Ashwtthama ho sakta hai - 9 books and stories free download online pdf in Hindi

अस्वत्थामा (हो सकता है) - 9

गुजरात यूनिवर्सिटी मे सुबह १० बजे के आसपास मिस मालती अपनी ऑफिस के रिडींग रुम मैं बैठी बैठी न्यूज पेपर पढ रही थी । तभी वहा जगदिशभाई आए । जगदीशभाई के आने से मालती ने उसके लिए चाय का ऑर्डर दीया । दोनो चाय का इंतजार करते हुए बैठे थे तभी वहा प्रो . ईश्वर पटेल आए । उनके हाथ में एक किताब थी । उस किताब को टेबल पर रखते हुए वो बोले मुजे तुम दोनो की हेल्प चाहिए। फिर मलती की ओर देख के बोले स्पेसियलि मालती तुम्हारी हेल्प चाहिए । तभी मालती बोली हा बताइये मै आपकी क्या मदद कर सकती हूँ ? तभी ईश्वरभाई बोले ऐसे नहि । पहेले तुम दोनो वादा करो की अभी जो बात मैं तुम दोनों को बताऊंगा वो सिर्फ हम तीनो के बीच रहेगी । और मैं तुम्हें अभी जो चीज दिखाऊँगा तुम ईस के बारे मे मुजसे कोई सवाल नही करोंगे । तभी जगदीशभाई बोले ऐसा भी क्या राज है ईशु ? ईश्वर भाई अपने दोस्त को जवाब देते हुए बोले, नही अभी नही समय आने पे मैं तुम्हे सब कुछ बताऊंगा जगदीश । फिलहाल तुम दोनो मुजे वादा करो की ये बात हमारे बिच रहेगी । फिर मालती और जगदिशभाई ने वादा किया की ये बात सिर्फ हमारे बिच ही रहेगी । फिर इश्वरभाई ने अपनी किताब के बिच मे से वो ताम्रपत्र निकाले और टेबल पे रख दिए । उसे देख के जगदिशभाई बोले ये क्या है ? तभी मालती बोली इसे ताम्रपत्र कहेते है । ये सून के इश्वरभाई बोले तुम जानती हो इसके बारे में ? मालती बोली हा पुराने इतिहास में इसके उल्लेख मिलते है़ । तभी जगदिशभाई बोले पर ये तुम्हारे पास कैसे आए , ईशु ? ईश्वर भाई ने जवाब दीया अभी में तुम्हें ईस बारे मे कुछ भी नहीं बता सकता । तभी जगदिशभाई उन पत्रो में से एक को उठाके देखने लगे और बोले ताम्रपत्र के बारे में तो मैंने भी पढा है । पर आज पहेली बार इसे देखा है । तभी इश्वरभाई ने मालती से कहा ,मालती क्या तुम इन ताम्रपत्रो की सांकेतिक भाषा का अर्थघटन कर सकती हो ? मालती ने ताम्रपत्रो को देखते हुए जवाब दीया इसका पूरा अर्थघटन तो में नहि कर सकती । पर पुराने जमाने में सामान्य रूप से इस्तेमाल किए जाने वाले कुछ जाने पहेचाने संकेतो का अर्थघटन करने की मै कोशिश कर सकती हूँ । पर इसके लिए मुजे इन पत्रो का ध्यान से अभ्यास करना पडेगा । मालती ईस तरह बात कर रही थी तभी उसका ध्यान एक पत्र पे उपसाए हुए कई चिन्हो मे से सुर्य के चिन्ह की ओर गया । फिर सूर्य का चिन्ह देख के वो बोली इस चिन्ह को में पहेचानती हूँ । ये चिन्ह तो महाभारत काल का है । यानि ये ताम्रपत्र भी महाभारत काल के है । ईश्वरभाई बोले तुम सही कहेती हो । ये सब सुनके जगदीशभाई थोडी देर तक सोच में पड गए । और फिर ईश्वरभाई की ओर देख के बोले कही इन सब से तुम्हारा ईसारा किशन की मौत के साथ जुडी अश्वत्थामा की पहेली से तो नही है ना ? ईश्वरभाई बोले ऐसा ही समजो । पर ईस वक्त में तुम्हे इससे ज्यादा कुछ नहि बता सकता हूँ । फिर जगदीशभाई बोले तो तुम भी ईस बात पे यकीन करते हो की अश्वत्थामा अब तक ज़िंदा हो सकता है ? ईश्वर भाई बोले हा ईस वक्त हालात को देख के