Ashwtthama ho sakta hai -3 books and stories free download online pdf in Hindi

अस्वत्थामा (हो सकता है) - 3

अंतिमसंस्कार के बाद डी.सी.पि. प्रताप चौहाण ने अपने ड्राइवर को अपनी गाडी लेकर पुलिस स्टेशन पहोचने को कहा और अपने दोस्त जगदीशभाई से कहा मैं तेरे साथ तेरी कार मैं चलता हू , तू मुजे पुलिस कमिश्नर ओफिश ड्रॉप कर देना , इसी बहाने तेरे साथ कुछ बाते भी हो जायेगि । फिर दोनो दोस्त चलती कार मैं बाते करने लगे। डी.सी.पि. प्रताप ने जगदीशभाई से कहा की यू.पि. से कपूर का फोन आया था । बता रहा थी की किशन की बॉडी के पास से जो मोबाईल मिला है , उसकी जाँच करने से पता लगा है की वो मोबाईल किशन के लापता आसीस्टंट कुमार का है । और दूसरी महत्वपूर्ण बात ये बताई की वो पत्थर पे जो अक्षर है वो किशन की हैंड राईटिंग से मैच हो रहे है । जगदीशभाई ने पूछा इससे क्या साबित होता है ? प्रताप बोला , अब तक जो भी बाते मेरे जानने में आइ है इससे ये बात तो तै है की किशन की मौत कुदरती नहीं है बलकि उसकी बहोत ही शातिर तरीके से ह्त्या हुई है । लेकिन मुजे लगता था की पथ्तर पे अश्वत्थामा के बारे मै लिखकर हत्यारा पुलिस को गुमराह करने की कोशिश करना चाहता था । अब जब ये साबित हो गया है की वो वाक्य सचमें किशन ने ही लिखा है । इस बात से मेरा पुलिस दिमाग भी चकरा जाता है की किशन ने मरने से पहेले ऐसा क्यू लिखा होगा ? जगदीशभाई बोले तो क्या तुम भी उन रामनगर वालों की बातों पे यकिन करते हो ? और मानते हो की पाँच हजार साल पहेले एक अश्वत्थामा नाम का आदमी हुवा था उसने ईस वक्त आकर किशन की ह्त्या कर दी । हमें अभी ये भी पूरा नहीं पता है की पाँच हजार साल पहेले सचमे ऐसा कोइ आदमी हुआ होगा या नहीं । और मीडिया के साथ साथ अब आप जैसे पुलिसवाले भी उस अनपढ़ गाववालो की बातो मे यकीन करके निर्दोष अश्वत्थामा को अपराधी के कठहरे में खड़ा करने की कोशिश कर रहे है । और हमारी पब्लिक को भी सच्चाइ जानने के बजाए ऐसी अफवाए सुनने मैं ज्यादा दिलचस्पी लगी रहेति है । प्रताप बोला, नही यार , मैं भी इन सब बातो पे यकीन नही करता हू , लेकिन एक पुलिस वाला होने के नाते किसी भी बात की पूरी तरह से जाँच पड़ताल किए बिना उसे इग्नोर भी नही कर सकता हूँ । माना की ये सब महज अफवाए है और सच्चाई के साथ इसका कुछ लेना देना नहीं है , लेकिन कभी कभी अफवाओ में भी सच्चाई के कुछ अंश मिल सकते है । फिर प्रतापभाई कुछ सोचते हुए बोले कई ऐसा भी तो हो सकता है की हम वहा ढूँढते रहे और उसके मर्डर के तार यहा अहमदाबाद में जुड़े हुए हो । इसलिए सभी पहेलुओ के बारे में सोचना जरूरी है । और अभी से कुछ भी कहेना थोड़ी लजल्दबाजी होगी । एक बार उस कुमार का पता चल जाए तो सब मीस्ट्री सोल्व हो सकती है । अपने दोस्त की ये सब बाते सुनकर जगदीशभाई भी सोच में पड गये । तभी कमिश्नर ओफिस आ गया और जगदीशभाई ने कार रोक दी । प्रताप कार से उतरते हुए बोला इस केस के बारे में मुजे कुछ नया मालूम होगा तो मे तुम्हें जरूर बताऊँगा । चल चलता हूँ , अपना खयाल रखना । जगदीशभाई बोले ठीक है । चलो फिर कभी फुरसद से मिलेंगे । और वो कार लेकर चले गये।

