anjam-e-mohabbat - 3 books and stories free download online pdf in Hindi

अंजामे मुहब्बत - 3

दूसरे दिन अस्र के वक़्त शमा उसे लेने आ गई थी।मम्मा ने भी उसे नही रोका था।वो उसके साथ चलते हुए पहली बार पुल पर से गुजर रही थी।तेज़ी से पुल के नीचे से गुजरता पानी झाग छोड़ते हुए उसे खौफजदा कर रहा था।


गांव पहुंचकर उसने चैन का सांस लिया।लोग ऐसी नज़रो से उसे देख रहे थे जैसे पहली बार किसी शहर की लड़की को देख रहे हों।वो अपनी नागवारी छुपाते हुए शमा के पीछे उसके घर में दाखिल हो गई ।


चाची सुगरां काफ़ी खुलूस के साथ उससे मिली थीं।शमा के बहन भाई भी बहुत शौक से उसके लिए तरह तरह की चीज़े ला रहे थे।उसका अब्बा अभी घर नहीं आया था। मोटी सी रोटी जिस पर देसी घी लगाया गया था,उसे भूख न होने के बावजूद खानी पड़ी थी।चाची ने दूसरे फैमिली मेम्बर्ज़ के लिए भी रोटियां बांंध दी थी।खुबसूरत कढाई वाला दुपट्टा जो शायद चाची संदूक निकाल कर लाई थी,जबरदस्ती उसे थमा दिया था।वो उन लोगो के खुलूस पर बहुत खुश हुई थी।शमा उसे छोड़ने आई थी।ईशा उसके बहाने खूब समज रही थी लेकिन उससे कुछ कहना भैंस के आगे बिन बजाने के बराबर था।


सूरज डूबने में अभी थोड़ी देर थी।वो जल्दी से चलती हुई पूल तक पहुंच गई थी।फहद की बातें करते हुए शमा की ज़बान बंद होने का नाम ही न ले रही थी।ईशा अपने ध्यान में मगन तेज़ तेज़ चल रही थी जब उसका जूता आधे पांव समेत एक गडढे में पड़ गया।

वो पांव को निकालने की कोशिश करने लगी लेकिन ये काम इतना आसान नहीं था क्योंकि उसका पांव नजाने किस रूख से पड़ा था कि अब निकलने को तैयार ही न हो रहा था। शमा दो कदम आगे बढ़ चुकी थी।तकलीफ से उसकी आंखो में आंसू आ गए।


ईशा ने चीखकर शमा को मूतवज्जह किया तो वो फौरन अपनी ज़बान को ब्रेक लगाते हुए उसकी टांग पकड़कर खिंचने लगी लेकिन पांव टस से मस न हुआ।ईशा वहीं बैठ गई थी।पानी की आवाज़े उसे ओर ज़्यादा खौफज़दा कर रही थीं।दूर से एक गाड़ी को पूल पर चढ़ते देख कर शमा की हालत मज़ीद खराब हो गई थी।
ईशा की उस तरफ़ पीठ थी।गाड़ी सर पर पहुंचकर झटके रूक गई तो ईशा के रहे सहे औसान भी उड़ गए थे फिर गाड़ी का फ्रंट डोर खुला था। उस मूंछो वाले को एक नज़र देख कर वो दोबारा अपनी आंखे बंद कर चुकी थी।


"छोटे साहब!ये बाजी का पांव इस सुराख में फंस गया है।मंहूस मारा निकलने का नाम ही नहीं ले रहा।"


शमा फौरन बोली थी।ईशा ने भी हिम्मत करके आंखे खोल दीं।

"तुम यहां क्या करने आई हो।तुम्हे मैं पहले भी यहां आने से मना कर चुका हूं।"वो शमा की बात को नज़र अंदाज़ करते हुए गुस्से से घूरने लगा।ईशा दोबारा पांव निकालने की अपनी सी कोशिश में लग चुकी थी।


"आपकी आई साइड वीक लगती है शायद,सामने की बड़ी बड़ी चीज़े भी आपको नज़र नहीं आतीं।"

जाने पहचाने से लहजे पर ईशा ने सर उठाया तो उसके सामने वो पैंट की जेब में हाथ डाले चेहरे पर संजीदगी और आंखो में शरारत लिए उसे देखते हुए बोल उठा।मगर उसका सख्त लहजा किसी भी तरह आंखो के एक्सप्रेशन से मेल नही खा रहा था।

"अब खड़ी भी हो जाएं या पूरी रात यहीं गुज़ारने का इरादा है।आप का पांव इस सुराख मे कैसे चला गया?"


