Ashwtthama ho sakta hai - 7 books and stories free download online pdf in Hindi

अस्वत्थामा (हो सकता है) - 7

आज रविवार था । सुबह सुबह अपने किराए के घर के बाहर खुर्शी डाल के जिग्नेश बैठा था । तभी उस घर के मकान मालिक रतनभाई किराया लेने पहोच गए । उसे देख के जिग्नेश बोला आप परसो आना रतनकाका अभी जुनागढ की बैंक से मनीऑर्डर नही आया है । ये सुन के रतनभाई हँसने लगे और वापस लौटते लौटते बोलते गए ना जाने कैसा उटपटांग बाप मिला है तुजे ? वहा जुनागढ मे दान धर्मादा करने के लिए उसके पास अढळक पूंजी है पर यहा बेटे को पढाने मे एक एक पाई का हिसाब रखता है । ये सून के जिग्नेश भी मुस्कुराने लगा । फिर रतनभाई के चले जाने के बाद उसने खुर्शी पे बैठे बैठे ही अपनी आंखें बंध कर ली । जब से जिग्नेश ने ईश्वर सर के पास रहे वो ताम्रपत्र देखे थे तबसे वो उसके बारे में जानने के लिए बेताब हो रहा था । खुर्शी पे बैठे बैठे वो कुछ सोच रहा था फिर अचानक से वो खड़ा हुआ और खुर्शी को घर में रख के अपनी बाइक लेके मालती मैडम के घर की ओर चल दीया । मालती मैडम के घर पे पहोच के जिग्नेश ने डोर बेल बजाया । थोडी देर बाद शोल्डर लैस लूज क्रोपटोप और लोंग स्कर्ट पहेने हुए मालती मैडम ने दरवाजा खोला और जिग्नेश को देख के बोली अरे जिग्नेश तुम ? आज इधर कैसे रास्ता भटक गये ? आओ आओ, अंदर आओ । में अभी तुम्हारे बारे मैं ही सोच रही थी । जिग्नेश ने मालती मैडम को इन कपडॊ मे पहेली बार देखा था क्यूँकि यूनिवर्सिटी में तो मैडम हररोज़ साडी पहेन के ही आते थे । इसलिए थोड़ी देर तक तो वो मैडम को देखता ही रहा । फिर उसे खयाल आया की मालती मेडम उसके बारे मैं ही कहे रहे है इसीलिए वो अंदर आते आते बोला , अच्छा ऐसा है । आप क्या सोच रहे थे मेरे बारे में ? मुजे भी बताईये ना , मैडम। मालती मैडम बोले, देखो जिग्नेश पहेले मैं तुम्हें एक बात क्लियर कर देती हूँ । मैं तुम्हारी मैडम हूँ पर सिर्फ यूनिवर्सिटी मैं । यहा हम दोनों सिर्फ दोस्त है । समज गए । इसलिए नो मैडम और नो आप । यहा सिर्फ मालती और वो भी एक दोस्त की तरह बिना किसी फोर्मालीटी के ओ.के. । जिग्नेश ने कहा ठीक है । पर आप मुजे ये तो बताइये की आप मेरे बारे में क्या सोच रहे थे । मालती नकली गुस्सा करके बोली यदी तुम्हें मेरा दोस्त बनना पसंद नहीं है तो कोई बात नही । मुजे भी जबरदस्ती दोस्ती रखने का कोई शोख नही है । जिग्नेश बोला ठीक है बाबा । अब तुम्हें आप नही कहूँगा बस । और वो मजाकिया अंदाज में आवाज ऊँची करके बोला हा तो मालती तुम बताओ तुमने मुजे मैरी गैरमौजूदगी में क्यू याद किया था ? मालती भी मजाक के अंदाज में बोली इसीलिये सर , की आप उस दिन महाभारत की हिस्ट्री जानने के लिए सवाल पे सवाल कर रहे थे तो मुजे लगा आप उसी दिन पूरी हिस्ट्री समजने मुजसे पहेले मेरे घर पे पहोच जाओंगे । पर आप तो उस दीन के बाद जैसे खो ही गये थे। इसलिए मैं आज सोच रही थी की वाकई में तुम्हें हिस्ट्री में इंटरेस्ट था या उस दीन सिर्फ टाइम पास करने के लिए यू ही प्रश्न पूछें जा रहे थे ? जिग्नेश बोला नहीं मैडम । और फिर “ सोरी” बोल के फिर