Jini ka rahashymay janm- 6 books and stories free download online pdf in Hindi

जीनी का रहस्यमय जन्म - 6 - अंतिम खंड


अंतिम खंड


एक बूढ़ा सन्यासी अपने शिष्य को कुछ महत्वपूर्ण उपदेश देते हुए बोल रहा होता हैँ।


" पाप का भागी सदैव दंड का पात्र बनता हैँ। चाहे लोक हो या परलोक एक दिन निश्चित उसको दंड भोगना पड़ेगा।



शिष्य " पाप और पुण्य केवल किताबों तक ही सिमित हैँ। और मृत्यु पश्चात् का तो पता नहीं पर इस संसार मे केवल निर्बल ही दुख भोगता हैँ। बलवान तो सदैव सुखी रहता है।


और इतना बोल उस पैंतीस वर्षीय शिष्य ने अपनी जादुई छड़ी से उस सन्यासी के शरीर के दो टुकड़े कर दिए और उसको मौत की नींद सुला दिया। मगर इतने पर भी वो शिष्य खुश नहीं था, वो असंतुष्ट लग रहा था, जैसे कोई मन की बात अधूरी ही रह गई हो, जैसे किसी चीज़ की तन मन से इच्छा की और वो ना मिली हो..............





जिस डाकू ने जीनी द्वारा अपने साथियो के प्राण हर कर सन्यास लिया था ये दर्दनाक अंत उसी सन्यासी डाकू का था,


हुआ ये के अपने घर को छोड़ने के पश्चात् डाकू ने घनघोर कठोर तपस्या की ताकि वो अपनी करनी का बोझ कुछ हल्का कर सके मगर मुमकिन ना हो सका तीस वर्षो की तपस्या के बाद भी उसको केवल दुख ही मिला क्योंकि इस बिच उसको एक शक्ति प्राप्त हुई जिसके उपयोग से वो अपने स्थान से बैठे बैठे संसार के किसी भी मानव की जानकारी प्राप्त कर सकता था। वैसे तो ये शक्ति किसी के लिए भी वरदान सिद्ध होती किन्तु सन्यासी के लिए ये आत्मपीड़न से भरी सिद्ध हुई।

शक्ति प्राप्ति पश्चात् उसने सबसे पहले अपने परिवार के साथ अब तक क्या क्या हुआ और वर्तमान मे क्या हो रहा हैँ। ये पता किया,

जिसको जान कर उसकी आत्मा तक सिसकियाँ लेने लगी, वो जान गया कैसे उसकी पत्नी ने अपने आत्मसम्मान के लिए अपने प्राण त्याग दिए, वो जान गया कैसे उसके पुत्र ने मातृप्रेम के वश मे उस पापी का वध किया और वो जान गया कैसे संसार के कड़वे व्यवहार ने पहले उसके बेटे को खुंखार डाकू बनाया और बाद मे किस प्रकार उसका अंत हुआ।


ये सब जान कर उसको अपने बेटे के हत्यारे अली बाबा पर क्रोध नहीं आया बल्कि खुद की ग्लानि का घाव और भी गहरा हो गया, उसको ये खुद की करनी का दण्ड लगा, खेर कैसे तैसे उसने अपने को संभाला और पूर्ण लोक कल्याण मे जुट गया लेकिन उसने अपनी अनोखी शक्ति का जो पहले उपयोग मे अनुभव किया था उसके कारण वो उस शक्ति के दोबारा उपयोग करने का साहस खो बैठा और फिर इस को ना दोहराया,






वही दूसरी और ताकत के नशे मे चूर सतु को अब और भी अधिक बलवान बनने की धुन सवार हो गई, वो भ्रमाण्ड का सर्वशक्तिमान बनना चाहता था उसके भीतर एक अनूठी शक्ति ये भी थी के वो संसार की अन्य अप्राकृतिक शक्तियों(अलौकिक और पारलौकिक ) को अपने पास होने पर महसूस कर लेता था, जितनी अधिक शक्ति उतना अधिक आभास बस इसी प्रकार से कई वर्षो तक जगह जगह घूम कर सतु ने कई शक्तियां औऱ शक्तिशाली जादुई अस्त्र पाए और जिनको ना पा सका उसको नष्ट कर दिया,

