Chuninda laghukathaye - 7 books and stories free download online pdf in Hindi

चुनिंदा लघुकथाएँ - 7

लाजपत राय गर्ग

की

चुनिंदा लघुकथाएँ

(7)

सब एक समान

एक बार एक वकील और एक सरदार में बहस हो रही थी। बहस के बीच सरदार ने कहा - ‘वकील साहब, सिक्ख कौम मार्शल कौम है, सुपीरियर कौम है।’

वकील - ‘सरदार जी, यह तो मैं मानता हूँ कि सिक्ख कौम मार्शल कौम है, किन्तु तुम्हारी इस बात से सहमत नहीं हूँ कि सिक्ख सुपीरियर कौम है।’

‘वो क्यों?’

‘अगर तुम्हारी ‘सुपीरियर कौम’ वाली बात मानें तो इसका मतलब होगा कि बाबा नानक की बात गलत है।’

‘वो कैसे?’

‘तुमने बाबा नानक की वाणी तो अवश्य पढ़ी या सुनी होगी! बाबा जी तो कहते हैं, इक नूर ते सब जग उपज्या, कौन भले कौन मंदे।’

सरदार बँगले झाँकने लगा। जुबान पर जैसे ताला लग गया।

*****

असभ्यता

यूनिवर्सिटी में एम.ए. की कक्षा में एक सेक्शन में सौ से अधिक विद्यार्थी थे। लड़के-लड़कियों की संख्या लगभग बराबर। इतने बड़े सेक्शन को सम्भालना हर प्राध्यापक के बस की बात नहीं थी। विभागाध्यक्ष और एक-दो अन्य प्राध्यापकों, जिनकी अपने विषयों में महारथ थी और जिनका रोबीला व्यक्तित्व था, को छोड़कर अन्य प्राध्यापकों के लेक्चर के दौरान विद्यार्थी, लड़कियाँ भी अपवाद नहीं थीं, कुछ-न-कुछ शरारत करते रहते थे। एक दिन मिसेज़ चौधरी ने जैसे ही क्लास-रूम में प्रवेश किया, कुछ शरारती लड़के आपस में किसी बात बहस कर रहे थे। मिसेज़ चौधरी तीस-बतीस साल की सुन्दर व्यक्तित्व की महिला थीं। उन्होंने सभी विद्यार्थियों से चुप रहने की प्रार्थना की और हाज़िरी रजिस्टर खोलकर हाज़िरी लगाने लगीं।

मिसेज़ चौधरी रजिस्टर पर निगाहें टिकाये विद्यार्थियों के रोल नं. बोल रही थीं कि एकाएक कागज का जहाज़ उनके वक्षस्थल के संधिस्थल पर आ लगा। अचम्भित हो उन्होंने निगाहें ऊपर उठाईं। क्लास-रूम में चारों तरफ देखा। हर ओर सन्नाटा। जिस लड़के ने यह हरकत की थी, वह ऐसे बैठा था, जैसे कुछ हुआ ही न हो। जब मैडम किसी पर ऊँगली न रख सकीं तो उन्होंने कहा - ‘आप सभी जिम्मेदार विद्यार्थी हो, ऐसी हरकतें शोभा नहीं देतीं। मैं तुम्हारी बड़ी बहिन समान हूँ, इतना तो तुम्हें ख्याल रखना चाहिये।’

पिछले बेंच पर बैठे तीन-चार विद्यार्थी एक साथ बोल उठे - ‘नो मैम, यू आर नॉट लाइक अवर सिस्टर।’

स्थिति की नाजुकता को भाँपते हुए मैडम ने कहा - ‘ओ.के., ट्रीट मी एज यू लाइक, लेकिन इस तरह की हरकत नहीं।......एक बात और, इस तरह का व्यवहार करने वालों को मैं बद्दुआ तो नहीं दूँगी, लेकिन मुझे शक है कि ऐसे लड़के ज़िन्दगी में कुछ हासिल कर पायेंगे।’