से बोला । नहि मालती मैं उस दिन टाइमपास के लिए नही पूछ रहा था । पर सचमे , मै इतिहास के बारे मे विस्तार से जानना चाहता हू । इसमे भी महाभारत तो मेरा फेवरीट सबजेक्ट है । बचपन से मैं महाभारत की स्टोरी सुनता आ रहा हूँ । पर आज मै तुम्हारे पास किसी और ही कारण से आया हू । ये सुनके मालती बोली ऐसी क्या बात है ? तभी जिग्नेश ने बताया की मैने ईशु सर (इश्वर सर) के पास धातु के कुछ पत्र देखे है । और इशु सर लेब मैं बैठ के घंटों तक उसे देखते रहेते है । पर मैने जब उसे उन पत्रो के बारे मे पूछा तो वो गुस्सा हो गये और मुजे कुछ भी बताने से मना कर दीया। मालती बोली क्या बात करते हो ? मैंने कभी ईशु सर को गुस्सा होते नहीं देखा । जिग्नेश बोला वही तो। मैने भी उस वक्त पहेली बार उसका गुस्सा देखा । मानो या ना मानो पर उन धातु के पत्रो मे कुछ तो खास बात है वरना ईशु सर ऐसे गुस्सा ना होते । मालती बोली कैसे दिखते है वो पत्र ? जिग्नेश बोला गौर से तो अभी तक मैंने भी नही देखे है । पर एक दो बार अलप जलप देखे है । दिखाव में तो तांबे की धातु के लगते है । लगभग आधे स्क्वेर फिट साइज के चौरस दिखते है । सायद उन पत्रो पे आम तौर पे समज मे ना आए एसि भाषा मैं कुछ लिखा हुआ है । और सायद ईशु सर उसी को समजने की कोशिश कर रहे है । ये सारी बात सुनके मालती बोली उसे ताम्रपत्र कहेते है । मैने पढा है इसके बारे मे । प्राचीन काल मै जब कागज की खोज नहीं हु़ई थी तब एसे ही पत्रो पे लिखकर महत्वपूर्ण माहिति को संभाला जाता था । महाभारत काल मे भी कुछ योद्धा तंत्रविद्या को ताम्रपत्रो पे लिपीबद्ध करके संभाल के रखते थे। जिग्नेश बोला ये तंत्रविद्या क्या होती है ? मालती उसकी और देख के गंभीर होके बोली जैसे यंत्रविद्या होती है वैसे ही तंत्रविद्या होती है । जिग्नेश अपना सिर खुजाते हुए बोला मेरी समज मैं आए एसे कहो ना । मालती बोली देखो हम ईस वक्त जिस टेकनोलॉजी का इस्तेमाल करते है उसे प्राचीनकाल मे यंत्रविद्या कहेते थे । जैसे की ईस वक्त मोबाइल , कोम्प्युटर , तरह तरह के विहिकल्स , बडी बडी फेक्टरीओ की मशीने और तरह तरह के बिजली से चलने वाले उपकरण वगेरे । ये सब यंत्र अलग अलग प्रकार के स्रोत से ऊर्जा का उपयोग करने के लिए जिस सिद्धांत पे काम करते है उस सिद्धांतों को या नियमो को यंत्रविद्या कहेते है । मूलतह ऊर्जा यानि की एनर्जी एक ही है । जो अलग अलग स्त्रोत के माध्यम से अलग अलग रूप मे बदलती रहेती है । मैंने इतिहास को अब तक जितना समजा है उसके मुताबिक प्राचीनकाल मे हम मनुष्यो ने तीन प्रकार से एनर्जी का उपयोग करना सिख लिया था । जिसे हम यंत्रविद्या , तंत्रविद्या और मंत्रविद्या के नाम से जानते थे । पर आज के मनुष्य सिर्फ यंत्रविद्या का उपयोग करना ही जानते है । अब तंत्रविद्या और मंत्रविद्या लुप्त हो चुकी है । और आज हम कमनसिबि से तंत्र और मंत्र जैसे टेकनोलोजीकल शब्दों को चमत्कार के रूप मैं जानने लगे है । और कुछ तांत्रिक और ढोंगी बाबा इसे जानने के जूठे दावे करके लोगों को भरमाए रखते है । वास्तव में यंत्रविद्या के नियमो या सिद्धांतो के अनुसार यंत्र