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आखर चौरासी - 24

आखर चौरासी

चौबीस

परस्पर विरोधी विचारों ने उसका चित्त बुरी तरह अस्थिर कर दिया था। वह एक बात सोचता तो दूसरी बात उसके विचारों को मथने लगती....।

फिर उसने निर्णय करते हुए स्वयं से कहा, ‘...खैर जो होगा देखा जाएगा। अभी तो वह जगदीश के कथनानुसार ही चलेगा। अगर वह किसी षड़यंत्र में ही फंस चुका है और उसका अंत इसी प्रकार होना तय है तो यही सही। अभी ऐसे ही चलने दो, उसने सोचा। जब जैसी स्थिति आयेगी, तब उसका वैसे ही सामना किया जाएगा।’ निर्णय ले लेने के कारण गुरनाम दुविधा की स्थिति से निकल आया और उसने ज़रा शांति का अनुभव किया।

तभी उसे कविता की याद आ गयी। क्या वह अनुमान लगा सकती है कि मैं यहाँ किस मुसीबत में पड़ गया हूँ ? उसे विक्की की भी याद आयी। अब तक तो वह अपने इंजीनियरिंग कॉलेज पहुँच गया होगा...।

***

मेन हॉस्टल के हर ब्लॉक में एक प्रीफेक्ट था, जो अंतिम वर्ष का ही कोई छात्र होता था। प्रीफेक्ट को अपने ब्लॉक में अनुशासन और ‘स्टडी आवर’ के अनुपालन के साथ-साथ सभी छात्रों की उपस्थिति और अनुपस्थिति, बीमारी आदि की सूचना निश्चित रुप से रखने की व्यवस्था होती है। हॉस्टल से छात्रों को अनुपस्थित होने के लिए अपने प्रीफेक्ट को लिखित एप्लीकेशन से सूचित करना पड़ता। गुरनाम का एप्लीकेशन ले कर जगदीश जब प्रीफेक्ट के पास पहुँचा, तब वह अपने कमरे में अभी आये ही थे।

उसके एप्लीकेशन को पढ़ कर प्रीफेक्ट ने जानना चाहा, ‘‘गुरनाम छुट्टी लेने स्वयं क्यों नहीं आया ?’’

जगदीश उस प्रश्न की संभावना पर पहले ही विचार कर चुका था। क्योंकि सामान्यतः छुट्टी लेने वाले को स्वयं प्रीफेक्ट के पास आने का नियम था।

उसने तुरन्त उत्तर दिया, ‘‘दरअसल हम दोनों मेन रोड गए थे, जहाँ उसके अंकल मिल गये और कहने लगे कि गुरनाम को कुछ दिन उनके पास रहना चाहिए। फिर वहाँ से हम दोनों अंकल के घर ‘जुलू पार्क’ चले गए। वहीं पर गुरनाम ने आपको देने के लिए, मुझे एप्लीकेशन लिख कर दिया था। वह वहीं रुक गया और मैं हॉस्टल लौट आया।’’

‘‘तुम लोग कब गये थे ?’’ प्रीफेक्ट ने पूछा, ‘‘आज दोपहर का खाना तो वह मेरे साथ ही खा कर निकला था। तब भी उसने मुझे लोकल गार्जियन के पास जाने के बारे में कुछ नहीं बताया था।’’

इस प्रश्न पर जगदीश थोड़ा घबराया। गुरनाम को दोपहर में प्रीफेक्ट ने देखा है, वह बात उसकी जानकारी में नहीं थी। लेकिन उसने जल्द ही बात संभाल ली, ‘‘जी, हम दोनों दोपहर के बाद ही मेन रोड गये थे। तब तक तो उसका अपने अंकल के पास ‘जुलू पार्क’ जाने का कोई प्रोग्राम नहीं था। वह आपको क्या बताता। यदि उसके अंकल वहाँ न मिलते तो वह भी मेरे साथ हॉस्टल ही लौट आता। वह तो अंकल के मिल जाने और उनके कहने के कारण वहाँ रुका है।’’

‘‘ठीक है।’’ प्रीफेक्ट ने सन्तुष्ट होते हुए कहा, ‘‘एक तरह से अच्छा ही हुआ, गुरनाम वहाँ रुक गया। इस गड़बड़ी वाले माहौल में उसे वहाँ कोई परेशानी न होगी।’’

