Hu to Dhingli, Nani Dhingli - 1 books and stories free download online pdf in Hindi

हूँ तो ढिंगली, नानी ढिंगली - 1

हूँ तो ढिंगली, नानी ढिंगली

(1)

शुभम अपार्टमेंट्स के कम्पाउण्ड में हमेशा कोई ना कोई रहता है और कुछ नहीं तो ऊँघता सा चौकीदार ही अपने केबिन में बैठा बाहर झांकता रहता है. उस दिन तो बिल्डिंग में भीमा शाह की बेटी की शादी थी. सुबह ही सबकी कारें बाहर पार्क करवा कर टेंट लगाकर, कुर्सियां लगाकर, मंडप बना दिया गया था. कोने वाली मेज़ पर वर व वधू पक्ष के एक एक रिश्तेदार अपना कागज व पेन लेकर चांदला [शादी की भेंट के रुपये या गिफ़्टस ] लेने के लिए बैठे थे, उधर मंडप में शादी की रस्मे चल रही थी. लोग आते यदि वर पक्ष के होते तो उनकी तरफ से बिठाये व्यक्ति को अपना चांदला या प्रेज़ेन्ट्स देकर अपना नाम नोट करवाते और वधू पक्ष वाले दूसरे व्यक्ति को, यदि गिफ़्टस लाये हैं तो वे जिस पक्ष के है मेज़ पर बैठे उसी पक्ष के व्यक्ति को थमा देते. इसके बाद ही वे भीमाभाई व उनकी पत्‍‌नी व वर वधू से मिलकर खाना खाने चले जाते.

दिवांग भाई ने ऑफ़िस से आकर स्कूटर बाहर पार्क कर दिया था व सीधे अपना चांदला नोट करवाकर वर वधु को आशीर्वाद देकर गरबा के गोल घेरे में ढिंगली को ढूंढ़ने लगा -----गोले घेरे में घूमती ढिंगली को देखकर एक क्षण के लिये सन्न रह गया, वह् पीले चनिया चोली व नीली चुन्नी में, बालों में गजरा लगाए कितनी बड़ी लग रही थी ----ज़रूर हेतल उसे तैयार करके स्कूल गई होगी. ढिंगली की नजर जैसे ही उस पर पड़ी उसने हाथ हिलाया,. उसने भी गोल घूमते हुए अपने हाथ एक तरफ़ कर ताली मारते हुए सिर हिला दिया. पीले लहंगे में वह बहुत प्यारी लग रही थी. चनिया चोली या भारी भरकम साड़ियों में गहनों से सजी धजी महिलायें व कुछ पुरुष बीच में लचक लचक कर गरबा कर रहे थे, `

`तारा बिन शाम मने एकलड़ू लागे, रास रमवाने वेलु आवाजे. "

गुजराती शादी हो और गरबा ना हो, ये हो ही नहीं सकता. दिवांग मंडप के पास खड़े वर वधू पर चावल फेंकते भीमा भाई के गले लगा, "कौंग्रेचुलेशंस !आज तो आप पगड़ी में बहुत फब रहे हैं. "

"थैंक यु. "

"भाभी क्या छे ?"

"ऊपर कुछ लेवा गई छे. "

` "सारु. "

“हेतल बेन केम नथी आवी ?"

"स्कूल मा इंस्पेक्शन छे. "

" एम ? भोजन सारु रीति करजो. "

"केम नथी. " दिवांग की आँखों में हवन कुंड का धुआँ भर गया था, आँखों को रूमाल से पोंछते ढिंगली के पास आ गए, "चल खाना खा ले फिर मै थोड़ा घर पर आराम कर ऑफ़िस जाऊँगा. "

"पप्पा अभी नहीं क्योंकि गरबा खत्म कर सब सनेड़ॊ करने वाले हैं. उसके बाद मै खाना खाऊँगी. "

सूप व स्टार्टर लेने के बाद वे अपनी प्लेट लगाकर गरबा के गोल घेरे के पास खड़े हो गया. सी डी से गाती गुफ़ा में गूँजती सी एक मोटी आदिवासी आवाज़ में सनेड़ॊ शुरू हो गया था, " सनेड़ॊ ------- सनेड़ॊ -- लाल. लाल सनेड़ॊ ".

