Khatti Mithi yadon ka mela - 5 books and stories free download online pdf in Hindi

खट्टी मीठी यादों का मेला - 5

खट्टी मीठी यादों का मेला

भाग - 5

(रात में बेटी के फोन की आवाज़ से जग कर वे, अपना पुराना जीवन याद करने लगती हैं. उनकी चार बेटियों और दो बेटों से घर गुलज़ार रहता. पति गाँव के स्कूल में शिक्षक थे. बड़ी बेटी ममता की शादी ससुर जी ने पति की इच्छा के विरुद्ध एक बड़े घर में कर दी. वे लोग ममता को तो कोई कमी नहीं महसूस होने देते पर उसे मायके नहीं आने देते. दो भाइयों के बाद जन्मी नमिता, बहुत निडर थी, साइकिल चलाती, पेड़ पर चढ़ जाती और गाँव भर में घूमती रहती )

गतांक से आगे

नमिता का गुस्सा सिर्फ घर वाले ही झेलते वरना वो पूरे गाँव की प्यारी थी. उसके तेजी से साईकिल चलाने, पेड़ पर चढ़ जाने, बरगद की बड़ी बड़ी जटाओं को पकड़ कर झूला झूलने पर पूरा गाँव मुग्ध था. सब कहते, "किस नच्छत्तर में पैदा हुई है ये लड़की... लडको के भी कान काटती है. "

घर के सामने ही एक अमरुद का पेड़ था, वह उसकी फुनगी पर चढ़ कर जोर से चिल्लाती "दादीss "

और सास जोर जोर से भुनभुनाती, पेड़ की तरफ चल देतीं, "अरे, तुझे कब अक्कल आएगी... लड़कियों वाले कोई लच्छन तो तुझमे हैं ही नहीं.. कही पैर वैर टूट गया तो कौन तुझ लंगड़ी से शादी करेगा... उतर नीचे"

और जैसे ही सास पेड़ के नीचे पहुंचतीं वो उनके सामने ही धम्म से कूद जाती. "

गाँव के हर घर में दिन में एक चक्कर उसका जरूर लग जाता. स्कूल से आ बाहर वाले कमरे में ही किताबें फेंकती और चल देती, वो चिल्लाती रह जातीं, कुछ तो खा के जा पर गाँव का हर घर उसका अपना घर था. यह बात, बाद में स्मिता ने बतायी थी. तुम यहाँ चिंता कर रही थी और वो फलां के घर बैठी कचरी खा रही थी या ठेकुआ खा रही थी. किसी के घर कुछ अच्छा बनता तो नमिता के लिए जरूर रख दिया जाता. कभी किसी घर में नहीं जा पातीं तो वे लोग किसी ना किसी के हाथ कटोरी भेज देतीं., ये कहते, "नमिता को ये बहुत पसंद है "

पर कभी कभी वे घबरा भी जातीं. अँधेरा हो गया, नमिता घर नहीं आई. स्मिता की चिरौरी करतीं, "जरा देख ना, किसके घर में है? "

स्मिता गुस्से में आकर बताती, "महारानी, फुलेसर चाचा के घर रोटियाँ बना रही थीं"

"क्याsss " उन्होंने आश्चर्य जताया

तो नमिता गुस्से में बोल पड़ी, " क्या करती??..... वे रोटी बना रही थीं और उनका चार महीने का बच्चा भूख से चीख चीख कर रो रहा था.. मैने कहा, आप उसे देखो मैं बना देती हूँ... उनके घर, हमारे यहाँ की तरह नौकर चाकर नहीं झूलते रहते... सारा काम वे खुद ही किया करती हैं. " और मुहँ बिचका कर चली जाती.

एक बार छठ पूजा के लिए घाट पर जाने की तैयारी हो रही थी और नमिता का कुछ पता नहीं. फिर से स्मिता को भेजा, पता चला नरेन् चाचा के यहाँ बैठी, पेटीकोट सिल रही थी मशीन पे. क्यूंकि चाची दौरी सजा रही थीं. और उन्हें दिन में समय नहीं मिल पाया और नया कपडा पहनना जरूरी था. नमिता ने साइकिल चलाने से लेकर रोटी बनानी, मशीन चलानी सब सीख ली लेकिन सब घर से बाहर.

ससुर जी से सब डरते. उनके दुलारे पोते भी उनसे थोड़ा दूर ही रहते. वैसे भी दोनों लड़के घर में दिखते भी कम. सुबह सुबह गणित पढने साइकिल से गणित के मास्टर साहब के यहाँ जाते. वहाँ से आते और नहा-खा कर स्कूल. स्कूल से आ एकाध घंटा क्रिकेट का बल्ला-गेंद ले दूर मैदान में खेलने जाते. और घर आ फिर से विज्ञान का ट्यूशन पढने के लिए साइकिल लिए निकल जाते. रात में पति उन्हें अंग्रेजी और इतहास-भूगोल पढ़ाते. ननदें अपने पतियों के साथ शहर में रहतीं थीं.. जब छुट्टियों में आतीं तो उनके बच्चों के कपड़े, बोलने चालने के ढंग से प्रकाश, प्रमोद बहुत प्रभावित दिखते और उन्हें लगता पढाई ही वो कुंजी है जो इस गाँव के वातावरण से मुक्ति दिला सकती है. और इसी के सहारे उनके शहर में रहने का सपना साकार हो सकता है. इसी खातिर वे जी जान से पढाई में जुटे रहते. स्कूल के शिक्षकों से लेकर पूरे गाँव की जुबान पे उनके बेटों का नाम होता. वे भी यह सब देख सुन गर्व से फूली नहीं समातीं पर बेटे अपनी जरूरत की हर चीज़ दादी से ही कहते. कभी बीमार पड़ते तो दादी ही सिरहाने बैठी देखभाल करतीं. उनके जिम्मे वैसे भी घर के सैकड़ों काम होते.

