Jini ka rahasymay Janm - 2 shraap books and stories free download online pdf in Hindi

जीनी का रहस्यमय जन्म (श्राप) - 2

संध्या का मन मोह लेने वाला समय जंगल के वातावरण को बड़ा ही शोभनीय दर्शा रहा हैँ
इसी आनंदित करने वाले वातावरण मे एक गरीब चरवाहा आपने पशुओ को जंगल मे चरहा रहा हैँ थोड़ी देर मे उसको कुछ थकान सी महसूस हुई तो एक विशाल प्राचीन वृक्ष के निचे टेक लगा कर वो बैठ जाता हैँ
बैठते ही उसकी पलकें भारी हो गई जिसके भार को उठाय रखने का वो संघर्षमय असंभव प्रयास करने लगा किन्तु थोड़ी ही देर मे उसका संघर्ष बल तूट गया और पलकों को विजय प्राप्त हुई
जब उसकी नींद टूटी तो उसका ह्रदय कांप उठा उसको अपार मानसिक तनाव हुआ उसके सभी पशु गायब थे उसके जीवन का आधार अदृश्य हो गया था



ये सीधा सादा चरवाहा एक प्रसिद्ध नगर का निवासी हैँ इसके साथ इसकी पत्नी माँ और एक चार वर्षीय पुत्र रहते थे
चरवहा नगर के लोगों की भेड़ बकरियों को जंगल में चरवता और दिन भर की कड़ी मशकत कर दो पैसे कमाता उसको मिलने वाली राशि से वो अपने परिवार का पेट भर पोषण करवाने में भी असफल रहता किंतु इतनी कठिन परिस्थितियों में भी वो धेर्ये और संतोष के साथ ईश्वर का आभार व्यक्त करता यहाँ तक कि उसकी निष्ठा लग्न और आस्था का लोग उधारण देते
मगर आज के दिन उससे एक भयंकर भूल हो गई कुछ ही क्षणों के लिये उसकी आंख लग गई और जब उसकी नींद टूटी तब तक उसके ऊपर घोर संकट आ पड़ा अपनी इस प्रकार की दुर्दशा ने उसकी आँखो को आँसुओ से भर दिया वो बार बार स्वयं को कोसता के क्यों कर उसकी आँख लगी
यदि खोये हुए पशु उसकी जागीर होते तो उसका मन इतना विचलित नहीं होता जितना आज हैँ
वो जनता था उसका नाम मिट्टी मे मिल जायेगा लोग उस पर मिथ्याआरोप लगायगे उसका विश्वास ना करेंगे और एक घड़ी कर भी लिया तो आलस दोष लग जायेगा उसको फिर कभी कोई काम नहीं देगा
अब तो उसके लिये ईश्वरी चमत्कार ही एक मात्र उपाय था
वैसे तो पशुओ के मिलने की उसको कोई आशा ना रही कियोकि ये स्पष्ट था के ये किसी चोर का काम हैँ अन्यथा अधिक से अधिक दो चार पशु इधर उधर होते और वो भी अधिक दुरी तक ना जा पाते इसलिए सभी पशुओ का यूँ छू मंतर हो जाना इस बात की पुष्टि करता हैँ के यह काम एक चोर का हैँ
किन्तु उसकी तर्क भरी बुद्धि पर आशा भरा ह्रदय भारी पड़ने के कारण वो जंगल मे उनकी खोज मे निकल पड़ा खोजते खोजते रात का भयानक अंधकारमय सम्राज्य स्थापित हो गया ऊपर से जंगल मे गूंजती नरभक्षको की आवाजे उस माहौल को और भी निर्दई बना रही थी
मगर उसको इसकी इतनी चिंता ना थी जितनी पशुओ की हो रही थी
एकाएक वो अचंभित अवस्था मे स्तम्भ सा खड़ा रह गया
वो इस जंगल के एक एक कोने से परिचित था परन्तु आज ना जाने कैसे वो ऐसे स्थान पर आ पंहुचा जिसको कभी देखना तो दूर उसके बारे मे सुना तक ना था वहाँ पर कई अजीबो गरीब तरहा के वृक्ष उसको किसी जीवित मनुष्य का आभास करा रहे थे उन वृक्ष पर बैठे पक्षी अपनी चमकती आँखो से उसको ऐसे घूर रहे थे जैसे उसकी ही घात मे बैठे हो
भय तो उसको लगता लेकिन अपने परिवार के पालन की चिंता उसको साहस बंधा कर आगे चलते रहने की प्रेणा देती कुछ दुरी तय कर उसको एक ओर से प्रकाश आता दिखा तो आश्चर्य और जिज्ञासा ने उसको वहाँ खींच लिया वहाँ पहुंच उसको एक साधारण सा झोपड़ा दिखा जिसके पास मे एक कुआँ और कुछ सब्जी उगाई हुई थी झोपड़े मे जाकर देखने पर उसको कोई व्यक्ति वहाँ उपस्थित ना मिला जब वो ढूंढ़ना बंद कर बैठता हैँ तभी वहाँ एक रूपवती उपस्थित होती हैँ जो चरवाहे को देख भयभीत हो कर एक धार दार कटार को पकड़ पीछे से चार्वाहे की नाड़ी पर रख उसका परिचय मांगती हैँ
चार्वाहा रूद्र कंठ से भरे स्वर मे अपने दुर्भाग्य का सारा हाल बता देता हैँ रमणी दया की देवी थी चार्वाहे के दुख ने उसको भी दुखी कर दिया तो सुंदरी ने उसको अपने झोपड़े मे बिठा कर भोजन कराया और रात के विश्राम की व्यवस्था भी कर दी
चार्वाहे ने सुंदरी के प्रति उसके उपकार का आभार व्यक्त किया और सोने चला गया मगर उसको नींद ना आई भला जिसका सभ कुछ लूट गया हो उसको नींद का सुख कैसे मिल सकता था
काफ़ी देर तक वो करवटे बदल बदल कर झटपटाता रहा
कुछ और बेचैनी होने पर खुले मे आ कर खड़ा हो गया तभी उसकी नजर अँधेरे को चिर कर निकलती एक रौशनी पर पड़ी वो एक दीपक मे से निकल रही थी ध्यान से देखने पर चार्वाहे ने उस सुंदरी को चोरो की भांति सहमते और चौकान्ना होते जाते देखा वो दीपक को हाथ मे लिये हुए थी

