Prem moksh - 10 books and stories free download online pdf in Hindi

प्रेम मोक्ष - 10

सदियों से दुनिया मे राजगद्दी को लेकर कई युद्ध हुए है।
मनुष्य के भीतर सिंहासन का लगाव खून के सम्बधों पर भी भारी साबित होता है। इतिहास साक्षी है किस प्रकार से राज्याधिकार के लोभ ने भाई को भाई के बेटे को बाप के और बाप को बेटे के विरुद्ध ला खड़ा किया था,
ठीक इसी प्रकार से राजा सूर्य प्रताब सिंह का छोटा पुत्र रणबीर अपने भीतर सिंहासन को पाने की मंशा लिए अपने बड़े भाई के प्रति बेर भाव रखता था।

कुछ वर्षों पूर्व एक विशाल सुंदर समृद्ध राज्य हुआ करता था, जिसपर राजा सूर्य प्रताब सिंह का राज था।
राजा की कुल तीन संताने थी बड़ा पुत्र रणवीर सिंह जो कि एक पुण्यात्मा था,
दूसरी पुत्री विमला देवी और अंतिम पुत्र उतरा आदित्य सिंह जो कि दुष्ट और लोभी था, राजा सूर्या के दिहन्त के बाद गद्दी का अधिकार रणवीर को मिला साथ मे राजनीतिक कारणों से उनका पंद्रह वर्ष की आयु में विवाह भी करा दिया गया, विमला और आदित्य अपने पिता के दिहान्त के समय काफी छोटे थे, इसलिये उनके पालन पोषण का भार उनके बड़े भाई रणवीर पर था, जिसको रणबीर और उसकी पत्नी ने बड़े श्रद्धा और लग्न से निभाया धीरे धीरे समय बीतता गया और राज्य भी फलता फूलता गया। अब तक विमला और उतरा भी विवाह योग्य हो गए थे तो रणवीर ने विमला का विवाह अपने विश्वासी मंत्री के लोते पुत्र से और उतरा का विवाह एक अन्य राज्य की राजकुमारी से करा दिया,

उतरा अपने बड़े भाई की राज गद्दी किसी भी प्रकार से छीन लेना चाहता था मगर अपनी दुष्ट भावनाओ को वो कभी किसी पर प्रकट नही होने देता,
जब उतरा के विवहा को दस वर्ष हुए और उसको दूसरा पुत्र हुआ तो उसके दिमाग मे एक षणयंत्र ने जन्म लिया।
असल मे अबतक रणवीर के विवाह को 20 वर्षो से भी अधिक हो चुके थे और उसको कोई संतान नही हुई थी और उनके राज्य की एक प्रसिद्ध मान्यता के अनुसार कोई भी संतानहीन व्यक्ति राजा नही बन सकता यदि ऐसा व्यक्ति राजा बना तो राज्य का सर्वनाश तय है। बस इसी मान्यता का लाभ उठाते हुए पहले तो उतरा ने चतुराई से अपने गुप्तचरों द्वारा सारे राज्य में इस मान्यता का भरपूर ढिंढोरा पिटवाया फिर कुछ दिनों तक तरह तरह से चुपके से प्रजा की फसलें नष्ट करवा कर ऐसा वातावरण बनाया जैसे ये ईश्वर की ओर से प्रकोप हो,
गांव दिहात के भोले भाले लोग इन चकमो में आ गए और भयभीत हो कर रणवीर को गद्दी से उतार कर उतरा को सौंप दी रणवीर का मन उतरा के प्रति साफ था इसलियें उसको ऐसा करने में कोई आपत्ति नही हुई।
गद्दी जाने के कारण रणवीर प्रजा जनो की सेवा में और भी अधिक लीन हो गया, जिसके कारण लोगो मे उसके गुन गान और भी अधिक हो गए।
उतरा ने सिहांसन तो प्राप्त कर लिया था मगर पूरे राज्य में केवल रणवीर के ही नाम की जय जयकार होती हर ओर उसकी ही चर्चा होती जिससे लगता के गद्दी के ना होने पर भी ये राज्य रणवीर का ही है। उतरा को इस बात से जो चुभन होती उसका क्रोध वो मासूम प्रजा पर उतारता और उनको प्रताड़ित करता, इन सब के बीच उतरा ने अपने बड़े बेटे उदय प्रताब सिंह का विवाह कर दिया, लोगो मे उतरा के अत्याचारो के कारण हा हा कार सा मच गया, तभी एक अदभुत दैवीय चमत्कार हुआ इस बुढ़ापे में रणवीर की पत्नी गर्भवति हो गई जब प्रजा जनो को इस का पता चला तो उनको लगा आखिरकार ईश्वर ने उनके उद्धार के लिए अपना एक दूत भेज ही दिया है। और जिस प्रजा ने भय के कारण रणवीर को गद्दी से उतारा था आज अपार प्रसन्ता से रणवीर को दोबारा गद्दी पर बिठा दिया इन सब को उतरा अपने कलेजे पर पत्थर रख कर देखता रहा और हाथ मलने के सिवा कुछ ना कर सका,
आने वाले नो माह पूरे राज्य में किसी उत्सव की भाँति गुजरे, फिर वो दिन आया जिसका सम्पूर्ण राज्य को बड़ी बेताबी से इंतज़ार था।

