Bechari Idiot - 2 - last part books and stories free download online pdf in Hindi

बेचारी ईडियट... ! - 2 - अंतिम भाग

बेचारी ईडियट... !

ज़किया ज़ुबैरी

(2)

जिम मार्शल छोटे से क़द का लाल टाई लगाए... यह लाल रंग की टाई ही उसकी राजनीतिक पार्टी की प्रतीक थी वरना व्यवहार तो उसका नादिरशाह जैसा था। वो ग़ुस्से में दूसरी सड़क की ओर चल पड़ा। सड़क के बीचों-बीच आइलैंड था... टकराकर गिरते गिरते बचा...... परन्तु रेणुका उसे सँभालने के लिए वहां पहुँच चुकी थी।

संभालना तो सभी चाहते थे पर रेणुका ने जिम मार्शल और दूसरे कार्यकर्ताओं के बीच ऐसी दीवार खींच दी थी की उसको फलांगना संभव नहीं था। कोशिश सभी करते पर रेणुका बीच में आ जाती। एम. पी. से निकटता कौन नहीं चाहता था---शीमा तो सब कुछ करते करते पीछे धकेल दी गई थी।

शीमा पुजारन नहीं कुछ और बनने आई थी। वह असली सोशलिस्ट सोच की थी। इलेक्शन लड़ कर लोकल सरकार में काम के द्वारा लोगों की सहायता करना चाहती थी। पर रेणुका ने तो सब मलियामेट कर दिया था। जब से रेणुका आई थी सारे कामों पर धरना देकर बैठ गयी थी। चिढ़ते तो सभी थे उससे पर जिम मार्शल से डरते भी थे उसका काम करने का मतलब था डांट डपट---बेइज़्ज़ती।

छोटा सा दफ़्तर जो की पार्टी के दबदबे वाले क्षेत्र में ही था। जहाँ अधिकतर वोट इसी पार्टी को मिलते थे। दफ़्तर इतना छोटा था कि चाय बनाने का छोटा सा कोना टॉयलेट के बगल में बनाना पड़ा था। शीमा कभी भी वहां की चाय न पीती उसको घिन आती वहां चाय बनाने में।

रेणुका ने आते ही वह कोना भी सजा दिया और जिम के लिए अलग से चाय का मग और गिलास लाकर रख दिया। किन्तु जिम न तो वहां की चाय पीता और न ही पानी। पानी भी मिनरल वॉटर की बोतल से सीधे मुंह लगा कर ही पी लेता। जब उसको प्यास लगती तो अपने पुराने चमड़े के बैग से जैसा पुराने दिनों के डाकिये लेकर आया करते जिसमें दसियों खाने होते और हर खाने में शायद हर घर की कहानी होती या बादामी रंग के पोस्ट कार्ड।

जिम मार्शल के बैग के हर खाने में शायद रेणुका के लिए डांट, फटकार और गालियाँ होतीं। जब से रेणुका आई थी उसने एक छोटी सी मेज़ और फोल्डिंग कुर्सी लाकर एक कोना जिम के लिए सेट कर दिया था। दूसरों के लिय जगह और तंग हो गयी थी पर इससे क्या उसका भगवान तो कोने में सजा दिया गया था। उसी पर पानी की प्लास्टिक की पारदर्शी हलके से नीले रंग की बोतल भी रख दी थी गहरे नीले रंग का ढक्कन सील लगी होने के कारण ज़रा कठिनाई से खुलता। जिम बोतल उठाता ही कि रेणुका दौड़कर पहुँच जाती और बोतल की सील ख़ुद तोड़ती। सील सख्त होती इसलिए ढक्कन पर इतनी ताक़त लगाती कि हाथ के साथ साथ पूरा शरीर भी ऐंठ जाता। बोतल की सील टूटने की आवाज़ आती... पानी गट गट करता गिलास में गिरता गिलास को एक हाथ में उठाकर दूसरा हाथ भी नीचे लगाकर झुक कर अपने भगवान को समर्पित कर देती।

जिम पेपर पर नज़रें गड़ाए पानी का गिलास ऐसे हाथ मे लेता जैसे बड़ा एहसान कर रहा हो पानी का गिलास पकड़कर। प्यास तो सभी को लगी होती मगर उनके पास प्यास बुझाने वाली रेणुका नहीं होती। जिम पानी पीता तो गट गट की आवाज़ नहीं आती खामोशी से पानी सूत लेता आस पास लोगों को एहसास भी नहीं होता की पानी पी रहा है। ब्रिटेन के वासी हर काम ख़ामोशी से बिना आवाज़ किए कर डालते हैं। भारत में भी तो ख़ामोशी से आ गए थे और लग भग दो सौ साल तक ख़ामोशी ही से अन्दर से खोखला करते रहे फिर भी टिके रहे।

ऐसे ही चाय पानी शराब सब बिना आवाज़ के पी जाते हैं। ग़ुस्सा भी... पर इनका मानना होता है कि 'डोंट गेट एंग्री---गेट ईवेन’ यानि कि ग़ुस्सा कभी ना करो... बस बदला ले लो... कुछ देशों में कुछ लोग चाय को भी प्लेट में डालकर ऐसा सुड़कते हैं कि आस पास सबको पता चल जाता है कि पड़ोस में क्या हो रहा है... ! चुनाव के दिनों में भी ये लोग आवाज़ नहीं निकालते। कहीं न लाउड-स्पीकर होता है और न ही सड़क पर चिल्ला चिल्लाकर भाषण देकर अपना मुद्दा बयान किया जाता हैं। झूठे वादे न करें तो जीत कैसे होगी...! जो जितना बड़ा झूट बोल ले और वो झूट न लगे तो वही 'झूठा सच' होता है और इसी बात पर सत्ता बदल जाती है। रेणुका के लिए झूठ का शब्द जिम ने रिज़र्व कर लिया था हर बात पर 'यू आर लाइंग' कह देता वो हँसते हुए कहती 'नो जिम आई ऍम नॉट'. पर इसी झूठ के सहारे तमाम साथियों को पीछे धक्का दे चुकी थी।

“रेणुका, क्या हम चलने के लिये तैयार हैं ? ”

“यस जिम, हम तैयार हैं। ”

“पोस्टल वोट्स के फॉर्म्स रख लिए...?”