प्रीफेक्ट का अभिवादन कर जगदीश बाहर निकल आया। ‘यस पहला मोर्चा तो मार लिया !’ मन ही मन वह बहुत खुश था। अपनी योजनानुसार वह गुरनाम को हॉस्टल से अनुपस्थित करवा चुका था। अब उसके कमरे पर लटका ताला देख कर कोई सपने में भी नहीं सोच सकेगा कि गुरनाम कमरे के भीतर है। अब गुरनाम सुरक्षित है, ऐसा विचार आते ही जगदीश के माथे पर तनाव की लकीरें कुछ हल्की हो गईं।

प्रीफेक्ट के कमरे से निकल कर जगदीश ने मेस का रुख किया। अब उसे रात के खाने का प्रबंध करना था। वहाँ उसे रात का खाना तैयार करने में तल्लीन, मेस कॉन्ट्रेक्टर सरजू मिला।

‘‘सरजू, आज रात का खाना मेरे कमरे में भेज देना।’’

‘‘ठीक है सर, आपका खाना कमरे में पहुँच जाएगा।’’ सरजू ने जवाब दिया।

छात्रों द्वारा खाना अपने कमरे में मंगवाना आम बात थी। कई लड़के लगातार पढ़ते रहने या फिर मेस की भीड़ से बचने के कारण अपना खाना कमरे में ही मंगवा लेते थे।

‘‘...और हाँ, खाना साढ़े दस बजे तक जरुर भेज देना।’’ कह कर जगदीश वहाँ से निकल गया।

उसके द्वारा कमरे में खाना मंगवाने का एकमात्र कारण गुरनाम ही था। अगर वह स्वयं मेस में खा लेता तो उसके लिए खाना कैसे लाता ? अब कमरे में खाना आने के बाद वह आसानी से उसे गुरनाम के पास पहुँचा आएगा। गुरनाम को उसने रात ग्यारह बजे का समय इसलिए कहा था कि तब तक लगभग सभी लड़के खाना खाने के लिए मेस में जा चुके होते हैं। उस समय उसे गुरनाम के कमरे मे जाते देख लिए जाने की सम्भावना शून्य रहेगी।

मेस से लौटते हुए जगदीश ने दूर से ही देखा, प्रकाश और संगीत गुरनाम के कमरे के बाहर खड़े आपस में बातें कर रहे हैं। संभवतः वे दरवाजे पर लगे ताले को देख कर आश्चर्य कर रहे होंगे। उनके अनुसार उस वक्त गुरनाम को अपने कमरे में होना चाहिए था। वे दोनों कुछ देर बातें करने के बाद वहाँ से वापस लौट गये। ब्लॉक की सीढ़ियाँ उतरते हुए देवेश भी उनसे आ मिला। जब वे तीनों जगदीश के पास से गुजरे तब ऊपर से अनजान दिखते हुए भी उसके कान उन तीनों की बातचीत पर अटके हुए थे।

‘‘ये गुरु कहाँ गायब हो गया ? आज सुबह ही कह रहा था कि शाम के नाश्ते के बाद मेरे साथ ‘ऐरोमेटिक कंपाऊंड’ डिस्कस करेगा।’’ प्रकाश कह रहा था।

देवेश अपने चिरपरिचित अंदाज में चहकते हुए बोला, ‘‘अरे यार, उसे भूख जरा जल्दी लग गई होगी। इसलिए नाश्ते के लिए पहले निकल गया होगा। वहीं होटल में मिलेगा, जाएगा कहाँ ?’’

वे तीनों आपस में बातें करते उसके पास से गुजर गये। जगदीश ने चैन की साँस ली। उन तीनों को गुरनाम के अपने कमरे में ही होने का ज़रा भी अहसास नहीं हुआ था।

जगदीश मन ही मन प्रार्थना करता, अपने कमरे की ओर बढ़ गया, ‘हे ईश्वर, मुझे शक्ति देना ! जो जिम्मा मैंने उठाया है, उसे पूरा कर सकूँ...!’

***

जब होटल में भी उन्हें गुरनाम नज़र नहीं आया तो वे तीनों चिन्तित हो गये। देवेश ने चाय का ऑर्डर करते हुए पूछा, ‘‘प्रसाद जी गुरनाम नाश्ता कर चला गया क्या ?’’

