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हिमाद्रि - 12



                    हिमाद्रि(12)


बूढ़े को जब होश आया तो दिन निकल चुका था। कुछ क्षण वह अपने आसपास के माहौल को भांपने का प्रयास करता रहा। कुछ ही समय में उसे रात की घटना याद आई। अपनी बेटी का खयाल आते ही उसके शरीर में जान आ गई। वह उठ कर अस्पताल की तरफ भागा। 
रास्ते में उसे जो भी दिखता उसे हिमाद्रि की करतूत बताता। धीरे धीरे बात सारे गांव में फैल गई। 
उर्मिला देवी ने जिस तरह परंपराओं को तोड़ कर हिमाद्रि का विवाह रोज़लीन से करवाया था उससे गांव वाले गुस्से में थे। इस घटना ने आग में घी डालने का काम किया। बूढ़े के साथ एक भीड़ अस्पताल पहुँची। लेकिन हिमाद्रि पहले ही अपने घर जा चुका था। वहाँ दिन की पाली में काम करने वाला एक दूसरा डॉक्टर था। सब उर्मिला देवी के घर चले गए।
हल्ला सुन कर हिमाद्रि ने अपने कमरे की खिड़की से बाहर झांका। उसे बूढ़े के साथ एक भीड़ दिखाई पड़ी। सभी गुस्से में थे। हिमाद्रि के होश उड़ गए। वह समझ गया कि मामला बहुत गंभीर है। 
सारी भीड़ उर्मिला देवी के दरवाज़े पर खड़ी हिमाद्रि को बाहर निकलने के लिए पुकार रही थी। उर्मिला देवी कुछ समझ नहीं पा रही थीं। वह उनसे गुहार कर रही थीं कि पहले बात क्या है वह तो बताओ।
हिमाद्रि जानता था कि अब खैर नहीं है। रोज़लीन अपने पिता के घर गई हुई थी। भीड़ आगे के दरवाज़े पर धरना दिए थी। हिमाद्रि चुपचाप पिछले दरवाज़े से भाग गया। 
जब हिमाद्रि बाहर नहीं आया तो सब लोग उर्मिला देवी को धक्का देकर भीतर आ गए। उर्मिला देवी गिड़गिड़ा रही थीं कि बात क्या है वह तो बताओ। पर कोई सुनने को तैयार नहीं था। कुछ लोग सारे घर में हिमाद्रि को तलाशने लगे। तभी किसी ने पीछे का दरवाज़ा खुला देख कर शोर मचाया।
"लगता है पिछले दरवाज़े से भाग गया।"
सब हिमाद्रि को पकड़ने के लिए जाने लगे। पर इस बार उर्मिला देवी अड़ कर खड़ी हो गईं। 
"क्या तमाशा मचा रखा है। पहले बताओ मेरे बेटे ने क्या किया है जो तुम लोग इस तरह उसे तलाश रहे हो।"
एक आदमी ने कहा।
"इन बूढ़े बाबा से पूँछो। हम जाकर उस दुष्ट को ढूंढ़ते हैं।"
सब चले गए। वह बूढ़ा गुस्से में उबलता हुआ वहीं खड़ा था। गुस्से में चिल्लाया।
"नर पिशाच है तेरा बेटा। धोखे से मेरी विधवा बेटी की आबरू लूट रहा था। मैंने देखा तो मेरा मुंह दबा दिया। मैं बेहोश हो गया। मुझे मरा जान कर जंगल में फेंक आया। अब गांव वाले उसे छेड़ेंगे नहीं।"
सब सुन कर उर्मिला देवी सन्न रह गईं। उन्हें अपने बेटे के इस रूप की भनक तक नहीं थी। वह आंगन में धम्म से बैठ गईं। 
