Kaun Dilon Ki Jaane - 23 books and stories free download online pdf in Hindi

कौन दिलों की जाने! - 23

कौन दिलों की जाने!

तेईस

जैसे नदी का प्रवाहमय जल सरस व पवित्र होता है और स्थिर जल में से थोड़े समय पश्चात्‌ ही दुर्गन्ध आने लगती है, ठीक उसी प्रकार यदि दाम्पत्य जीवन की स्थिति स्थिर जल की तरह हो जाये तो सरसता लोप हो जाती है, उसका स्थान ले लेती है नीरसता व उबाऊपन। समीर के मन्द—मन्द झोंकों—सी नोंक—झोंक जीवन को आह्‌लादित करती है। तूफान—रूपी प्रचण्ड उत्ताल तरंगें जीवन को युद्ध—क्षेत्र में परिवर्तित कर देती हैं। पति—पत्नी के स्वभाव की विषमताओं के होते हुए तथा विचारों में मतैक्य न होने पर भी उनके जीवन में समरसता का प्रवाह हो सकता है, यदि वे एक—दूसरे की भावनाओं का सम्मान करने को तैयार हों। दाम्पत्य जीवन को कटुता या विघटन से बचाने के लिये समझौता एक अनिवार्य शर्त है। लेकिन समझौता किस सीमा तक किया जाये, यह निर्भर करता है व्यक्ति विशेष की परिस्थितियों और उसकी व्यक्तिगत अवधारणाओं पर।

ऑफिस में आकर भी रमेश बेचैन रहा। मन में तरह—तरह के परस्पर विरोधी विचार उभरते और मिटते रहे। विचार एकरूप से अनेकरूप धारण कर उसके मस्तिष्क की शिराओं को मथते रहे। वह सोचने लगा, इतने लम्बे वैवाहिक जीवन में छोटी—मोटी नोंक—झोंक को दर—किनार कर दें तो रानी ने कभी किसी बड़ी शिकायत का अवसर नहीं दिया। रानी ने कभी कोई ऐसी बात नहीं की और न कभी ऐसा आभास दिया जिससे मुझे लगा हो कि वह किसी और को चाहती है या कभी उसने किसी और को चाहा था। रानी मेरे सभी मित्रों व रिश्तेदार पुरुषों से सदैव सामाजिक व पारिवारिक मर्यादाओं में रहकर ही व्यवहार करती रही है, कभी कोई अनुचित बात नहीं हुई, वरन्‌ सभी सगे—सम्बन्धी व मेरे मित्राा उसके शालीन व स्नेहिल व्यवहार के प्रशंसक व कायल रहे हैं। रानी—आलोक के मिलन से पहले तक दाम्पत्य—जीवन सुखमय ही रहा, सब कुछ ठीक—ठाक ही चल रहा था अब तक। यह आलोक जाने कहाँ से अचानक हमारे सुखमय जीवन में उल्कापात की तरह आ गिरा कि सब कुछ तहस—नहस कर दिया, आलोक—रूपी बवंडर में जीवन की समस्त सुख—शान्ति धूलि—धूसरित हो गई है। दूसरे ही क्षण उसके मन में विचार उठे कि जब से विवाह हुआ है, अपने बिज़नेस की व्यस्तताओं की वजह से मैं रानी को बहुत कम समय दे पाया हूँ। मैं चाहे अनेक देशों में हो आया हूँ, लेकिन रानी को एक नेपाल को छोड़कर और कहीं भी लेकर नहीं गया। विदेशों की तो बात ही क्या, इण्डिया में भी एक—आध जगह ही हम घूमने के लिये गये हैं। बाहर घूमने को भी छोड़ दूँ और घर पर ही साथ बिताये समय को देखूँ तो भी मैंने रानी को कभी पूरा समय नहीं दिया। सोमवार से शनिवार तक ऑफिस में व्यस्त रहता हूँ। संडे को भी दोपहर से रात होने तक ताश—पार्टी के कारण घर नहीं रह पाता हूँ। फिल्में भी हमने पाँच—दस ही इकट्ठे देखी होंगी। रानी केवल किटी—पार्टियों या अपनी महिला मित्र—मण्डली के संग ही घूम—फिर कर ‘एन्जॉय' करती रही है। ऐसे में यदि उसे अचानक बचपन के दोस्त के रूप में आलोक का साथ मिल गया है और वे इकट्ठे एन्जॉय करते हैं तो मुझे कोई ऐतराज़ नहीं होना चाहिये, खासकर तब जब कि विनय भी बता चुका है कि आलोक बचपन से ही बहुत अच्छे स्वभाव तथा उच्च विचारों का व्यक्ति रहा है। लेकिन रमेश का मन इन विचारों पर अधिक देर तक टिका नहीं रह सका। सन्देह के सर्प ने फिर अपना फन उठाया। विचारों की सूई एकदम से 360 डिग्री घूम कर वहीं आ टिकी, जहाँ से चली थी। मन ने कहा, यदि इनकी दोस्ती जग—ज़ाहिर होती है तो लोगों का मुँह बन्द करना मुश्किल होगा, किस—किस को आलोक के चरित्र का सर्टीफिकेट दिखाता फिरूँगा। आलोक का रानी को इतनी कीमती गिफ्ट देना महज़ दोस्ती के कारण नहीं हो सकता। अतः बेहतरी इसी में है कि आज कम—से—कम वकील की राय तो ले ही लेनी चाहिये। कल रात रानी के सामने भी तो वकील से राय लेने की बात कह चुका हूँ।

