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पहले आप नही पहले मैं

जागरूकता के लिए खुद से पहल हो !

घर की व्यवस्था हमारी होती है और चॅूंकी हम वहॉं रहते हैं इसलिए उसकी साज सम्हाल में हम कोताही नही बरतते । किन्तु, ज्योंहि घर से बाहर हम कदम रखते है हमारी निगाह दूसरों की ओर उठ जाती है । हमारी नजरों में बाहर की सारी व्यवस्था के लिए ; साफ - सफाई के लिए सरकारी प्रक्रिया जिम्मेदार हो जाती है । सड़क हो, चौराहा हो, बाहर की नाली हो, किसी सार्वजनिक स्थान में होने वाला उत्सव हो, मेला हो, भोग भंडारा हो, भजन, जगराता हो, इन सबमें बस हमे वहॉं का मजा लेना आता है और बेतरतीबी से खाने-पीने का सामान,प्लास्टिक की बोतले और थैलियॉं फैलाना आता है । हम चाहे जैसे उनका इस्तेमाल कर दूसरों के जिम्मे उसकी सफाई छोड़ कर चले जाते हैं ।

यदि इन सबमें हम थोड़ी सी मेहनत करें, अपना कचरा डस्टबीन में डालें,या उसे एक किसी कचरे की गाड़ी में डाल दें तो उस जगह में कई कई दिनों तक जब तक उसकी सफाई के लिए सरकारी अमला ना आए उस गंदगी को देखने से बच सकेंगे और कोसते नही रहेंगे सिस्टम को । हम उन जगहों पर खुद अराजक और अनुशासनहीन रहते हैं किन्तु , सारा सिस्टम हमे भृष्ट और हरामखोर लगता है। हमारी नजरों में छोटा काम होता है और बड़ा काम होता है । हम इस मान्यता के घोर विरोधी हैं कि कोई भी काम छोटा या बड़ा नही होता । काम काम होता है और उसे समय से सचेत रहकर निपटा लेने में ही सार्वजनिक व्यवस्था सबके लिए उत्तम बनी रह सकती है । जब तक हम इस धारणा के साथ चलेंगे हर जगह हमे गंदगी और अव्यवस्था ही मिलेगी ।

इसे यदि सुंदर,सुव्यवस्थित ढंग से होता हुआ यदि हम देखना चाहते हैं तो ख्ुद को पहल करना होगा ; खुद को उठना होगा । हम खुद पहल करें फिर स्वमेव सबमें जागरूकता आ जाएगी । और ये प्रयोग आज का नही है इस प्रयोग के सबसे बड़े उदाहरण गॉंधी जी रहे हैं । बड़े से बड़ा राजनीतिक आंदोलन हो या अपने आश्रम का पाखाना साफ करना उनके लिए दोनो महत्वपूर्ण थे । उनकी नजर में हर काम महत्वपूर्ण था और वे पहल स्वयं करते थे । उनकी खुद पहले उठकर आगे बढ़ने की कोशिश का नतीजा था कि उनके पीछे भीड़ का समुद्र चलता था ।
भारत के गॉंव की परिकल्पना में स्वच्छता को उन्होने प्रमुख स्थान पर रखा था और इसी को वे बड़ी सेवा मानते थे । आज क्या गॉंव, क्या शहर सब ओर गंदगी और प्रदूषण का साम्राज्य है । रोगों की गिरफत में आकर हम फिर से गुलाम हो रहे हैं । क्या आज स्वस्थ तन,स्वस्थ मन के साथ कोई जी रहा है ? क्या आस-पास का वातावरण धुल धुएॅं और शोर - शराबे से मुक्त है ? क्या नालियॉं बदबूदार पानी और कचरे से मुक्त है ? हमारी लापरवाही इस हद तक है कि हमने सभी नालियों का बहाव तालाबों और नदियों की ओर कर दिया है, जहॉं वे संगम करके उन्हे बद से बदतर कर रही हैं । कुंभ स्नान कर हम पवित्र होना चाहते है किन्तु पावन करने वाली नदी को साफ-सुथरा रखने में हमारी अपनी कोशिश क्या होती है ? हमारा फैलाया गया कचरा ; हमारी लापरवाहियों के कारण हो रही गंदगी के कारण प्रकृति के इन सुंदर और पावन स्थलों का दम घुट रहा है। और जिस दिन इनका अस्तित्व खत्म हो जाएगा हमे मोक्ष मिलने वाला नही । क्या गंदगी से भरे,बदबूदार, यहॉं- वहॉं कचरे के ढेर से भरी प्रदूषित जमीन देकर जाएंगे हम कल के भारत को ? ये हमारा सबसे बड़ा पाप होगा ।

अजय अवस्थी