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चिंटु - 28

चिंटू 28

बेला सुमति और चिंटू के पास चली जाती है। उसे देख इवान भी उसके पीछे चला जाता है।
चिंटू को देख इवान पूछता है- चिंटू भाई तुम कब आए यहां? तुम तो अपने अड्डे पर थे न?
चिंटू- अपना कौनसा अड्डा है बे?
इवान- अरे! मेरा मतलब, अपने टेंट से था।
चिंटू- हां, तो ऐसा बोल न। कहां मुझे डाकू बना ने पर तुले हो।
इवान- अगर हमे यहां से जाने को नहीं मिला कभी तो फिर हमे यही बिज़नेस करना पड़ेगाना।
चिंटू थोड़े गुस्से से- ये बिज़नेस है? क्या कुछ भी बोले जा रहा है? मुझे आईएएस अफसर बनना है ना कि डाकू? इडियट...
सुमति बीच में ही बोल पड़ती है- तुम दोनों ये बकवास बंद करो न plz।
चिंटू- बकवास ये गधा कर रहा है, तुम उसको बोलो।
सुमति- इवान plz चुप रहो तुम। तुझे यहां अपना घर बसाना है तो बसा ले। हमे यहां से निकलना है। (वह बेला से कहती है) पता नहीं बेला, कब तुम्हारे भाई को छोड़ेंगे और कब हम वापस जा सकेंगे? मम्मी पापा की हालत बुरी हो गई होगी।
इवान- अबतक तो पुनिश भी आ गया होगा।
बेला- ये पुनिश कौन है?
इवान- सौम्या का मंगेतर।
बेला अचरज से सुमति और चिंटू को देखती है और सुमति से पूछती है- तुम्हारी मंगनी हो गई है?
सुमति- नहीं, बाकी है। अभी तो सिर्फ बात पक्की हुई है।
बेला- पर तुमने कभी बताया नहीं, तुम्हारी मंगनी हो गई है। मेरा मतलब बात किसी और से पक्की हो गई है। (ये बोलते वक्त बेला की नजरे चिंटू पर थी)
सुमति- कभी ऐसी बात निकली ही नहीं तो कैसे बताऊं?
बेला- और अब? वापस जाकर क्या कहेंगे?
इवान- क्या कहेंगे नहीं बेला। तुमने गलत बोला। क्या करेंगे? ऐसा शायद तुम बोलना चाहती थी।

बेला इवान को कुछ बताती नहीं है पर वह चिंटू के सामने देखे जा रही थी। और चिंटू मानो उसे तस्सली दे रहा हो ऐसे पलके ज़पकाकर जताता है कि 'मै हुं ना' ।

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रात को रमा देवी और दिग्विजय डाकू बैठे हुए थे। रमादेवी दिग्विजय से पूछती है- इन लोगो को कब तक यहां पर रखना है?
दिग्विजय- जब तक हमारा बेटा वापस नहीं आ जाता।
रमादेवी- मै ये कहना चाहती हूं कि इनके मा बाप चिंता कर रहे होंगे। हम तो यहां उन्हे अच्छे से रखते है पर उनके मां बाप को तो यही लगेगा न कि उनके बच्चो पर हम सितम उठाते होगे।
दिग्विजय- हां, तो हमे भी तो अपने बेटे की चिंता है। वे लोग मेरे बेटे को सौंप दें और अपने बच्चो को ले जाए।

बातचीत के दौरान मोहन वहां पर आ जाता है।
रमादेवी दिग्विजय से कहती है- वैसे मुझे एक और बात करनी थी।
दिग्विजय- क्या?
रमादेवी- बेला के बारे में।
मोहन भी बीच में बोल पड़ता है- मुझे भी बेला बहन के बारे में बात करनी है।
रमादेवी उसे टोक देती है- पहले मुझे बात करने दे बाद में तुम बतिया लेना। हां, तो बेला के बापू मुझे कहना था कि हम जिस लड़को को यहां पकड़ लाए है उसमे से एक लड़का मुझे बेला के लिए पसंद है।
मोहन- मै भी यही कहने आया था। वो जो थोड़ा सा मोटा दिखता है न वह लड़का हमारी बहन को पसंद करता है।
रमादेवी- कौन इवान? मै तो वो चिंटू की बात कर रही थी।
मोहन- उसका टांका तो उस छोकरी से भिड़ा हुआ है।
दिग्विजय- तुम्हे कैसे पता?
मोहन- क्या सरदार! प्यार किसी से छुपता है भला? और एक बात है।
रमादेवी- वो क्या भला?
मोहन- बेला बहन भी उस इवान को पसंद करती है। मैंने उनकी आंखो में उस लड़के के लिए प्यार देखा है। पर दोनों एक दूसरे से कहते नहीं।
दिग्विजय- अभी जुम्मे जुम्मे चार दिन हुए उन्हे यहां आए और ये सब चलने लगा? कहां है बेला? बुलाओ उसे..
रामादेवी- अभी रात हो गई है कल सुबह बात कर लेना। पर एक बात मै आप से कहना चाहती हुं। वो लड़का भी बुरा नहीं है। बेला की उम्र शादी की हो गई है अब। आज नहीं तो कल उसके हाथ पीले करने ही पड़ेंगे। और बताइए जरा, एक डाकू की बेटी से कोई शादी करेगा भला?

