पर सभी हैरत में थे कि ये दोनों यहां क्या लेने आये हैं।
कर्नल ने अपनी मातृभाषा हिन्दी में नैनसी का परिचय दिया और गांव पहुंचने का उद्देश्य बातया।
यह सुनते ही गांव वाले में खुशी की लहर दौड़ गयी। किसी ने छाछ (मट्ठा) गिलास में भर लाया तो कोई गन्ने का रस। किसी ने चने के हरे दाने तो कोई अमरुद केले ले आये। कुछ न कुछ खाने-पीने को सभी जिद करने लगे।
हंस-हंसकर नैनसी ने छाछ पी ली। फिर गन्ने का रस भी पी लिया। और थोड़ी देर बाद चने के कुछ दाने मुँह में लिये। अमरुद भी खायी। ये भारतीय पेय और देशी फल उसे असीम तृप्ति और आनन्द दिये।गांव वालों का प्यार और स्नेह पाकर वह मंत्रमुग्ध हो गयी। नैनसी की हम उम्र लड़कियां उससे गले मिलने लगी।
कर्नल ने भारतीय परम्परा के अनुसार पांव छूकर महिलाओं को ’गुडमार्निंग’ के बदले ’प्रणाम’ कहना सिखाया। और पुरुषों को हाथ जोड़कर ’प्रणाम’ करना सिखाया।वह सिर्फ ’प्रणाम’ ही बोल पाती। कर्नल उसके लिए दुभाषिये का कार्य कर रहा था।
कुछ लड़कियां उसे एक घर के अन्दर ले गयीं। जब वह बाहर निकली तो सलवार सूट में थी। उसके बालों में फूल भी लगा दिये थे। माथे पर लाल बिन्दी और अंगुलियों पर गुलाबी नेल पालिस लगी थी। एक अंग्रेज का भारतीय रुप।
नैनसी ने सबों के साथ अपने पास के कैमरे से फोटो खिंचवाए। नैनसी के आग्रह पर कर्नल उसके विडियो कैमरे से विडियोग्राफी भी करता रहा।
अब कर्नल मूल लक्ष्य पर खोज करना शुरु किया। कर्नल ने गांव के मुखिया और बुजुर्ग लोगों को बुलवाया।मुखिया प्रेमजीत कुंवर के साथ-साथ कई 70-80 वर्षीय बड़ी उम्र के ग्रामीण भी स्कूल पर आये।
कर्नल ने रणजीत सिंह नामक एक फौजी के बारे में जानकारी मांगी जो इसी गांव के थे और स्वतंत्रता के प्रथम आंदोलन 1857 में अंग्रेजों द्वारा गिरफ्तार कर कालापानी भेजे गये थे। उनके खानदान के वर्तमान परिवार की सूचना लेना एवं उनके घर तक या मूल आवास भूमि तक पहुंचना नैनसी का लक्ष्य है। इसी लक्ष्य को लेकर यूरोपीय गुआयना के जार्ज टाउन शहर से नैनसी भारत आयी है।रणधीर ने बताया।
बुजुर्ग अनिरुद्ध साह, गणेश महतों, सौखी सादा कुछ देर तक आपस में धीमी आवाज में फुसफुसाकर विमर्श करते रहे। फिर सबों ने बताया- रणजीत सिंह का एक भाई धर्मजीत सिंह थे।उनके दो पुत्र थे-रामनारायण सिंह और विष्णुदेव सिंह। विष्णुदेव सिंह नावल्द थे ,रामनारायण सिंह को दो पुत्र थे- विवेकानन्द सिंह ओर विजेन्द्र सिंह। आपके सामने मुखिया जी प्रेमजीत कुंवर विवेकानन्द सिंह के पुत्र हैं। यानी मुखिया जी रणजीत सिंह के खानदान के जीवित तीसरी पीढ़ी के लोग हैं।इस तरह रिश्ते में परपोता हैं।
मुखिया प्रेमजीत सिंह की उम्र लगभग 35 वर्ष थी। जैसे ही वह जाना कि नैनसी भी रणजीत सिंह की ग्रांड डाउटर है, वह नैनसी को सीने से लगा लिया और खुशी के उन्माद में कहा- ’’आइ एम योर इण्डियन ब्रदर।’’
नैनसी तुरंत ’क्राॅस’ बनाकर ईश को नमन किया। और बोली-ब्रदर, आइ हेव प्राइड आॅफ यू आॅल, आइ एम इण्डियन, आइ एम बिहारी, आइ एम हिन्दू, डाउटर आॅफ लार्ड रामा एण्ड कृष्णा।
प्रेमजीत सिंह तुरंत नैनसी को अपने घर ले चला।पीछे-पीछे भीड़ चल रही थी। भीड़ में ऐसी भावना बह रही थी जैसे वर्षों से विछुड़ी बेटी अपने घर आयी हो। नैनसी को प्रेमजीत की पत्नी ने गंगाजल से पांव धोया। आरती उतारी। फिर घर की देवी को प्रणाम कराया। उसने टूटी-फूटी अंग्रेजी में कहा -मैं तुम्हारी भाभी प्रमीला हूँ।
नैनसी ने पांव छूकर प्रणाम किया। फिर बोली -भाभी आइ वान्ट इण्डियन नेम ?