हवेली के आंगन में रणवीर बेचेनी से इधर से उधर चलता जा रहा था और उसकी पत्नी एक कक्ष में बच्चा जनने की पीड़ा से पीड़ित हो कर कररहा रही है। उसकी सहायता के लिए एक अनुभवी दाई और कुछ सेविका भी वहाँ पर उपस्थित थी,
थोड़ी देर बाद रणवीर के कानों में अपनी पत्नी की एक दर्दनाक चीख आई फिर सबकुछ शांत हो गया वो शांति एक बड़े तूफान के थमने के बाद कि शांति का भयंकर एहसास करा रही थी उतरा उस कक्ष के पास भाग कर पहुँचा तभी कक्ष से गीली आंखों में सहानभूति और दुख समेटे दाई बाहर आई रणवीर को देख कर वो फुट फुट कर रोने लगी जिससे बिना बोले उसने रणवीर को किसी दुखत घटना का एहसास करा दिया,
इसके बाद रणवीर की नज़र सीधा उसकी पत्नी और नवजात शिशु पर पड़ी जो की जीवित नही थे, रणवीर के लिए ये दुख असहनीय था इसलिए उसका मानसिक संतुलन बिगड़ गया वो अपने मृत बालक को किसी जीवित शिशु की भांति गोद मे उठा कर दुलार करने लगा उससे बाते करने लगा, रणवीर का ये पिता प्रेम देख कर वहां उपस्थित प्रत्येक व्यक्ति रो पड़ा।


लोगो के बोलने पर भी रणवीर अपनी मृत संतान को किसी को ना देता और नाही उसको खिलाना बन्द करता उसकी स्थिति इतनी करुणापूर्ण थी के बडे से बड़े दुश्मन को भी उसपर दया आ जाये , किसी प्रकार से लोग रणवीर को समझा बुझा कर उस बच्चे को ले लेते है।


इस दुखत हादसे को हुए कई दिन बीत चुके थे पर रणवीर अपनी सुधबुध खोए पागलो की तरह खुद को एक कक्ष में लिए बैठा रहता ना कुछ खाता ना ही किसी से बात करता, एक दिन एक सेविका रणवीर का भोजन लेकर उसके पास आई मगर वो इस बार भोजन के साथ एक पत्र भी लाई थी जिसको उसने रणवीर को दे दिया, जिस व्यक्ति को खाने की सुधि ना हो वो भला कोई पत्र कैसे पड़ता परंतु थोड़ी देर बाद हवेली के नोकरों द्वारा रणवीर को पता चला के थोड़ी देर पहले जो सेविका उसके लिए भोजन लाई थी उसने आत्मा हत्या कर ली हैं। इस बात ने रणवीर का सारा ध्यान उस पत्र पर केंद्रित कर दिया और जब रणवीर ने वो पत्र पड़ा तो उसके पैरों तले जमीन खिसक गई ।