दिग्विजय को ये बात मन में लग जाती है। वह सोचने लगता है रामादेवी की बात सच है। शायद कोई मिल जाएगा तो वह मेरे डर से ही बेला से शादी करेगा पर फिर मेरी बेटी को खुश रख पाएगा? और इस लड़के का भी क्या पता शहर में जाकर मेरी बेटी को अच्छे से रखेगा या नहीं? उसके घरवाले एक डाकू की बेटी को अपनाएंगे? रातभर वह सोचते ही रहे की क्या करना है?

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रात को बारिश की बूंदाबूंदी हो रही थी पर वह सुबह चार बजे तक बंद हो गई। दिग्विजय ने बाहर आकर देखा तो आसमान साफ था। वह उठकर मोहन के पास जाता है और सब को उठकर जगह बदलने की सूचना दे देता है।
मोहन जाकर सबको उठा देता है। सब सामान समेटने लगते है। इवान इतनी सुबह सुबह उठने के कारण थोड़ा चिड सा जाता है और बोलता है- क्या यार! इतनी सुबह सुबह उठा दिया। अब क्या हुआ?
उसके साथ खड़े हीरा ने बताया इस जगह को छोड़ना है। अपना मुंह बंद करो और यहां से बाहर निकालो। इस तम्बू को समेटना है।
इवान और चिंटू बाहर आते है। बाहर सुमति भी बेला और रामादेवी के साथ खड़ी थी अपने कपड़े लिए। वे सब फिर दिग्विजय के साथ आगे चलने लगे। अभी अंधेरा होने के कारण मिट्टी में कहीं कहीं फिसलते जाते थे। कुछ लोग हाथ में लालटेन लेकर साथ में चलते थे पर उसका उजाला भी कितना होगा? आखिरकार एक जगह उन्हें मिल ही गई रुकने के लिए। सब वहीं सफाई करने और बाकी काम में जुट गए।

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सुबह दिग्विजय के टेंट के सामने थोड़ी खाली जगह थी वहां पर इवान, सुमति, चिंटू और बेला खड़े थे। बाकी सब डाकुओं की टोली कुछ दूर उन सब के इर्द गिर्द खड़े थे। सामने दिग्विजय, रामादेवी के साथ मोहन और हीरा खड़े थे। इवान बेला के कान में पूछता है- हमे क्यों बुलाया है यहां? कहीं टपकाने का इरादा तो नहीं है न?
बेला- मुझे नहीं पता, चुपचाप खड़े रहो।
बेला अपने बापू से पूछती है- क्या बात है बापू, आपने हमे क्यों बुलाया है?
दिग्विजय- बताता हुं। (वह सुमति और चिंटू की तरफ देखकर कहते है) मुझे पता चला है तुम दोनों एक दूसरे से प्यार करते हो?
चिंटू बिना जिजक के तुरंत हा में जवाब देता है।
दिग्विजय- और शादी भी करना चाहते हो या बस ऐसे ही?
चिंटू- जरूर शादी करना चाहते है। पर आप ये सब क्यों पूछ रहे है?
दिग्विजय- तो ये शादी अब नहीं हो पाएगी?
चिंटू और सुमति एक साथ चौककर पूछते है- क्यों?
दिग्विजय- क्यों की तुम्हारी शादी मेरी बेटी बेला से होगी।
वहां खड़े सब लोग यह सुनकर अवाक रह गए। सबसे बड़ा सदमा लगा तो वो था इवान।
इवान- क्या?😲 च..च.. चिंटू के सा..थ..?
दिग्विजय- हा वहीं कहां मैंने। पर तुम क्यों इतना हकला रहे हो? सुमति बेटा, तुम क्या कहती हो इस बारे में?
सुमति- म.. मै? मै क्या कहुं?
सुमति चिंटू की तरफ गुस्से से देखती है। तो चिंटू अपने कंधे उचकता हुआ मानो कह रहा हो ' मैंने क्या किया?'
बेला भी असहज हो जाती है यह सुनकर। चिंटू तो सुमति के साथ है, ये बाबा क्या बोल रहे है? मुझे तो इवान पसंद है। कैसे कहूं बाबा को? वह रामादेवी के सामने देखती है। रामादेवी उसे ही देख रही थी। पर उन्होंने अपने चेहरे पर कोई हावभाव प्रगट नहीं किए।

