chajje chajje ka pyar books and stories free download online pdf in Hindi

छज्जे छज्जे का प्यार

मोहल्ला चौधरियान में हमारा चार मंजिला मकान बड़ी शान से खड़ा था,अभी तक इस मोहल्ले के हम ही सबसे रईस थे,लेकिन पिछले साल किसी सैफी साहब ने मकान से दो मकान छोड़ कर ज़मीन ले ली,और 5 मंज़िला खुबसुरत इमारत खड़ी कर दी।

उस ईमारत में कोई फैमिली रहने आ चुकी थी,पर अभी तक हमे पता नही था ये लोग कौन हैं,और क्या हैं,

खेर, रोज़ की ही तरह में और मेरा छोटा भाई छत पर पतंग उड़ा रहे थे,छोटे भाई ने कहा भाई कट गई ? मेने कहा क्या ?

छोटा भाई बोला हम लोग की पतंग कट गई भाई,वो देखो सैफी के छज्जे पर कितनी प्यारी प्याIरी दो लड़कियां खड़ी हैं।

मैंने पहले घूर कर छोटे भाई की तरफ देखा,फिर सैफी साहब के छज्जे की तरफ नज़र की,वहाँ वाक़ई में बहुत खूबसूरत दो लड़कियां गली के नज़ारे निहार रही थी।

मैंने उसे देखा तो देखता ही रह गया,

मेरे निहारने में मेरे छोटे भाई ने खलल डाला और कहा आप ख़्वाहमखा गुस्सा कर रहे थे,सच में कट गई न.. पतंग।

मैंने छोटे भाई से कहा जल्दी से चरखी लपेट और अपने छज्जे पर चल,

मैं और रेहान जाकर दोनों बालकनी में खड़े हो गये,वो दोनों शायद बहनें थी,एक मेरी हमउम्र थी और दूसरी रेहान की,अचानक बड़ी वाली ने मेरी तरफ देखा तो में सेहम कर अपने ही छज्जे से पीछे हट गया,फिर कुछ लम्हो के बाद वापस आगे आया तो वो इधर ही देख रहीं थी, मैने उनको देख कर हल्की सी स्माइल कर दी,उन्होंने देख कर इग्नोर कर दिया,

कहते है ना खुदा जब हुस्न देता है, नज़ाकत आ ही जाती है,

खेर
अब मेरा पहला मक़सद उनके बारे में सब कुछ जान न था,जहाँ से ये मकान बेच कर आये थे उसी मोहल्ले में जाकर दोस्त के ज़रिये एक लड़के से सब पता करा,उसने बताया बड़ी बहन का नाम सारा है,और छोटी का हिबा , दोनोे बहुत नखरे और एटीट्यूड वाली लड़कियां है, किसी लड़के को भाव नही देती,पापा इनके एक्सपोर्टर हैं, इसकी दो बड़ी बहनों की शादी हो चुकी है, एक दुबई में जॉब करता है, दूसरा दिल्ली में प्रोपेर्टी डीलर है,मैंने उस से कहा भाई में तो बी एस सी में हूँ, तू ये इसके जीजाओ की जॉब का बता के मेरी सुलगा मत,लड़कियों के बारे में इतनी जानकारी ही काफी है,बाकी में खुद देख लूंगा,ये कह कर में वापस घर आ गया,अब मसला ये था सारा से बात शुरू कैसे की जाये,

मैं पूरा दिन छज्जे में कुर्सी डाले बैठा रहता,वो जैसे ही अपने छज्जे में आती मैं नज़र आसमान में कर लेता,मुझ पर मानो जैसे पानी पड़ जाता,मैं ऐसा हो जाता जैसे पतंगों के पेंच देख रहा हूँ,पर हकीकत में उस से नैनो के पेंच लड़ाने की फिराक में रहता,

खेर,ऐसे ही पूरा हफ्ता बीत गया पर बात करने की कोई तरकीब नज़र नही आयी, 8वे दिन सारा और हिबा बालकनी में चिप्स खा रही थी,छोटे ने कहा देखो भाई दोनो चॉप्स खा रही है और हमसे झूठे मुँह भी नही पूछा,

मैंने कहा वो क्यों पूछेंगी हमसे ?