यानि मशीनें चलती है । तंत्रविद्या के नियमो के अनुसार तंत्र यानि सभी सजिवो के शरीर चलते है । और मंत्रविद्या के नियमो के अनुसार मंत्र यानि मूल तत्व या कहो की प्रकृति चलती है । यदी मेरा मानो तो मैं तो कहूँगी की महाभारत काल के अधिकतम लोग तंत्रविग्नान को जानते थे और ईस विद्या का अधिकतम उपयोग भी किया जाता था । और ऐसी बहोत सारी घटनाओं का वर्णन भी हमें महाभारत के ग्रंथ मे मिलता है जिसमे तंत्रविग्नान के प्रयोग हुए हो उसकी पूरी संभावनाए है । पर हम उसे चमत्कार या कल्पना का नाम देकर उसे भूल जाते है । महाभारत को सही तरीके से समजा जाए तो पता लगता है की तब कुछ लोग अति सूक्षम और जटिल ऐसी मंत्रविद्या के बारे में भी जानते थे । वासुदेव कॄष्ण उसका उत्तम उदाहरण है । उनके द्वारा किए गए कई कार्यों मैं ईस विद्या का प्रयोग हुआ है जिसे अभी हम कॄष्ण लीला के नाम से जानते है । उनके हमारी समज से परे और अदभूत कार्यों की वजह से ही आज भी हम उसे भगवान के रूप में पूजते है । आज के युग मे कुछ नई खोज करने के कार्य को संसोधन कहा जाता है और उस वक्त उसे तपस्चर्या या तप कहा जाता था । आज संसोधक को वैग्नानिक कहा जाता है और उस वक्त उन्हें ऋषी मुनि या तपस्वी कहा जाता था । पर हमारी कमनसीबी से आज हम हमारे भव्य इतिहास को भुला चुके है । और इस वक्त हमारे पास प्राचीन इतिहास के बारे मे जो भी माहिती उपलब्ध है वो बहोत ही अस्पश्ट और अधूरी है । मालती ने फिर जिग्नेश से कहा तुम तो सायन्स के स्टुडण्ट हो तुम यदी प्रयत्न करो तो तुम्हारे लिए ये सब समजना मुश्किल नहीं है । फिर जिग्नेश की ओर देखती हु़ई वो बोली इतिहास का सही उपयोग करके ही आज का विग्नान अपना कद बढ़ा सकता है । जिग्नेश ये सब सुनके आस्चर्य चकित हो के मालती की ओर देखने लगा और बोला मुजे लगता था तुम सिर्फ हिस्ट्री की टीचर हो पर तुम तो ओलराऊण्डर निकली । में समजता था उससे कई गुना ज्यादा जानकारी प्राप्त हो सकती है तुमसे । तुम्हारी ये सब बाते सुनने से तो उन ताम्रपत्रो के बारे मे जानने की मेरी उत्कंठा और भी बढ़ गई है । फिर घड़ी की ओर देख के जिग्नेश बोला तुम्हारी ऐसी अदभुत बातें सुनके फिलहाल तो मुजे बहोत भूख लगी है इसलिए अभी मैं चलता हूं । पर ये सारी बातें विस्तार से समजने के लिए में बहोत जल्द वापस आउंगा । ये सुनके मालती बोली तुम एक काम करो तुम आज यहा ही रुक जाव । मैं हम दोनों के लिए अभी फटाफट रसोई बना देती हूँ । जिग्नेश बोला तुम तकलीफ रहेने दो मैं घर जा के खा लूंगा । मालती बोली इसमें तकलीफ किस बात की । मैं अपने दोस्त को अपने घर पे खाना खिला शकु उतना तो हक बनता है मेरा । जिग्नेश बोला ठीक है । पर एक शर्त है की खाना तुम अकेली नहीं बनाओगी मे भी इसमें तुम्हारी हेल्प करूँगा । मंजूर है ? मालती हँस के बोली हा ठीक है बाबा । फिर मालती रसोई बनाने लगी और जिग्नेश सब्जिया काटने जैसे काम करके उसकी मदद करने लगा । रसोई बन जाने के बाद दोनों साथ में ही खाना खाने बैठे । थोड़ी देर बाद मालती भोजन करके खड़ी हो गई । जिग्नेश अभी खाना खा रहा था । उसने खाते खाते बोला मुजे खाने के