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पुनिश इंस्पेक्टर राजीव के साथ आज फिर से निकल पड़ा है सुमति को ढूंढने। स्नेहा, राहुल और इवान के पापा होटल पर ही पुनिश का इंतज़ार करते है। शायद कोई अच्छी खबर लेकर आ जाए। पिया और शारदा बार बार वहा आने की जिद कर रहे थे पर स्नेहा और राहुल उन्हें मना करते हुए तसल्ली देते रहते थे।
सुबह जल्दी जंगल के पास पहुंचते ही पुनिश इंस्पेक्टर राजीव से पूछता है- इस जगह हम कई बार आ चुके है, क्या हम कोई दूसरी जगह से शुरुआत नहीं कर सकते इन बीहड़ों में जाने के लिए?
इंस्पेक्टर राजीव- इस बार हमारे सिवा आज हेलीकॉप्टर से भी इन लोगो की तलाश होगी। तुम फिकर न करो, आज वे मिल ही जाएंगे।
पुनिश- मै भी यही चाहता हुं। पर इस मौसम के कारण क्या हेलीकॉप्टर उड़ान भर पाएंगे। मुझे लगता है अभी बारिश आने ही वाली है। कमबख्त ये मौसम क्यों इतना बदल गया है। ठंड के बजाय पानी ही बरस रहा है आसमान से।
इंस्पेक्टर राजीव (हसते हुए)- एक ने तो उड़ान भर भी ली है जनाब।
पुनिश- ओह! ग्रेट। पर हम अब यहां किसका इंतजार कर रहे है?
इंस्पेक्टर राजीव- स्निफर डॉग्स आ रहे है आज साथ में।
पुनिश- पर इतने बड़े कीचड़ भरे जंगल में वे चल पाएंगे।
इंस्पेक्टर राजीव- हा, ट्रेइंड है सारे। आगे भगवान की मर्जी। आज तो उन्हे ढूंढ़ना ही है मौसम ने साथ दिया तो।
पुनिश- बस अब बारिश न हो। अगर ये बारिश न होती तो मै कबका अपने प्यार से मिल गया होता और उस डाकू की बेंड बजा देता।
इंस्पेक्टर राजीव- ऐसा ही होगा दोस्त। बस आज अच्छी खबर मिल जाए।