इतना सुनते ही पिछली बेंच पर बैठे तीनों लड़के उठकर क्लास-रूम से बाहर चले गये।

*****

इरादा

प्रीतो, जिसका पति आठ-दस महीने पूर्व सरहद की रक्षा करते हुए शहीद हो गया था, अपने साल-सवा साल के बेटे को गोद में उठाये दुपहर की रोटी लेकर खेत की ओर जा रही थी कि सामने से हरबंस आता दिखाई दिया। जब वह प्रीतो के पास से गुज़रने लगा तो उसे लक्ष्य कर गुनगुनाने लगा - ‘चल चलिये चेत दे मेले, मुंडा तेरा मैं चुक लऊँ।’ उसकी आदत थी कि जब भी वह प्रीतो के पास से गुज़रता था तो कुछ-न-कुछ ज़रूर बुदबुदाता था। पिछले एक-दो बार से लम्बे-चौड़े कद-काठी के मालिक हरबंस को देखकर प्रीतो के मन में भी कुछ-कुछ होने लगा था। हरबंस उसके पास से गुज़र गया तो प्रीतो ने रुककर उसे आवाज़ दी - ‘सरदारा, रुक ज़रा।’

हरबंस ने रुककर पीछे मुड़कर कहा - ‘मुझे कुछ कहा?’

‘सरदारा, दिल्लगियाँ करता है या सचमुच बाँह पकड़ने का इरादा है?’

हरबंस ने ऐसी स्थिति की कल्पना भी नहीं की थी। कुछ पल वह कुछ न कह सका। फिर बोला - ‘इक बारी तूं हाँ करके तो देख।’

‘चल मेरे साथ। खेत पर बापू जी के सामने अपना इरादा रखना।’

अपने जवान पुत्र के शहीद होने के बाद से प्रीतो के सास-ससुर चाहते थे कि उसका पुनर्विवाह कर दें। उन्होंने कई बार उसके माँ-बाप से इस विषय में बातचीत भी की थी, किन्तु प्रीतो के ‘हाँ’ न करने से बात आगे नहीं बढ़ी थी।

प्रीतो के साथ हरबंस को आते देखकर उसके ससुर जगीर सिंह को हैरानी हुई। उसने पुछा - ‘हरबंसिया, अज्ज ऐदर किवें?’

हरबंस ने जगीर सिंह को ‘पैरी पैनां’ कहा और चुप रहा। प्रीतो ने ही बात चलाई - ‘बापू जी, आप मेरे बारे में चिंतित रहते हो कि मेरे सामने पहाड़-सी ज़िन्दगी पड़ी है; मैं कैसे अकेली समय बिताऊँगी? हरबंस सिंह मुझे सहारा देने को तैयार है।’

जगीर सिंह हैरान, किन्तु मन-ही-मन प्रसन्न। उसने हरबंस से पूछा - ‘क्यों हरबंसिया, प्रीतो पुत्तर जो कह रही है, ओह ठीक है?’

‘हाँ ताया जी।’

‘ते तेरा बापू मन्न जाऊ?’

‘ताया जी, आपके कहने के बाद उनके ना मानने का सवाल ही पैदा नहीं होता। वो आपकी बहुत इज्ज़त करते हैं। प्रीतो भरजाई जैसी लड़की को अपनी बहू बना कर उन्हें खुशी ही होगी। फिर भी यदि उन्होंने ना-नुकुर की तो मैं अपनी बात से पीछे हटने वाला नहीं।’

‘जिऊँदा रह वे पुत्तरा, तेरी लम्बी उमर होवे। तेरे वरगे नौजवान ही समाज ते देश नूँ अग्गे लै जाणगे।’