इन्हीं विचारों के चलते रमेश ने मिस्टर वी. के. खा एडवोकेट को फोन लगाया। मिस्टर खन्ना सिविल लॉ के जाने—माने वकील हैं और इनसे रमेश का कई वर्षों से परिचय है। फोन मिलने पर पूछा — ‘खन्ना साहब, आप से कुछ सलाह—मशवरा करना है, कब फुर्सत होगी?'

‘रमेश जी, आज तो मैं व्यस्त हूँ। कल सैकिंड सैटरडे है, कोर्ट बन्द रहेगी। ग्यारह बजे के बाद किसी समय भी आ जाना। घर पर ही मिलूँगा।'

शनिवार को रमेश ने ग्यारह बजे के लगभग एडवोकेट खन्ना को फोन किया। एडवोकेट खन्ना ने रमेश को ठीक आधे घंटे बाद आने के लिये कहा। तदानुसार रमेश मिस्टर खन्ना के घर पहुँच गया। एक—दो मिनट औपचारिक बातें हुईं। तब मिस्टर खन्ना ने कहा — ‘रमेश जी, काम की बात पर आओ। बताओ, किस विषय में मेरी सलाह की आवश्यकता पड़ गई?'

रमेश कुछ क्षण सोचता रहा कि बात को कैसे और कहाँ से शुरू करूँ। आखिर बोला — ‘खन्ना साहब, आज मैं नितान्त निजी व व्यक्तिगत विषय में आपकी राय लेने के लिये आया हूँ।'

‘हाँ—हाँ, बोलिये।'

‘दरअसल बात यह है कि बचपन में मेरी पत्नी रानी का परिवार जहाँ रहता था, वहाँ उनके पड़ोस में उसका हमउम्र एक लड़का रहता था। उनमें अच्छी—खासी दोस्ती थी। एक—दूसरे के घर भी आना—जाना था। छः—सात महीने पहले एक विवाह—समारोह में हम गये हुए थे, वहीं वह लड़का यानी व्यक्ति भी आया हुआ था। राम जाने कैसे दोनों ने एक—दूसरे को इतने लम्बे अर्से बाद पहचाना, किन्तु यह तथ्य है कि वे तब से एक—दूसरे को कई बार मिल चुके हैं। मेरी अनुपस्थिति में वह हमारे घर भी आ चुका है। इतना ही नहीं, रानी भी उससे मिलने के लिये पटियाला जा चुकी है। ये तथ्य चाहे मुझे पहले नहीं बताये गये, किन्तु जब रानी से पूछा तो उसने निःसंकोच स्वीकार भी किये। मैंने स्वयं तथा अपने साले के माध्यम से रानी को समझाने की कोशिश की कि वह इस दोस्ती को आगे न बढ़ाये, किन्तु वह कहती है कि उसे इस दोस्ती में कोई बुराई दिखाई नहीं देती तथा वह इसे छोड़ने को तैयार भी नहीं है। हम चाहे परसों तक एक ही बेडरूम ‘शेयर' कर रहे थे, किन्तु मार्च के आखिरी दिनों से हमारे बीच पति—पत्नी वाले सम्बन्ध नहीं रहे हैं। और बीते बुधवार को रानी का जन्मदिन था। मुझे तो मालूम भी नहीं था, लेकिन उसके दोस्त ने उसका जन्मदिन मनाने के लिये उसे जे.डब्लयू. मेरियट में आमन्त्रित किया था। इसका मुझे पता भी नहीं चलता यदि कहीं अगली सुबह नाश्ते के समय मेरी नज़र रानी की अँगुली में पहनी सॉलिटेयर की अँगुठी पर न पड़ती। पूछने पर उसने बताया कि यह उसके दोस्त ने जन्मदिन पर गिफ्ट की है। मेरा मन इस बात को स्वीकार करने को तैयार नहीं कि एक आदमी अन्य आदमी की पत्नी को इतनी कीमती गिफ्ट दे सकता है सिर्फ इसलिये कि वे दोनों बचपन में कभी दोस्त रहे थे। आप की क्या राय है?'

‘रमेश जी, यह बताइये कि वह आदमी मेरा मतलब, मैडम का दोस्त विवाहित है या...'

