chintu - 19 books and stories free download online pdf in Hindi

चिंटू - 19

स्नेहा और राहुल डाकुओं से बच्चो कि रिहाई के लिए बहुत गिड़गिड़ाए पर उन डाकुओं ने उसकी एक न सुनी। अगर पीछा किया तो सबको गोली मारने कि धमकी भी दी। सब डर गए थे।
डाकुओं ने सुमति, चिंटू और इवान को बंदी बनाकर अपने साथ कुछ देर पैदल चलाया फिर उनकी आंखो पर पट्टी बांध कर घोड़े पर बैठा दिया गया। चिंटू घोड़े के चलने से दिशा का अनुमान लगाना चाहता था पर बार बार रास्ते के घुमाव से उसे दिशा का पता नहीं चल रहा था। घोड़े पर उन सब के साथ एक एक डाकू बैठा हुआ था। काफी वक्त के बाद एक जगह सब रुके। बारी बारी सुमति, चिंटू और इवान को नीचे उतरा गया। उसके बाद फिर पैदल पगडंडी पर चलने लगे। अब तो सुमति भी थक चुकी थी। वह पूछ रही थी कि और कितना चलना पड़ेगा। आपने पट्टी बांध रखी है तो चलने में दिक्कत हो रही है। plz पट्टी खोल दीजिए। पर कोई कुछ भी नहीं बोलता बस उन को चुपचाप चलने को कहते है।

चलते चलते दो घंटे बीत गए। अब इवान से रहा नहीं गया और अपनी आंखों से पट्टी उतार दी। उसने पट्टी उतार के देखा तो वह सब डाकुओं के ठिकाने पर पहुंच गए थे। उसके पट्टी खोलने से ही पीछे से एक डाकू ने उसे बंदूक के पीछे के हिस्से से उसकी पीठ पर वार किया। इवान उस धक्के से नीचे गिर जाता है। चोट लगने से उसके मुंह से चीख निकल जाती है। यह सुनकर सुमति कहती है- क्या हुआ इवान, तुम चीखे क्यों? तुम ठीक तो हो ना?
इवान के जवाब देने से पहले ही डाकुओं ने सुमति और चिंटू की आंखो से पट्टी निकल दी। इवान को नीचे गिर देख सुमति उसके पास जाती है।इवान के घुटने में पत्थर लगने की वजह से खून निकल आया था। चिंटू उसके पास जाकर उसे उठाने में सुमति की मदद करता है। डाकुओं ने उन तीनों को एक पेड़ के नीचे बांधकर बिठा दिया। कुछ देर बाद एक लड़की आकर इवान के घुटने पर हल्दी का लेप लगा देती है। इवान उस लड़की को देखकर अपना दर्द भूल जाता है और उसे ही देखता रह जाता है। ये वही लड़की थी जैसे दिग्विजय डाकू उन दो लड़कों को मारकर अपने साथ ले आए थे। उसका नाम बेला था। मौसम पूरी तरह बदल चुका था और शायद बिन मौसम की बारिश भी आने वाली लगती थी।

