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राज दुलारी

इस प्रस्तुति में मैंने अपनी चार कविताओं को शामिल किया है।

(1)

राज दुलारी

सुन ले मेरी राज दुलारी,

मेरे बच्चों की महतारी।

क्यों आज यूँ भूखी रहती,

उदरक्षोभ क्यूँ सहती रहती?

मेरे पैर क्यों यूँ धोती हो,

मृगनयनी भूखी सोती हो?

मेरे लिए न दीप जलाओ,

घंटी वंटी यूँ न बजाओ।

मैं तो ऐसे हीं नाथ तुम्हारा,

तेरे हित हीं सबकुछ हारा।

सुनो प्राणनाथ प्रिय तुम दुलारे,

धन लाते नित घर तुम हमारे।

देखो आज दिवाली आई,

मैं वरती हूँ लक्ष्मी माई।

पर लक्ष्मी उल्लू पे आती,

तेरे मेरे मन को भाती।

इसीलिए पूजा करती हूँ,

चरणों में तेरे होती हूँ।

ब्लड प्रेसर तुम खुद लेते हो,

और हमको गहना देते हो।

और कहाँ मैं लेने जाऊँ,

तुम सम सुंदर उल्लू पाऊं?

इसी लिए पूजा करती हूँ,

उल्लू जी तुमको हरती हूँ।

(2)

जनतंत्र की सीख

प्रजातंत्र से जनता को , देख मिली क्या सीख ,
मस्जिद मुल्ला बाँग लगता ,मंदिर पण्डा चीख ।
मंदिर पण्डा चीख चीख के,प्रभु गुण गान बतावै,
डम डम बम बम मस्त भक्तजन,मदिरा भाँग चढावै।

मदिरा भाँग चढावै,शिवभक्तों पे ना कोई रोक,
हुल्लड़, गुल्लड़, धूम धड़ाका,कोई न पावै टोक।
कोई न पावै टोक कि देखो,अजब तंत्र का हाल,
दो बोतल पे वोटर बिकते,ठुल्ले भी बेहाल।

ठुल्ले भी बेहाल कि कलुआ,सरपट दौड़ लगाता,
यहाँ वहाँ जहाँ पान मिले ,सडकों पे पीक फैलता।
सडकों पे पीक फैलाता यही,जनतंत्र का ज्ञान ,
कुत्ता , कलुआ बीच रोड में,करते हैं मूत्र दान।


(3)


मैं कौन हूँ?


मैं कौन हूँ,

एक हिंदू ?

मुसलमान से लड़ने के लिए।

एक हिंदुस्तानी,

पाकिस्तान से झगड़ने के लिए।

जब पुरुष हूँ,

स्त्री पे रोब दिखाता हूँ।

और जब मालिक,

नौकर पे धौंस जमाता हूँ।

कभी दिल्ली का होकर,

बिहार पे हँसता हूँ।

कभी बी.जे.पी.के लिए,

कांग्रेस पे बिगड़ता हूँ।

मैं जाति हूँ,धर्म हूँ,

देश हूँ,एक राज्य,

मैं मुझसे हीं खंडित हूँ,

विघटित, विभाज्य।


(4)


दिल्ली ,एन. सी.आर. में


दिल्ली , एन.सी.आर.में


क्या रखा है रोज की कीच कीच,झगड़ा और तकरार में,

आ जाओ कुछ दिवस बिता लो,दिल्ली , एन.सी.आर.में।


माँ बाप के पैसों पर जो,यूँ हीं मौज उड़ाते हो,

कोका कोला पिला पिला,जिह्वा को सुख दिलाते हो,

खरचाने का सुख इतना ना,होगा और संसार में,

आ जाओ कुछ दिवस बिता लो,दिल्ली , एन.सी.आर.में।


लिवर ,किडनी के तुम दुश्मन,जिगरा रोज गलाते हो,

खाँस खाँस खाँसी से यारी,तुम जो रोज निभाते हो।

पापा के अरमानों का,चर्चा ना तेरे आचार में,

आ जाओ कुछ दिवस बिता लो,दिल्ली , एन.सी.आर.में।


मरने का जो प्लान बनाते,बीड़ी खूब जलाते हो,

खैनी , गुटका संगी साथी,मदिरा से भरमाते हो,

त्यागो लघु विष में क्या रखा,क्या सिगरेट, सिगार में,

आ जाओ कुछ दिवस बिता लो,दिल्ली , एन.सी.आर.में।


आ जाओ दिल्ली में प्यारे,धूम धड़ाका खूब मिलेगा,

कानों के पर्दे फट जाएँगे,सीने में अगन खूब फलेगा,

नरक लोक से प्रेम जो तुझको,इह लोक संसार में,

आ जाओ कुछ दिवस बिता लो,दिल्ली , एन.सी.आर.में।


पैसे जो कुछ बचे हुए हैं,क्षण भर में उड़ जायेंगे,

मेडिसिन का बाजार बढ़ेगा,डॉक्टर हलुसित गाएंगे,

चैन वैन सब बिक जाएगा,इस दिल के व्यापार में,

आ जाओ कुछ दिवस बिता लो,दिल्ली , एन.सी.आर.में।


धुएँ के काले बादल,अक्सर छाए हीं रहते हैं,

मैगी वैगी पिजा वीजा,उदर क्षोभ कर बसते हैं,

डेंगू वेंगु,दम्मा वम्मा,मिल जाएंगे उपहार में,

आ जाओ कुछ दिवस बिता लो,दिल्ली , एन.सी.आर.में।


क्या रखा है रोज की कीच कीच,झगड़ा और तकरार में,

आ जाओ कुछ दिवस बिता लो,दिल्ली , एन.सी.आर.मे।


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