अभी तक चार्वाहे को अपनी दुर्गति के कारण उस स्त्री के विषय मे सोचने का अवसर ही ना मिला लेकिन इस प्रकार छुप छुपा कर जाते देख मन मे शंका उग आई उसने विचार किया के आखिर इस घने वन मे वो कोमल सुंदरी कैसे और क्यों निवास करती हैँ और इस देर रात ये कहाँ जाती हैँ
इस आपत्तिजनक व्यवहार ने चार्वाहे को कोतुहलवश उसका पीछा करने पर विवश कर दिया

पीछा करते हुए चार्वाहा एक अन्य अज्ञात स्थान पर पहुंच गया वो यहाँ एक i
ओर छुप कर देखता हैँ के वो स्त्री एक नदी के किनारे रुक कर वहाँ की गीली मट्टी को हाथो से खोदने लगी करीब एक हाथ जितना गहरा गड्डा खोद उसने अपने पास से कुछ अंकुर निकल कर गाड़ दिये फिर पास की नदी से अपनी अंजुली मे ग्यारह बार जल भर उन गड़े बीजो पर डाला

अब उसके बाद जो अद्धभुत घटना हुई उसने चार्वाहे को सोच मे डाल दिया के आखिर ये सम्भव कैसे हो सकता हैँ

