Gumshuda ki talash - 25 books and stories free download online pdf in Hindi

गुमशुदा की तलाश - 25


गुमशुदा की तलाश
(25)



कमरे में छत से एक बल्ब लटक रहा था। उस पर लगे शेड के कारण फर्श पर दूधिया रौशनी का एक गोला बना था। उस गोले में दो रिवाल्विंग कुर्सियों पर सरवर खान और रॉकी आमने सामने बैठे थे। रॉकी अपनी आँखे उन पर जमाए हुए था। सरवर खान उसकी उन गहरी काली आँखों के सम्मोहन में नहीं फंसना चाहते थे। इसलिए वह सीधे उसकी आँखों में नहीं देख रहे थे।
"उम्मीद है खान साहब....आपको हमारी मेहमान नवाज़ी पसंद आई होगी।"
सरवर खान हल्के से मुस्कुराए।
"पसंद नापसंद तो बाद की बात है। पहले यह तो जान लूँ कि मेरा मेज़बान है कौन ?"
सरवर खान अपनी कुर्सी पर थोड़ा आगे झुके।
"रॉकी या मदन कालरा...."
रॉकी विस्मय से उनके चेहरे की तरफ देख रहा था। सरवर खान ने कहा।
"उन गहरी काली आँखों को मैं भूला नहीं हूँ।"
सरवर खान की बात सुन कर रॉकी ज़ोर से हंसा। उसकी रिवाल्विंग कुर्सी 360 डिग्री घूम कर जब दोबारा सरवर खान के सामने आई तो वह उसे खिसका कर उनके पास ले गया।
"खान साहब....मान गए। हो कमाल की चीज़। आँखों से पहचान लिया।"
"हाँ....मदन उर्फ रॉकी...अब बताओ मदन कालरा रॉकी क्यों बना ?"
रॉकी ने अपनी कुर्सी को पीछे खिसका लिया।
"वही बताने के लिए तो बुलाया था खान साहब। सोंचा था कि मेरा यह खुलासा कि मैं मदन हूँ आपको चौंका देगा। पर आपने तो मुझे चौंका दिया।"
"चलो तो अब यही बताओ कि तुम्हें मैने दो गोलियां मारी थीं। तुम समुद्र में गिर गए थे। फिर आज यहाँ कैसे ?"
रॉकी ने पहले सरवर खान की तरफ देखा। फिर अपनी आँखें कमरे की किसी अंजान चीज़ पर टिका दी।
रॉकी ने अपनी कहानी बतानी शुरू की.....