फिर अगले ही पल शैतानी दिमाग के घोड़ो ने दौड़ना शुरु कर दिया,मैंने छोटे को जेब से 5 का सिक्का निकाल कर दिया और कहा भाग कर एक कुरकुरे ले आ,और सुन इतनी तेज़ जाना आना के इनका चिप्स खत्म न होने पाए,नही तो ये वापस अपने रूम में चली जायँगी,छोटे ने कहा भाई आपको पता नही है ये शेहज़ादिया कितनी नज़ाकत से चिप्स खाती है,में दुकान के 5 चक्कर लगा लूंगा इनका चिप्स खत्म नही होगा, मैंने हस्ते हुए छोटे के सर पर मार के कहा चल बाते मत बना,भाग के जा दौड़ के आ,

छोटा बिजली की रफ़्तार से वापस आ गया,मैंने कुरकुरे का मुंह खोला और छोटे से कहा खाना शुरू कर,छोटे ने मुट्ठी भर कर निकाल लिया,मैंने फिर छोटे के सर पर मारा, अबे हफशियो की तरह नही,नज़ाकत से खा,उनके देखने से पहले ये खत्म हो गया तो तेरी खेर नही, बेचारे छोटे ने एक एक कर निकाल कर खाना शुरू करा,तभी सारा ने मेरी तरफ देखा,मैंने उसे दूर से ही कुरकुरे ऑफर करा,उसने न में गर्दन हिलायी और मुँह फेर लिया,छोटा बोला भाई अब हफशियो की तरह खा लूं,मैंने कहा ले भर ले,अभी मूड ताज़ा ताज़ा खराब ही था,तभी सारा ने फिर इधर देखा और अपना चिप्स का पैकेट दिखा कर कहा आप खा लो,कुछ देर के लिए तो में सहम सा गया,फिर मैंने मन मज़बूत कर कर के कहा - लाओ खिलाओ,


अब वो बेचारी सोच में पड़ गयी,बीच में दो मकान का फासला, इतनी दूर चिप्स कैसे दें,सारा ने इशारे से पूछा कैसे दूँ? मेने दोनों हाथ हवा में उठा कर इशारे से कहा मुझे क्या पता.

वो मुस्कुराती हुई रूम में वापस चली गयी,और जाते जाते मुझे भी मुस्कुराने की वजह दे गई।


अब जब भी वो बालकनी में दिखती, छोटे भाई की दौड़ दुकान तक लगती,मैं उसको पूछता वो मना कर देती,और सब सामान भाई के पेट में समा जाता,छोटे को हिबा से ज़्यादा चिप्स और कोल्ड ड्रिंक्स में इंटरेस्ट था,

खेर हमें बात करने का बहाना मिल गया था,अब सारा भी बालकनी में तभी आती जब उसके पास खाने का कुछ होता था,एक दूसरे को सामान ऑफर करते करते यूँ ही दो महीने बीत गए,

एक दिन में छत पर खड़ा पतंग उड़ा रहा था के पापा का फ़ोन आया और कहने लगे कल्लू लोहार के यहां आजाओ,और दो तीन दोस्तों को भी साथ में ले आना,में सोचने लगा पापा का मैटर तो नही हो गया लोहार से,लड़के भी बुलाये हैं,मैने दोस्तों को कॉल की और कहा चेन पंच जो भी हो ले के फ़ौरन कल्लू लोहार के यहाँ पहुँचो,में भी आ रहा हूं,आर्डर सुनते ही सारे दोस्त आस्तीन चड़ा कर लोहार की दुकान के इर्द गिर्द खड़े हो गये,मैंने जाते ही पापा से कहा जी बताइये,

पापा बोले इस ( कल्लू) से मैने पीसलन (स्लाइड) और उठक बैठक (सी सॉ) बनवाया है,ये सामान घर ले कर जाना है,अपने मोहल्ले में कोई पार्क नही है इसी लिए ये सब छत पर लगवाएंगे,अब बच्चो को दूर कालोनी नही जाना पड़ेगा खेलने के लिए,

खेर हाथो की खुजली को जेब में रख कर में और मेरे दोस्त सब सामान छत पर ले आये,और उन्हें पुरे दिन की मेहनत के बाद छत पर फिट करा दिया,
शाम हुई जिस जिस बच्चे को पता लगा वो झूले झूलने घर आ गया,घर की छत पर मेला सा लग गया,बच्चों की हँसी की आवाज़े सुन कर सारा और हिबा भी अपनी छत पर आ गयी, दोनों झूले देख कर बहुत खुश हुईं और कहने लगी ये कब आये ?

मैंने कहा में लेकर आया हूं,

सारा कहने लगी पर क्यों ?