आखिर में मसाले वाली छास पीने की आदत है । मालती बोली ठीक है मैं अभी लाई । और मालती ने छास का ग्लास लेके जिग्नेश के हाथ में दिया लेकिन जिग्नेश ने ग्लास लेते वक्त ग्लास पे कुछ ज्यादा ही जोर दे दीया । और इससे प्लास्टिक का डिस्पोजिबल ग्लास होने से ग्लास ज्यादा दब गया और छास छलक के जिग्नेस के शर्ट पे गिरी । ये देख के मालती बोली ध्यान से जिग्नेश । देखो तुम्हारा पूरा शर्ट गंदा हो गया । जिग्नेश बोला कोई बात नहीं , मुजे लगा की काच का ग्लास होगा इसलिए मैने कस के पकडा । मालती बोली कोई बात नहीं ।तुम शर्ट निकाल दो मे अभी धो के सूखा देती हूँ । जिग्नेश बोला नहीं नहीं इसकी कोई जरूरत नहीं है में घऱ जाके चेंज कर लूँगा ।मालती बोली ज्यादा नखरे मत दिखाओ और शर्ट निकालो ये सूख जाएगा तो बदबू आने लगेगी समजे । ऐसा बोलके खाना खा के सोफे पे बैठे जिग्नेश के पास जाके मालती उसके शर्ट के बटन खोलने लगी । और उसका शर्ट निकाल लिया । और फिर उसका स्नायुबद्ध शरीर देख के मालती बोली वाह जिग्नेश क्या बॉडी बनाई है तुमने ! तुम्हारी बॉडी देखके तो कोई भी लडकी तुम पे फिदा हो जएगी । ये सुनके जिग्नेश बोला तुम भी फिदा हो जाओगि ? मालती बोली मैं हो जाउंगी क्या मे तो हो गई । तुम्हें ऐसे देख के तो मुजसे तो रहा नहीं जा रहा है । इसलिए तुम अभी मेरा टीशर्ट पहेन लो चलो । और फिर मालती जिग्नेश को अपने बेडरूम में ले गई और अपना एक टीशर्ट निकाल के जिग्नेश को पहेन ने के लिए दीया और जिग्नेश का शर्ट धोने के लिए वॉशिंग मशीन मे डाल ने के लिए चली गई । जिग्नेश थोड़ी देर तक तो मालती ने दिए हुए टीशर्ट को अपने हाथों में गोल गोल घूमा के देखता रहा । क्यूँकि वो टीशर्ट उसकी साइज से छोटा था । फिर थोड़ी देर बाद वो उस टीशर्ट को पहेनने लगा। उसने वो टीशर्ट पहेनने के लिए अपने दोनों हाथ ऊंचे करके टीशर्ट अपने गले मे डाली । पर टीशर्ट उसकी साइज से ज्यादा छोटी निकली और ईस वजह से उसके दोनों हाथ और शिर उस टीशर्ट में अटक गये । फिर वो परेशान हो के बेड पे बैठ गया । पर उसने अपने पैर नीचे फ्लोर पे ही रखे हुए थे । और फिर ईस तरह बैठा बैठा टीशर्ट निकालने की कोशिश करने लगा । तभी मालती उसका शर्ट धो के सूखाने के लिए डाल के वापिस आई । और जिग्नेश को ईस हालत में देख के हँसने लगी । फिर बोली तुम रुको मैं मदद करती हूँ । और वो बेड के ऊपर खड़ी होके जिग्नेश के शिर से टीशर्ट निकालने लगी। पर टीशर्ट उसके गले में कस के अटक गया था इसलिए जैसे जैसे मालती टीशर्ट को खिचति गई वैसे वैसे उसका शिर भी खिचता गया और वो मालती के नजदीक खिसकता गया । ईस तरह खिसकते खिसकते कब वो मालती की घेरदार स्कर्ट के घेर पे बैठ गया उसे पता ही नहीं चला । दूसरी ओर मालती भी टीशर्ट खिचने में लगी थी उसे भी ईस बात का पता नहि लगा । आखिर में काफी देर तक खिचने के बावजूद भी टीशर्ट ना निकली इसलिए मालती ने उसे एक ही जटके में निकालने के लिए जोर से खीचा । जोर से खिचने कि वजह से टीशर्ट तो निकल गई पर मालती बैड पे गिर गई । गले से टीशर्ट निकलने की वजह से जिग्नेश ने देखा तो मालती बैड पे लंबी होकर पड़ी थी । और वो