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जैसे डाकू बच्चो को अपने साथ ले गए तुरंत ही सब उल्टे पांव जंगल से बाहर निकलने लगते है। जंगल में मोबाइल नेटवर्क नहीं आ रहा था। यहां से जल्दी से जल्दी निकलकर पुलिस के पास जा रहे थे। सबकी थकान इस वक्त गायब हो गई थी। स्नेहा और राहुल कि आंखो से आंसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे। और रिया को चिंटू के जाने के गम से ज्यादा अपने बच जाने की खुशी थी। वह सोच रही थी,- अच्छा हुआ मै चिंटू के साथ पीछे नहीं थी वरना सौम्या की जगह मै होती। पर उसके बाकी फ्रेंड्स के चेहरे पर अपने तीन दोस्तों को डाकुओं द्वारा बंदी बनाने का ग़म दिख रहा था।
जैसे ही सब बीहड़ों को पार करके वापस आए तो राहुल ने जीप सीधे पुलिस स्टेशन लेने को कहा। वहां पहुंचकर राहुल ने सारा विवरण वहा के इंस्पेक्टर को बताया। पहले तो वह गुस्सा हो गए- ऐसे जान खतरे में डालकर डाकू को देखने गए थे? ले गए न आपके बच्चो को! आप शहर से आते है और यहां आकर अपनी मनमानी करते है। फिर एक थप्पड़ सुरेश को भी लगा दिया। तुम साले चंद रुपयों के लिए इन सब को बढ़ावा देते हो। सुरेश रोते रोते बोला- साहब बच्चो कि स्कूल की फीस भरनी थी। पैसे नहीं थे तो इन लोगो के कहने पर उन्हे ले गया।
इंस्पेक्टर- तो पहले यहां इत्तला नहीं कर सकते थे? कोई सिपाही साथ भेज देता। अब इस जंगल में न जाने कहां छुपा बैठा होगा वो दिग्विजय?
राहुल अपना और स्नेहा का परिचय देता है तो इंस्पेक्टर और भड़क उठा। कहता है- आप जैसे पढ़े लिखे लोगो को तो समझ में आना चाहिए न। बच्चे तो नादान है पर आप तो समजदार है। उनकी बातो को नहीं मानना चाहिए था। खैर हम उन्हें ढूंढने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे। आप सब बाहर बैठे कॉन्स्टेबल के पास एफआईआर लिखवा दीजिए। और हो सके तो उन बच्चो की फोटो दे दीजिए।
स्नेहा- मोबाइल में फोटोज है, चलेगा?
इंस्पेक्टर- मै आपको अपना नम्बर देता हुं। आप फोटो व्हाट्स ऐप पर सेंड कर दीजिए। मै उनकी फोटो कॉपी निकलवा दूंगा।
स्नेहा- थैंक यू सर! हमारे बच्चे को जल्दी ढूंढ़ दीजिए plz।
इंस्पेक्टर- हम पूरी कोशिश करेंगे, घबराइए मत। इत्मीनान से होटल जाईए। उस दिग्विजय की अब खैर नहीं।

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इवान लेप लगाने आई लड़की को देखता रहता है। चिंटू की नजर इवान पर पड़ती है। वह उसे कहता है- अबे मरवाने का इरादा है क्या? चिंटू की बात सुनकर सुमति उसकी ओर देखती है पर कुछ बोली नहीं। पर जब वह लड़की चली गई तब चिंटू फिर से इवान को कहता है- ये डाकू के गिरोह की लड़की है। उस पर नज़र डाली तो तुझे भी गोलियों से भून देंगे। सुमति समझाओ इसे।
सुमति- क्या किया इसने?
चिंटू- तुम्हे नहीं पता? ये लेप लगाने आई लड़की को एकटक ताडे जा रहा था। एक तो इसके जख्म पर मरहम लगा रही है और ये महाशय है कि..।
इवान- सच बताऊं यार एसी लड़की मैंने आज तक नहीं देखी। एक नज़र में ही दिल आ गया है इसपर मेरा।
चिंटू सुमति से बात करने के लिए पूछता है- सुमति ये गधा कौन है? ये तो मरेगा हमे भी मरवाएगा।
सुमति भी चिंटू से बात करना चाहती ही थी तो उसने भी जवाब दे दिया- ये हमारे ऑफिस में काम करता है और मेरा और शोभना का फ्रेंड भी है।
चिंटू- शोभना जो तुम्हारे साथ है वो?
सुमति- हा वहीं।
इवान- एक मिनट, ये सुमति कौन है?
सुमति- ये मेरा असली नाम है।
इवान- ओह! मुझे पता नहीं था।
तभी एक डाकू आकर उन्हें कहता है- ये जान पहचान बाद ने निकालना जब तुम सबकी जान बच जाए तब। और वह ठहाके लगाकर हंसने लगता है।
चिंटू उससे पूछता है- पर आप लोगो ने हमे किडनैप क्यों किया है? हमे plz जाने दीजिए। और अगर आपको हमे यहां पकड़े रखना है तो plz इस लड़की को जाने दीजिए।
डाकू- ये सब सरदार तय करेंगे। किसे जाना है और किसे नहीं। बैठो चुपचाप यही।
इवान उस डाकू से कहता है- भाई साहब हमे यहां रहने से कोई प्रॉब्लम नहीं है पर प्यास से गला सूखा जा रहा है। पीने के लिए पानी दे दीजिए plz। और हो सके तो थोड़ा खाना भी...।
वह डाकू अपने साथी को बुलाकर कहता है- इन लोगो को पानी पिला दो। खाना जब बनेगा तभी मिलेगा।
उसका साथी आकर उन तीनो को पानी पिला देता है।