मैने कहा ताकि तुम भी अब बहाने से हमारे घर आ सको,

सारा ने कहा बहाने की क्या ज़रूरत है,में कल ही आ रही हूं तुम्हारे घर,

मेरी तो मानो लॉटरी लग गयी हो,मैंने दिल ही दिल पापा को एक लाख दुआएं दी और मन ही मन कहा शुक्रया पापा मेरा पहला अफेयर आप ही की वजह से होने जा रहा है,

अगले दिन पूरी छत की धुलाई सफाई की,

क्योंकि मेहबूब के आने की पूरी गुंजाईश थी।

आखिरकार शाम के वक़्त दोनों आ गयी,ब्लू जीन्स व्हाइट और ब्लैक टॉप में सारा किसी हीरोइन से कम नही लग रही थी, सुनहरी बाल, बड़ी बड़ी आँखे, खड़ी नाक खूबसूरत नक्शा, पास से देखेने मैं वो और ज़्यादा खूबसूरत थी, बाकी हिबा को मैने नोटिस नही किया,

खेर, वो दोनों साथ में छोटी बहन के लिए तोहफा भी लायी थी,और चॉक्लेट भी, अम्मी ने उनका नाश्ता कराया, फिर मेने सारा से कहा आईये आप को छत के झूले दिखा लाऊँ,

सारा ने कहा जी बिलकुल,

छत पर जाने के बाद रेहान और हिबा स्लाइड पर खेलने लग गए,में और सारा झूलो पर बैठ गए,मैंने उस से पूछा तुम किस क्लास में हो,

उसने कहा 12th में, मेने कहा अरे वाह में बी एस सी में हुँ, उसने जीन्स से अपना नोकिया 1100 निकाल कर हाथ मे रख लिया,मुझे लगा शायद ये शो ऑफ़ कर रही है अपना मोबाइल,क्योंकि उस ज़माने में मोबाइल कम ही देखने को मिलते थे, मोहल्ले के बच्चों में शायद कुछ ही बच्चो के पास मोबाइल था, सो मैंने भी अपना रिलायंस जीएसएम् मोबाइल निकाल कर दिखाया,के हम भी गरीब नही है,
खेर उस बेचारी ने मुँह बनाते हुए मोबाइल वापस जेब में रख लिया,उस दिन हम लोग की काफी बाते हुई,फिर वो वापस घर चली गयी,रात मे मैं लेटा हुआ उसी को सोचता रहा,सोचते सोचते जब ध्यान आया की वो मोबाइल नंबर के लिए दिखा रही थी न कि शो ऑफ़ के लिये तो मैने अपना ही माथा पीट लिया,घोर अफसोस पर कर भी क्या सकते थे,चिड़या खेत चुग चुकी थी,अगले दिन शाम के वक़्त जब वो दोनों बहनें ऊपर आयी तो मैने पतंग में एक कागज पर मोबाइल न० लिख कर पतंग पार कर ली,और सारा के सर पर घुमाने लगा,वो अपने सर पर पतंग घूमती देख कर मुस्कुराने लगी,
मैने भी अदब से पतंग को उनके कदमो में गिरा दिया,उसने पतंग उठा कर छुड़की देनी चाही पर तभी उसकी नज़र पतंग में बंधे न० पर पड़ी,उसने कागज़ पतंग से खोल कर रख लिया,लेकिन उसकी कॉल नही आई,इंतेज़ार करते करते शाम हो गयी,ठीक जब मग़रिब की अज़ान शुरू हुई उसकी काल आई,दुआ सलाम के बाद कहने लगी ये मोबाइल मेरे घर का है, इस पर कॉल मत करना कभी ख़ुद से,और में जब भी करूँगी तो मग़रिब की अज़ान पर ही करूँगी,इस पर मैंने पूछा ऐसा क्यों? तो फिर वो कहने लगी क्योंकि बाकी टाइम मोबाइल अम्मी के पास होता है या घर मे रखा होता है, मैंने कहा यार रोज़ाना सिर्फ दो ही मिनट बात हो पायगी ऐसे कैसे चलेगा ? फिर उसने कहा तुम ही बताओ में क्या कर सकती हूं?