हुआ ये जल क्रिया समाप्ति पश्चात ही वहाँ पर क्षण भर मे एक पौधा विकसित हो गया और उसमे दो सफ़ेद और लाल कली भी उग गई थी
उस ने लाल कली को तोड़ सफ़ेद कली पर अपने हाथो से निचोड़ दिया जिस के कारण सफ़ेद कली खिल गई और उसके भीतर अनेको घिनोने कीड़े मकोड़े भरे पड़े थे
उसके बाद वो स्त्री उन कीड़ो को फुल समेत बड़े चाव से खाने मे लग गई जैसे कई दिनों की भूखी हो
इतनी सुन्दर स्त्री को ऐसा घिनोना भक्षण करते देख चार्वाहे का माथा चकरा गया
सारे कीड़ो को सफा चट कर वो आगे बड़ी उसकी चाल मे वो संकोच वो झिझक ना थी जो अपराधी मे अपराध पश्चात् होती हैँ

थोड़ा चल वो स्त्री एक वीरान खण्डर मे प्रवेश करती हैँ उसके आगमन से वो खण्डर प्रकाशित हो जाता हैँ प्रकाश पश्चात एक और अचंभित करने वाला दृश्य उसको प्रदर्शित हुआ वो सुंदरी जो थोड़ी देर पहले सामान्य थी इस समय नो माह का गर्भ धारण किये हुए थी अब उसे ये विश्वास हो जाता हैँ की जिसे वो उपकार की देवी समझने के भ्रम मे था असल मे वो कोई पिशाचनी डायन या जादूगरनी हैँ
वो स्त्री खंडर के बीचो बिच जा कर लेट जाती हैँ और पीड़ा से कररहाने लगी उसकी इस ध्वनि को सुन एक भयंकर दानव वहा प्रकट हो कर चींता से पूर्ण खड़ा हो जाता हैँ तभी एक शिशु का जन्म हुआ जिसको दानव हर्ष उल्लास और स्नेह से भर कर गोद मे लेकर देखने लगा फिर अचानक वो दानव उस शिशु को बड़ी निर्दयीता से नोच नोच कर खा गया जिसको देख चरवाहा दंग हो गया अभी चार्वाहा इस शिशु हत्या कांड से उभरा नहीं था के एक और शिशु का जन्म होता हैँ
अबकी बार चार्वाहा खड़ा ना रह सका और उस शिशु की प्राण रक्षा के लिये उस भयंकर दानव के हाथो से उस शिशु को छीन लिया तभी उसने देखा के दानव जल कर भस्म हो गया और शिशु पत्थर की मूर्ति मे परिवर्तित हो गया
इस विचित्र अनुभव ने चार्वाहे की बुद्धि को विचार हीन करदिया वो बड़े ही असमंजस मे था तभी वो रमणी उसके चरणों मे गिर उसको धन्यवाद करने लगी और फिर उसे दुविधा मुक्त करने के लिये बोली

मैं एक अप्सरा हुँ मैं वो अभागनी हुँ जिसको उसके दुष्कर्म और अपराधों के कारण एक मुनि द्वारा दंड स्वरूप श्राप मिला था
जो की मुझे तब तक प्रति दिन भोगना था ज़ब तक कोई नीरस्वार्थ मनुष्य अपने प्राणो के भय को त्याग कर मेरे द्वारा उत्पन्न मायावी शिशु की रक्षा ना कर ले
और आज आपके हाथो मेरा कल्याण हुआ मैं श्राप मुक्त हो गई
ये कथन सुन चार्वहा सारा भेद समझ गया और अप्सरा ने प्रसन्न हो कर उसको दो सदी पूर्व साहूकार द्वारा छुपाय गए चिराग का रहस्य बता दिया यहाँ तक की उस चिराग को प्राप्त करने तक मे उसकी अंत तक सहायता की
जब सोने की खान हाथ लग जाये तो कोयले ना मिलने का दुख किसे होगा बस वही स्थिति चिराग को पा कर चार्वाहे की थी वो अपने पशुओ की चिंता से मुक्त हो गया और प्रसन्नता पूर्वक अपने नगर मे जा कर धन प्राप्ति पश्चात् सबको उनकी उचित रकम अदा कर चैन से रहने लगा


अब चिराग चार्वाहे से अलादीन की जादुई गुफा तक कैसे पंहुचा उसकी अद्धभुत रोचक यात्रा की कहानी आने वाले भाग मे आपको पता लग जाएगी