शाम ढलने को आई थी और अब आसमान में भी बूंदाबूंदी शुरू हो गई थी। अब वे तीनो भीगने भी लगे थे।
वे सब जहा थे वहा जमीन को साफ करके उन डाकुओं ने टेंट लगाए थे। इवान चिंटू और सुमति से कहता है- ये साले हमे यह पेड़ के साथ बांधकर कहा चले गए? अब तो बारिश भी शुरू हो चुकी है और हमारे पास दूसरे कपड़े भी कहा है पहनने को? ठंड भी बढ़ रही है। और ये सब अपने अपने टेंट में आराम कर रहे है।? हमे पकड़कर लाए तो कुछ जिम्मेदारी भी बनती है उनकी के हमे सही सलामत रखे।
जो लड़की इवान को हल्दी का लेप लगाने आई थी वह उन की बात सुन रही थी। फिर वह अपने बाबा से कहती है- बाबा, ये तीनों बाहर भीग रहे है। हमारे पास एक और तम्बू है। हम उन्हे वहा पे रख्खे? बाबा, साथ में एक लड़की भी है।
एक लड़की भी है यह सुन उसके बाबा तुरंत एक आदमी को बुलाकर एक तम्बू तैयार करने को कहता है। साथ में यह भी हिदायत देता है कि उन सब के हाथ पैर बांध कर ही रखे। कहीं वे भाग न जाए।
यह सुन वह लड़की अपने बाबा के गले लग जाती है। फिर कहती है बाबा वो जो लड़की है उसे में अपने साथ अपने तम्बू में के चलती हुं। उसके बाबा ने कहा- जैसा तुम ठीक समजो।

वह लड़की बाहर आती है और सुमति को अपने साथ आने को कहती है। तो इवान तुरंत उस लड़की को कहता है- हमे भी साथ ले चलिए plz। यहां बहुत ठंड लग रही है और कपड़े भी भीग गए है। उस लड़की ने एक आदमी को बुलाकर कुछ हिदायत दी और वहा से सुमति को लेकर चली गई। चिंटू सुमति को अपना ध्यान रखने के लिए कहता है।
दूसरा तम्बू बनाकर एक डाकू चिंटू और इवान को पेड़ से लगी रस्सी से छोड़कर उसके भीतर ले चलता है। वह उन दोनों को बदलने के लिए कपड़े भी देता है। इवान उन कपड़ों को देख समझ जाता है कि उस लड़की ने ही ये भिजवाए है। इवान चिंटू से कहता है- देखा मेरी बात का असर! उस लड़की ने मेरे लिए कपड़े भिजवाए है।
चिंटू- तेरे लिए नहीं हमारे लिए बोलो।
इवान- हां तो वह अकेले मेरे को कपड़े नहीं भिजवा सकती न! तुम पर भी दया कर दी उसने। वैसे तुम हो कौन और कहा रहते हो?
चिंटू ने अपनी सही पहचान ही बताई- मेरा नाम चिन्मय है प्यार से लोग मुझे चिंटू कहते है। और मै सुमति जिसे तुम सौम्या कहते हो उसका बचपन का दोस्त हुं।
इवान- क्या ?? बचपन के दोस्त? तो अभी तक हमे मिले क्यों नहीं? मेरा मतलब सौम्या ने कभी तुम्हारा जिक्र नहीं किया हमारे सामने।
चिंटू- वी हमारे बीच कुछ अनबन हो गई है इसलिए एक दूसरे से अभी बात चीत बंद है।
इवान- कोई बात नहीं हम फिर से बातचीत शुरू करवाएंगे। उसमे क्या बड़ी बात है?
चिंटू- भाई तू समझ रहा है उतना भी आसान नहीं है। खैर तब की बात तब देखेंगे। पर अभी ये सोचे कि यहां से कैसे निकले?
इवान- अरे अभी अभी तो कोई लड़की पसंद आई है और तुम हो की यहां से जाने की बात कर रहे हो? यहां के रास्ते पता है तुम्हे? चलो मान लिया निकल भी गए यहां से पर जाना कहा है पता भी है? और सौम्या को उन लोगो ने हमसे अलग रखा है। हमारे यहां से जाने की सजा उस बेचारी को ना भुगतनी पड़े।
चिंटू- मै उसे छोड़कर जाने की बात नहीं कर रहा हुं ?। इन लोगो से बात करके निकलने की बात कर रहा हुं।