मदन मछुआरों की बस्ती में पिछले दो महीनों से था। गणेश नाम के एक मछुआरे को वह दरिया के किनारे एक चट्टान पर पड़ा मिला था। उसने नब्ज़ टटोली तो जान बाकी थी। गणेश ने ध्यान से देखा तो वह पहचान गया कि यह मदन सेठ है। वह कई बार उसका माल अपनी कश्ती में पहुँचा चुका था।
गणेश ने अपने साथियों के साथ मिल कर मदन को अस्पताल पहुँचाया। डॉक्टरों ने मेहनत कर उसकी जान बचा ली।
मदन जानता था कि गणेश ने उसे पहचान लिया है। उसने गणेश को लालच दिया कि अगर आगे भी वो उसकी मदद करेगा तो वह उसे मालामाल कर देगा।
गणेश उसे अपने घर ले आया और उसकी तीमारदारी करने लगा। धीरे धीरे मदन ठीक हो रहा था। अब वह अपने साम्राज्य में वापस लौटना चाहता था। पर गणेश ने उसे जो खबरें दी थीं उनके मुताबिक मदन कालरा ड्रग माफिया घोषित हो गया था। पुलिस ने समुद्र में उसकी लाश तलाशने का प्रयास किया था। पर लाश उन्हें नहीं मिली थी। पुलिस यह शक भी जता रही थी कि हो सकता है कि वो जीवित हो और कहीं छिपा हो।
मदन समझ गया था कि उसे अपने साम्राज्य को दोबारा खड़ा करना पड़ेगा। एक नए नाम नई पहचान के साथ। इसके लिए बहुत आवश्यक था कि वह किसी तरह देश के बाहर जा सके। पर उसके लिए पैसों की दरकार थी।
पैसों की कमी नहीं थी उसे। वह जिस महलनुमा आलीशान बंगले में रहता था उसके एक गुप्त कक्ष में उसने बहुत सी दौलत एकत्र की थी। पर मुद्दा था कि वह अब अपने ही बंगले में कैसे जाए।
मदन गणेश की खोली में बैठा इसी बात पर विचार कर रहा था। वह जानता था कि उसकी रिहाइश की जगह पर पुलिस नज़रें जमाए होगी। उसकी दौलत भी उसी बंगले में है। अतः अगर उसे ज़िंदगी भर इस तरह छिप कर नहीं रहना है तो जोखिम तो उसे लेना ही पड़ेगा। उसने एक प्लान बनाया था।
गणेश जब उसके पास आया तो उसने कहा।
"तुमने मेरी बहुत मदद की है। बस अब एक और मदद कर दो। उसके बाद तुम्हें किसी चीज़ की कमी नहीं होगी।"
मदन ने गणेश को अपनी योजना बता दी। योजना के हिसाब से गणेश उसके लिए कपड़े और सामान लाया जिससे वह अपना हुलिया बदल सके। साथ में एक देसी गन भी थी।
अपने बंगले में घुसने का मदन का प्लान वैसा ही था जैसे वह जॉर्ज के डिसूज़ा मैंशन में दाखिल हुआ था। मदन ने अपने हाउस कीपिंग हेड को इतने पैसे दे रखे थे कि स्टाफ की सैलरी और बंगले की व्यवस्था छह माह तक सुचारु रूप से चल सके। वह जानता था कि उसकी अनुपस्थिति में भी सही समय पर ग्रासरी का आर्डर दिया जाता होगा।
मदन ने उस ट्रक को कब्ज़े में ले लिया जिसमें बंगले का सामान था। इस तरह वह बंगले के भीतर बिना पुलिस की निगाह में आए पहुँच गया।
बंगले के भीतर पहुँच कर उसने सिक्योरिटी और हाउस कीपिंग के सारे स्टाफ को हॉल में इकठ्ठा होने को कहा। सबके आने पर वह बोला।
"पिछले लगभग दो महीनों से मैं यहाँ नहीं था। आप लोगों ने खबर सुनी होगी कि पुलिस मुझे तलाश रही है। पर आपने इस बंगले की वैसे ही देखभाल की जैसे मेरे रहते हुए करते थे।"
सारा स्टाफ चुपचाप उसकी बात सुन रहा था। वह समझ नहीं पा रहे थे कि उनके मालिक ने कभी उनसे सीधे बात नहीं की। तो फिर आज वह उन सबको बुला कर क्या कहना चाहते हैं।
"मैं समझ रहा हूँ कि आप सबके मन में यह चल रहा है कि मैंने सबको यहाँ क्यों एकत्र किया है। मैं चाहता हूँ कि मेरे इस बंगले में लौटने की बात किसी भी तरह बाहर नहीं जानी चाहिए। इसके एवज में आप सबको मैं इतना पैसा दूँगा कि आपकी ज़िंदगी आराम से गुज़र सके।"
सब एक दूसरे की तरफ देखने लगे।
"पर अगर किसी ने यह बात बाहर पहुँचाई तो ये समझ लो कि उसने अपनी कब्र खुद खोद ली। कोई यह समझने की भूल ना करना कि मैं चुक गया हूँ। मैं मौत से लड़ कर आया हूँ। हारूँगा नहीं।"
आखिरी बात मदन ने जिस शिद्दत से कही थी उसे सुन कर सबके मन में डर बैठ गया। मदन ने अंतिम बात इसी उद्देश्य से कही थी। वह जानता था कि पैसे का लालच और जान की फिक्र उनके मुंह बंद रखेगी।
बहुत दिनों के बाद मदन को अपने बंगले का ऐशो आराम नसीब हुआ था। लेकिन वह जानता था कि यह ऐशो आराम में खो जाने का वक्त नहीं है। उसने शेव बनाई। नहा धोकर फ्रेश होने के बाद अपनी वार्डरोब से कपड़े निकाल कर पहने। एक बार खुद को आईने में निहारा। पहले से कुछ कमज़ोर हो गया था। पर चेहरे का आत्मविश्वास कम नहीं हुआ था।
मदन ने अपने एक स्टाफ से उसका मोबाइल ले लिया। सबसे पहले उसने अपने मैनेजर अभय सिंह को फोन लगा कर फौरन बंगले में आने के लिए कहा। वह बंगले में बने अपने ऑफिस में उसकी राह देखने लगा।
अभय सिंह कई सालों से मदन सिंह के लिए काम कर रहा था। वह अपने काम में माहिर था। आज तक उसने कभी भी शिकायत का मौका नहीं दिया था। मदन को पूरा यकीन था कि इस बार भी वह उसके काम आएगा।
अभय के आने पर मदन ने उसे सारी बात बताई। मदन चाहता था कि अभय उसके लिए एक नकली पासपोर्ट बनवा कर उसके दुबई जाने की व्यवस्था करे। वहाँ उसके कई परिचित थे जो काम आ सकते थे। उसने वहाँ दो अलग अलग नाम से बैंक खाते खुलवा कर उसमें हवाला के ज़रिए पैसे जमा करवाने को कहा।
अभय ने उसे आश्वासन दिया कि वह जितनी जल्दी हो सकेगा यह काम कर देगा।
मदन के उस गुप्त कक्ष में करीब पाँच सौ करोड़ नगदी तथा सौ करोड़ का सोना था। मदन ने उस नगदी में से हवाला के माध्यम से लंदन में एक आरामदायक घर खरीदा। सोने को बेच कर जो पैसा आया तथा बची हुई नगद रकम उसने अभय ने जो दो खाते खुलवाए थे उसमें जमा करवा दिए।
गणेश ने उसकी बहुत मदद की थी। उसे उसने इतनी रकम दी जिससे वह आराम से अपना जीवन गुजार सके।
नकली पासपोर्ट का प्रयोग कर मदन पहले दुबई गया। वहाँ कुछ दिन रह कर वह लंदन चला गया। लंदन में उसने प्रसिद्धि प्लास्टिक सर्जन डॉ. मार्कस जोन्स से अपने चेहरे की सर्जरी कराई।
सर्जरी के बाद मदन को एक नया चेहरा मिला। उसने अपने बालों का स्टाइल बदल लिया। अपने बोलने के तरीके व रहन सहन में बदलाव किए। अब वह एक नया व्यक्ति था।
अपने रूप में बदलाव के बाद उसने एक नया नाम रख लिया।
राकेश तनवानी
जो अपने आपको रॉकी कहता था।