‘‘जी नही, गुरनाम सर तो अभी तक आये ही नहीं हैं।’’ राम प्रसाद का उत्तर उन्हें और भी असंतुष्ट करने वाला था।

ऐसा तो पहले कभी नहीं हुआ। उन तीनों ने नाश्ता किया और हॉस्टल वापस लौट आए। उस समय भी गुरनाम के कमरे पर ताला लगा हुआ था।

‘‘चलो प्रीफेक्ट को बताते हैं।’’ संगीत कुछ सोचते हुए बोला।

‘‘अबे यार, गुरु कहीं टॉयलेट में न हो।’’ देवेश ने चुटकी ली।

संगीत ने उसे झिड़कते हुए कहा, ‘‘यार कभी तो सीरियस रहा करो।’’

‘‘हाँ संगीत, तुम ठीक कह रहे हो। इतनी देर तक गुरु का कमरे से गायब रहना मुझे भी अजीब लग रहा है।’’ प्रकाश ने संगीत का समर्थन किया।

‘‘सॉरी यार। तुम दोनों ही ठीक कह रहे हो।’’ अब देवेश का स्वर भी संजीदा था, ‘‘टाऊन की तरफ तो उसके जाने का प्रश्न ही नहीं उठता। उधर का माहौल ठीक नहीं है। दोपहर का खाना खाने के बाद से वह हमसे नहीं मिला, ऐसा तो पहले कभी नहीं हुआ। नाश्ते के लिए प्रसाद के होटल भी नहीं गया और न ही हॉस्टल में है। आखिर वह कहाँ गायब हो गया ?’’

देवेश की बात पर मन ही मन किसी अनहोनी की आशंका से प्रकाश और संगीत के साथ-साथ देवेश के दिलों की धड़कने भी तेज़ हो गई थीं। वे तीनों प्रीफेक्ट के कमरे की ओर चल पड़े।

***

‘‘गुरनाम तो अपने लोकल गार्जियन के पास जुलू पार्क गया है।’’ प्रीफेक्ट ने जब उनसे यह बात कही तब कहीं जा कर उनकी चिन्ता दूर हुई। वे तीनों वापस लौट गए।

उसके जाने की बात सुन कर न जाने क्यों देवेश के स्वर में दर्द उतर आया था, ‘‘लेकिन गुरु, हम लोगों से बिना मिले और बिना कुछ बताए ‘जुलू पार्क’ क्यों चला गया ? क्या वह स्वयं को यहाँ इतना ज्यादा असुरक्षित महसूस कर रहा था ? अगर उसे कोई कठिनाई थी तो वह हम तीनों में से किसी के भी कमरे में आकर रह सकता था ।’’

‘‘चलो अच्छा ही हुआ, वह अपने अंकल के पास चला गया। अगर यहाँ रहते उसे कुछ हो-हवा जाता तो हम स्वयं को कभी माफ नहीं कर पाते।’’ संगीत ने कुछ सोचते हुए कहा।

देवेश ने उसकी बात सुन कर एक गहरी नज़र संगीत के चेहरे पर डाली। थोड़ी देर न जाने वहाँ क्या तलाशता रहा फिर बोला, ‘‘अगर गुरनाम को अपने अंकल के पास ‘जुलू पार्क’ में कुछ हो गया तो क्या हम स्वयं को माफ कर सकेंगे ?’’

उसकी बात सुन कर उनके बीच एक गहरी खामोशी पसर कर बैठ गई। फिर वही ख़ामोशी धीरे-धीरे उनके अन्दर भी उतरती चली गई। कोई कुछ नहीं बोला। वे तीनों चुपचाप सीढ़ियों से होकर ‘किंग्स ब्लॉक’ के बरामदे में चढ़ गए। उन्होंने एक नजर गुरनाम के दरवाजे पर डाली, वहाँ पूर्ववत् ताला लटक रहा था। वहाँ पल भर को रुक कर तीनों अपने-अपने कमरों की ओर मुड़ गए। बाहर से खामोश दिख रहे तीनों के भीतर विचारों का एक भयानक तूफान मचल रहा था....।

थोड़ी ही दूरी पर अपने कमरे में बैठा जगदीश अध-खुले दरवाजे से उन तीनों को देख रहा था। उसने अपने कमरे की बत्ती बुझा रखी थी। ताकि वह तो बाहर की हलचलों को देख सके, लेकिन बाहर से किसी का ध्यान उस पर न जाए।

वहाँ से उसे गुरनाम के कमरे का दरवाजा बड़ी आसानी से दिख रहा था। जगदीश ने थोड़ी देर पहले उन तीनों को प्रीफेक्ट के कमरे में घुसते और निकलते भी देखा था। वह मन ही मन बुदबुदाया, ‘‘अब और लड़कों को भी गुरनाम के हॉस्टल में नहीं होने का पता चल जाएगा।’’

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कमल

Kamal8tata@gmail.com