Aakhar Chaurasi - 21 books and stories free download online pdf in Hindi

आखर चौरासी - 21

आखर चौरासी

इक्कीस

‘‘बाहर बड़ी देर लगा दी ?’’ भीतर घुसते ही उनकी पत्नी ने पूछा।

‘‘हाँ, वो सामने वाले अम्बिका बाबू बातें करने लग गए थे। नेताजी के बारे में कह रहे थे कि स्साले पहले लूटते हैं फिर सांत्वना देने आते हैं...।’’

हरनाम सिंह की बात को बीच में ही काट कर सतनाम बोला, ‘‘...तो पांण्डे अंकल, क्या गलत कहा रहे थे ? बिल्कुल ठीक बोल रहे थे। नेताजी के नौकर सुखना को अपनी दुकान से भरे बोरे निकाल कर सायकिल पर ढोते तो मैंने स्वयं छत पर से देखा था।’’ वह गुस्से से भरा बैठा था।

‘‘कोई बात नहीं बेटा, चुप कर।’’ उसकी माँ ने उसे समझाया, ‘‘हमारे लिए क्या यही कम है कि हम सब सकुशल हैं। सामान तो फिर बन जाएगा। जो हो गया अब उसके बारे में सोचने से क्या फायदा ?’’

हरनाम सिंह ने अपनी पत्नी का समर्थन किया, ‘‘ठीक कहती हो। अभी तो नेताजी यही जानते हैं कि हमें कुछ पता नहीं। अगर उन्हें कह दें कि हमें सच का पता है तो हो सकता हैं वे अपने खिलाफ सबूत मिटाने के लिए हमारा कोई जानी नुकसान ही कर दें। आज उस पार्टी का कोई भरोसा नहीं है।’’

‘‘कहीं नेताजी हमारे घर यह देखने तो नहीं आए थे कि यहाँ से वे क्या-क्या लूट कर ले जा सकते हैं?’’ मनजीत कौर की बात सुन कर सब एकाएक खामोश हो गए।

हरनाम सिंह ने एक नज़र अपनी बेटी पर डाली, ‘‘नहीं मनजीतो, इतना अनर्थ वे लोग नहीं कर सकते। देखा नहीं उनके साथ रमण बाबू भी थे। और फिर यहाँ हमारे सामने अम्बिका पाण्डे जी जैसे भले लोग भी तो रहते हैं। वैसी लूट-पाट करने वे यहाँ नहीं आ सकते।’’

कहने को ते वे कह गये थे, मगर अपने ही शब्द उन्हें स्वयं को अविश्वसनीय लग रहे थे।

मनजीत कौर ने पुनः तर्क किया, ‘‘क्या आपने सोचा था कि हमारी दुकान लूटने का अनर्थ वे लोग कर लेंगे ? तो फिर वे लोग यह अनर्थ क्यों नहीं करेंगे ?’’

इस बार हरनाम सिंह निरुत्तर रह गये। एक तीखा-सा सन्नाटा वहाँ फैल गया।

सतनाम ने कृपाण दीवान के नीचे से निकाल कर अपने हाथ में पकड़ ली, ‘‘...अगर वे यहाँ आ गये तो दो-चार को तो मैं जरुर काट डालूँगा। इस घर में घुस कर लूट-पाट करने का मतलब होगा कि वे हमें जिन्दा नहीं छोड़ेंगे। अगर जिन्दा छोड़ भी दिया तो यूँ अपमानित हो कर फिर मैं जीना नहीं चाहूँगा। इससे तो अच्छा होगा कि उनका मुकाबला करुँ और शहीद हो जाऊँ।’’ सतनाम की लाल-लाल आँखों में मानों खून उतर आया था।

‘‘शुभ-शुभ बोलो बेटा। ऐसा कुछ भी नहीं होगा। वाहेगुरु सब ठीक करेगा।’’ सुरजीत कौर ने उसे शांत करते हुए कहा।

तभी बाहर वाला गेट फिर खड़का। साफ पता चल रहा था कि कोई भीतर आया है। लेकिन जो भी आया था, बिल्कुल दबे पाँव और ख़ामोशी से आया था। अन्दर बैठे परिवार के हर सदस्य के चेहरे पर एक बार फिर से तनाव छा गया।

हरनाम सिंह ने अपनी बेटी मनजीत कौर को इशारा किया। वह तत्काल माँ और भाभी के साथ भीतर वाले कमरे में घुस गई। उसने दरवाजा अन्दर से बंद कर लिया। सतनाम ने बाहर वाले दरवाजे से आँख लगा कर झाँका। अंधेरे में उसे गेट से भीतर आते दो साये साफ-साफ दिखाई दिए। अपनी कृपाण पर उसकी पकड़ सख्त हो गई। तभी दरवाजे पर आहिस्ते से दस्तक हुई।

‘‘कौन है ?’’ सतनाम ने कड़े स्वर में पूछा।

‘‘सतनाम मैं हूँ, महादेव ! दरवाजा खोलो।’’ बाहर से धीमी आवाज आयी।

महादेव की आवाज़ पहचान कर सतनाम के भीतर का तनाव जाता रहा। उसने अन्य सदस्यों को भी बता कर आश्वस्त कर दिया और दरवाजा खोला। महादेव अपने एक दोस्त के साथ भीतर आया। सतनाम ने उसको भी पहचान लिया। वह सुबह भी दुकान पर ताश खेलने महादेव के साथ आया था। उनके अंदर आते ही सतनाम ने दरवाजा बंद कर लिया।