इवान और चिंटू के बीच बातचीत चलती रहती है।
इधर उस लड़की ने अपने कपड़े सुमति को पहनने के लिए दिए। पहले तो सुमति मना कर देती है। क्योंकि वह कपड़े घाघरा चोली थे। पर उसके कपड़े भीग गए थे, अगर सारी राय पहनकर रखेगी तो बीमार पड़ सकती है। वह उस लड़की से पूछती है- तुम्हारा नाम क्या है?
लड़की ने जवाब दिया- मेरा नाम बेला है। और तुम्हारा?
सुमति ने अपना नाम सौम्या ही बताया। फिर उसने बेला से पूछा- तुम इस डाकू के गिरोह में क्या कर रही हो? तुम्हे इनसे डर नहीं लगता?
बेला- नहीं, इनसे मुझे सुरक्षा मिलती है?
सुमति- सुरक्षा और डाकुओं से?
बेला ने फिर अपनी कहानी बताई। बेला वहीं लड़की थी जिसे दिग्विजय डाकू ने उन दो लड़कों को गोली मारकर बचाया था। और अपने साथ अपनी बेटी बनाकर रखा था।
सुमति- ओह! वो तुम हो? हमारे गाइड ने इस बात का जिक्र किया था।
बेला- तुम्हारा गाइड? कौन है वह?
सुमति- पहले इसी गिरोह में था वह, उसका नाम सुरेश है।
बेला- सुरेश...? अरे हा, उस बेचारे की पत्नी मर गई थी। तो बाबा से इजाज़त मांगकर अपने बच्चो को संभालने यहां से चला गया था।
सुमति- हा वहीं सुरेश। पर आप लोगो ने तो उसका मान भी नहीं रखा जो कभी आपका आदमी था।
बेला- ऐसा क्यों कह रही हो?
फिर सुमति ने उन सबकी किडनैप वाली बात शुरू से बताई। सुरेश के कहने पर भी उन्हे पकड़ लिया गया। उनकी बात चल ही रही थी तभी एक बड़ी उम्र की औरत उनके टेंट में आती है। सुमति जबसे यहां आई तबसे उन्हे पहली बार ही देखा था। वह औरत दिग्विजय की पत्नी रमादेवी थी। उन्हे देखकर ऐसा नहीं लग रहा था कि वह एक डाकू की पत्नी है। उन्होंने गांव की औरतों की तरह साड़ी पहनी हुई थी। और चेहरे पर कोई डाकुओं वाला रोब भी नहीं था। सुमति को देखकर रमादेवी ने पूछा- तुम्हे ये लोग यहां ले आए उसके लिए माफी चाहती हुं। मैंने इसके बापू से कई बार कहा यह सब छोड़ दे पर ये है कि उनके साथ साथ हमे भी परेशान किए हुए है।
सुमति- आप?
रमादेवी- में इनके सरदार की पत्नी रमादेवी हुं बेटा। ये जहा रहते है मै उसिके साथ रहती हुं।
सुमति- माजी ये लोग हमे क्यों पकड़कर लाए है यहां। plz आप उन्हें कहिए हमे जाने दे।
रमादेवी- मै उनसे बात करके ही आई हुं पर वह नहीं माने। पर तुम फिकर मत करो आप लोगो को यहां कोई परेशानी नहीं होगी जब तक आप भागने की कोशिश न करे।
रमादेवी ने बातो बातो में यहां से न भागने कि चेतावनी दे देती है। वह जानती थी यहां से जो भागने की कोशिश करता है वह लाश के रूप में ही पाया जाता है।

क्रमशः