उस पत्र में सेविका ने बताया के रणवीर की पत्नी और उसके बच्चे की मृत्यु प्राकृतिक नही थी बल्कि उनकी हत्या हुई थी जिसे धन के लोभ और उस दाई के बहकावे में आकर दाई के साथ हमने अंजाम दिया था किंतु इस पाप का बोझ मेरे जीवन मे असहनीय साबित हुआ और मेरे भीतर ग्लानि फुट पड़ी इसलिये मेने अपने इस पापी जीवन का अंत कर खुद को दंडित करने का निर्णय लिया है। इस अंतिम घड़ी में मेरी ईश्वर से एक ही प्राथना है कि अगले जन्म में मुझे आपके चरणों मे रख कर प्राश्चित का अवसर प्रदान करे।


रणवीर का रक्त खोल उठा उसके भीतर क्रोध अग्नि का सैलाब बहने लगा और वो इसी रूप में उस पिशाचनी दाई के पास पहुँच गया, दाई रणवीर का ये भयंकर रूप देख कर सूखे पत्ते की तरह थर थर कम्पन करने लगीं।

रणवीर ने वो सेविका द्वारा लिखा पत्र निकाल कर दाई के मुँह पर फेका तो दाई ने काँपते हाथो से उसको उठा कर पड़ा, उस पत्र को पड़ कर दाई का खून खुश्क हो गया, उसका दहशत से रंग पीला पड़ गया।

दाई झट से रणवीर के चरणों में जा गिरी और गिड़गिड़ा कर अपने प्राणों की भीख मांगने लगी, रणवीर ने इसका कोई उत्तर नही दिया केवल उससे पूछा के ये सब उसने किसके कहने पर किया था। दाई क्षण भर के लिए बताने में संकोचित होंने लगी तो रणवीर ने एक बार फिर कड़कती आवाज़ में अपना प्रश्न दोहराया तो उसके मुंह से उतरा आदित्य सिंह का नाम निकला,
ये नाम सुनकर रणवीर को दुख तो हुआ पर साथ मे अपार क्रोध भी आया जिस भाई को रणवीर ने संतान की भांति पाला पोसा उसने ही रणवीर की संतान की हत्या कर दी, उसके बाद रणवीर एक ही वार में दाई का सर धड़ से अलग कर, उसको एक कपड़े में लपेट कर हवेली पहुँचा।
हवेली पहुँच कर रणवीर को पता चला के उतरा तेखने में है। तो रणवीर भी वहाँ पहुँच गया,
रणवीर को देख कर उतरा बोला" भगवान का शुक्र है। आप बाहर तो आए आपके स्वास्थ्य को लेकर में काफी चिंतित था वैसे आपके हाथ मे ये क्या है?

राण" तुमने ऐसा क्यों किया ????

उतरा" क्या किया भाई साहब,

इस पर बिना कुछ बोले रणविर अपने हाथ के कपड़े में से दाई का कटा सिर निकाल कर उतरा के कदमो में फेंक देता है। जिसे देख कर उतरा भयभीत हो गया, इसके बाद रणवीर बोला" क्या एक ऐसे शिषु की हत्या करते समय तुम्हारे हाथ नही काँपे जिसने संसार मे जन्म भी ना लिया हो क्या उस औरत पर तुम्हे ज़रा भी दया नही आई जिसने तुम्हे अपनी संतान की तरह ममता और स्नेह दिया था और ये सब किया भी तो किसके लिए केवल सिहांसन के लिय, यदि एक बार तुमने अपनी इच्छा मुझे बताई होती तो सिहासन क्या मैं अपने प्राण भी तुम्हे अर्पित कर देता।

तभी उतरा तेश में आकर बोला" नही चाहिए थी मुझे तुमसे कोई भिक, नही चाहिए थी तुमसे कोई दया, मैं इतना कमजोर नही जो तुम्हारे आगे हाथ फैलाता मैंने जो भी किया अपने बल और बुद्धि से किया और सिद्ध किया के मैं ही सिहांसन के योग्य हूँ।
बचपन से ही मुझे तुम्हारी इस झूटी महानता से चिढ़ थी,
जहाँ जाओ बस तुम्हारी ही प्रसंसा सुन सुन कर थक गया था मैं, और जो कुछ भी मैंने किया उसपर मुझे पशतावा है। ऐसा बोल कर जीवनदान की भीख नही मांगूगा, कियोकि मुझे अपने किये पर कोई अफसोस नही है।
यदि प्रतिशोध में तुम्हारा मेरी हत्या करना उचित है तो प्रतिशोध में मेरे द्वारा की हत्या भी उचित थी।