“हां जिम... ”

“क्या काफ़ी लोगों के नामों की लिस्टें रख ली हैं... ?”

“यस जिम... ”

ऑफ़िस में सुनने वाले परेशान होते थे की ये सारे काम रेणुका कैसे पहले ही से कर के रख लेती है... !

वे कहते अगर रेणुका जिम के साथ रह गयी तो अगली बार फिर से जिम जीत जाएगा। रेणुका की भी यही तमन्ना थी की जिम फिर से जीत जाये। पहले तो इसलिए जीत गया था की दूसरी पार्टी का एम. पी. ही नाकारा था दूसरी बार जो भी जिम के विरोध में खड़ा किया गया... टिक ना सका।

जिम मार्शल की जीत रेणुका की जीत होती... कितना ख़ुश होती... केक और मिठाई बाँटती, फूल निछावर करती...

चौथे इलेक्शन की तैयारियाँ ज़ोरों पर थीं। तैयारियाँ तो हमेशा ही ज़ोरों पर होती है मगर इस बार जीतने के मामले में कुछ शंकाएं जताई जा रही थीं... समस्या कुछ गंभीर सी लग रही थी। रेणुका के होते किसकी हिम्मत हो सकती है जो जिम को नीचा दिखा सके।

वह चिंतित थी जब जिम मार्शल पर अधिकाँश काग़ज़ का ग़लत इस्तेमाल करने का आरोप लगाया गया था। सब से बार बार सफाई दे रही थी की जिम तो अपने वासियों को पत्र लिखता है तो इस पर क्यों ये आरोप लगाया जा रहा है। जिम से बढ़कर ईमानदार तो कोई और एम. पी. है ही नहीं। जिम तो समय के मामले में भी कितना सतर्क है। वो अपने काम को जितना समय देता है और कोई मिनिस्टर या एम. पी. नहीं देता।

दूसरे सांसदों पर तो एक और घर बना लेने का भी आरोप लगाया गया है कि उन्होंने यह सूचना सार्वजनिक नहीं की। पर जिम उन लोगों के मुक़ाबले में तो साफ़ सुथरा है। रेणुका जिम के साथ उसके घर नहीं जाती पर उसकी देखभाल घर गए बिना ही इतनी कर देती की उसको घर जाने की आवाश्श्यकता थी ही नहीं। काम से सीधी जिम के आफिस आ जाती। कभी कभी उसका पति मालूम करने आ जाता की वो ठीक ठाक है या हो सकता है उसको रेणुका का यहाँ इतना लम्बा बैठे रहना परेशान करता हो ....रेणुका को क्या परवाह ...एम. पी. के सामने पति जैसी निकृष्ठ चीज़ की भला क्या मजाल ...!

मई के पहले सप्ताह में चुनाव हुए और जिम थोड़े से वोट्स से हार गया। रेणुका मचल गयी की मैं फिर से गिनती करवाऊंगी... ये सम्भव नहीं की जिम हार जाए। जिम मना करता रहा पर वो न मानी। दुबारा गिनती हुई इस बारी मालूम हुआ की वो एक और अधिक वोट से हारा था। रेणुका जोर जोर से रोने लगी बड़बड़ाती भी जाती थी की ये असंभव है ऐसा हो ही नहीं सकता ... जिम हार नहीं सकता। जिम कभी नहीं हार सकता. वह केवल हरा सकता है। उसको जिम ने कन्धे से पकड़ कर समझना चाहा पर उसकी तो हिचकियाँ बंधी हुई थीं।

आज होटल के इतने भरे हुए कमरे में जहां रौशनियों की बारिश हो रही थी... “साइलैण्ट नाइट, होली नाइट / ऑल इज़ काम, ऑल इज़ ब्राइट” जैसा क्रिसमिस गीत मीठे सुरों में हर ओर फैला हुआ था। रेणुका के भीतर क्या तूफ़ान चल रहा था किसी को नहीं मालूम हुआ।

वह भीतर आई। उसकी समझ में नहीं आ रहा था की वह किधर जाए? उसकी वी. आई. पी. वाली सीट पर तो जिम ने किसी और को बैठाया हुआ थ। और दूसरा कोई उसको अपने पास बैठने को आमंत्रित भी नहीं कर रहा था। सभी अनजान थे। वो अपना बड़ा सा काला हैण्ड बैग लटकाए हुए जिसमें वह जिम की एपांइटमेण्ट डायरी, उसके दसियों पेपर, उसके लिये सैण्डविच और फ़ालतू कैनवैसिंग शीट्स भरकर चला करती थी – जो कि इतना बोझ होने के बावजूद भारी नहीं लगता था... आज जैसे उसी ख़ाली बैग के वज़न से उसके कन्धे झुके जा रहे थे। धीरे धीरे चलती हुई बाहर जाने वाले दरवाज़े के पास वाली मेज़ पर अकेली आ कर बैठ गई।

आज रेणुका जी भर कर ज़ोर ज़ोर से रोना चाह रही थी। क्योंकि आज वह तो हार गई थी मगर जिम अपनी जीत का जश्न नए दोस्तों के साथ मना रहा था... भला ऐसे में उसे चुप कौन कराएगा...?

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