सारे गांव में हिमाद्रि की करतूत की खबर फैल गई थी। जिन औरतों ने अब तक डर के मारे मुंह बंद रखा था वह भी अब अपने साथ हुए दुष्कर्म की बात करने लगीं। लोगों का गुस्सा और भड़क गया। सब उसे ढूंढ़ कर मार डालने पर उतारू थे।
घर के पिछवाड़े में हिमाद्रि का घोड़ा बंधा था। उसने घोड़े को खोला और उस पर सवार होकर भाग निकला। वह जंगल के रास्ते पहाड़ी पार कर हिमपुरी के जंगलों की तरफ बढ़ने लगा। हिमपुरी के घने जंगल में वह एक जगह आकर छिप गया। वह भूख और प्यास से बेहाल था। लेकिन वहाँ आसपास कुछ नहीं था। डर की वजह से वह इधर उधर जा भी नहीं रहा था। वह रात होने की प्रतीक्षा करने लगा।
गांव वालों ने भी अंदाज़ा लगाया कि हिमाद्रि ज़रूर पहाड़ी पार कर हिमपुरी के जंगलों की तरफ गया होगा। यह टोली बना कर उसी तरफ बढ़ गए। 
भूखा प्यासा हिमाद्रि अपनी जगह पर छिपा था। शाम हो गई थी। कुछ ही समय में अंधेरा होने वाला था। हिमाद्रि का मानना था कि अंधेरे में गांव वाले उसे ढूंढ़ने नहीं निकलेंगे। वह घोड़े पर सवार होकर अंधेरे में शहर की तरफ निकल जाएगा। 
गांव वाले भी पूरी तैयारी के साथ कमर कस कर उसे ढूंढ़ने निकले थे। वह ठान चुके थे कि उसे ढूंढ़ कर मौत के घाट उतार देंगे। जब हल्का हल्का अंधेरा होने लगा तो हिमाद्रि अपने स्थान से बाहर निकल कर पानी की तलाश करने लगा। वह जंगल में आगे बढ़ता जा रहा था। पर कहीं भी उसे प्यास बुझाने के लिए कोई झरना या तालाब नहीं दिख रहा था। 
अब उससे प्यास बर्दाश्त नहीं हो रही थी। उसका घोड़ा भी प्यासा था। प्यास से बेहाल वह बेहोशी महसूस कर रहा था। तभी उसे एक तालाब दिखा। वह फौरन तालाब की ओर भागा। उसने जी भर कर पानी पिया। अपने घोड़े को पिलाया। वह कुछ पलों तक वहीं बैठ कर आगे क्या करना है इस पर विचार करने लगा।
अब तक अंधेरा गहरा चुका था। वह योजना के अनुसार शहर की राह पकड़ने ही वाला था। तभी उसे अचानक मशाल लिए कुछ लोग अपनी ओर आते दिखे। वह समझ गया कि गांव वाले उसे ढूंढ़ते हुए आ गए हैं। वह फौरन उठ कर घोड़े पर चढ़ने लगा।
"पकड़ो....वह भाग रहा है।"
हड़बडी में हिमाद्रि घोड़े पर नहीं चढ़ पाया। उसने दूसरी तरफ घूम कर देखा तो उधर से भी कुछ मशालें उसकी तरफ बढ़ रही थीं। वह घिर चुका था। भागने का रास्ता नहीं था। गांव वालों ने उसे चारों तरफ से घेर लिया। सबके चेहरे पर उसके लिए बस नफरत थी। वह असहाय सा घुटनों के बल ज़मीन पर बैठा था। 
हिमाद्रि पर लाठियों की बरसात होने लगी। कुछ देर तक उसके चीखने की आवाज़ें आती रहीं। उसके बाद सिर्फ लाठियों की आवाज़ ही आती रही। हिमाद्रि मर चुका था। लेकिन गांव वाले जब तक थक नहीं गए उस पर लाठियों से वार करते रहे।

कमरे में सन्नाटा था। सभी मौन बैठे कहानी सुन रहे थे। हिमाद्रि के साथ जो हुआ किसी को भी उस पर अफसोस नहीं था। डॉ. निरंजन ने कमरे में छाई शांति को तोड़ते हुए कहा। 