तो मुजे भी ऐसा ही लगता है । जगदीशभाई बोले पर भला कोई आदमी पाँच हजार साल से जिंदा हो तो किसीको तो दिखना चाहिए ना । ईश्वरभाई बोले हो सकता है वो किसी के भी सामने ना आना चाहता हो । तभी मालती बोली और ये भी तो हो सकता है की वो हमारे बिच ही अपनी पहेचान छुपा के कही रहे रहा हो । और हम उसे पहेचान ना पाते हो । ये सुन के जगदीशभाई बोले ये तुम क्या कहें रही हो ? वो हमारे बिच कैसे रहे सकता है ? तभी मालती बोली यही तो मैं कहे रही हूँ । हम अश्वत्थामा को केवल धोती और पितांबर पहेने हुए और माथे पे मुगट धारण किए हुए ही इमेजिन करते है । क्युकि की हम बचपन से अश्वत्थामा के बारे मे ऐसा ही सुनते आ रहे है । और हमने उसके चित्र या तसविरे भी ऐसी ही देखी है । इसलिए हम उसके बारे मे ऐसा ही सोचते रहेते है । हम ऐसा क्यू नही सोचते की इतने सालो मे समय के साथ वो भी बदल गया हो सायद । और अपनी असली पहेचान छुपा के हमारे बिच मे ही रहेने लगा हो ऐसा भी तो हो सकता है ना ? तभी जगदिशभाई बोले एक मिनिट के लिए चलो मान भी लेते है की ऐसा हो सकता है । पर महाभारत मे उल्लेख है की उसके माथे से मणि छीन जाने के बाद उस जगह गहेरा घाव हो गया था। तो वो उस घाव को कैसे छुपाता होगा । तभी मालती बोली सायद समय रहेते वो घाव भर भी गया हो । ये सुनके ईश्वरभाई बोले हा कुछ भी हो सकता है । ईस वक्त किसी भी सक्यता को नकारा नहीं जा सकता । इन दोनो की बाते सुनके जगदीशभाई हँसने लगे और बोले फिर तो ऐसा भी हो सकता है की मैं जगदीश उपध्याय ही वास्तव मे अश्वत्थामा हू और अपनी पहेचान बदल के तुम लोगो के बिच रहे रहा हू पर तुम लोग मुजे पहेचान नही पा रहे हो । तभी ईश्वरभाई मुस्कुराने लगे और बोले इसे भी नकारा नहि जा सकता जगदीश। ये सब सुन के मालती बोली तुम मानो या ना मानो पर ऐसा हो भी सकता है । मैं तो कहेति हूँ की सायद अश्वत्थामा ईस वक्त हमारे आसपास ही कही हो और हमारी बाते भी सुन रहा हो ऐसा भी हो सकता है । जब मालती ये बोल रही थी तभी उसकी ओफिस के पीछे खडा होके जिग्नेश उन सब की सारी बाते सुन रहा था । जरासर वो ईश्वर सर का पीछा करते हुए ही उसके पीछे पीछे यहा आया था । और जब ईश्वर सर को मालती मैडम की ऑफिस मे जाते देखा तभी वो अंदर क्या हो रहा है ये जानने के लिए ऑफिस के पीछे वाली खिड़की क़े पास किसी की नजर ना पड़े ऐसे चुपचाप खडा हो गया। और अंदर हो रही सारी बाते सुनने लगा । तभी अंदर ऑफिस में ईश्वर सर बोले मालती तुम जगदीश की बातो पे ध्यान मत दो और जल्द से जल्द ईस संकेतों का अर्थघटन करने की कोशिश करो । इन ताम्रपत्रो को इस वक्त तुम्हारे पास ही संभाल के रखो । और जैसे ही तुम्हें कुछ पता चले सबसे पहेले तुम मुजे बताना ठीक है । उसी वक्त चाय वाला आदमी चाय लेके आया और उसने जगदीशभाई को एक कप चाय का भर के दीया । और ईश्वर सर के लिए कप भरने जा रहा था तभी उन्होंने उसे मना किया और मालती से बोले अभी मुजे लेब मे कुछ काम है इसलिए में चलता हूँ । और वो वहा से चले गए । और चाय वाला भी एक कप चाय देके चला गया । क्युकि की मालती को भी उन ताम्रपत्रो का अध्ययन करने की जल्दी थी इसलिए उसने भी चाय नहीं ली । अब