वह आवाज़ कुछ गाते हुए संवाद बोलती तो सब नीचे उकड़ूँ बैठे रहते, जैसे ही मदभरा संगीत शुरू होता तो जो सबसे पहले उठकर नया एक्शन करता, सब खड़े होकर मज़े ले ले वैसा ही एक्शन कर गोल घूमने लगते. दिवांग भाई को हंसी आ रही थी, जब वे छोटे थे तो गामड़ा में बूढ़ी औरतें व उनकी दादी गरबा समाप्ति पर ये किया करती थी --उन्हें कितना गवांरू लगता था `सनेड़ॊ”, अब वापिस गुजरात में छ सात वर्ष से नई पीढ़ी में लोकप्रिय हो रहा है, नव रात्रि के नौ दिन का गरबा इससे समाप्त होता है. इन लोगों का उत्साह व तेज़ी देखते बनती है. कभी हाथ को चोंच सा निकाल कर मोर की तरह गर्दन आगे मटकाते चलते, कभी तीन ताली मारते, कभी डमरु जैसा बजाते चलते है. बस जो इनका पहले खड़ा होने वाला लीडर एक्शन कर दे.

जाड़ों की शादी का यही मज़ा है खूब जमकर उधियो [बहुत से भाजी की बनी गुजराती सब्ज़ी ] फाफड़ा, जलेबी खाओ. गर्म गर्म मीठी कड़ी भात खाओ, दिवांग न्रत्य देखता खाना खाता सोचता जा रहा था, ढिंगली कैसी हँसती है जब वह उसे बताता है कि तीस पैंतीस वर्ष पहले शादी में नीचे पट्टी बिछाकर पत्तल पर रिंगन बटाटा [बैंगन आलू ] व वाल का शाक व ढेर सा चावल परोस दिया जाता था व मिठाई के नाम पर बेसन का मोहन थाल ---बस हो गया शादी का खाना --- कुछ रईस घरानों में ही दो चार पूरी परोसी जाती थी ----------वो तो भला हो हिन्दी वालों के यहाँ बसने का ---लोग छोले, पनीर यहाँ तक की पूड़िया खिलाना भी सीख गए है,

खाना खाकर दिवांग अपने फ़्लेट में आकर पलंग पर आराम करने लगा था. कब उसकी आँख लग गई, पता ही नहीं चला. डोर बेल की आवाज़ से उसकी नीँद खुली, जबरदस्ती आँखें खोल कर कलाई पर बंधी घड़ी देखी तो चिहुक कर उठ बैठा, "ओ! तीन बज गए हैं. "

द्वार पर ढिंगली ही थी. वह् अन्दर आ गई थी, उसने दरवाज़े के पास अपनी चप्पल्स उतारी. अचानक उसे कुछ याद आया उसने वापिस चप्पल्स पहन कर कहा, "पप्पा ! मेरी चुन्नी बरखा के घर रह गई है. " `