किशनसिंहजी की मृत्यु की घटना के लगभग दो महीने बाद , प्रो. जगदीशभाई एक दिन शाम को अपने बंगले की छत पे आराम खुर्शी पे बैठे बैठे कानो में ईयर फोन डालके मोबाईल पे फिल्मि गाने सून रहे थे । तभी उनकी बीबी संध्या छत पे आइ और उनसे कहा, जी सुनते हो ? जगदिशभाई मुस्कुराते हुए बोले सुनने की इच्छा तो नहीं है फिर भी सुनाई दे रहा है । बताइये क्या कहेना चाहती है आप? संध्या बोली जी हमारे सामने वाले बंगले में नये भाडूआत (कीराएदार) रहेने आये है ।जगदीशभाई बोले मकान मालिक किराए पे देंगा तो कोई ना कोई तो आएगा ही ना रहेने । संध्या बोली आप भी ना , मेरी हर बात को यू ही उडा देते है । फिर बोली सामने देखो कई दिनो के बाद आज उस घर में अंधेरे की जगह बिजली के दीए जल रहे है । मै क्या कहेती हूँ की नए पडोसी रहेने आए है तो , चलो ना एक बार वहा जाके आते है । और उससे कहेंगे की यदी किसी भी चीज की या मदद की जरूरत हो तो बिना संकोच हमे बताए । इस तरह पडोसी धर्म का फर्ज अदा हो जाएगा और जान पहेचान भी हो जाएगि । जगदीशभाई बोले तुजे बडी लज्दि रहेति है जान पहेचान बढ़ाने की , हां.. । थोड़ा सब्र रख , पहेले तेल देख तेल की धार देख । पहेले मुजे देखने दे कि वो लोग अच्छे भले है की नहीं ? वरना कही ऐसा ना हो की तुम ऊँगली दो और वो पूरा पोचा ही निकाल ले ,समजि ? संध्या मुँह फुलाकर बोली आपको तो बस हर किसी को सख की निगाहो से देखने की आदत पड गई है । और वो एसे ही फुलाया हुवा मुँह लेकर छत से उतरकर किचन में रसोइ बनाने चली गई ।

दुसरे दीन प्रातह सुबह जगदीशभाई और उसका पुराना पडॊसी कम दोस्त रमण दोनो सार्वजनिक पार्क में जोगिंग करने निकले । दोनों चलते चलते आगे बढ़ रहे थे तभी उसके आगे थोड़े दूर एक युवती इन दोनो की ओर पीठ रखें हुए आगे की ओर जुक कर एक्सरसाइज कर रही थी । ये दोनों धीरे धीरे उस युवति कि ऒर नजदीक आ रहे थे तभी इन्होंने देखा की युवती के आगे की ओर जुकने के कारण उसने पहेना हुवा टीशर्ट पीछे से आगे की ओर खीँच गया हुवा था । ईस वजह से उस युवति की खुबशुरत पीठ आधी खुली दिखाई दे रही थी । और उसने कमर के नीचे पहेनी हुई शोर्ट साइज की जीन्स की चड्डी की वजह से उसकी जाँघों से लेकर नीचे तक के नंगे पैरो मैं से उस युवति का लाजवाब सौंदर्य टपक रहा था । ये देख के रमण की आँखों में चमक आइ और वो रुक गया, और तुरंत जगदीशभाई का हाथ खिच के बाजु मे रखी हुई बेंच पे बैठ गया और बोला थोड़ी सी थकान लगी है , आ बैठ , थोड़ी देर यहा बैठेते है । जगदीशभाई सारा मांजरा समज गए और मुस्कुराते हुए उसकी बगल में बैठ गये । बैठे बैठे वो दोनों अपलक नजरो से उस युवति की ओर देखने लगे। तभी वो युवती एक्सरसाइज करती हु़ई सीधी खड़ी हुई । और धनुराशन करने के लिये नीचे पीठ के बल लेट गई । और फिर अपने दोनों हाथों और पैरों के बल पे अपना पूरा शरीर धनुष आकार में ऊपर की ओर उठाया । ईस पोजीसन में आंखें बंद करके वो कुछ देर यूही खड़ी रही। तभी उन दोनों ने इस युवति का पूरा मुखमण्डल साफ साफ देखा , उसका मुख देखके ऐसा लगता था जैसे उपर वाले ने पूरी फुरसद से कोई नायाब नगीना