ऑफिस में मालती और जगदीशभाई दो ही रहे थे । मालती ताम्रपत्रो का अध्ययन करने मे लग गई थी । और जगदीशभाई उसके टेबल की सामने वाली खुर्शी पे बैठे बैठे चाय पी रहे थे । चाय पीते पीते जगदीशभाई ने देखा की टेबल पे चार बुक्स जो एक दूसरे के ऊपर पड़ी है उसमे दूसरी बुक हिस्ट्री की “ प्राचीन भारत” नाम की थी । नाम पढके उसे वो पुस्तक पढ़ने की इच्छा हुई । और वो पुस्तक पढ़ने के इरादे से एक हाथ मे चाय का कप होने से उन्होंने एक हाथ से ही वो बुक खिचि । और इस वजह से पुस्तकों के ऊपर रखा हुआ काच का गोलाकार पेपरवेइट जिस ओर मालती बैठी थी उस ओर गिरने लगा । लेकिन मालती ने त्वरा से उस ओर जुककर पेपरवेइट जमीन पर पडे उससे पहेले अपनी हथेली में जिल लिया । और वापस उसे टेबल पे रख के वो ताम्रपत्रो के अध्ययन में व्यस्त हो गई । लेकिन ईस दौरान नीचे जुकने के कारण उसकी साडी का पल्लू उसके कंधे से खिसक के निचे गिर चुका था । पर वो ताम्रपत्रो के अध्ययन मे मग्न हो गई थी और ईस बात से अनजान थी । लेकिन सामने बैठे जगदिशभाई ने देखा कि साडी का पल्लू खिसक जाने से उसके लो नेक साइज के ब्लाउज से मालती के उभरे हुए खुबशुरत वक्षस्थल दिखने लगे थे । जो सामने बैठे प्रो जगदिश को उसकी ओर आकर्षित करते थे। प्रो. जगदीश थोडी देर तक अपना ध्यान वहा से हटा के इधर उधर देखने लगे । लेकिन उसकी आंखें बार बार वहा जाके ही अटकती थी । आखिर कामदेव के प्रचंड वेग के सामने प्रो. जगदीश के संयम का बांध तूट गया । और उसके बदन मे कामाग्नि प्रकट हुई । वो कामवस हो के खडे हुए । और मालती की खुर्शी के पीछे जा खडे हुए । और मालती के आधे खुले कंधो को अपने दोनो हाथो से पसवारने लगे । प्रो जगदीश के हाथो के मुलायम स्पर्श से मालती का ध्यान अब ताम्रपत्रो से हटा । ईस वक्त पूरी ऑफिस मे इन दोनो के अलावा कोई नही था। और ये एकांत जलते हुए अग्नि में घी डालने जैसा था । अब मालती ने ताम्रपत्रो को उसी स्थिति मे टेबल पर पडे रहने दीया । और प्रो. जगदीश के हाथो के कोमल स्पर्श से मुग्ध होकर अपना मुह ऊँचा उठाके प्रो. जगदिश की आँखो में देखा । फिर मालती ने अपने हाथो से प्रो. जगदीश के हाथो की कलाइयो को कसकर पकड ली। मालती के हाथो की पकड ने प्रो. जगदीश को आगे बढने के लिए प्रोत्साहित किया । और उसी हालत में प्रो. जगदीश ने अपने होठो से मालती के होठो को कस के चूम लिया । ईस चुंबन की वजह से मालती के होठो पे लगी लिपस्टिक प्रो. जगदीश के होठो पे आ गई । फिर प्रो. जगदीश ने मालती के कंधो को आगे की ओर जुकाया और मालती का माथा टेबल के साथ टैक दीया। फिर मालती की पीठ से घने लंबे बालो को साईड मे किए और उसकी मरोडदार पीठ देखने लगे । फिर उसने मालती की पीठ पे कंधे के पास दाइ ओर किस करके अपने होठो पे लगी लिपस्टिक से उसकी पीठ पे होठो के निशान बना दिए । और धीरे से उसकी पीठ पे बंधी ब्लाउज की दौरीया खोल दी । प्रो. जगदीश ने जैशे ही दोरिया खोली की मालती अपने एक हाथ से अपनी ब्लउज संभालती हुई एक जटके मे खडी हो गई । और प्रो. जगदीश को अपने दोनो हाथो से धक्का देकर दूर कर दीया । ईस दौरान उसका ब्लाउज वहा टेबल के पास नीचे गीर गया । और