प्रमीला ने कहा-योर नेम इज आॅलरेडी इण्डियन।
’हाऊ’, नैनसी ने पूछा।
’’यू आर नाॅट नैनसी, बट यू आर ’नयनश्री’, मिन्स स्टार आॅफ आई।’’ प्रमीला के बताने पर नैनसी चकित रह गयी।
वाउ,आइ एम ’नयनश्री’। थैंक्यू भाभी। फिर वह प्रमीला के गले से लिपट गयी।
अब प्रेमजीत नैनसी और कर्नल को उस टीले पर ले आया जिसपर चार-पांच कमरे का ढ़हा ईंट का खंडहरनुमा घर था। यह घर रणजीत के हिस्से का था। इसलिए उनकी याद में शायद पीढ़ी दर पीढ़ी खड़ा था। परन्तु बाढ़, वर्षा/गर्मी की मार झेलते हुए खंडहर में तब्दील हो गया था। छप्पर गिरकर सड़ चुकी थी।बड़ी-बड़ी घासें उग आयी थी। रणजीत सिंह के बचे परिवार पुरानी डीह से हटकर सड़क किनारे बस गये थे। इसलिए खण्डहर पर कोई रखवाला भी नहीं था। दिन में पशु चराने वाले ही यहां बैठा करते थे।
टीले पर पहुंचकर नैनसी ने मिट्टी को अपने बालों में उठाकर लगाया और आंख मूँदकर कुछ बुदबुदाया। फिर खंडहर के हर जर्रे को देख-देख कर तस्वीरें उतारी, साथ में अपनी भी तस्वीरें उतरवायी। खंडहर से बाहर आते ही उसने अपने भाई प्रेमजीत कुंवर को 50 हजार डालर प्रदान किया और गुआयना से भेजने का वादा किया। उसने कर्नल रणधीर चैहान के माध्यम से समझाया, खंडहर का अस्तित्व अक्षुण्ण रहना चाहिए। उसमें मजबूती लाने के लिए राजमिस्त्री से सिर्फ आवश्यक जुड़ाई होनी चाहिए। गंदगी, घास-फूस साफ होनी चाहिए। सम्पूर्ण खंडहर को पक्की चाहार दीवारी से घेरा देकर गेट पर एक पक्का गेस्ट हाउस भी बनना चाहिए। नैनसी ने इस खंडहर को म्यूजियम बनाने का निर्णय तुरंत कर लिया था। इसपर होने वाले खर्चों के लिए इंजीनियर से इस्टीमेट बनवाने कहा। प्रेमजीत कुंवर ने सारी योजना को एक कागज पर लिख ली।
साफ-सफाई के बाद खंडहर पर दीपावली मनायी गयी। नैनसी को बताया गया जब राम वनवास के बाद घर लौटे तो दीप जलाकर खुशी मनायी गयी थी अयोध्या में। आज उसी तरह तुम्हारे आने पर कल्याणपुर के इस खंडहरनुमा घर पर दीप जलाकर खुशी मनायी जा रही है।
नैनसी कल्याणपुर आकर भूल गयी थी कि वह गुआयना से दूर भारत के एक गांव में है। कुल पांच दिनों तक नैनसी कल्याणपुर में रुकी। पांच दिनों में हिन्दू धर्म, व्रत, त्योहारों देवी-देवताओं, कला-संस्कृति, लोक-जीवन की रस्में, लोकगीतों के बारे में काफी जानकारी लिखती रही और भावविभोर होती रही। प्रत्येक दिन की खबर गुआयना में अपने मां-बाप भाई को भी फोन से भेजती रही।
जाने से एक दिन पूर्व कुछ लड़कियां जो अच्छी पढ़ी-लिखी थीं, पूछ बैठीं- फौजी आॅफिसर इज योर हसबैंड ?