‘जैसा मुझे बताया गया है, उसकी पत्नी का तीन—चार साल पहले देहान्त हो चुका है। आजकल वह अकेला रहता है, क्योंकि उसके बच्चे विदेश में रहते हैं।'

‘हूँ....। शुरू की आपकी बातों से तो लग रहा था कि आप बेवजह परेशान हैं, लेकिन पूरी बात जानने के बाद मामला जरूर गम्भीर लगता है। आप मैडम को मेरे पास ला सकते हैं? मैं उनसे अकेले में कुछ पूछना चाहता हूँ।'

‘क्यों नहीं, कब लेकर आऊँ?'

‘आज दोपहर बाद या कल सुबह।'

‘ठीक है। कल सुबह इसी वक्त हम आते हैं। खन्ना साहब, वैसे तो मैंने सब कुछ आपको विस्तार से बता दिया है, फिर भी आपसे मेरी विनती है कि आप रानी से पूछ तो चाहे जो मर्जी लेना, किन्तु अपना मत उसके सामने प्रकट मत करना।'

‘मामला निश्चिंत ही नाजुक है और मैं इसे पूरी गम्भीरता से हैंडिल करूँगा। आप निश्चिंत रहें।'

रात को रमेश घर आया। उसने खाना खाया और जब रानी रसोई के काम निबटाकर अपने कमरे में सोने के लिये जा रही थी तो रमेश ने उसे आवाज़़ देकर बुलाया — ‘रानी इधर आओ, तुमसे कुछ बातें करनी हैं।'

रानी बेडरूम में आकर चुपचाप खड़ी हो गई। जिन हालात में से वे गुज़र रहे थे, उनके चलते रानी को रमेश से किसी प्रकार के पारिवारिक अथवा औपचारिक सम्बोधन अथवा व्यवहार की कतई आशा नहीं थी। फिर भी दिल में कहीं हल्की—सी उम्मीद थी कि जब उसे बात करने के लिये बुलाया है तो कम—से—कम बैठने के लिये तो रमेश अवश्य कहेगा, किन्तु जब रमेश ने बैठने के लिये नहीं कहा तो वह स्वयं भी बैठी नहीं, खड़ी रही। रमेश ने खंखारकर गला साफ करते हुए कहा — ‘आज मैं एडवोकेट खन्ना के पास गया था। जिन हालात में हम रह रहे हैं, उनमें बहुत समय तक इकट्ठे रहना मेरे लिये सम्भव नहीं। फिल्मों—कहानियों में ट्रायंगल लव चल सकता है, किन्तु मैं ट्रायंगल का एक कोण बनकर नहीं रह सकता। मेरे लिये तो दो बिन्दुओं को जोड़ने वाली सीधी रेखा का एक बिन्दु बनकर रहना ही जीवन जीने का ध्येय था। इसलिये मैंने खन्ना साहब को सारी स्थिति से अवगत करवा दिया है। दरअसल मैं खन्ना साहब से अपने तलाक के विषय में बात करने गया था।'

एकबारगी तो रानी तलाक की बात सुन कर सन्न रह गई। उसे लगा, मानो सैंकड़ों बिच्छुओं ने एक साथ उसके शरीर में डंक मार दिये हों! उसका मस्तिष्क चकराने लगा। उसे इतना पूर्वाभास तो था कि रमेश वकील के पास उनके वैवाहिक सम्बन्धों में आई दरार सम्बन्धी सलाह—मशवरा करने जाने वाला था, किन्तु उसने कल्पना भी नहीं की थी कि नौबत तलाक तक की भी आ सकती है। कुछ क्षणों तक वह विमूढ़—सी रमेश की ओर ताकती रही। प्रतिक्रिया—स्वरूप उसके मुँह से इतना ही निकला — ‘क्या ऽ ऽ!'

रमेश ने रानी के चेहरे के बदलते भावों की तरफ ध्यान दिये बिना अपनी बात जारी रखते हुए आगे कहा — ‘या तो तुम आलोक के साथ अपनी दोस्ती को भूल जाओ या मेरी ज़िन्दगी से निकल जाओ, क्योंकि मैं नहीं चाहता कि तुम्हारे दोनों हाथों में लड्‌डू रहें, तुम एक साथ दो घोड़ों की सवारी करो। एक छत के नीचे दो अज़नबियों की तरह रहना तथा पल—पल का मानसिक तनाव झेलना मेरे वश की बात नहीं है।'

जब रानी कुछ नहीं बोली तो रमेश ने बात को आगे बढ़ाया — ‘खन्ना साहब अपनी अन्तिम राय देने से पहले तुमसे कुछ पूछना चाहते हैं। कल सुबह ग्यारह बजे उनके पास चलना है, याद रखना।'

रानी ने कुछ देर प्रतीक्षा की कि शायद रमेश ने कुछ और कहना हो, जब कुछ मिनट बीत गये और रमेश ने कुछ नहीं कहा तो वह सोने के लिये अपनेे कमरे की ओर चल दी।

***