इसके बाद उतरा चुप हो जाता हैं।फिर रणवीर अपनी तलवार को हवा में उप्पर उठा कर बोला अफसोस है तुम परिवार का सही अर्थ समझ नही सके और जैसे ही रणवीर तलवार को उसपर चलाने जाता है तभी कोई रणवीर के सिर पर जोरदार वार करके उसको बिहोश कर देता है।

थोड़ी देर बाद जब रणवीर की आंख खुली तो वो ख़ुद को दीवार में चुना हुआ पाता है। उसके हाथ पैर और मुँह भी बंद होता है। बस उसके सामने खड़ी नई दीवार में अभी एक ईंट की जगह खाली बची थी जिसे उतरा ने अंतिम समय मे अपनी भड़ास निकालने के लिए छुड़वाया था और उसने बखूबी अपनी बातों का विष रणवीर पर उगला, उसके बाद रणवीर पर अपनी भड़ास निकालने वाली जो थी उसके लिये तो रणवीर सपने में भी नही सोच सकता था, और वो थी रणवीर की सगी बहन विमला देवी , विमला ने ही रणवीर के सिर पर वार कर उसको बिहोश किया था

विमला" अपने जीवन मे मैंने आपके साथ कभी दुर्व्यवहार तक नही किया था फिर भी अपने उस शराबी अय्याशी से मेरा विवाह करा कर मेरा जीवन नरक बना दिया,
हर रात वो मुझे मारता पिटता वेशियो की तरह नोचता खसोटता और मैं हर रात नरक भोगती केवल आपकी वजह से इसलिये मैंने तय कर लिया था के उतरा के साथ मिलकर अपना बदला ले कर रहूंगी।

और इतना बोल कर उतरा और विमला ने वो अंतिम इट भी लगा दी और तेख़ाने से निकल कर उसको ताला लगा दिया।
उस दीवार में बहुत ही शुष्म छेद करवाय हुए थे जिसके कारण रणवीर का दम ना घुटे, और वो अधिक से अधिक कष्ट भोगे लगभग बारह दीन तक अपार भूख और प्यास की पीड़ा भोगने के पश्चात रणवीर मर गया किंतु उसकी आत्मा मरते समय प्रतिशोध की भावना लिए हुए थी इसलिए वो मोक्ष की प्राप्ति ना कर सकी और एक भयंकर प्रेत में परिवर्ती हो कर उस हवेली में मोत का तांडव करने लगी, एक एक कर बड़े ही भयानक और रहस्यमय रूप से उस हवेली के सदस्यों की हत्या होनी शुरू हो गई।
इस हत्या काण्ड में विमला उसका पति उसके दोनों पुत्र उतरा का छोटा पुत्र और उतरा की पत्नी मारे गए साथ मे हवेली के कई सेवक भी दर्दनाक हादसो का शिकार हुए। इन सब को देख कर उतरा का बड़ा पुत्र भयभीत होकर अपनी पत्नी के साथ विदेश भाग गया।
मगर इतने पर भी उतरा ने हार नही मानी और हवेली में महाज्ञानियों द्वारा प्रेत को बंधन में बाँधने के लिए एक महायज्ञ करवाया, लगातार चालीस दिनों तक महायज्ञ करने के बाद जा कर रणवीर सिंह का प्रेत नियंत्रण में आया फिर पंडितो ने उसकेे प्रेत को उसी स्थान पर कैद कर दिया जिस जगह उसको जिंदा चुनवाया गया था और उतरा को चेतावनी भी दी कि यदि अबकी बार ये प्रेत मुक्त हुआ तो इसको पकड़ पाना बेहद कठिन हो जाएगा।