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इच्छा - 4

लगभग एक घण्टे पश्चात बाहर का गेट जो कि इतना चौड़ा कि एक ट्रक ,एक कार एकसाथ आराम से अन्दर प्रवेश कर सकते थे खुलने की आवाज आती है इच्छा का ध्यान गेट की तरफ आकर्षित होता है रिशेप्शन से बाहर का नजारा साफ-साफ दिखाई देने की वजह से सिर को थोड़ा सा घुमाकर इच्छा सबकुछ देख पा रही थी . एक लाल रंग की स्विफ़ट गाड़ी अंदर प्रवेश करती है उसी गाड़ी में गेट खोलते हुए एक लगभग सात फुट का गौरवर्ण खूबसूरत नौजवान आँखो को सनग्लासेस से ढके हुये अंदर प्रवेश करता है . उनके अन्दर आने से पहले शिव प्रशाद ट्रे मे पानी लिए एलर्ट हो जाता है ,प्रवेश करते ही रिशेप्शन पर बैठी इच्छा पर सनग्लास उतारते हुए एक नजर डाल अन्दर सबसे पहला केबिन जो बाहर से साफ-साफ नजर आ रहा था प्रवेश कर जाते हैं खैर,एक वही नही अन्दर के सारे केबिन डोर शीशे का होने की वजह से साफ-साफ नजर आते थे. शिव प्रशाद भी उनके पीछे-पीछे पानी लिए पहुँचता है. थोड़ी देर बाद वह बाहर आता है. इच्छा पूंछती है "भैय्या इन्ही से मिलना है मुझे " "नही मैमजी वो बड़े साहब हैं इनके पिता जी ये तो उनके छोटे बेटे हैं तुषारजी " वो कब आयेंगे इच्छा ने पूँछा आ तो जाना चाहिये था मैमजी आज देर लगा रहे है शायद कहीं गये होंगे. तभी बेल बजती है शिव प्रशाद फिर अन्दर जाता है और बाहर गेट से सिक्योरिटी इंचार्ज को साथ लेकर पुनःउसी केबिन मे प्रवेश करता है . थोड़ी देर मे शिव प्रशाद फिर बाहर निकल कर सीढ़ी से ऊपर जाता है और थोड़ी देर मे उसके हाथ मे एक कागज था वह मेरी तरफ हल्की मुस्कुराहट के साथ देखता हुआ उसी केबिन मे प्रवेश कर जाता है . थोड़ी देर बाद वह नौजवान बाहर निकल उसी कार मे बैठ बाहर चला जाता है. खाली कप और ग्लास ट्रे मे लिए शिव प्रशाद भी बाहर आ जाता है मैम जी मिठाई खिलाईये आपकी नौकरी पक्की हो गई आप चाहे आज से ही ज्वाइन कर सकती है. पर , थोड़ी देर बाद सीढियाँ उतरते हुए मैमजी अभी आपको तीन दिन के ट्रायल पर रख्खा गया है शायद जी.एम.एस सी शर्मा जी इच्छा को इस जाब के योग्य नही समझते होंगे या रखना नही चाहते ऐसा शिव प्रशाद की बातो से लग रहा था इच्छा का दिल बैठा जा रहा था इच्छा को समझ नहीं आ रहा था कि वह रूके या जाये इस बार शिव प्रशाद अपने काम मे व्यस्त हो गया अब किससे पूँछे खैर तीन दिन का तो समय दिया ही गया है काम भी इतना मुश्किल नही लगता यह सोच वह घर वापस आ गई . रातभर इच्छा सोचती रही मैं कोई गल्ती नही करूंगी कम्पनी को रखना पड़ेगा मुझे फिर किस्मत को लेकर सशंकित जिसने कभी उसका साथ नही दिया अब एक ही उम्मीद वो थी ईश्वर हजार ठोकरो के बाद भी वह उन्हे कभी नही भूली कभी उलाहना देती ,कभी धन्यवाद कभी बिना वजह भी इस भौतिक जीवन से अलग होकर आध्यात्मिकता मे प्रवेश कर जाती शायद इसी प्रवृत्ति ने इच्छा को अब तक जिन्दा रख रख्खा था. आज इन सबसे अलग इच्छा ने उन्हे हिदायत दे डाली . बिना नींद सुबह कब हुई पता ही न चला पर इच्छा के अन्दर थकान का एक कतरा भी न था. जल्दी काम निपटाकर इच्छा ठीक साढ़े नौ बजे ऑफिस पहुँच जाती है गेट पर एक रजिस्टर में सिक्योरिटी गॉर्ड इच्छा के साइन लेता है अन्दर रिशेप्शन पर पहुँचते ही शिवप्रशाद इच्छा के हाथ मे चाभी का गुच्छा जिसमे कई सारी चाभियाँ लगी थी थमाता हुए कहता है बैठिये मैमजी अपनी सीट पर ये आपकी सीट है . इच्छा सीट पर बैठने से पहले ईश्वर का ध्यान करती है. अकाउण्ट डिपार्टमेन्ट के सारे लोग पहले से ही उपस्थित थे बाकी के बारी -बारी से किन्तु दस मिनट के भीतर सारा स्टाफ आ गया . शिवप्रशाद का पहला काम जितने भी स्टाफ के है उन्हे पानी देना एक ग्लास इच्छा की टेबल पर भी रख गया .लगभग तीस मिनट के बाद ढेर सारा चाय कप ट्रे मे सजाये शुरूआत इच्छा से इसका कारण सबसे पहली इच्छा की ही टेबल थी रखते हुए अन्दर दाखिल हो जाता है. थोड़ी देर मे बाहर आकर इच्छा को चाभियाँ गिनाने लगता है.मैमजी यह चाभी इन्टरकॉम की है, यह स्टेशनरी कबर्ड ,यह आपके कबर्ड की और लेटर हैड ,बिल रजिस्टर सब इसमे रख्खे हैं यहाँ की . इच्छा को अभी कुछ समझ नही आ रहा था . तभी कोरियर वाला आता है . इच्छा रिसीव कर लिफ़ाफा खोल रजिस्टर पर नोट करती है यह सब कार्य उसे शिवप्रशाद समझा रहा था. थोड़ी देर बाद शिव प्रशाद एक चार्ट लेकर आता है जिसमे लगभग डेढ. सौ फोन नं लिखे है मैमजी सबसे जरूरी बात ये हमारी कम्पनी का इन्टरकाम नं है इसे आपको याद करना पड़ेगा काल ट्रांस्फर के लिए जरूरी है.तभी फोन की रिंग बजती है मैमजी उठाईये शिव प्रशाद कहता है . क्रमशः...