वो अपने दोनो हाथो से अपनी छाती को ढकते हुए अपनी ओफिस के रीडिंग रूम से भाग के ओफिस के मुख्य कमरे मे चली गई । फिर उसके पीछे पीछे प्रो. जगदीश भी मुख्य कमरे मे पहोचे । वहा उन्होने देखा की मालती अपने दोनो हाथो से अपनी छाती को ढंक के दीवाल के पास खडी है । और उसकी साडी का पल्लू नीचे जमीन पे फैला हुआ है । पल्लू ना ढका होने की वजह से मालती की कमर और पेट का हिस्सा खुला पड गया था । फिर प्रो. जगदीश ने नीचे पडे हुए साडी के पल्लू को उठा लिया । और उसे खींचने लगे , जिससे मालती गोल गोल घूमती रही और उसकी कमर मे खोसि हुई साडी सरक के निकलती रही । ईस तरह प्रो. जगदीश ने पूरी साडी निकाल के सामने विजिटरो के लिए रखे सोफे पे फेंक दी । और वो मालती के नजदीक सरकते गए । फिर प्रो. जगदिश ने मालती के दोनो हाथो को पकड के उसकी छाती से दूर कर दिए । फिर दोनों ने एक दूसरे को आलिंगन में ले लिया । थोड़ी देर बाद प्रो. जगदीश की पेंट की पकड ढीली हुई और वो नीचे गिरी । फिर दोनो के बदन से एक के बाद एक वस्त्र उतरकर नीचे जमीन पे गिरने लगे । जब दोनो के बदन से सारे वस्त्र उतर गए तब मालती दौड के सोफे पे लेट गई और वहा पडी साडी के पल्लू से अपने स्त्री सहज अंगों को ढंक लिया । फिर प्रो. जगदीश ने भी सोफे के पास पडी साडी के एक हिस्से को अपनी कमर के ईर्दगिर्द लपेट दीया । और बाज़ू मे नीचे पडी अपनी पतलून उठा के सोफे के पीछे जाके खडे रहे । सोफे के पीछे खड़े रहेने से मालती को प्रो. जगदीश के मुलायम शरीर का कमर से ऊपरी हिस्सा दिखाई दे रहा था । और वो उसे देखती हुई सोफे पे पडी थी। तभी प्रो. जगदिश ने पतलून की जेब से बटवा निकालकर उसमे से कोंडॊम का पेकेट निकाला । तभी कोंडॊम को देखकर मालती सोफे पे आधी खडी हो गई और बोली कोंडॊम नही । जगदीश प्लीज , कोंडॊम रहेने दो । तभी कोंडॊम के पैकेट से कोंडॊम निकालते हुए प्रो. जगदीश बोले तुम समजा करो डार्लिंग ये बहोत जरूरी है । ये सुनके मालती अपनी आँखो से नखरे करती बोली बिना कोंडॊम के मुजे ज्यादा मजा आता है । तभी प्रो. जगदीश ने मुस्कुराते हुए अपनी कमर पे लपेटी हुई साडी को दूर की और कोंडॊम वाला हाथ नीचे की ओर सरकाया और फिर तुरंत थोडी देर बाद साडी से अपने दोनो हाथो को साफ किया । ये देख के मालती फिर से बोली मै पूरे अठठाइस दिन तक नियमित रूप से गोली लेती हूँ । इसलिए मेरी खातिर कोंडॊम रहेने दो और उसे निकाल दो प्लीज । गोली वाली बात सून के जगदीशभाई बोले ये तो और भी अच्छी बात है मेरी जान । तो तो आज डबल प्रोटेक्शन हो जाएगा और इस वजह से मजा भी दोगुना हो जाएगा । ऐसा बोलते हुए और कोंडॊम को वैसे ही रखते हुए प्रो. जगदीश सोफे पे लेटी हुई मालती के ऊपर फटाक से लपटे । प्रो. जगदीश के बदन के स्पर्श से मालती ने अपनी आंखें बंध कर दी और वहा पडी साडी प्रो. जगदीश के बदन पे लपेट दी और उसे अपनी बाहों में जकड लिया। आखिर दोनो के शरीर ने अपना अपना धर्म निभाया ।