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आओ थेरियों - 2

आओ थेरियों

प्रदीप श्रीवास्तव

भाग 2

मैं भी जाने-अनजाने इसका हिस्सा बन गई हूं। मगर दिमाग में यह बात आने के बाद मैं इससे मुक्ति के प्रयास में हूं। मैं सिर्फ़ इतने ही प्रयास में नहीं हूं मनू, मैंने जब से तनुश्री और फिर बाद में अन्य महिलाओं का साहस देखा, जिनकी हिम्मत, पाप के खिलाफ उठ खड़े होने के जज्बे के कारण एक पूर्व संपादक, लेखक, केंद्रीय मंत्री को रास्ते पर ला खड़ा किया तब से मेरे मन में भी बवंडर उठा हुआ है। तनुश्री के बाद जिस तरह से विनता, प्रिया सहित तमाम महिलाएं उठ खड़ी हुईं उसके बाद से मैं तुम्हें सच बताऊं मैं एक दिन भी चैन से सो नहीं पाई हूं।

मनू मेरे दिमाग में, मन में कुछ झनझनाहट तो तभी हुई थी जब साऊथ इंडियन हीरोइन श्री रेड्डी ने अपने यौन शोषण के खिलाफ सड़क पर टॉपलेस होकर प्रदर्शन किया था। लेकिन देखो तब मैं बेचैन नहीं हुई। यह हमारी गुलाम मानसिकता का कितना बड़ा उदाहरण है कि जब इस पर पश्चिमी टैग हैशटैग ‘मी-टू’ लग गया तब हमारा मन बेचैन हो उठा। यानी मेरा दिमाग ‘मी-टू’ की तरफ गया तो मैं भनभना कर उठ बैठी। सच में मनू उसके बाद से ही मैं ना ठीक से खा पा रही हूं, ना सो पा रही हूं, ना ही ठीक से ड्यूटी दे पा रही हूं।

पहले जहां इंस्टाग्राम, व्हाट्सएप पर ही लगी रहती थी। लगता था कि जैसे इसके बिना तो कोई ज़िन्दगी ही नहीं है। लेकिन अब इस आभासी दुनिया में मन नहीं लगता। मेरी नजरों के सामने अब चालीस साल पहले का एक दृश्य बार-बार उपस्थित हो जाता है। वही फूस का छप्पर। डरे सहमे थर-थर कांपते हम पांच छोटे-छोटे बहन-भाई।

गांव के नारकीय दरिंदे प्रधान के हाथ-पैर जोड़-जोड़ कर, पैरों की धूल माथे पर लगा-लगा कर बच्चों के सामने इज्जत तार-तार ना करने की भीख मांगती, गिड़गिड़ाती मां। और अपनी जिद पर अड़ा वह नारकीय कीड़ा प्रधान। हम बच्चे वह हाहाकारी हृदय-विदारक दृश्य देखने को अभिशप्त थे। प्रधान उसके चार और कमीनों ने इतना अत्याचार किया मां पर, कि वह उन हरामियों के जाने के बाद भी बड़ी देर तक बेहोश पड़ी रहीं।

उन कमीनों को शक केवल इतना था कि प्रधानी के चुनाव के समय हमारे मां-बाप ने उसके विरोधी का समर्थन किया था। उन सबके जाने के बाद हम भाई-बहनों ने छप्पर के पिछवाड़े जाकर अपने पिता को खोला। कमीनों ने उनके मुंह में कपड़ा ठूंसकर, हाथ-पैर बांध कर उन्हें घर के पीछे डाल दिया था। हमने मां को ढंका। उनके चेहरे पर पानी की छींटे मार-मार कर उन्हें होश में ले आए।

सवेरा होने पर पिता मां को लेकर गांव से बारह-चौदह कोस दूर पुलिस थाने जाने के लिए निकले, कि दरिंदों के खिलाफ रिपोर्ट लिखाएं। लेकिन चार-पांच कदम ही बढ़े होंगे कि दो पुलिस वाले साइकिल से आ धमके। गंदी-गंदी गालियां देते हुए पिता को मारने लगे।

गांव के कुछ लोग तमाशाई बनकर तमाशा देखते रहे। हम बच्चे रोते-चीखते चिल्लाते रहे। मां हाथ-पैर जोड़ती-गिड़गिड़ाती रहीं। लेकिन वर्दी वाले गुंडों ने उनके पेट पर ऐसी लात मारी कि पहले से ही घायल मां बेहोश होकर गिर गई। पुलिस वाले खूब मारपीट कर पिता को लेकर चले गए। हम गांव वालों से मदद की भीख मांगते रहे। लेकिन प्रधान के आतंक के चलते कोई आगे नहीं आया।

मां की हालत दो दिन के बाद कुछ संभली। जब उनके होश-ओ-हवास लौटे और पिता के वापस न लौटने की बात हम बच्चों से जानी तो कोई रास्ता ना देख पिता की जान की खातिर फिर उसी प्रधान के दरवाजे पर गईं। रोईं, हाथ-पैर जोड़े। मगर कसाई कुत्ते ने गंदी-गंदी गालियां देकर कहा, ‘मैंने तेरे आदमी को बंद कर रखा है क्या? चोरी-चकारी करेगा तो पुलिस छोड़ेगी क्या? जा, वहीं जाकर पता कर।’

