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संस्कार

उनकी धीर गम्भीर वाणी से सभी प्रभावित थे । उन्होंने भारतीय पुराणिक कथाओं का अच्छा अध्ययन किया था, साथ ही उन कथाओं का मर्म और उनकी अलग तरह की वे व्याख्या किया करते जिससे जीवन को ज्यादा बेहतर ढंग से समझने का मौका मिलता ।

वे अक्सर शाम को मंदिर के बाहर लगी बेंच पर बैठ जाते । कुछ लोग उनके इर्द गिर्द हो जाते । उन्हें ये महत्वाकांक्षा कभी नहीं रही कि लोग उन्हें ज्ञानी समझे ,उन्हें मान सम्मान दें, वे तो भगवतसत्ता के रहस्य और उनकी महिमा के बारे के मंथन करते और भावभूमि से आनंद में डूब जाते । फिर उनकी गंभीर स्नेहिल आवाज सबका शंका समाधान किया करती ।

आज शाम से दो आदमी उनके बीच बैठ कर अपने घरों के संस्कार पर बहस कर रहे थे । दोनो अपना अपना तर्क दे रहे थे ,कि आज बच्चों में कितना गलत संस्कार पड़ रहा है , वे अपने माँ बाप की इज्जत नही करते, वे हमारी धार्मिक मान्यताओ की हंसी उड़ाते हैं आदि आदि,,,वे ध्यान से सुनते रहे।
फिर उन्होने उन्हें शांत रहने का इशारा करते हुए बोलना शुरू किया ।
भाइयों,,
संस्कार हमारे आचरण,व्यवहार से हमारे बच्चों पर पड़ता है उनके सामने हम जैसा प्रदर्शन करते हैं वे उसे ही अपनाते हैं । इसका एक बड़ा उदाहरण रामायण की उस कथा से मिलता है, जिसमे वानर राज बाली भगवान के हाथों मारा जाता है ओर उसका पुत्र अंंगद श्री राम का सेवक बनता है। अब तक और उसके पहले भी ऐसा कहीं देखने सुनने को नहीं मिला कि कोई अपने पिता को मारने वाले की पूजा करे । एकमात्र बाली के प्रसंग में यह अदभुद बात दिखाई देती है ।

जब सुग्रीव से उसका राजपाट छीन कर यहां तक उसकी पत्नी का हरण कर बाली सुग्रीव को मारने पर उतारू हो जाता है ,तब सुग्रीव भागकर ऋषि मुख पर्वत पर शरण लेतेहैं । वनवासी राम सीताजी की खोज में जब सुग्रीव से मिलते हैं तब सुग्रीव का सारा हाल जानकर वे बाली को मारने का संकल्प लेते हैं । सुग्रीव और बाली के बीच भीषण संग्राम होता है । फिर भगवान श्री राम एक पेड़ की आड़ से बाली का वध करते हैं । उनके बाण के प्रहार से आहत बाली भगवान से सवाल करता है कि मैंने आपका क्या बिगाड़ा, जो आपने मुझे अपना दुश्मन समझा और सुग्रीव को मित्र । तब भगवान उसके अहंकार,भाई के साथ अन्याय आदि की बात उससे कहते हैं, तब उसे अपनी गलती का अहसास होता है और वह अंतिम समय मे पश्चाताप करता है। उसके इस भाव पर भगवान द्रवित होकर उसे फिर से जीवित कर देने का वरदान देना चाहते हैं, वो इससे इंकार कर देता है और भगवान की शरणागति में चला जाता है । इस सारे दृश्य का साक्षी है उनका पुत्र अंगद ,और ये सब देख कर अंतिम समय मे पिता का व्यवहार देख कर वो श्री राम का परम भक्त और सेवक बनता है । ये है संस्कार की ताकत कहीं ऐसा देखने को नहीं मिलता की पिता को मारने वाला ही परमप्रिय ओर आराध्य बन जाए । बाली मरते मरते अपने पुत्र अंगद को यह संस्कार दे जातेंहैं कि अहंकार,अन्याय, अनीति,आदि से दूर रहना चाहिये और सत्य,न्याय,नीति और त्याग के रास्तेपर चलना चाहिये और इन्ही रास्तों पर चलकर ईश्वर से भेंट होती है ।
वे दोनों इस व्याख्या से अपने बारे में सोचने लगते हैं और इस नई दृष्टि से उन्हें एक नया रास्ता दिखाई दिया,,,,वे उन्हें प्रणाम कर चल पड़ते है घर की ओर ,,,,