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महत्वाकांक्षा - 2

महत्वाकांक्षा

टी शशिरंजन

(2)

इस बीच हमारी मुलाकात रोज होने लगी । हम दोनों के मुलाकात के लिए इंडिया गेट सबसे अच्छा स्थान बन गया था । कभी कभी वहां कार्यालय के कुछ अन्य लोग भी हमारे साथ आ जाते थे । लेकिन दो पेड़ों के बीच स्थित पत्थर हमारा स्थान था; जहां मैं और प्रियंका कार्यालय के बाद अक्सर साथ साथ बैठते थे और यह बैठक उसी की पहल पर होती थी । हम एक दूसरे के बड़े अच्छे दोस्त बन गए थे । दोस्ती के अलावा हमारे बीच कोई रिश्ता नहीं दिखता था चाहे दोनों तरफ दिल में कुछ भी हो। घनिष्ठता बहुत अधिक थी । शायद यह प्यार था, लेकिन इसकी जानकारी मुझे तो बिल्कुल नहीं थी ।

इस बीच आफिस में बने मेरे दोस्त पीयूष उसे लेकर मुझ पर टीका टिप्पणी भी करने लगे थे । मैं उनकी बातों पर ध्यान नहीं देता ।

बाद में निकटता ऐसी हो गयी कि उसने मेरे उपर हुक्म चलाना शुरू कर दिया । लेकिन मुझे उसका डांटना और कोई बात कहना खराब नहीं लगता था । मुझे ये चीजें अच्छी लगने लगी थी । अगर काम में कोई गलती हो जाती तो वह आकर मुझे समझाती कि ठीक से काम किया करो । कभी उसको दिक्कत आती तो वह भी अपनी बात मुझसे ही करती । यहां तक कि एक बार उसने मुझे सिगरेट पीते और पान मसाला खाते देखा । मैं एक अन्य सहयोगी प्रशांत के साथ पान मसाला खा रहा था और पीयूष के साथ संसद मार्ग पर सिगरेट का कश लगाते हुए घूम रहा था । वह सामने से मेरे ही पास आ रही थी और मुझे सिगरेट पीते देख कर लौट गयी ।

उसने पूरे दिन आफिस में मुझसे बातचीत नहीं की । कल होकर वह खाना भी खाने अकेले चली गयी थी । जब मैने उससे इस बारे में पूछा तो उसने कहा कि मुझसे वादा करो कि जीवन में कभी सिगरेट नहीं पीओगे और मैने हां कर दिया था। मैं आज भी सिगरेट नहीं पीता हूं, कहते हुए पंकज ने एक जोर की सांस भरी ।

इतने में किसी ने केबिन के बाहर दस्तक दी । वह टिकट निरीक्षक था । टिकट की जांच कराने के बाद मैने पंकज की ओर देखा । उनकी आंखों में आंसू थे । वह खिड़की की तरफ देख रहे थे । चांदनी रात में हवा को चीरती हुई ट्रेन तेजी से भागी जा रही थी । अंदर से बाहर का दृश्य बड़ा मनोरम लग रहा था । चांदनी रात में वीरान जगहों पर छोटी छोटी पहाड़ी और जंगली पौधे ऐसे प्रतीत हो रहे थे मानो खेतों में कोई बैठा है । मैने कहा बाहर का दृश्य अच्छा लग रहा है ।

पंकज ने मेरी ओर देखा और मुस्करा कर कहा – “किसी को अपनी ओर आकर्षित कर लेने की जो क्षमता आपमें है वह मैने किसी और में नहीं देखा ।“ उनकी आखें डबडबाई हुई थी । मैने उन्हें पानी का बोतल दिया और पूछा फिर क्या हुआ । पानी पीने के बाद पंकज ने बताना शुरू किया-

उसकी बातों से यह झलकने लगा था कि वह बहुत महात्वाकांक्षी है और सामाजिक दायित्व, संस्कृति, सभ्यता से उसका कोई सरोकार नहीं है । एक दिन इंडिया गेट पर बैठे बैठे हमने सेंट्रल पार्क जाने का मन बनाया वहां कैलाश खेर का कार्यक्रम था । जल्दी ही हम सेंट्रल पार्क में थे । वहां जबतक हम पहुंचे तबतक कार्यक्रम समाप्त हो चूका था, हमने वहां रुकने का मान बनाया और हम वहां बातचीत करने लगे ।