वो दोबारा सुराख़ की तरफ इशारा करते हुए बोला।ईशा की तो ज़बान ही तालू से चिपक गई थी।कोई एक लफ्ज़ भी मुंह से निकल नहीं पा रहा था।


"अब रोने का इरादा छोड़ें और ज़ोर लगाएं।घुटने से पकड़कर खींचे।"अब मूंछो वाले ने रोने के लिए तैयार देखकर उसके घुटने की तरफ़ इशारा किया तो न चाहते हुए भी उसकी आंखो के कटोरे छ्लकने को बेताब हो उठे थे।

"या अल्लाह!ये उमर ही कहीं से निकल आए।"दिल में दुआ करती हुई वो आंसू रोकने की कोशिश में होंट काटने लगी।


ज़ोर लगाने का कोई असर नहीं हुआ था।शमा को इशारा करते हुए वो खुद उसके पीछे खड़ा हो गया फिर उसकी कमर में बाज़ू डाल कर शमा ने एक झटका लगाया तो सैंडल का स्ट्रेप टूटने के साथ ही उसका पैर आज़ाद हो चुका था मगर वो इस झटके से संभल नहीं पाई थी,फ़ौरन पीछे की तरफ़ गिरती चली गई।तभी दो मज़बूत हाथों ने उसे थामकर फौरन सीधा खड़ा कर दिया था।

"ज़रा संभलकर।"
गंभीर सी फ़िक्रमंद आवाज़ ने उसके कानों के करीब सरगोशी की तो उसकी एक हार्ट बीट मिस हुई थी।उसने पलके उठा कर उसकी तरफ़ देखा तो वो भी उसी की तरफ़ देख रहा था।ईशा ने फौरन ही नज़रें चुरा ली थीं।

"आप मेजर साहब की साहबज़ादी हैं?"इस बार मूंछो वाले ने संजीदगी से पुछा था।

"जी छोटे साहब! इनके अब्बा फ़ौज में हैं।उधर छावनी से पहले उनका घर है।"
उसका जवाब सुनने से पहले ही शमा फौरन बोल उठी थी।

"आप अपने भाई वगैरा के साथ बाहर निकला करें।उस दीन भी मैंने अकेले बाहर निकलने से आपको मना किया था।"अरमान संजीदगी से बोला।

"अब ख्याल रखेगी पाई जान!मैं इसे छोड़ आऊं घर तक?"


शमा ने शॉपर ज़मीन से उठाते हुए पूछा।वो दो कदम ही चली थी कि उसे रूकना पड़ा।सैंडल टूटने की वजह से अब चलना मुश्किल हो रहा था।

"ये दोनो चले क्यों नहीं जाते•••••बदतमीज़,मैं भला जूते के बगैर चलती हुई अच्छी लगूंगी।"

वो दिल में सोचकर रह गई।कुछ कहने की हिम्मत मूंछो वाले की मूंछे और चेहरे पर सख्ती को देख कर खत्म हो गै थी।

अल्लाह अल्लाह करके पुल खत्म हुआ तो उसने गुस्से के मारे सैंडल से पांव आज़ाद कर लिया और उसे उतारकर दूर फ़ेंक दिया था।

"हाए बाजी!इसे क्यों फेंक दिया?"शमा उसकी इस हरकत पर तड़प कर बोली।
"तो और क्या गले का हार बना लेती?"