ससुर जी के खडाऊं की आवाज सुनते ही पूरे घर को सांप सूंघ जाता सिवाय नमिता के. जहाँ बैठी होती, वहीँ से चिल्लाती, "क्या खोज रहें हैं, बाबा? "

उनकी भी कडक आवाज में मुलामियत घुल जाती, "अरे कल्याण नहीं मिल रहा, इधर ही तो पढ़ के रखा था"

वो लापरवाही से बोलती, "बाहर बरामदे में ताखे में तो रखा है... आपको कुछ याद नहीं रहता"

वे उसे आँख दिखातीं धीरे से कहतीं, "जा कर दे दे ना"

पर ससुर जी सुन लेते, और प्यार से कहते, "अरे ले लूँगा बहू... उसे आराम करने दो. दिन भर गाँव में बहनडम सा घूमती रहती है.... थक गयी होगी. "

घर में एक ही ट्रांजिस्टर था, जिस पर सुबह शाम ससुर जी, बरामदे में टेबल पर रख ऊँचे वॉल्यूम में समाचार और कृषि जगत सुनते. ट्रांजिस्टर उनके कमरे में ही रहता. ममता, स्मिता चुपके से ले आतीं और धीमी आवाज़ में फ़िल्मी गाने, नारी-जगत सुना करतीं. पर समाचार का समय होते ही दबे पाँव, कोठरी में रख आतीं. लड़कियों की इतनी रूचि देख उन्होंने पति से सिफारिश की, एक ट्रांजिस्टर ला दीजिये ना, बच्चियों के लिए"

"ये सब फ़ालतू की चीज़ें हैं, पढाई से मन हट जायेगा, इन सबका"

पर नमिता, बाबूजी के सामने से ही ट्रांजिस्टर उठा लाती. "समाचार ख़तम हो गया ना, ले जाऊं?" और जोर जोर से गाने सुना करती. जाड़े के दिन में तो रजाई के अंदर देर रात तक गाना सुनते सुनते सोती. सुबह वे उसे उठा उठा कर परेशान हो जातीं, " समाचार का वक़्त हो रहा है, जा बाबूजी को रेडियो दे आ" पर वो नहीं उठती आखिरकार समाचार का वक़्त हो जाता और वे, 'नमिता... नमिता' पुकारते उसके कमरे तक आ जाते. वो ढीठ लड़की, लेटे लेटे ही आँखें बंद किए रजाई के बाहर हाथ निकाल रेडिओ पकड़ा देती और फिर से रजाई में घुस सो जाती.

नमिता को रात-बिरात भी कुछ डर नहीं लगता. एक बार खूब आंधी तूफ़ान आया.

सुबक के चार बज रहें थे. नमिता -स्मिता को चादर उढ़ाने गयीं, देखा तो नमिता बिस्तर पर नहीं है. डर कर स्मिता, पति, अम्मा जी सबको उठा दिया. किसी की समझ में कुछ नहीं आया पर अम्मा जी बोलीं, "जरूर बगीचा में आम बीनने गयी होगी, चलो टॉर्च लो और चलो.. "

ये तीनो पास के बगीचे में गए तो देखा कई लोग आस पास के बगीचे में थे और नमिता अपने बगीचे में गिरे आम उठा उठा कर एक जगह इकट्ठा कर रही है.

उन्हें देखते ही बोली, "ये सारे लोग हमारे बगान में थे, मुझे देखते ही भाग गए, मैं नहीं आती तो एक भी आम नहीं मिलता. "

एक बार घर में ढेर सारी खीर पूरी बच गयी थी. गर्मी के दिन थे. वे परेशान हो रही थीं, सुबह तक सब ख़राब हो जायेगा, अगर किसी तरह थोड़ी दूर पर बनी झोपड़ियों में पहुंचा दिया जाता तो चीज़ भी नहीं बर्बाद होती और गरीबों का पेट भी भर जाता. पति और बेटे कोठरी में पढ़ाई कर रहें थे. दरवाजे पर बाबूजी बैठे थे. किस से कही जाए ये बात

और नमिता आगे आ गयी, " पूरनमासी है, पूरा उजाला है..... मैं और छोटकी दी चले जाते है. " (ममता को बडकी दी और स्मिता को छोटकी दी कहा करते थे उनसे छोटे भाई-बहन. )

बहुत डर डर के पिछले दरवाजे से उन्हें भेजा. वे आँगन में पीछे की तरफ खुलती खिड़की पर टकटकी लगाएं खड़ी थीं. दोनों बेटियाँ वापस आ रही थीं और अचानक नमिता ने जोर जोर से गाना शुरू कर दिया, "नीले गगन के तले धरती का प्यार पले". स्मिता ने उसका मुहँ दबा कर चुप कराने की कोशिश की तो वो हाथ छुड़ा खेतों की मेंड़ के बीच जोर जोर से गाते हुए दौड़ने लगी.

वे माथा पकड़ कर बैठ गयीं. रात के सन्नाटे में उसकी आवाज़ कहाँ कहाँ ना सुने दे रही होगी. ससुर जी, सासू माँ, पति सब बाहर निकल आए. डरते डरते बता दिया कि क्यूँ भेजा था? पर ससुर जी नाराज़ नहीं हुए बल्कि हँसते हुए कह रहें थे, "आ तुझे दिखाता हूँ धरती का प्यार"

नमिता, अपने बाबा की लाडली थी. जो गुण वे अपने बेटे और पोतों में देखना चाहते थे, वो सब अपनी इस पोती में देखकर खुश हो जाते.

(क्रमशः )