तराशा हो। उसके काले लंबे बाल नीचे की ओर हवा में लहेराते हुए निचे उगि हुइ हरियालि को स्पर्श्ते थे । और ईस पोजिशन में उसके ऊपर की ओर उभरे हुए गोलाकार वक्षस्थल जो किसी को भी लुभा शकते थे। उसके टीशर्ट से ये आधे साफ साफ दिखाई दे रहे थे । उन दोनों को ये भी साफ साफ दिखाई दे रहा था की उस युवति ने टीशर्ट के नीचे किसी भी प्रकार का अंतर वस्त्र नही पहेना था । ये सब देख के रमण उत्तेजीत हो गया, उसने जगदीशभाई का हाथ अपने दोनों हाथों में लेकर जोर से दबाया और बोला क्या कमाल का रूप है यार । जगदीशभाई ने अभी तक अपने होंश नहीं गवाये थे, वे होंश संभालकर बोले , की तू सही बोलता है रूप तो वाकई में लाजवाब है । पर हम दोनो शादी नामके पिंजरे के पँछी है । और ये रूप का खजाना ना तो कोमलभाभी का है और ना हि संध्या का है , इसलिये यहा बैठे बैठे तड़पने से बहेतर यही है की हम लोग घर कि ओर चलते है । वो दोनो इस तरह बाते कर रहे थे तभी वो युवति खड़ी होके इन दोनो के पास आइ । और बोली एक्सक्युज़ मी ,क्या आप बता शकते है की यहा आसपास अच्छा सा रेस्टोरेंट कौन सा होगा ? रमण बोला जी यहा से लेफ्ट मे ही प्रेमवती भोजनालय है , बहोत बढ़िया रेस्टोरेंट है । वो युवति मुस्कुराते हुए थैंक्स बोलकर ,दौड़ती हुई वहा से चली गई । रमण हक्का बक्का होकर वो दिखाई दी तब तक उसकी और देखता रहा। तभी जगदिशभाई उसे टटोलकर घर कि ओर लेकर चले।

जगदीशभाई ने घर पहोचकर स्नान आदी नित्य कर्म किए । फिर अपने नियम मुजब भगवद्गीता के एक अध्याय का पठन किया और अपनी मां के पैरो को छूकर उससे आशीर्वाद लिए । बाद मे चाय नास्ता करके अपनी बैग लेकर संध्या को “चलो मैं चलता हूँ “ ऐसा बोलकर गुजरात युनिवर्सिटी जाने के लिए निकले । और गुजरात युनिवर्सिटी में अपने मनोविग्नान भवन में पहोचे । वहा बैठे हुए थोड़ी ही देर हुई थी की युनिवर्सिटी के वाइस चान्सेलर का प्युन उसे बुलाने आया । और वो प्युन के साथ वाइस चान्सेलर साहब की ओफिस मे पहोचे। वहा ऑफिस मे वाइस चान्सेलर जादव साहब ने उसे आवकारते हुए कहा , आओ उपाध्याय आओ । और उसकी सामने वाली खुर्शी में ब्लू साडी में बैठी हुइ महिला की ऒर इसारा करते हुए कहा इसे मिलों ये है हमारी हिस्ट्री के सब्जेक्ट की नई अध्यापिका मिस मालती बजगर । तभी जगदीशभाई ने उस महिला की ओर देखा , और उसे देखते ही बोल पडे, अरे आप ! और सामने मिस मालती भी जगदीशभाई को देखकर बोल पडी, अरे आप ! जादव साहब ये देखके बोले क्या आप एक दूसरे को पहेले से ही पहेचानते है ? जगदीशभाई बोले नहि हम एक दूसरे को पहेचानते तो नहीं है पर आज सुबह ही हमारी मुलाकात हो चुकी है । हा ये वही मिस मालती थे जो सुबह शॉ‌र्ट्स कपडॊ में एक्सरसाइज करते हुए रमण और जगदीशभाई को गार्डन में मिले थे । जादव साहब ने दोनो को एक दूसरे का परिचय करवाया और जगदीशभाई से कहा, देखो उपाध्याय ये मिस मालती यहा पे अभी नए नए आये है , तो में चाहता हूँ की तुम इसे यहा सेटल होने मे मदद करो । तुम्हारी मदद से इसे यहा सेटल होने में आसानी होगी। जगदीशभाई बोले , जी सर । मालतीजी की मदद करने में मुजे खु़शी होगी । अब आप बेफिक्र