‘‘अंकल, आप सब ठीक तो हैं !’’ महादेव ने बैठते हुए पूछा।

‘‘हाँ, हम सब तो ठीक हैं। लेकिन तुम इस तरह चुप-चाप क्यों आये ?’’ हरनाम सिंह ने पूछा।

‘‘बाकी लोग कहाँ हैं ?’’ महादेव ने जानना चाहा।

तब तक उनकी आवाजें सुन, निश्चिंत हो, घर की औरतें भी वहाँ आ गईं। महादेव के साथ आये लड़के ने अपनी कमर में खुंसी रिवाल्वर निकाल कर उसे थमा दी।

महादेव ने वह रिवाल्वर सतनाम की ओर बढ़ाते हुए कहा, ‘‘इसे अपने पास रखो।’’

‘‘यह क्यों ?’’ सतनाम ने उलझन भरे स्वर में पूछा।

‘‘तुम क्या समझते हो ? अगर उन लोगों ने हमला किया तो इस कृपाण से तुम उनका मुकाबला कर लोगे ?’’ महादेव ज़रा तीखी आवाज़ में बोला।

‘‘क्या बात है बेटा, तुम काफी परेशान लग रहे हो ?’’ इस बार हरनाम सिंह बोले थे।

‘‘अंकल, मैं आप लोगों को परेशान नहीं करना चाहता। लेकिन आप लोग किसी गफलत में भी न रहें। गुरुद्वारे में ग्रंथी का कत्ल हो गया है।’’ महादेव ने बताया।

‘‘क्या ? ग्रंथी का कत्ल हो गया ?’’ सुरजीत कौर बुरी तरह चौंकी फिर बुदबुदाने लगीं, ‘‘...वाहे गुरु... वाहे गुरु...’’

‘‘हाँ, अंकल। वह अपने हाथ में कृपाण ले कर अकेला भीड़ के सामने निकल आया था। तभी भीड़ में से किसी ने उस पर गोली चला दी। वैसे तो मुझे भरोसा है, इस तरफ आने का कोई साहस नहीं करेगा। लेकिन मैं कोई रिस्क लेना नहीं चाहता। आप लोग यह रिवाल्वर अपने पास रखिए। अगर वैसी कोई स्थिति आ जाए, तो दूर से ही छिपकर फायर करना। बस एक लाश गिरने की देर है फिर भीड़ नहीं टिकेगी।’’ महादेव तेजी से बताए जा रहा था, ‘‘वैसे तो आपके सामने वाले कामरेड अम्बिका पाण्डे को आप लोगों की सुरक्षा का ध्यान रखने के निर्देष हैं।’’ उसने उठते हुए कहा। लगता था वहाँ से निकल कर उसे कहीं और भी जाने की जल्दी है।

अम्बिका पाण्डे का जिक्र आते ही हरनाम सिंह को याद आया कि नेताजी के आने पर वे पूछताछ करने को बाहर आए थे।

‘‘मैं स्वयं आप लोगों के पास रहता। लेकिन हमें सूचना मिली है कि आज रात पास वाले शहर के बाहर स्थित पंजाबी कॉलोनी पर हमले की तैयारी हो रही है। हम लोग वैसा कुछ भी नहीं होने देंगे। इसलिए हमारे कुछ साथियों ने वहाँ रात में गश्त लगाने का इंतजाम किया है। इन कांग्रेसियों को खूनी खेल खेलने की अनुमति हम हर्गिज नहीं देंगे !’’ महादेव के स्वर में दृढ़ता थी।

उसने रिवाल्वर सतनाम को थमाई और फिर वे दोनों जैसे आये थे वैसे ही चुपचाप वहाँ से निकल गए। उनके बाद उस कमरे में एक भयानक ख़ामोशी पसर कर बैठ गई। जितना कुछ वे बता कर गए थे, उससे वहाँ के हालात बड़े ही खराब लग रहे थे।

सुरजीत कौर अपना दुपट्टा सर पर रख कर ‘वाहे गुरु ...वाहे गुरु...’ का जाप करने लग गई।

उनकी बहू और बेटी भी उनके पास बैठ कर उनका अनुसरण करने लगीं। पिता-पुत्र के माथे पर चिन्ता की लकीरें और भी गहरी हो गईं। न जाने वह कैसी कयामत की रात थी....!

...वह रात किसी के लिए मारने तो किसी के लिए मरने की रात थी। ....वह रात किसी के लिए बचाने तो किसी के लिए बचने की रात थी। न जाने उस भयानक, काली एक रात में क्या-क्या होना था ? न जाने उस रात के बाद अगली सुबह कैसी होनी थी....? अगली सुबह होनी भी थी या नहीं....? मनवता का इतिहास गवाह है कि कुछ रातें ऐसी भी होती हैं, जिसके बाद केवल आभासी सुबहें ही हो पाती हैं। फिर वैसी रातों के बाद वास्तविक सुबहों का इंतजार तो मानवता सदियों तक बस करती ही रह जाती हैं....। सुबह कभी नहीं होती ....कभी नहीं !!

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कमल

Kamal8tata@gmail.com