’’ओह नो, ही इज माई वेस्ट इण्डियन फ्रेंड’’। नैनसी लजाते हुए बोली।
कर्नल ने यह वार्तालाप सुन लिया। उसके भी मन गुदगुदाने लगे। कर्नल को नैनसी अच्छी लगने लगी। शायद वह भी उसे अपना बनाना चाह रहा था।
अब विदाई का समय आ गया। गांव के स्त्री-पुरुष, बच्चे सभी रो रहे थे। नैनसी भी फूट-फूट कर रो रही थी। जाते समय प्रेमजीत की मां पार्वती ने नैनसी को साड़ी पहनायी, साॅल दिया। उसे भारतीय नारी बना दी।
’’दादी आई लव यू। मैं अपने पापा, मम्मी और भाई के साथ अगली बार आउंगा।’’
पांच दिनों की गांव में आयी चहल-पहल शान्ति में बदल गयी। नैनसी जो चली गई थी।
कार में नैनसी उदास थी।कर्नल रणधीर चैहान ने टोका।तुम उदास क्यों हो ,तुम्हें तो पूरा हँसता खेलता परिवार मिल गया।फिर आओगी अपने मॉम डैड के संग।पर मैं नहीं रहूँगा तुम्हारे साथ।मैं तो आफिसियल ड्यूटी निभा रहा था।कलकत्ता पहुँचने के बाद तुमसे सदा के लिए अलग हो जाउंगा नयनश्री।’’
​नहीं कर्नल तुम्हे तो जीवन भर मेरे साथ रहना है।आइ लव यू सो मच।फिर कार की सीट पर ही लिपट कर चूमने लगी।तुमको याद नहीं ,गाँव में लड़कियाँ क्या कह रही थी?ही अज योर हस्बैंड ? उसी क्षण तुमसे मुझे प्यार उमड़ पड़ा।सममुच मैं तुमसे प्यार करती हूँ। अगर तुम ना मिलते तो शायद मैं ग्रेंडफादर के घर तक पहुंचने में कामयाब नहीं होती। तुम एक गौरवशाली फौजी आॅफिसर हो। जिस खिदिड़पुर फौजी बैरेक से मेरे ग्रेंडफादर निकलकर गुआयना पहुंचे वही खिदिड़पुर बैरेक ने मुझे तुम जैसे फौजी आॅफिसर से मिलाया। मैं तुमसे शादी करना चाहती हूँ।’’
​ कर्नल रणधीर चैहान ने कहा- ’’नयनश्री, मैं भी तुमसे शादी करना चाहता हूँ। मुझे अपने बड़े आॅफिसर से शादी की परमिशन लेनी पड़ेगी क्योंकि अभी तुम विदेशी नागरिक हो। परन्तु तुम्हारा पुराना इतिहास परमिशन दिलाने में मदद करेगा।’’
​’’चार पीढ़ियों के बाद मैं गुआयनीज बन गयी थी। तुमसे शादी करने के बाद में मेरे बच्चे पुनः इण्डियन बन जाएंगे।है ना सुखद संयोग।
​ दोनों एक दूसरे में ऐसे घुल-मिल गये जैसे पानी में चीनी।मन और निर्णय से नैनसी अब पूर्ण भारतीय बन गयी थी। दूसरी बार जब वह आयेगी सदा के लिए भारत में ही रह जाएगी, अन्तिम निर्णय कर लिया था नैनसी ने।

मुक्तेश्वर प्र० सिंह