मैने कहा तुम हर संडे घर आ जाया करो झूले झूलने के बहाने, इसी बहाने हमारी बात भी हो जाया करेगी,और किसी को कोई ऑब्जेक्शन भी नही होगा,इस सलाह पर दोनो की रज़ामन्दी बनी और इसी के साथ अज़ान भी पूरी हुई और कॉल कट गई,जैसा कि तय हुआ था वो संडे को अपनी बहन के साथ आ गयी,रेहान ओर हिबा खेलने में लग गए और हम दोनों दुनिया से बेखबर अपनी गुफ़्तुगू में,उस से बाते करते हुये वक़्त कैसे पंख लगा कर उड़ जाता था पता ही न लगता था,एक घण्टा बाते करने के बावजूद भी बाते अधूरी रह जाती थी,और जो बातें रह जाती थी वो हम इशारो में एक दूसरे से छज्जों पर खड़े हो कर करते थे,क्योंकि उसके ओर मेरे घर में दो घरो का फासला था,लेकिन हम इस बात से अंजान थे कि हम सबकी नजरों में आ चुके है,लोग हमें इशारे करते हुए देखते ओर आपस मे बातें बनाते,बात एक एक कर के पूरे मोहल्ले में फैल गयी,जितने लड़के लाइन में लगे थे सब दुश्मन बन गए, उस दिन ये बात पता लगी मोहल्ले में दुश्मन पैदा करने हो तो मोहल्ले की सबसे खूबसूरत लड़की पटा लो,पर मुझे उन सब से कोई फर्क न पड़ता था, जिसे में चाहता था वो मुझे चाहती थी,फिर भला ज़माने की परवाह में क्योंकर करता,हम दोनों को 5 महीने से ज़्यादा साथ हो चुके थे,लेकिन अभी तक मोहब्बत का इज़हार न उसने करा था न मैंने,बिना इज़हार के ही हमारी गाड़ी होले होले चल रही थी,लेकिन कब तक चलती,इस बार संडे बारिश के मौसम में था,खूबसूरत मौसम ठंडी हवाएं चल रही थी,छत पर पड़ी बेंच पर हम दोनों बैठे थे और मैने उसका हाथ थाम रखा था, न जाने उसे क्या हुआ उसने कहा आखिर हम दोनों का रिश्ता क्या है ? न तो हम दोस्त ही है.. ना ओर कुछ ही,और मुझे ऐसा लगता है ऐसे बेबुनियादी रिश्ता रखना सही नहीं,मैंने कहा तुमसे किसने कहा हमारा रिश्ता बेबुनियादी है,जब भी तुम मेरे ख्यालों में आती हो दिल की धड़कनें बेतरतीब हो जाती हैं, कहते हैं धड़कने जिंदगी की अलामत होती हैं तो क्या तुम ही मेरी जिंदगी हो ? क्या तुम मेरे सीने में दिल बनकर इसलिए धड़कती हो ताकि मैं जी सकूं, ज़िंदगी को महसूस कर सकूँ ? अगर ऐसा है तो इस तरह बेतरतीब क्यूँ धड़कती हो, तुम्हें धड़कने का सलीका क्यूँ नहीं आता ? तुम्हारे हर काम तुम्हारी चाल, तुम्हारी बातें यहाँ तक कि तुम्हारा धड़कना भी बेतरतीब क्यूँ होता है ? क्या तुम नहीं जानती कि धड़कनें बेतरतीब होने से मेरी जान भी जा सकती है ? अगर जानती हो तो मेरी जान लेने पर क्यूँ तुली हो ?
वो एक टक मुझे देखती रही,मैंने सास ली और फिर बोलना शुरू करा

सुनिए... धड़कना है तो कभी कभी हौले से ऐसे भी धड़का करो जैसे किसी तालाब से वजू करके हल्की सी खुन्की लिए हवा छूकर गुजरती है,धड़को तो ऐसे हौले से धड़को कि मैं तुम्हें महसूस करूँ और धीरे से मुस्कुरा दूँ ,

अम्मी कहती हैं जुनैद जब तुम मुस्कुराते हो तो ऐसा लगता है जैसे फूल खिल उठे हो", तुम्हें पता है जब फूल खिलते हैं तो उसे बहार का मौसम कहा जाता है, वो बहार जिसका इंतज़ार सारा गुलशन, सभी पौधे, बागबान, बुलबुल, सय्याद सभी बड़ी शिद्दत से करते हैं, उतनी ही शिद्दत से मैं तुमसे मुहब्बत करता हूँ जितनी शिद्दत से तुम्हारा छत पर इंतज़ार करता हूँ,मगर शायद न तो तुम मेरी मुहब्बत को महसूस करती हो और न ही मेरे इंतज़ार का सिला देती हो, बल्कि जब इंतज़ार से थक कर तुम्हें भूलने लगता हूँ तो ख़याल बनकर जहन को झिंझोड़ देती हो, दिल बनकर धड़कने लगती हो, और कुछ ऐसे धड़कती हो कि मेरी जान पे बन आती है,

मुझे मेरी धड़कनों पे मेरा इख़्तियार दे दो
या मुझको मेरे हिस्से का मेरा प्यार दे दो, मैं अब मोहब्बत अब उस मुकाम पर आ चुका हूं जहाँ से वापसी का कोई रास्ता नही,इतना कह कर मैं चुप हो गया, उसने बिना कुछ कहै अपने हाथ को मेरे हाथों से निकाला ओर हिबा को लेकर घर चली गयी,और मुझे कशमश में छोड़ गई,