`तो बाद में ले आना, मुझे ऑफ़िस जाना है. तू ने उतारी ही क्यों थी ? `

"खाना खाते खाते भारी लग रही थी. मैं अभी गई और अभी आई. "कहती वह तेज़ चाल से चली गई थी. उसे हंसी आ गई थी कि बित्ते भर की ढिंगली और कैसे सम्भाले ये बड़ी ड्रेस, ये नीली चुन्नी. उसने वॉशबेसिन में मुँह पर पानी डालकर अपनी सुस्ती धोई, नैपकिन से चेहरा पोंछा व बाल काद्कर, जूते पहनकर बेटी का इंतज़ार करने लगा. पंद्रह मिनट हो गए थे उसका कोई पता नहीं था, वह लापरवाह भी नहीं थी क्योंकि उसके माता पिता दोनों ही नौकरीशुदा थे. वह् गुस्से में बड़़बड़ाता छठी मंज़िल से दूसरी मंज़िल वाले भीमा भाई के फ़्लेट में आ गया. दरवाजे पर तोरण लगा था, घर में पकवानों की गंध फैली हुई थी. ढिंगली की सहेली बरखा भी पूजा की थाली लिए वहीं दिखाई दे गई. उसने व्यग्रता से पूछा, " ढिंगली अपना दुपट्टा लेकर कहाँ गई है ? "

"वो तो लेने ही नहीं आई, मै आपको दे देती हूँ, कहीं गर्दी [भीड़ [ में खो ना जाए. ` वह उनका उत्तर सुने बिना अन्दर चली गई और दुपट्टा लाकर उनके हाथ में रख दिया.

"ये लड़की बहुत केयरलैस होती जा रही है. "वह उसे नीचे ढूंढ़ने चल दिया था. नीचे देर से आने वाले कुछ लोग खाना खा रहे थे. वर वधू फूलों की मालों से लदे बुजुर्गों के पैर छू रहे थे. कुछ टेंट वाले कुर्सी मेज़ उठाने में लगे थे. बच्चे गेदे की मालाओ को तोड़ उसे एक दूसरे के ऊपर मार कर मस्ती कर रहे थे, ढिंगली कहीं दिखाई नहीं दे रही थी, इन बच्चों को भी कुछ पता नहीं था. उन्होंने गेट के पास खड़े वॉचमेन से पूछा. , "ढिंगली को कहीं जाते देखा है ?"

"नहीं तो. "

दिवांग का पारा चढ़ता जा रहा था, वह लेट हो रहा था. यदि फ़्लेट की डुप्लीकेट चाबी ढिंगली के पास होती तो वह् ऑफ़िस चला भी जाता. उसने पीछॆ वाले गेट के वॉच मैंन से पूछा, गेट से निकल कर थोड़ी दूर् के चक्की वाले से पूछा, वह बोला, "दोपहर के बाद आपकी बिल्डिंग से कोई इस रास्ते से नहीं जाता. "

दिवांग भाई लिफ़्ट से एक और बार जाकर अपना फ़्लेट देख आए शायद वह वहाँ पहुंच गई हो, ताला देखकर वह् उनका इंतज़ार कर रही हो. लेकिन वह वहाँ भी नहीं थी. एक बार और दूसरे माले उतरकर बरखा से फिर पूछ लिया., फिर नीचे उतरकर शादी की बची हुई भीड़ में देख लिया वापिस गेट से बाहर जाकर एक कतार में बनी दुकानों पर पूछताछ की. एक दुकानदार बोला, " मैंने पीले सूट में एक लड़की को ऑटो में जाते देखा था. "

"मेरी बेटी तो चनिया [लहगा ]पहने थी. वह तो दस ग्यारह वर्ष की है. "

"साब ! मै तो ग्राहक को शक्कर तौल रहा था, उसकी उमर नहीं बता सकता `

दिवांग ने शक़ दूर करने के लिये एक एक करके ढिंगली की तीनों फ्रेंड्स को फोन कर लिए वह् कहीं नहीं थी. वह् हैरान गेट से अन्दर आ रहा था कि शादी में खाना खाकर अपने ज्वेलरी शो रूम जा रहे भाविक भाई ने अपनी कार रोक ली, "दिवांग भाई सू थयू ?मै आपको बार बार ये नीली चुन्नी लिए इधर उधर भागते कब से देख रहा हूँ. "

"ढिंगली कहीं नहीं दिखाई दे रही. "

"अरे ! चिन्ता क्यों करते हैं किसी के फ़्लेट में गप्पें मारने बैठ गई होगी. "

` `बरखा के अलावा वह किसी कै पास नहीं जाती. उससे मैंने पूछ लिया है. "