वो गुस्से में बोली और दूसरा पांव भी जूते से आज़ाद करवा लिया फिर अपबे गुस्से को कंट्रोल करते हुए तेज़ी से चलने लगी।पांव में गंदगी और छोटे छोटे पत्थर अलग चुभ रहे थे।घर करीब आ चुका था।उमर दरवाजे के पास खड़ा किसी से बातें कर रहा था।वो हैरत से उमर की बेतकल्लुफ़ी देखकर रह गई । तभी उमर से हाथ मिलाते हुए वो लड़का पीछे मुड़ा था।ईशा पहले तो हैरान रह गई फिर उसकी जान ही निकलने के करीब हो गई थी।


"ये यहां कैसे पहुंच गया?"वो खौफजदा होते हुए अरमान की तरफ़ इशारा करते हुए बोल उठी।

"किसकी बात कर रही हो बाजी!हाएं, ये यहां क्या कर रहा है?"


पहले तो शमा ने उसका सफेद पडता चेहरा देखा था।फिर नज़ारों की सीध में देखने के बाद वो भी मुंह पर हाथ रखकर हैरत से बोल उठी थी।

"लगता है तुम्हारी शिकायत लगाने आया है।जरूर छोटे साहब ने इसे यहां भेजा होगा,लिखवालो मुझसे।"शमा बड़े यकीन से बोली तो उसकी जान निकलने लगी थी।
"अच्छा अब तुम जाओ,देर हो रही है।" वो पीछे मुड़ते हुए शमा से बोली और दरवाज़े के करीब पहुंच गई।


"ना जाने क्या कुछ कह दिया होगा उमर से।वो सोचते हुए जल्दी से हिम्मत करके दरवाज़ा खोलकर अंदर दाखिल हो गई थी।


"ये तुम नंगे पांव कौनसी वॉक करने चली गई थी।मैं तो मस्जिद मेंं ऐलान करवाने जा रहा था।"


खिज़र की ज़बान उसे देखते ही चलनी शुरू हो गई थी।वो पहले ही तपी बैठी थी इसलिए जल्दी से पांव धोकर चप्पल पहन ली।


"अगर मैं तुम्हे इतनी ही प्यारी होती तो मेरे साथ चले चलते।आराम से यहां पड़े सो रहे थे।अब मुझे देखकर मुहब्बत जागी है?"वो चोर नज़रो से दरवाजे की तरफ़ देखते हुए बोली।उसी लम्हे उमर दरवाज़ा खोलकर अंदर आ गया।सूरज डूबने वाला था।लाल आसमान को देखकर उसने उमर के पीछे उसे खड़े देखा।अल्लाह हाफिज़ के अंदाज़ में हाथ हिलाते हुए वो मुस्कुरा रहा था।


ईशा को उस पर बहुत गुस्सा आ रहा था।उसकी आंखो में शरारत उसे दूर से ही नज़र आ गई थी।वो शोखी से हाथ हिलाता हुआ अब मुड़ गया था।उमर दरवाज़ा बंद करके अंदर आ चुका था।


"कौन था?"खिज़र ने ईशा के मुंह की बात छीन ली थी।उसके कान अब उसी तरफ़ लग चुके थे।मम्मा उसे आवाज़ देने लगी तो वो झुंझलाहट का शिकार हो गई।

"तैमूर को तो तुम जानते ही हो।वो लम्बे कद वाला।"वो चारपाई पर बैठते हुए बोला।

"लेकिन ये तैमूर तो हरगिज़ नहीं था।"खिज़र ने फ़ौरन बेचैनी से जवाब दिया।
मम्मा अब भी उसे बुला रही थीं।उसे न चाहते हुए भी वहां से उठना पड़ा।

"मने कब ये कहा कि ये तैमूर है।ये उस का कज़िन है।एक दो बार युनिवर्सिटी के बाहर मुलाकात हुई थी।आज मुझे यहां देखकर रूक गया।अच्छा लड़का है।"