हो जाइए । अब मालतीजी को पूरे अहमदाबाद से अवगत कराने की जिम्मेदारि मेरी है । वो जब तक यहा सही रूप से सेटल ना हो जाए तब तक उसे किसी भी बात की परेशानी ना हो इसका मैं पूरा खयाल रखूंगा । जादव सर बोले मुजे तुमसे यही उम्मीद थी ,उपाध्याय । बाद मे जगदीशभाई मिस मालती को साथ लेकर अपनी ओफिस मे आए । उन्होंने अपनी ऑफिस की बगलवाली ऑफिस की साफसफाई करवाने के लिए लालजी नाम के प्युन को बोल दीया। और मालती से बोला देखिए मालतीजी अभी हिस्ट्री डिपार्टमेंट के रिनोवेशन का काम चल रहा है । इसलिए अभी हिस्ट्री के स्टुडण्ट भी यहा ही पढ़ते है । और जब तक रिनोवेशन का काम खत्म नहीं हो जाता तब तक ये बाजु वाली ऑफिस आज से आप की हुई । मालती बोली, थैंक्स सर , पर आप मुजे मालतीजी मत बुलाईये । मुजे ये बिलकुल अच्छा नहीं लगता की कोई हेण्डसम प्रोफेसर मेरे नाम के पीछे यू जी.. जी.. लगाए । जगदीशभाई बोले ठीक है अब सिर्फ मालती बुलाउंगा, ओ.के. । मालती बोली ओ.के.। और मेरे लिए तकलीफ उठाने के लिए वन्स अगेन थेंक्स । ये सुन के जगदीशभाई बोले थेंक्स तो मुजे तुमसे कहेना चाहिए । क्यूँकि दस दिन पहेले हिस्ट्री के प्रोफेसर वाघेला सर रिटायर्ड होके चले गए तब से हिस्ट्री का चार्ज मुजे सौपा गया है । आज मुजे ईस जिम्मेदारि से मुक्त करने के लिए थैंक यू सो मच । ईस तरह बाते करते हुए जगदिशभाई और मालती ने एक दूसरे के फेमिलि , और अभ्यास के बारे मे जानकारी प्राप्त कर ली । जिससे जगदीशभाई को पता चला की मालती मूल राजस्थान की वतनि है और उसकी मां का देहांत हो गया है । और उसके पिताजी रिटायर्ड आर्मी ऑफिसर है। जो इस वक्त राजस्थान में ही अपने भाई और भाभी के साथ रहेते है । वो अकेली ही नौकरी करने यहा अहमदाबाद आइ है । बात बात में दोनों को मालूम पडा की दोनो यहा के साथ साथ घर के भी पडॊशि है । उस दिन जगदीशभाई की बीबी संध्या उसके सामने वाले घर में आए हुए जिस नए पडॊशि के बारे में बता रही थी वो और कोई नही बल्के मालती ही थी । क्युकि उसी घर मैं मालती रहेने आइ थी । फिर जगदीशभाई और मालती ऑफिस से निकल के स्टाफरूम की ओर गए जहा जगदीशभाई ने दूसरे स्टाफ मेम्बरो के साथ मालती का परिचय करवाया । सबसे परिचय करते वक्त मिस मालती को प्रो. ईश्वर पटेल गुमसुम और उदास लगे । इसलिए स्टाफ रूम से बाहर निकलने के बाद अकेले मे उसने ये बात जगदीशभाई को पूछी की बायोलोजि के प्रोफेसर ऐसे उदास और उखडे उखडे क्यू बैठे थे ? तभी जगदीशभाई ने उसे किशनसिंहजी की मौत की घटना के बारे मे बताया । ये सुनके मालती बोली ईस घटना के बारे मे तो मैने भी न्यूज पेपर मे पढा था । फिर जगदीशभाई ने कहा किशन और ईश्वर जिगरि दोस्त थे । इसीलिए उसे अपने बिछडे हुए दोस्त की याद सताती रहेति है और वो अक्शर यू गुमसुम हो जाता है । फिर वो बोले यहा ईश्वर के अलावा किशन की छोटी बहेन अर्चना भी अपने भाई की मौत के सदमे मे है । जो तुम्हारी हिस्ट्री के क्लास मे ही पढती है । सो प्लीज तुम उसे संभाल लेना । ये सुनके मालती बोली मै समज सकती हूँ की अपनो को खोने का दुख क्या होता है । डोन्ट वरी, सर मे अर्चना का विशेष खयाल रखूंगी ।