"तुम्हारे साथ जो भी हुआ हिमाद्रि उस पर यहाँ मौजूद किसी को कोई अफसोस नहीं होगा। तुम्हें तुम्हारे कुकर्मों की सजा मिली थी। तुमने कितनी मासूम औरतों के साथ छल किया। तुम यह भी भूल गए कि दुनिया की परवाह किए बिना जिसने तुम्हें अपना कर छाती से लगाया। तुम पर अपनी ममता का खजाना लुटाया। वह भी एक औरत थी। लेकिन तुमने औरत को हमेशा भोग का साधन माना।"
हिमाद्रि शांत था। डॉ. निरंजन ने पूँछा।
"तुम्हें कभी उन औरतों के साथ गलत करने पर अफसोस नहीं हुआ।"
"हर बार अपनी हवस मिटाने के बाद मन में कुछ देर तक अपराधबोध रहता था। लेकिन मेरे भीतर जलती काम की आग उसे जला देती थी। मैं फिर से नए शिकार के बारे में सोंचने लगता था।"
"लेकिन अभी भी तुम्हारे भीतर जलती काम की आग बुझी नहीं है। तुमने कुमुद के साथ भी वही किया। इतने सालों तक प्रेत बने रहे। अब तो समझ जाओ कि यह आग केवल जलाएगी। इसे बुझाया नहीं जा सकता। अब अपने आप को संयम में बांधो। तभी मुक्ति मिलेगी।"
हिमाद्रि पुनः शांत हो गया। वह भी अब यही महसूस कर रहा था। उसने आगे कहा।
"मरने के कुछ देर बाद मैंने खुद को शरीर से अलग पाया। सब मेरी लाश को वहीं छोड़ कर चले गए। मैं क्रोध और अपमान में जल रहा था। मैं उन सबको सबक सिखाना चाहता था। मैं गांव में भटकने लगा।"
अपने बेटे की मौत की खबर सुन कर उर्मिला देवी पागल हो गईं। भूख प्यास की परवाह किए बिना वह अस्त व्यस्त हाल में गांव की गलियों में लोगों को कोसते हुए घूमती रहती थीं। उसके बाद अचानक वह कहीं गायब हो गईं। किसी खाई में गिर कर मर गईं या भटकते हुए कहीं चली गईं। किसी को कोई खबर नहीं थी। 
गांव में फिर एक बार औरतों के साथ दुष्कर्म होने लगे। पर इस बार कुकर्म करने वाले को वह देख नहीं पाती थीं। केवल उसके स्पर्श को महसूस करती थीं। अब तो वह उन्हें कहीं भी दबोच लेता था। लेकिन कोई कुछ नहीं कर पाता था। सारे गांव में दहशत का माहौल था। 
सब यह जान गए थे कि हिमाद्रि ही प्रेत बन कर यह सब कर रहा है। पर उन्हें उसके कहर से बचने का कोई उपाय नहीं मिल रहा था। गांव में थोड़े थोड़े समय के बाद किसी औरत पर अत्याचार हो जाता था।
गांव के मुखिया हरदयाल का एक रिश्तेदार काशी में रहता था। उसने एक बार उन्हें पंडित शिवपूजन के बारे में बताया था। पंडित शिवपूजन तंत्र विद्या के विद्वान थे। किसी भी तरह के भूत प्रेत को वश में कर लेते थे। उन्होंने गांव वालों से बात की। सब फौरन उन्हें बुलाने के लिए मान गए।
तय हुआ कि तांत्रिक क्रिया में जो भी खर्च आएगा सब मिल कर वहन करेंगे। 
गांव के मुखिया हरदयाल अपने छोटे भाई के साथ पंडित शिवपूजन को लाने काशी चले गए।