*****

सीनियर सिटीजन

बिजली बिल जमा करने वाले काऊँटर के सामने दो पंक्तियाँ लगी हुई थीं। बायीं ओर की पंक्ति में आम पुरुष खड़े थे तथा दायीं ओर स्त्रियाँ और सीनियर सिटीजन खड़े थे। पहली पंकित की अपेक्षा दूसरी पंक्ति में लगभग आधे लोग थे। गुरदास आया और पहली पंक्ति में खड़ा हो गया। उसके आगे एक युवक खड़ा था। उसने पीछे मुड़कर देखा। गुरदास का हुलिया देखकर बोला - ‘अंकल, आप तो सीनियर सिटीजन हैं; दूसरी पंक्ति में लग जायें, जल्दी नम्बर आ जायेगा।’

गुरदास - ‘मैं सरकारी हिदायतों के अनुसार सीनियर सिटीजन ज़रूर हूँ, किन्तु यहाँ यह सुविधा शारीरिक रूप से अक्षम यानी ऐसे लोगों के लिये है जो शारीरिक तौर पर कमज़ोर हैं अथवा पूर्ण रूप से स्वस्थ नहीं हैं। मैं हर तरह से सक्षम हूँ, इसलिये इस पंक्ति में ठीक हूँ।’

उसकी यह बात सुनकर दूसरी पंक्ति में खड़ी तीस-पैंतीस वर्ष की एक महिला भी अपना स्थान छोड़कर पहली पंक्ति में आकर खड़ी हो गई।

*****

ब्रह्मास्त्र

गुरमेल नाश्ता-पानी करके खेत की ओर जाने के लिये जैसे ही ड्योढ़ी से बाहर कदम रखने लगा कि ‘बैठक’ में बैठे उसके माता-पिता में से पिता जी ने उसे बुलाते हुए कहा - ‘गुरमेल बेटे, आ बैठ। तेरे साथ कुछ खास बात करनी है।’

गुरमेल ने कदम पीछे खींचते हुए ‘बैठक’ की चौखट पर खड़े-खड़े ही पूछा - ‘बताओ बापू जी, क्या बात है?’

‘बेटे, आराम से बैठ। दस मिनटों बाद खेत चला जायेंगा तो कौन-सा पहाड़ टूट पड़ना है!’

गुरमेल ने चारपाई के सामने रखे बेंच पर बैठते हुए फिर पूछा - ‘बापू जी, करो जो बात करनी है।’

जरनैल सिंह ने खंखार कर गला साफ करते हुए कहा - ‘बेटे, जसवन्त को मरे छः महीने हो चले हैं। तेरी माँ के साथ विचार करने के बाद हम सोचते हैं कि तू अपनी भरजाई ते चादर पा लै। बेचारी बहू ने अभी देखा ही क्या है? कुदरत ने जो कहर ढाया है, उसपर तो हमारा बस नहीं, लेकिन पीछे वालों के लिये तो हमें ही सोचना है।’

‘बापू जी, यह कैसे हो सकता है? मैं भरजाई की कितनी इज्ज़त करता हूँ, आप दोनों अच्छी तरह जानते हो। मेरे लिये ऐसा करना सम्भव नहीं होगा।’

‘बेटे, इसमें कोई शक नहीं कि तू बहू की बहुत इज्ज़त करता है और वह भी तुझे बहुत मानती है। गुल्लु तो तेरे बिना एक दिन भी नहीं रह सकता। हर वक्त चाचू-चाचू की रट लगाये रखता है। एक बात और, तेरी और बहू की उम्र में भी कोई लम्बा-चौड़ा फर्क नहीं, दोनों की जोड़ी अच्छी लगेगी।’

‘बापू जी, आपकी बातें ठीक हैं, किन्तु मैंने भरजाई को कभी इस नज़र से नहीं देखा।’

‘बेटे, ध्यान से सुन। मेरी बात तुझे समझ में आये तो ठीक, ना आये तो तेरी मर्जी। बेटे, और आठ-दस सालों में गुल्लु जवान हो जायेगा, तेरे बराबर का हकदार। जमीन पहले ही थोड़ी-सी है, दो हिस्सों में बँटने के बाद तेरे पल्ले क्या रहेगा, सोच लै।’

गुरमेल कुछ न बोल पाया। उसने सिर झुका लिया।

*****