फिर कुछ देर बाद मालती सोफे पे और प्रो. जगदीश सोफे के पास नीचे , दोनो पसीने से लोथपोथ होकर पडे हुए थे । दोनो के बदन पे सिर्फ साडी का आवरण था । फिर कुछ देर ऐसे ही पडे रहेने के बाद दोनो ने अपने अपने कपडे पहेन लिए । बाद मे प्रो. जगदीश ने सोफे के पास गाँठ मारके रखे हुए कोंडॊम को उठाके अपनी जेब मे रख दीया । ये देख के मालती बोली लाओ मैं डस्टबीन में डाल देती हूँ । प्रो. जगदीश ने कहा रहेने दो , कोई बात नही । मैं यहा से बाहर जाते वक्त इसे सही जगह पे फेंक दूँगा । यहा डस्टबिन मे यदी कोई साफसफाई वाला देख लेगा तो खामखा उसका मुँह खुला का खुला रहे जाएगा । ऐसा बोलके जगदीशभाई वहा से हँसते हुए निकल गए । जगदीशभाई के जाने के बाद मालती थोडी देर बाद फिर से अपने रीडिंग रुम मे गई । लेकिन वहा जाके टेबल पे देख के वो चौंक गई । क्यू की वहा से वो ताम्रपत्र गायब हो चुके थे । उसने तुरंत ये बात फोन करके जगदीशभाई को बताई । जब मालती का फोन आया तब जगदिशभाई अपनी कार लेके घर जाने के लिए निकल चुके थे ।मोबाईल फोन की घंटी बजी तभी उन्होंने अपनी कार रोड की साइड पे रोक दी और फोन उठाया । फोन पे मालती की बात सून के वो भी चौंक गए । और बोले ऐसा कैसे हो सकता है ? उस वक्त सिर्फ हम दोनो ही थे वहा । तो फिर अपने आप ताम्रपत्र कहा जा सकते है ? फिर उसने मालती से पूछा तुमने ठीक से देखा है ना वहा पे ? मालती परेशान होके बोली हा सर मैने सब जगह अच्छी तरह से देख लिया है पर ताम्रपत्र यहा पे कही भी नही है । फिर जगदीशभाई मन ही मन कुछ सोच के बोले ठीक है तुम चिंता मत करो मैं ईश्वर से ईस बारे मे बात करता हूँ । फिर जगदीशभाई ने मालती का कोल एंड करके अपने दोस्त प्रो. इश्वरभाई को फोन लगाया । ईश्वरभाई ने फोन उठाया तभी जगदिशभाई ने उसे ताम्रपत्र गुम हो जाने के बारे में बताया । ये बात सुन के ईश्वरभाई गुस्सा होकर बोले आप लोग इतने लापरवाह कैसे हो सकते हो जगदीश ? तुम्हे पता भी है की तुमने क्या खोया है ? फिर ईश्वरभाई ने अपने गुस्से को कंट्रोल किया और बोले आइ एम सोरी जगदीश । मुजे तुमसे ईस तरह बात नही करनी चाहिए । पर मैं क्या करू ? ताम्रपत्र खो जाने का मुजे दुख नहि है । पर मुजे चिंता ईस बात की है की यदी वो गलत हाथो मे लग गए तो बहोत बड़ा अनर्थ हो सकता है । तभी जगदीशभाई उसे अश्वाशन देते हुए बोले तू चिंता मत कर दोस्त मैं तुजसे वादा करता हूँ की मैं वो ताम्रपत्र बहोत जल्द ही सही सलामत तुज तक वापस पहोचाउंगा । फिर तू आराम से उसमे छुपी हुई संकेतो की गुत्थी सुलजाना । ठीक है । तभी ईश्वरभाई ने बताया की ऐसी कोई चिंता की बात नही है क्यूकी मैने पहेले से ही अपने पर्सनल केमेरे से सभी ताम्रपत्रो की अलग अलग ऐंगल से बहोत सारी तसवीरे खींच के रखी है । लेकिन फिर भी जैसे भी हो सके उतनी जल्दी वो ताम्रपत्र वापिस पाने की कोशिश करना । जगदीशभाई बोले तु चिंता मत कर मैं जल्द से जल्द उसे ढ़ूंढ़ लूंगा । फिर इश्वरभाई ने चिंतित स्वर मे जगदीशभाई से कहा यदी हो सके तो तु ईस वक्त मेरे घर पे आजा तुजसे कुछ जरूरी बात करनी है । ईश्वरभाई की चिंताग्रस्त आवाज सुन के जगदिशभाई बोले सब कुछ ठीक तो है ना ईशु ? इश्वरभाई बोले तु घर पे आजा फिर बात करते है । जगदीशभाई बोले ठीक है मैं अभी आता हु । और फिर दोनो ने फोन रख दिए ।फिर जगदीशभाई ने अपनी कार को मोड के ईश्वरभाई के घर की ओर दौडा दी ।