वो तफसील से बताने लगा।वो मम्मा की बात सुनकर आई तो उमर उसके पीछे पड़ गया।

"और हां,ये तुुम्हारी सैंडल कहां गई?सिन्ड्रेला की तरह नंगे पांव क्यो आ रही थी?ये तो शुक्र है की अरमान की नज़र इन खुबसूरत कीचड़ से अटे हुए पांव पर नहीं पड़ी। वरना इतने ड़ीसेंट बंदे के सामने मेरी तो खुब इन्सल्ट हो जाती।"


"मेरी सैंडल टूट गई थी।इतना तो तुम कर नहीं सकते की आते हुए एक दो सैंडले ही ले आते।तुम्हे तो बस बातें ही बनानी आती हैं।" ये कहकर वो फौरन किचन में घुस गई थी।
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छत पर पलंग बिछे हुए थे।कूलर की ठंडी ठंडी हवाएं गर्म हवा के असर को खत्म करने की कोशिशें कर रहीं थीं।वो लगातार सोच में गुम था।शाहमीर नीचे गया हुआ था।उस का पलंग अरमान के साथ ही बिछाया गया था।वो जब से आया था,यहीं सो रहा था।शाहमीर के दूसरे भाई दुसरी मंज़िल पर थे।चौधरी साहब का कमरा निचे था।शाहमीर के चार भाई शादीशुदा और बच्चो वाले थे।अरमान की उनसे मुलाकात बस सरसरी सी हुई थी।उसकी भाभियां अभी तक अरमान ने नहीं देखी थीं।उनके यहां बहुत सख्ती से पर्दा करवाया जाता था।अपनी गाड़ी के अलावा कहीं बहार जाने की इज़ाजत नहीं थी।बड़े से बरामदे के निचे नजाने कितने कमरे थे।अरमान ने गौर नहीं किया था
शाहमीर की बहन कोई नहीं थी।सुनने में तो यहीं आया था की वो बचपन मे मर गई थी।शाहमीर की वालिदा से अलबत्ता दो चार बार उसकी मुलाकात हो चुकी थी।वो बहुत खुशमिज़ाज खातून थीं। वो उसे बिल्कुल शाहमीर की तरह प्यार करती थीं।आजकल वो अपने तीसरे नंबर वाले बेटे की शादी के सिलसिले में मसरूफ थी।अक्सर घर में ख्वातीन का जमघटा लगा नज़र आता था।काम वाले,गोटे किनारी वाले और मोती सितारों वाले कपड़े अक्सर सहन में चारपाईयों पर नज़र आ जाते थे।वो शाहमीर के कहने पर छुट्टियां गुजारने यहां चला आया था।


मम्मा के लाख मना करने के बावजूद उस के दिमाग में एडवेंचर का कीड़ा कुलबुला रहा था और वैसे भी गांव की शादियां खास तौर पर चौधरियों और जागीरदारों की शादियों में शिरकत करने का अपना अलग ही मज़ा था।शाहमीर ने अपने बड़े भाईयों की शादियों का ज़िक्र कुछ इस अंदाज़ में किया था कि वो उसके दो तीन बार कहने पर फौरन राज़ी हो गया था।


महीन भर पहले से ही ढोलक रखी जा चुकी थी।आतिशबाज़ी का सामान भी शाहमीर ने पहले से मंगवा कर रख लिया था। दिन भर अरमान उसके साथ इधर-उधर कामों में लगा रहता था।डेरे पर कभी कभार ही चक्कर लगता था।डेरे का ख्याल आते ही अरमान के ज़हन में वो नाज़ुक सी लड़की आ गई थी।

उसका खौफज़दा चेहरा और कबूतर की तरह बंद आंखे और फिर पानी से डबडबाई हुई आंखे उसकी निगाहों के सामने घूम गई।उसे सोचते हुए खुदबखुद अरमान के होंठ मुस्कुरा उठे।जब वो उसके भाई उमर से बात कर रहा था तो उसकी हैरान परेशान सी निगाहें और नंगे पांव अरमान को कोई शरारत करने पर उक्सा रहे थे लेकिन उमर का लिहाज़ करते हुए वो फौरन वहां से वापस आ गया था।