खुद मालती की स्कर्ट पे बैठा था ईस वजह से उसकी गटर वाली स्कर्ट उसकी कमर से सरक के उसकी जांघ पे आ गई थी । और उसके लूज क्रोप टोप ने उसका पूरा मुँह ढँक दीया था । ईस वजह से मालती ने पहेने हुए अंतरवस्त्र साफ साफ दिख रहे थे । मालती को ऐसी हालत में देख के जिग्नेश उत्तेजित हो गया । जिग्नेश बेड के पास खडा हो गया और मालती अपने मुँह से क्रोप टॉप हटाए उससे पहेले जिग्नेश ने एक ही जटके में उसकी आधी पहेनी हुई स्कर्ट खींच के पूरी निकाल दी । जब मालती ने ये देखा तो वो भी शरारत पे उतर आइ और वो बेड से निचे उतरी और बैड के पास खडे जिग्नेश की पेंट पे बँधे बेल्ट को खोल के एक जटके मे बेल्ट को पेंट से अलग कर दीया । फिर जिग्नेश को धक्का देके पीठ के बल बेड पे गिरा दीया । फिर जोर से कूदकर बैड पे लेटे जिग्नेश के पैरो पे घुटनों के बल बैठ गई और उसकी पेंट की बटन और चेन खोल डाले फिर फटाक से बैड से नीचे उतर गई और जिग्नेश ने जैसे उसकी स्कर्ट खींच ली थी ठीक वैसे ही मालती ने भी जिग्नेश की पेंट को एक ही जटके में खीँच के निकाल दीया । फिर बेड पे पड़े जिग्नेश पे मालती एक जंगली बिल्ली की तरह लपक के उसके ऊपर चढ गई । और जैसे वनस्पति की वैल पैड के थड को लिपटे वैसे लिपट गई । फिर दोनों एक दूसरे के अंगों को अपने कोमल स्पर्श से सहेलाने लगे । तभी जिग्नेश ने मालती को पूछा की तुम्हारे पास कोंडॉम होगा ? मालती बोली नहीं । क्यू ? उसका क्या काम पड गया ? जिग्नेश मुस्कुराते हुए बोला ये क्यू का क्या मतलब है ? और मैं जानता हूँ तब तक उसको सिर्फ एक ही काम के लिए बनाया जाता है। समजी ? फिर मालती के गाल खीँच के वो बोला कई तुम्हारा इरादा प्यासे को सिर्फ पानी के दर्शन करा के वापिस लौटा देने का तो नहि है ना ? मालती उसे चूमते हुए बोली नहीं ऐसा कुछ नहीं है मेरे प्यासे मुसाफिर । तुम बेफिकर हो जाओ क्यूकी अठठाइस दिन वाली गोलीओ में से आज ही मैंने सातवी गोली खाइ है । ये सुनके जिग्नेश बोला इसका मतलब इससे पहेले भी कई मुसाफिर यहा अपनी प्यास बुजा चुके है । हं..। मालती उसके कान को काटते हुए बोली तुम जैसे प्यासे को मुसाफिरो कि गिनति कि बजाए सिर्फ अपनी प्यास बुजाने में ही ध्यान देना चाहिए । और इन बातों के दौरान दो प्यासे शरीरों के बिच से अंतर वस्त्रो की दीवाल कब हट गई कुछ पता ही नहीं चला । फिर एक ओर दोर पे सुखाने के लिए डाला हुआ जिग्नेश का शर्ट सूखने लगा और दूसरी ओर जिग्नेश का बदन भीगने लगा । आखिर में प्यासा और पिलाने वाला दोनों तृप्त हो गए । फिर मालती अपने पूरे कपड़ों में सज्ज हो के जिग्नेश का शर्ट ले आई । जिग्नेश ने घड़ी मे देखा तो साडे चार बज चुके थे । उसने जल्दी से अपनी शर्ट पहेनते हुए कहा चार बजे आज मुजे क्रिकेट खेलने जाना था । मेरे दोस्त मेरा इंतजार कर रहे होगे । मुजे जाना होगा मालती । और ऐसा बोल के वो जल्दी से वहा से निकल गया ।