दिन प्रति दिन उसकी शक्ति का विकास होता गया। और इसके विकास के लिए आमने सामने के युद्ध से लेकर पिट पीछे किये गये छल कपट तक का उपयोग सतु ने किया,

अब तक की प्राप्त सभी जादुई चीजों मे से सबसे भयानक और खुंखार अस्त्र जो सतु के हाथो लगा वो थी एक सांप के मुँह की आकृति वाली छड़ी जिसमे सर्प आँखों के स्थान पर दो अद्धभुत मणि जड़ित थी उस छड़ी की कई विशेषताएं थी पर मुख्य विशेषता उसके द्वारा किसी भी प्राणी का रूप बदल देने की थी


एक बार जब सतु एक ग्वाले के भैस मे घूम रहा था तो उसको अपने आस पास किसी विशाल अलौकिक शक्ति का एहसास हुआ जिसका पीछा कर वो उस डाकू बने सन्यासी के पास जा पंहुचा, उस समय सन्यासी लोक कल्याण के कार्यों मे व्यस्त था, वो रोगियों को अपने हाथो से बनी दवाइयां दे रहा था जिसको देख सतु समझ गया इस सन्यासी पर बल नहीं छल का उपयोग कर के काम चलेगा।

और वो किसी प्रकार उस सन्यासी का शिष्य बन जाता हैँ। पर लाख प्रयत्न करने पर भी वो केवल ये जान पाया के इस बूढ़े सन्यासी का सम्भन्ध किसी ऐसे चिराग से हैँ। जो अपार शक्ति का रहस्य समेटे हुए हैँ। और एक गुप्त तिलस्मी गुफा मे बंद हैँ। जिसको जादुई शब्दों द्वारा ही खोला जा सकता हैँ। इसके अतिरिक्त उसको उस तपस्वी द्वारा मांगी दोनों इछाओ का ज्ञान नहीं हुआ। वही तपस्वी को सतु के ऊपर कुछ दिनों से संदेह होने लगा था तो उसने एक बार फिर अपनी उस अद्धभुत शक्ति का उपयोग किया और उसको सतु के बारे मे सभी जानकारी प्राप्त हो गई जिसने तपस्वी को सावधान कर दिया अब दोनों एक दूसरे के आमने सामने आ चुके थे सतु का पर्दा फाश हो गया था


सन्यासी सतू से बोला" पाप का भागी सदैव दंड का पात्र बनता हैँ। चाहे लोक हो या परलोक एक दिन निश्चित उसको दंड भोगना पड़ेगा।



शिष्य " पाप और पुण्य केवल किताबों तक ही सिमित हैँ। और मृत्यु पश्चात् का तो पता नहीं पर इस संसार मे केवल निर्बल ही दुख भोगता हैँ। बलवान तो सदैव सुखी रहता है।


और इतना बोल सतु ने अपनी जादुई छड़ी से उस सन्यासी के शरीर के दो टुकड़े कर दिए और उसको मौत की नींद सुला दिया।

सतू को लगा था अब तक जो जानकारी उसको मिली हैँ। वो पूरी जानकारी हैँ। किन्तु वो उसका भ्रम था

सन्यासी का बेटा तो पहले ही मर चूका था और अब सन्यासी की मृत्यु ने उसके वंश का अंत कर उसकी दूसरी इच्छा को जीवित कर दिया जिसके अनुसार उसके वंश समाप्ति पश्चात् गुफा का तिलस्म नष्ट हो जाये और द्वार उन शब्दों से ना खुले,


सतु को इस बात का तब पता लगा जब वो गुफा के पास पंहुचा और गुफा उसके जादुई शब्दों से ना खुली, फिर सतु ने अपने तिलिस्म द्वारा सारा रहस्य जाना। साथ मे उसका भी पता लगाया जो इस गुफा मे जा कर उस चिराग को प्राप्त कर सकता हैँ। और उसका नाम अलादीन था जिसके पास सतु उसका चाचा बन कर गया,



अब आगे का हाल सब जानते हैँ। के उस दुष्ट जादूगर और अलादीन के बिच क्या क्या हुआ और उनका अंत क्या था।.......