भाविक भाई ने अपनी कार एक तरफ़ पार्क कर दी और उसके साथ ढिंगली को हर मंजिल के फ़्लेट में, छत पर यहाँ तक कि पानी की टंकी में भी झांक कर देख लिया, वह कहीं नहीं थी. दिवांग ने हेतल को थरथराते हुए हाथों से मोबाइल पर खबर कर दी कि एक घंटे से ढिंगली कहीं नहीं मिल रही है. हेतल स्कूल से भागी चली आई उसने भी उसकी सहेलियों के यहाँ फोन किए, बिल्डिंग के कुछ लोग एक एक फ़्लेट खुलवा कर देखने लगे, कुछ उसे आस पास के बाज़ार में ढूंढ़ने में लग गए. नीचे लगी भीड़ में बरखा रो रही थी, " ढिंगली का दुपट्टा बार बार खाने में गिर रहा था इसलिए मैंने ही उससे कहा था इसे मेरे घर रख दे. "भीमा भाई की बड़ी बहू यानि उसकी माँ उसे समझा रही थी, "मत रो, तू ने सही सलाह दी थी, वह मिल जायेगी. ".

"है तो किसी ढिंगली के उरखान [परिचित ] वाले मानस का काम. "बिन्दु मासी साड़ी से आँखें पोंछती कहे जा रही थी. यही बात सबके ही मन में संदेह कर रही थी.

छ ; बजे तक सबने निराश होकर दिवांग को राय दी कि अब पुलिस में रिपोर्ट कर दो. दिवांग भाई के साथ भाविक भाई व अपार्टमेंट की सोसायटी के प्रेसीडेंट अश्निन भाई ने पुलिस में जाकर एफ. आई. आर. लिखवा दी.

पुलिस ने तुरंत आकर एक एक फ़्लेट, छत छान मारी. पुलिस को शक़ था कि कोई अन्दर का आदमी मिला हुआ है. वह् एक एक से बयान लेने लगी, नए वोचमेन व पुराने रमेश रबारी वॉचमेन के पीछॆ तो वह हाथ धोकर पड़ गई. वह पहले यहाँ के छत के टीन शेड में अपनी औरत के साथ दस वर्ष से रहता था शादी में शामिल होने यहाँ आया हुआ था. पन्द्रह दिन पहले ही वे दोनों अपने एक कमरे वाले मकान में रहने गए थे. उन दोनों के कोई बच्चा नहीं था इसलिए इन्सपेक्टर सवालों की झड़ी लगा रहा था. उसकी पत्‍‌नी कुन्ती बैन तो रो पड़ी थी, "शाब !मै दस बरस इदर रही हूँ,

, यदि बच्चा चोर होती तो क्या पहले कोई बच्चा चुराकर अपने गामड़ा नहीं भाग जाती ?. "