उसने बताया, “मैं कल इस्तीफा देने जा रही हूं ।“

क्यों, मैंने पूछा ।

मुझे दूसरी नौकरी मिल गयी है ।

कहां

रेडियो में ।

दिल्ली में या कहीं बाहर ।

दिल्ली से बाहर, और यहां से अच्छी सैलरी है । लगभग तीनगुनी । मैने कहा कि सैलरी के पीछे मत भागो । दिल्ली में जितने अवसर हैं उतने अवसर कहीं और नहीं है । उसने कहा- ये तो है लेकिन आजकल सैलरी के बगैर कुछ नहीं होता है ।

हालांकि, प्रियंका मेरे साथ बातचीत बड़े सामान्य तरीके से करती थी । उसने कहा – लड़कियों को हमेशा अपना जीवन साथी चुनने के लिए लोगों को आजमाते रहना चाहिए । मैने इसका विरोध करते हुए कहा कि यह उन लोगों के लिए गलत होगा जिन्हें आप आजमा कर छोड़ देंगी, और क्या पता कि जिसे आप पसंद करें वह भी आपको आपकी ही तरह आजमा रहा हो । ऐसे भी वाराणसी और काशी के ब्राहमण समाज में इसे सही नहीं माना जाता है ।

उसने कहा - मैं और आप एक ऐसे ब्राह्मण परिवार से आते हैं जहां सामाजिक व्यवस्था तथा जातिगत दायित्व का स्थान सबसे उपर है । पर इसके लिए मेरे जीवन में कोई मायने नहीं हैं क्योंकि मैं एक ऐसे लड़के से प्यार करती हूं जो न तो हमारी जाति का है और न ही हमारी संस्कृति का । मैं उससे शादी करना चाहती हूं लेकिन मेरे घर वाले राजी नहीं है ।

उसकी बात सुन कर एक पल के लिए मैं बेचैन हो उठा । मेरे मन में किस प्रकार का कोलाहल शुरू हो गया था यह बताने के लिए मेरे पास शब्द नहीं है क्योंकि उसके ऐसा कहने के अगले ही पल मुझे महसूस हुआ मैं भी उससे मोहब्बत करने लगा था, बेपनाह मोहब्बत । अगले ही पल ख्याल आया कि यह मुझे भी आजमा ही रही थी। जब उससे बातचीत होती थी या उसके साथ बैठे रहने के दौरान मुझे कभी ऐसा नहीं लगा कि लेकिन सेन्ट्रल पार्क में जब उसने ऐसा कहा तो मैं बेचैन हो उठा । एक बार तो दिल में आया कि उसे कहूं कि मैं उससे बहुत प्यार करता हूं लेकिन उसकी आजमाने वाली बात के कारण हिम्मत नहीं जुटा पाया, या मैंने उसे यह प्रतीत नहीं होने दिया कि मेरे मान में उसके लिए कोई आकर्षण भी है।

कल होकर वह आफिस नहीं आयी । चाह कर भी उसे फोन नहीं कर पाया । मैं बेचैन हो गया । मैने आफिस में पूछा तो पता चला कि उसकी तबीयत खराब हो गयी है इसलिए वह नहीं आयी है । तबीयत ख़राब जानकर मैने फोन किया तो उसका मोबाइल बंद बता रहा था । उस दिन मेरा काम में मन नहीं लगा । आफिस में कुछ खाली खाली सा महसूस होने लगा था, कुछ कमी लग रही थी, ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो किसी कुछ छीन लिया है । अचानक उसका फोन आया कि वह इंडिया गेट पर मेरा इंतजार करेगी । मैं उसके बताये नियत समय पर वहां पहुंच गया । उस दिन वह उस जगह पर नहीं बैठी थी जहां हम रोज बैठते थे ।

मैने पूछा आज वहां क्यों नहीं बैठी । उसने कहा कि क्या यह जरूरी है कि रोज वहीं बैठा जाए, जीवन में परिवर्तन आवश्यक है और एक ही जगह पर और एक ही पोजिशन में रहने से शारीर में जकड़न हो जाती है ।

मैने आश्चर्य करते हुए कहा कि अंदाज तो अरस्तु और सुकरात को भी पीछे छोड़ने वाला है, फिर पूछा क्यों क्या हो गया । उसने कहा कुछ नहीं मैं बस समझ नहीं पा रही हूं कि क्या करूं । मैं उस लडके से शादी करना चाहती हूं । वह इंजीनियर है और उसका वेतन भी अच्छा है । मैने पूछा कि प्यार करने वाला है कि नहीं । उसने कहा वह मेरी हर बात मानता है । मैं जैसे कहती हूं वह वैसे ही करता है ।

क्रमशः

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