उस दिन वो सड़क के बिल्कुल बिच में आंखे बंद किए खड़ी थी।कितना दिलचस्प सीन था।
अरमान उसका वो रूप देखकर उसे अभी तक भूल नहीं पाया था और एक की बजाए उसकी हथेली पर देखकर उसकी आंखे कैसे खुली की खुली रह गई थीं।और फिर उसने शाहमीर की आवाज़ पर कैसे फौरन ही उसकी हथेली से कैरियां झपट ली थीं।।ये तक नहीं पूछा कि दूसरी कहां से आई? वो गाड़ी में पड़ी थी जो अरमान उसका शौक देखते हुए अपनी जेब में डाल लाया था।

उसे सोचना अरमान को अच्छा लग रहा था। उसका दिल तो यही चाहता था कि दिन में कम से कम एक बार तो उससे मुलाकात ज़रूर हो जाए मगर शाहमीर के साथ उसे शहर जाकर शॉपिंग करने के लिए कई चक्कर लगाने पडते थे।

शाम होते होते ही वो घर वापस आ पाते थे।आज की सिचुएशन याद करके अरमान खुलकर मुस्कुरा दिया। तभी अचानक उसके काँधे पर किसी ने ज़ोरदार हाथ जड़ दिया।

उसने फौरन आंखे खोली तो शाहमीर साथ वाले पलंग पर बैठते हुए उसे शरारत भारी निगाहों से देख रहा था।

"क्या ख्याल है•••••मेजर साहब को भी इनविटेशन कार्ड न दे आऊं।बल्कि बेहतर तो ये होगा कि मेरी तरफ़ से तुम खुद जाकर दे आओ। इसी बहाने उसका दिदार भी हो जाएगा।"

शाहमीर की बात पर वो दिल में हैरान तो बहुत हुआ लेकिन चेहरे के तास्सुरात बिल्कुल नॉर्मल रखे ।अगरचे इसके लिए उसे काफ़ी मेहनत करनी पड़ी थी।

"उमर की बात कर रहे हो तो आज मैं उससे मिल आया हूं।"
अंजान बनने की एक्टिंग करते हुए उसे खासी मुश्किल पेश आई थी लेकिन उसके सामने भी कोई और नहीं उसकी रग रग से वाकिफ शाहमीर था।
"उमर का यहां क्या ज़िक्र,मैं तो उनकी साहबजादी का ज़िक्र कर रहा हूं।"
अरमान की आंख में झांकते हुए शाहमीर हंस दिया। एसे में अरमान को कुछ कहने के लिए अल्फाज़ नहीं मिल रहे थे।
"मैं तो घर की कोई बात याद करके हंस रहा था। तुम नजाने क्या समझ रहे हो।" वो अब भी मानने को तय्यार नहीं था।

"घर के बारे में सोचो या घर वाली के बारे में••••मैं पाबंदी थोड़ी लगा सकता हूं।" वो शरारत से कहते हुए लेट गया था।
"फिर तुम कल सुबह इनविटेशन देने चल रहे हो हो ना?"शाहमीर आंखे बंद किए हुए बोला था।
"कौन••••मैं?"अरमान ने सीने पर उंगली रखते हुए सवालिया नज़रो से शाहमीर को देखते हुए कहा।

"हां, तुम तो यही चाहोगे कि अकेले चले जाओ लेकिन एक्सप्रेशन कौन देखेगा।मैं भी तुम्हारे साथ चलूंगा भई ! तुम तो शायद आज रतजगे का इरादा रखते हो। मैं तो सो रहा हूं।"

वो हंसते हुए करवट बदल गया तो अरमान उसकी कमर को घूरता ही रह गया।वो उसके अंदर तक झांक लेता था। ये बात भला केसे छुपी रहती और दोनों मुलाकातों में तो शाहमीर उसके साथ ही था। फिर उसकी वो रात सुहाने ख्वाबों के बिच ही गुज़ारी थी।




(क्रमशः)