The dowry is a dangerous spark - 4 books and stories free download online pdf in Hindi

दहेज एक विनाशकारी चिंगारी - 4

(समय सुबह के 9:00 बजे वीर चाय बना रहा है, तभी किसी के आने की आहट होती है, तभी वीर बाहर आता है और देखता है कि लक्ष्मी आई हुई है लक्ष्मी को देख कर)

वीर:- अरे लक्ष्मी तुम, क्या बात है? सुबह-सुबह और वह भी अकेले, कोई साथ में नहीं आया क्या बात है, सब ठीक-ठाक तो हैं, कोई प्रॉब्लम तो नहीं है|

लक्ष्मी:- क्यों क्या एक बहन अपने भाई से मिलने नहीं आ सकती? कोई प्रॉब्लम होगी तभी आऊंगी मैं, मन हुआ मिलने का तो चली आई|

वीर:- अरे नहीं, कैसी बात कर रही हो, आओ बैठो में चाय लेकर आता हूं|

(वीर चाय लेकर आता है और दोनों चाय पीते हैं, और नाश्ता करते हैं और इधर-उधर की बातें करते हैं, तो वीर उससे पूछता है रंजीत के बारे में तो लक्ष्मी की आंखों में आंसू आ जाते हैं, तो वीर उसे बताने की जिद करने लगा, तो लक्ष्मी सब कुछ बताती है और रोते हुए कहती है)

लक्ष्मी:- भैया अब आप मुझे वहां मत भेजो, मैं आपके लिए हमेशा से बोझ बनी रही हूं, मुझे मार कर कहीं भी फेंक दो लेकिन बहाँ उन दहेज के लोभी दरिंदों के पास मत भेजो|

(वीर की आंखों में आंसू आ जाते हैं वह लक्ष्मी को शांत कराता है और कहता है)

वीर:- जब तक मैं जिंदा हूं, तेरी हर जरूरत को पूरा करूंगा, और कभी तुझे कोई परेशानी नहीं होने दूंगा, और बहन कभी अपने भाई के लिए बोझ नहीं होती, दोबारा यह बात कभी अपने मन में भी नहीं लाना और कभी सोचना भी मत और कभी बोलना भी मत| (फिर थोड़ी देर शांति रहती है) मैं थोडी देर में आता हूँ, अभी थोड़े काम से जा रहा हूं, तुम आराम करो| (और कह कर बाहर चला जाता है)

(वीर बाग में अकेला खड़ा हुआ है, चेहरे पर उदासी है, और कुछ सोच रहा है, तभी महिमा आती है)

महिमा:- क्या हुआ वीर जी आज आप उदास लग रहे हैं, सब कुछ ठीक-ठाक तो है|

वीर:- अरे यार तुम्हें तो पता है ना, कि मेरी परेशानी की वजह सिर्फ एक ही है, और वो है मेरी इकलौती बहन|

महिमा:- क्या हुआ, कहीं तुम्हारी बहन ने कोई गलत कदम तो नहीं उठा लिया

वीर:- नहीं माही, वो हमारी बहन है, वो ऐसा कभी नहीं करने वाली|

महिमा:- फिर क्या हुआ?

वीर:- आज फिर उसके ससुराल वालों ने मारपीट कर घर से निकाल दिया, 10000 रुपया और रंगीन टीवी लाने को कहा है|

महिमा:- तुम समझाते क्यों नहीं हो उन लोगों को? जाकर बात करो उन लोगों से, कि तुम जो कर सकते थे किया अब आगे नहीं कर सकते|

वीर:- जालिम है बो लोग, कोई फर्क नहीं पड़ता उन लोगों को, चाहे कोई मरे या जिंदा रहे, उन लोगों को सिर्फ पैसों से मतलब है|

महिमा:- तो अब क्या करोगे तुम?

वीर:- करना क्या है? दिन भर लोगों के पास हाथ फैलाता फिरा, लेकिन किसी ने एक भी रुपया नहीं दिया, और भला कोई देगा भी कैसे, अभी बहन की शादी का कर्ज़ भी तो बाकी है| (थोड़ी देर चुप रहने के बाद कहता है) एक छोटा सा फर्क पड़ा है, उसी को किसी साहूकार के यहां गिरवी रखकर कुछ तो इंतजाम करना पड़ेगा, आखिर लक्ष्मी बहन है हमारी|

महिमा:- इससे तो तुम सड़क पर आ जाओगे|

वीर:- जानता हूं, लेकिन वो हमारी छोटी बहन है, उसे तड़पते हुए नहीं देख सकते|

महिमा:- मुझे गर्व होता है, कि मैं उस इंसान से प्यार करती हूँ जो अपनी बहन के लिए कुछ भी करने के लिए तैयार है| और अपने गले से अपना सोने का हार निकाल कर देती है|

वीर:- तुम क्या कर रही हो? मैं यह नहीं ले सकता, वैसे भी मैंने आज तक तुम्हें कुछ दिया नहीं है, सिर्फ लिया ही है| इसलिए मैं यह नहीं कर सकता|

महिमा:- मैं और मेरा सब कुछ, आज भी तुम्हारा है और कल भी, अगर तुम इसे नहीं लोगे, तो मुझे लगेगा कि तुम मुझसे प्यार नहीं करते, प्लीज ले लो इसे, इससे तुम्हारी कुछ तो मदद हो जाएगी और अगर इस हार की वजह से तुम्हारी बहन की उजड़ी हुई जिंदगी वापस बन सकती है तो मैं अपने आपको धन्य समझूंगी|

वीर:- (की आंखों में आंसू होते हैं और कांपते हुए हाथों से हार लेता है) मैं धन्य हो गया तुम जैसे जीवन साथी को पाकर (और महिमा को गले लगा लेता है)

क्रमश:..............