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सबरीना - 1

सबरीना

(1)

दस डाॅलर में लेडी गेस्ट!

होटल टाशकेंट के बाहर चारों तरफ बर्फ फैली हुई थी। सामने के पार्क में मरियल धूप का एक टुकड़ा बर्फ से लड़ने की कोशिश कर रहा था। सुशांत अभी ऊंघ रहा था। तय नहीं कर पा रहा था कि बिस्तर छोड़ा जाए या अभी सोया जाए। तभी रिसेप्शन से काॅल आई कि आपसे कोई मिलने आया है। यहां कौन मिलने आया होगा ? किसी को मिलने भी नहीं बुलाया था।

‘मेरे रूम में भेज दीजिए’

‘माफ कीजिएगा सर, लेडी गेस्ट हैं, रूम में नहीं भेज सकते है। यदि आप खुद नीचे आएं तो दस डाॅलर की गेस्ट-फी के बाद साथ ले जा सकते हैं।’

‘ओह, अजीब नियम हैं।’

चैथी मंजिल से सीढ़ियों से नीचे की ओर चलने के बाद सुशांत को याद आया कि लिफ्ट से चलना चाहिए था। सीढ़ियों के बाद एक लंबा गलियारा था, जो कि होटल के मुख्य किचन के बराबर से होकर जाता था। इसके बाद रिसेप्शन और वेटिंग रूम था। वेटिंग रूम में कई लड़कियां मौजूद थीं, इसलिए पहचानना मुश्किल था कि कौन मिलने आया था। रिसेप्शन पर रूम का नंबर बताया तो वहां बैठी लड़की ने कहा-‘मिस सबरीना’!

‘जी’

सुशांत ने अजनबी-सी हंसी के साथ हाथ आगे बढ़ाया। सबरीना ने उसके हाथ में गुलदस्ता थमा दिया। फूल मुरझाये लग रहे थे, लेकिन उनसे महक आ रही थी। काले गुलाबों के बारे में सुना तो कई बार था, लेकिन पहली बार देखे थे। उनकी पंखुड़ियों में पानी की बंूदें अभी तक चमक रही थी। सबरीना और गुलाबों में सीधे तौर पर कोई साम्य नहीं था, लेकिन गुलाबों की हल्की से मुरझाहट सबरीना के चेहरे पर भी साफ दिख रही थी। लंबा कद, इकहरा बदन, गर्दन तक लटके करीने से कटे हुए बाल, मोटे फ्रेम का चश्मा और गले में पुराना-सा दिखता लाॅकेट। लग रहा था, जैसे रात भर सो नहीं पाई थी।

‘मुझे सोदेफ बायोएफ ने आपके बारे में बताया था। मेरे पास आपका नंबर नहीं था इसलिए आने से पहले बता नहीं पाई। सोदेफ इस वक्त हंगरी में हैं। वो यहां होते तो मेरे साथ आते।’ एक सांस में ही उसने सारी बात कह दी, बहुत नपे-तुले ढंग से।

‘जी हां, सोदेफ मेरे परिचय में हैं। हम लोग चेक रिपब्लिक में एक साथ काम करते थे। बाद में वो स्लोवाकिया चला गया और मैं अपने देश लौट गया। मेरा लंबे समय से उनसे कोई संपर्क नहीं था। मैंने, उन्हें ये भी नहीं बताया कि मैं ताशकंद आने वाला हूं! फिर...’

‘उन्होंने भारत में आपके पते पर संपर्क किया था। वहां से पता चला कि आपका ताशकंद यूनिवर्सिटी आए हुए हैं। कल यूनिवर्सिटी संपर्क किया तो वहां से होटल का पता मिला।’

‘हम लोग यहीं बैठकर बात करें या रूम में चल सकते हैं ?’, इससे पहले कि मैं कुछ तय कर पाता उसने दस डाॅलर का नोट निकाला और रूम तक चलने की अनुमति हासिल कर ली।

वो लिफ्ट की तरफ बढ़ी तो सुशांत ने सीढ़ियों की ओर इशारा किया। शायद वो दुविधा समझ गई और फिर दोनों सीढ़ियां चढ़ने लगे। चैथी मंजिल तक पहुंचते-पहुंचते सबरीना की सांसें अनियंत्रित-सी हो गई। रूम सीढ़ियों से ज्यादा दूर नहीं था। वो बिना देर किए सोफे पर बैठ गई और उतनी ही तेजी से फोन उठाया और दो काॅपी के लिए आर्डर दे दिया था।

‘आपने इतनी बढ़िया हिन्दी कहां सीखी ?’ बातचीत शुरू करने के लिए सुशांत ने पूछा।

‘ हां, मैं इंतजार कर रही थी कि आप इस बारे में जरूर पूछेंगे। मैं यूक्रेन में पैदा हुई। फिर सोवियत रूस पढ़ने चली गई। वहीं विदेशी भाषा विभाग में हिन्दी पढ़ी, मुझे भारत में काम करने के भेजा गया। मुझे साल भर ही हुआ था कि सोवियत संघ बिखर गया और यूक्रेन अलग देश बन गया। मुझे वापस बुला लिया गया।’

‘फिर ?’

‘सोवियत रूस खत्म ओ गया और मैं यूक्रेन लौट आई। मेरे पास कोई काम नहीं था। कॅरियर शुरू करने से पहले ही खत्म हो गया। सोदेफ मेरे साथ सेंट पीटर्सबर्ग यूनिवर्सिटी में पढ़ता था।....‘

अचानक दरवाजे पर दस्तक हुई। मैंने, समझा वेटर काॅपी लेकर आया था। दरवाजा खुला तो बाहर उज्बेक पुलिस थी। सुशांत भौचक्का था, उसने सबरीना की ओर देखा। फिर पुलिस को देखा....

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