मां थाने पहुंची तो पता चला कि पिता को चोरी के आरोप में जेल हो गई है। मां कई दिन दौड़ती-भागती रही। लेकिन कुछ नहीं हुआ। मां, पिता से नहीं मिल पाई। कुछ भी साफ पता नहीं चला कि वो कहां हैं। उल्टे पुलिस वालों की गालियां मिलीं। धमकी मिली कि, ‘जा, घर जा के चुपचाप बैठ नहीं तो तुझे भी वहीं पहुंचा देंगे।’ कुछ भी पता नहीं चला तो निराश होकर मां लौट आईं। घायल मां, हम बच्चे कई दिन तक भूखे-प्यासे तड़पते गांव वालों से मदद मांगते रहे, लेकिन कोई हमारी तरफ देखता भी नहीं था।

हमें देखकर रास्ता बदल देता था। दरवाजे बंद कर लेता था। हार कर एक दिन मां मुंह अंधेरे ही हम-सब बच्चों को लेकर चुपचाप गांव छोड़कर शहर आ गई। हमारे पास तन पर पड़े फटे-पुराने कपड़ों के सिवा सिर्फ़ कुछ बर्तन थे। पिता के एक अंगौछे में थोड़ा सा सत्तू, कुछ चना और बहुत थोड़ा सा गुड़। हम कई दिन भूखे-प्यासे रहे। स्टेशन पर मांग कर खाया। मगर मां ने हिम्मत नहीं हारी।

जल्दी ही एक घर में साफ-सफाई का काम मिल गया। मगर वहां भी मां के साथ-साथ मेरी दो बड़ी बहनों का भी शोषण हुआ। मां वहां से भी हमें लेकर भागी। फिर वह कई बार बच्चों को लेकर इधर-उधर भागती रही। एक दिन एक मंदिर के बाहर हम भूखे-प्यासे खड़े थे। लोगों से प्रसाद लेकर खा रहे थे। उसी से हम अपनी भूख शांत कर रहे थे। तभी एक सज्जन दंपति की नजर हम पर पड़ी। उन्होंने हमसे बातें कीं।

हमारी हालत जानकर अपने यहां शरण दी। उनकेे बड़े से मकान के अहाते में हमें शरण मिली। हम सब यहां भी बहुत डरे हुए थे कि कहीं यहां भी पहले की तरह शोषण ना हो। डरे-सहमें हम सब वहीं अपनी उम्र के हिसाब से उस व्यवसायी के परिवार के लिए काम करते रहे। हमारी मेहनत से खुश होकर दंपत्ति ने हमारी हर तरह से मदद की, बहनों की शादी करा दी। एक भाई और मैं उस दंपति जिन्हें हम काका-काकी कहते थे, के सहयोग से थोड़ा पढ़े-लिखे। आगे बढ़े। मैं किसी तरह नर्स बन गई।

मनू नर्स बनने तक मुझे अच्छी तरह याद है कि मैं किस-किस तरह की स्थितियों से गुजरी। जहां मैं नर्सिंग का कोर्स कर रही थी वहां मेरे भोलेपन, मेरी विपन्न स्थिति का एक इंस्ट्रक्टर और एक सीनियर स्टूडेंट ने खूब बेजा फायदा उठाया। खूब शोषण किया।

पहले दोनों ने मेरी मदद की तो मैं उनकी एहसानमंद हो गई। उसके बाद एक दिन इंस्ट्रक्टर फिर हफ्ता भर भी ना बीता होगा कि सीनियर ने मेरा शोषण शुरू कर दिया। दोनों महिला होकर भी एक महिला का शोषण करती रहीं। लेकिन मैं मां अपने भाई की हालत देखकर चाह कर भी विरोध नहीं कर पाई, क्योंकि मैं अच्छी तरह जानती थी कि विरोध का मतलब है मेरी पढ़ाई बंद।

मैं फिर से भूख, भीख मांगने से बचना चाहती थी, किसी भी हालत में, किसी भी कीमत पर। इंस्ट्रक्टर से तो खैर कुछ महीने बाद ही फुर्सत मिल गई। क्योंकि उसे कोई और अच्छी जॉब मिल गई तो वह छोड़ कर चली गई। लेकिन सीनियर पास आउट होने तक मेरा शोषण करती रही। वह बाद में भी संपर्क रखना चाहती थी लेकिन मैंने दृढ़ता से संपर्क खत्म कर दिया।

मनू यह सब तुम्हें इसलिए बता रही हूं क्योंकि मैं एक बहुत बड़े, बहुत महान काम में तुम्हारी मदद चाहती हूं। तुम्हें भी साथी बनाना चाहती हूं। क्योंकि तुम भी उस पीड़ा से गुजरी हो, जिससे मैं गुजरी हूं। मैं यह काम क्यों कर रही हूं? इसमें तुम्हें क्यों साथ देना चाहिए? इन सब बातों को तुम जान-समझ कर बिना किसी असमंजस के निर्णय ले सको, इसलिए तुम्हें विस्तार से बताना जरूरी है।

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