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डकैत

विशवाजीत साधारण सा दिखने वाला सामान्य लोगों मे रह रहा एक शातिर डकैत था
उसको देख कर होशियार से होशियार आदमी भी चकमा खा जाये ऐसा रूप धारण कर रखा था महाशय ने
अरे औरो की तो छोड़ो अपनी परछाई को भी धोखे मे रखता था ये आदमी
आम लोगो की तरह मध्य वर्गीय स्थिति मे अपनी पत्नी और 10 वर्षीय बेटी के साथ निवास करता था बेटी और पत्नी को किसी प्रकार के कारोबार को चलाने के भ्रम मे लपेटा हुआ था

पिछले दो महीनों से साहब की हालत पतली थी हुआ ये के दो महीने पहले एक लोता चोर साथी एक काम को अंजाम देते पकड़ा गया था विशवाजीत को ये भय तो कतई ना था के साथी उसका नाम बताएगा
लेकिन उसके पकडे जाने के बाद से उसको अकेले डकैती करते डर लगता था
साथी को छे महीने की बामुशक्कत सजा हो गई थी अभी दो महीने भी ना हुए थे के रोजमर्रा होने वाले खर्चे ने इनका दम सा निकाल दिया

श्रीमती को तो रोज यही बोल कर निकलते के काम पर जाता हुँ मगर इधर उधर हांड कर आ जाते थे भईया विशवाजीत
भला और करते भी क्या
यूँ तो पास मे जो किराने वाला था वो किसी को हफ्ते से ऊप्पर उधार ना देता था मगर विशवाजीत से उसका अच्छा मेल जोल था इसलिए महीने भर तक तो उसने घर के लिये आटा दाल उधार बड़ी ही सहजता से दे दिया
लेकिन उसके बाद नाक भों सिकोडने लगा और दो महीने पुरे होते ही ताने घोंपते हुए साफ मना कर दिया

इस बात पर लज्जित हो कर पत्नी बेटी के साथ मायके चली गई
जाते समय पति देव से रुष्ट होकर बोल गई या तो नौकरी बदल लो या पैसे का बंदोबस्त करो नहीं तो वो मायके से वापस ना आएगी
इसलिए आज विशवाजीत बड़े ही घोर संकट मे पड़ चुके थे और इस समय अकेले ही डकैती मारने के सिवा और कोई चारा ना था उसके पास
तो एक शिकार को चुन लिया इसके ऊप्पर कई महीनों से घात लगाए रखी थी सोचा था साथी के छूटने के बाद काम को अंजाम देंगे मगर हालातो ने मजबूर कर दिया
शिकार मोटी आसामी था सोने के जेवरो की कई बड़ी बड़ी दुकाने थी जहाँ से दो चार बार अपनी पत्नी के साथ खरीदारी भी कर चूका था

एक आलिशान भवन मे अकेला ही रहता उम्र 40 की थी रोजाना का गल्ला रात को इसी भवन मे होता और सुबह बैंक मे जमा किया जाता

बस इससे मोटा और आसान शिकार कहाँ मिलता इन दिनों विशवाजीत को
तो जी केडा कर विश्वा ने अपने काम को अंजाम देने के लिये एक रात तय कर ली
वो काली घटाओं की सुहानी रात विश्वा को आज अपने साथी के ना होने से थोड़ा भयभीत कर रही थी मगर साथ मे पत्नी के आतंकीत करने वाले शब्दों का स्मरण उसको अकेले चोरी करने पर मजबूर भी करता इस भयंकर दुविधा ने उसके भीतर के चोर को थोड़ा कमजोर कर दिया
जिसके परिणाम स्वरुप आज किसी नो सीखिए के जैसे उसके हाथ कापने और पैर लड़खड़ाने लगे उसकी सतर्क होने वाली इंद्री अधिक शक्तिशाली हो गई किसी बिल्ली की आहट भी उसको विस्फोट होने जितना डरा देती
किसी प्रकार वो घर मे घुस तो गया लेकिन उसको इतनी हड़बड़ी मची थी के उसकी शातिर चोर बुद्धि भी आज निष्क्रिय हो गई
वो कुछ खोज रहा था तभी एकाएक उस कमरे मे प्राण सूखा देने वाली रौशनी हुई जिसके तेज से विश्वा की सतर्क आँखे चोंधिया गई और उसी समय कमरे को प्रकाश करने वाले के पेट पर तुक्के से भरा वार कर वहाँ से भगा
मगर दो कदम मे ही वो रुक गया उसने चाकू तो चलाया और वो सामने वाले को लगा भी तो वो चिल्लाया क्यों नहीं यही सोच कर वो मुड़ कर देखता हैँ तो उसका रंग उड़ जाता हैँ कियोकि सामने घायल हुआ शख्स कोई जवान व्यक्ति नहीं एक फूल सी बची थी जिसके छोटे कद के कारण विश्वा का वार उसकी नाजुक गर्दन को चिर कर उसको मृत्यु लोक पहुंचा गया

और सबसे भयंकर बात ये थी वो बच्ची कोई और नहीं उसकी अपनी लाडली बेटी थी जिसे देख विश्वा दहाड़े मार मार कर रोने लगा वही बगल के कमरे मे से एक औरत और आदमी अध्नग्न अवस्था मे वहाँ आये
आदमी वही शिकार था और औरत विश्वा की धर्म पत्नी अभी भी विश्वा का मुँह ढका था तो उसकी पत्नी उसको ना पहचान पाई और अपनी बेटी को मरा देख कर घायल शेरनी की तरहा अपने नाख़ून से उसका मुँह नोंचने लगी उसी समय विश्वाजीत का डांटा हट गया और विश्वा की सूरत देख पत्नी भी पति की तरह पथर समान जम गईं
पति ने पत्नी के साथ छल कपट किया और पत्नी ने पति से धोका करा और इन दोनों के अपराध का दुष्परिणाम बिचारि बच्ची को भुगतना पड़ा
सेठ ने पुलिस को फोन कर विश्वा को पकड़वा दिया विश्वा ने गिरफ्तार होने पर एक शब्द ना बोला हार कर दरोगा ने ये बयान दिया के पत्नी के अवैध सम्बन्ध के कारण विश्वा क्रोध मे उसकी हत्या करने वहाँ पंहुचा और गलती से बेटी को मार दिया
जब पत्नी को ये निंदा से भरी सुचना मिली तो सारा दोष स्वयं का मान ग्लानि और समाजिक तानो के कारण आत्मा हत्या कर ली
और जब विश्वा को पत्नी की आत्महत्या का पता चला तो उसके मन मे भी पछतावे और प्रशचित की अग्नि देहक उठी और वो बड़े उच्च स्वर मे अपने इक़बाल ए जुर्म की आरम्भ से अंत तक बातें बोल कर अपने अपराधों के लिए मृत्यु दंड मागने लगता हैँ
क़ानून के समक्ष ये अपराध संगीन तो था किन्तु मृत्यु दंड जितना अधिक नहीं
और विश्वा के लिए मृत्यु दंड मुक्ति का मार्ग और जीवन एक निर्दयी और सबसे क्रूर दंड था जो उसको एक लम्बे अरसे तक भोगना पड़ा

अपनों से धोके का अंत परिणाम सदैव ह्रदय घातक और दुखद ही होता है