इन्सपेक्टर वसीम खान अपनी छानबीन के बाद रिपोर्ट तैयार करके डी.सि.पि. प्रताप चौहाण के सामने हाजिर हुआ । उसने उस रिपोर्ट फाइल को साहब के सामने टेबल पे रखी । प्रताप साहब ने पूछा क्या प्रोग्रेस है खान ? खान बोला अभी तो मैने और मेरे ओफिसरो ने किशनसिंहजी से जूडे हुए लोगो की इन्फॉर्मेशन कलेक्ट की है । और उनमें से कुछ लोग असहज मालूम हुए उसकी सस्पेक्ट के तौर पे अलग से दोबारा छानबीन शुरु की है । प्रताप साहब ने पूछा अब तक कितने नाम सामने आये है ? सस्पेक्ट के तौर पे । वसिम खान ने जवाब टालने की कोशिश करते हुए कहा, है सर । कुछ नाम आए है । प्रताप साहब ने फिर पूछा किस किस के नाम है ? वसीमखान बोला किशनसिंहजी का आसिस्टंट कुमार और वो CIA एजंट और उसके साथी हिट लिस्ट मे है । इसके अलावा किशनसिंहजी के कुछ दोस्त और उनके कुछ रिस्तेदारो के नाम भी है । प्रताप साहब फाइल की ओर देखते हुए बोले तुमने उन रिस्तेदारो और दोस्तो के नामों की सूची ईस फाइल मैं रखी है ? वसीम खान बोला जी नहीं सर । वो सूची मैने अपने पास ही रखी है । प्रताप साहब ने पूछा उस सूचि मे सबसे पहेले किसका नाम है ? वसीम खान ने निडर होकर जवाब दीया अहमदाबाद सिटी पोलिस के डि.सी.पी. प्रताप चौहाण का । अपना नाम सून के डी.सि.पी. प्रताप चौहाण अपनी खुर्सी से खडे हो गए । और फिर उन्होंने खान से पूछा तुम्हे इस सख्स मैं क्या असाहजिक लगा ? खान बोला ये सख्स अपनी कॉलेज लाइफ मैं किशनसिंहजी की खुबशुरत वाइफ का प्रेमी हुआ करता था । किशनसिंहजी की बीबी चारुलता और ये आदमी एक दूसरे को बहोत प्यार करते थे । पर दोनो की कास्ट अलग होने के कारण उन दोनों का प्यार शादी तक नहीं पहोच पाया। और फिर समय रहेते ये दोनों अलग अलग पात्रो से शादी करके अपनी अपनी लाइफ मे सेट हो गए । पर आज भी इन दोनों के बिच दोस्ती कायम है । और ये दोनों एक दूसरे के संपर्क मे रहेते है । ये सब सून के प्रताप साहब मुस्कुराने लगे । और बोले तू तो मैरी पूरी कुंडली निकाल के ले आया, खान । हा ये बात सच है की में और चारु एक दूसरे को बहोत प्यार करते थे । और आज भी हम दोनों के बिच दोस्ती जारी है । पर सिर्फ दोस्ती । इससे आगे कुछ नहीं । और ये बात किशन को भी मालूम थी । फिर प्रताप साहब ने वसीम खान के कंधे पे हाथ रख के पूछा तेरा तर्क क्या कहेता है मेरे बारे में ? वसीम खान बोला अभी तो मे कुछ नहीं कहे सकता सर । पर यहा अहमदाबाद में बैठे बैठे कोई आम आदमी यू.पि. में किसी का मर्डर नहीं करवा सकता है । और बिना कोई सबूत छोड़े एसे सातिर तरीके से मर्डर करना भी कोई आम आदमी के बस की बात नहीं है । ये काम कोई तेज दिमाग वाला और पावरफुल आदमी ही कर सकता है या करवा सकता है । इसलिए मे आइ. बी. ओफिसरो के जरिए आपके बारे मे ओर ज्यादा इन्फॉर्मेशन कलेक्ट करने के लिए आपसे परमिशन लेने आया हूँ । प्रताप साहब बोले ठीक है परमिशन है । इन्सपेक्टर खान बोला आप पे यू शंका करने के लिए सोरी सर । पर आप ही कहेते है ना की पुलिस वाला जब डयूटी पे हो तब सिर्फ पुलिस वाला होता है । प्रताप साहब बोले मुजे तुमसे यही उम्मीद थी खान । आइ एम प्राउड ऑफ यू । में चाहता हूँ की तुम जल्द से जल्द किशन के कातील का पता लगा लो । वसीम खान बोला यस सर । और वो साहब को सैल्यूट करके वहा से चला गया । उसके जाने के बाद डी.सि.पी. प्रताप चौहाण गहेरि सोच मे डूब गए ।