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आज दिग्विजय की होशियारी काम कर गई थी। उसे पता था बारिश कम होगी तो पुलिसवाले हेलीकॉप्टर जरूर उड़ाएंगे इन बच्चो को ढूंढने। इतने सालो का तजुर्बा आज काम आ गया था। उसने सुबह सुबह भोर फटने से पहले सबको उठाने को कहा दिया और अपना सारा सामान गीच जंगल की ओर ले गए थे। यह सही निर्णय साबित होनेवाला था। और यहां पेड़ो की गीचता के कारण उन्हें कोई देख भी नहीं पाएगा। ऊपर से टेंट का रंग भी हरा था जो पेड़ो और झाड़ियों के साथ मिल जाता था। अब नदी किनारा थोड़ा दूर हो गया था तो सुबह की क्रिया पूरी करने थोड़ा दूर जाना पड़ेगा। यह सोच इवान थोड़ा घबराया हुआ था। वह सुमति से कहता है यार ये लोग तो नदी से दूर ले आए हमे।
सुमति- तो उसमे क्या? पता है कितनी ठंड लगती थी।
इवान- अरे यार! सुबह उठते ही मुझे प्रेशर आ जाता है। कहीं नदी के पास जाते जाते ही मेरा आगे पीछे का निकल न पड़े। और ठंड तो यहां भी लगती है। उसकी बात सुनकर सब हसने लगते है।
चिंटू उसे कहता है- सुबह जल्दी उठ जाना। देर तक सोए रहोगे तो प्रेशर जल्दी ही आएगा।😆
इवान- अब तो यही करना पड़ेगा। (पास में खड़े हीरा से) वैसे हीरा भाई साहब पानी का स्टोरेज तो करेंगे ही हम। एक बर्तन मुझे भी दे रखना इमरजेंसी के लिए। मै उसमे पानी रखूंगा अपने लिए।
सुमति बोलती है- अब तेरी यह बकवास बंद करेगा?
इवान- तुझे यह बकवास लगती है? कितना इंपॉर्टेंट टॉपिक है यह और तुझे बकवास लगती है?
सुमति- क्या सुबह सुबह यह सब सुना रहा है? खाना नहीं उतरेगा अब गले से।😡
इवान- हा तो तू अपना खाना मुझे दे देना। वैसे भी मै बहुत कमजोर हो गया हूं यहां आकर।
चिंटू- कमजोर...?? अबे भैसा बन गया है तु। खा खाकर पड़े रहता है मगर की तरह एक जगह। कभी अपनी इस कमसिन काया को यहां वहां टहला भी लिया कर।
बेला और बाकी सब उन सबकी बातें सुनकर हसना रोक नहीं पा रही थे।
इस तरफ चिंटू परेशान था। आखिर कबतक यहां रुकना पड़ेगा। यह दिग्विजय हमें जंगल के और भीतर ही भीतर ले जा रहा है। ना जाने ये पुलिस अबतक क्या कर रही है? अबतक तो उन्हें आ जाना चाहिए था। सुमति चिंटू को सोच में डूबा देख आंखो के इशारे से पूछती है- क्या हुआ? पर चिंटू कोई जवाब न देकर तैयार किए टेंट में चला जाता है। बाकी लोग टेंट के ऊपर पेड़ो से तोड़ी बड़ी टहनियों को सही से रख रहे थे ताकि बारिश और हेलीकॉप्टर दोनों से बचे रहे। टेंट में बेज़ के लिए वे लकड़ियां साथ में ही रखते थे। आग को से एक कौने में लोहे के एक बर्तन में जलाते थे। वहां लकड़ियां नहीं रखी जाती थी। वरना पूरा टेंट जलने का खतरा रहता। दिन में तो टेंट में जलाई आग नहीं दिखेगी पर रात को आकाश साफ रहा और हेलीकॉप्टर निकाला तो जलाई हुई आग तुरंत दिख जाएंगी।

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इधर जैसे ही पहले हेलीकॉप्टर ने उड़ान भरी मौसम फिर से अपना रूप दिखाने को तैयार हो गया था। बिजलियां कड़कने की आवाजे आना शुरू हो गई थी। पुनिश राजीव से कहता है- अभी तो हम ज्यादा आगे बढ़ भी ना पाए और बारिश के आसार शुरू हो गए है। आज कुछ भी ही जाए, मै नहीं रुकनेवाला।
इंस्पेक्टर राजीव- हमें जल्दी कदम बढ़ाने चाहिए। क्या पता ज्यादा बारिश ना भी हो।
राजीव अपनी टीम के साथ जल्दी कदम बढ़ाने लगता है। उन्हें हेलीकॉप्टर की आवाज सुनाई देती है। पुनिश मन में खुश होता है के आज तो नतीजा मिलेगा ही। पर धीरे धीरे बिजली ज्यादा कड़कने लगती है। पर हेलीकॉप्टर अब भी सुमति और उसके फ्रेंड्स की तलाश कर रहा है। हेलीकॉप्टर के कैप्टन ने यही गलती कर दी। जब उड़ान भरी तब अच्छे मौसम का आसार दिख रहा था। उड़ान भरने के दस मिनट बाद अचानक से तेज हवाएं चलने लगी थी और बिजलियां भी कड़कने लगी थी। फिर न चाहते हुए भी कैप्टन को हेलीकॉप्टर नीचे लना पड़ा था। पुनिश गुस्से से तिलमिला उठा था और दिग्विजय के चेहरे पे मुस्कान थिरक रही थी। आखिर था तो एक अनुभवी डाकू ही।

क्रमशः