हेतल का अपने फ़्लेट में औरतों के बीच बैठे हुए दिल काँपा जा रहा था ढिंगली सीढ़ियों से उतरी होगी या लिफ़्ट से गई होगी क्योंकि इन बिल्डिंग्स के चार पाँच साल तक के बच्चों का सारी सीदिया उतरना चढ़ना एक खेल भर है. ---वह् सीढ़ियों से उतरी होगी तो तब किसी ने उसे फ़्लेट के अन्दर खींच लिया व मौका देखते ही पार कर दिया ---लेकिन कैसे ?------ या कोई लिफ़्ट में पहले से ही उसकी ताक मे होगा किसी बहाने से उसे साथ ले गया हो ---------- छठी मंज़िल व दूसरी मंज़िल के बीच दूरी है ही कितनी ? इस बीच ऎसा क्या भयानक हुआ कि वह ऎसे गायब हो गई है जैसे कहीं थी ही नहीं -----. -या किसी ने उससे कहा कि उसकी कोई सहेली गेट पर खड़ी है ----वह् बाहर गई और किसी गाड़ी में डाल ली गई लेकिन वहां वॉचमेन तो रहता है ---लेकिन वह भी तो शादी में खाना खाने अन्दर आया होगा ---- शादी के कारण लोग आते जाते रहे थे ----- वह बेहोशी की हालत में गद्दों के बीच लपेटकर या किसी और सामान में छिपाकर बाहर कर दी हो --- -- लेकिन रणछोड़ भाई शादीवाला को तो लोग शादी के इंतजाम का कॉन्ट्रेक्ट देकर निश्चिंत हो जाते हैं ----बरसों से उनकी साख है --उनके आदमियो पर कैसे शक़ किया जाये ? ----- या किसी ने शादी के बाद जाते उनके सामान का फायदा उठा लिया हो ------- कोई ना कोई वाहन आता जाता रहा था --------किस पर शक़ किया जा सकता है ? -------हे भगवान ! क्या हुआ होगा ?-----हेतल को लग रहा था कि उसका सिर फटा जा रहा है. हेतल ही नहीं आस पास के इमारतों के लोगो में शरीर में भी एक डरावनी सरसराहट होती रही थी.

बिन्दु मासी की लाई चाय या खाना कुछ भी तो हेतल के गले से नहीं उतर रहा था. शादी का घर बेरौबनाक हो गया था. बिल्डिंग के कुछ ना कुछ लोग इनके पास ही बैठे रहे थे, उन लोगों ने रात दस बजे इन्हें अकेला छोड़ा था. तीन बरसों में पहली बार हुआ था कि दिवांग ने हेतल को भरपूर अपने सीने में जकड़ा था और ज़ोर से रो पड़ा था. दोनों रात भर एक दूसरे में समाये सिसकते रहे थे.

सुबह के सारे अख़बार ढिंगली के किडनैप व फ़ोटो से भरे हुए थे -------पहले पृष्ठ पर यही बड़ा सा शीर्षक था -"शहर के बच्चे कहाँ गायब हो रहे हैं ? प्रशासन क्यों सो रहा है ?` दूसरे दिन ही पुलिस स्निफ़र्स डॉग्स लेकर आ गई. सिपाही ढिंगली का स्कूल बैग, उसका कबर्ड बेदर्दी से खोलकर देख रहे थे. उसके कम्पास बोक्सेज़, उसकी मालाओ व बूँदों के बॉक्स व बैग्स खोलकर देखे जा रहे थे ---है तो वह् दस ग्यारह बारह की लेकिन इस ज़माने का क्या ठिकाना इश्क वाला लव के चक्कर में न फंस गई हो. एक सिपाही को एक हरे, पीले व लाल फ्रेंडशिप बैंड में एक तह किया कागज़ दिखई दिया, वह् मन ही मन खुशी से उछल पड़ा-एक धाँसू सबूत हाथ में लग गया है. तभी उसके सीनियर ने वह कागज़ उसके हाथ में से लेकर व्यग्रता से खोलकर पदा, उस पर लिखा था, " टु माई डियर बार्बी डॉल `. वे दोनो ही झेंप गए.

दिवांग भाई स्निफ़र्स डॉग को उसका टॉप सुंघाते हुए रो पड़े, उस पर चॉकलेट का निशान लम्बा बहा हुआ था, उसमें से अभी भी कोको की हल्की गंध आरही थी लेकिन वह नहीं थी. वे डॉग्स भी गेट तक जाकर भ्रमित से वापिस कम्पाउण्ड में घूमकर उनके फ़्लेट तक आ जाते. , फिर गेट की तरफ चल देते. , कहीं कोई सुराग नहीं मिल रहा था. शुभम्‌ अपार्टमेंट की बिन्दु मासी का दम बैठा जा रहा था घबराहट में पास की कलानिधि के गार्डन में अपनी सहेली निमकी बेन के साथ बेंच पर आकर बैठ गई थी, "मेरे गले से खाना नहीं उतर रहा. "

***