Vishwas - 1 books and stories free download online pdf in Hindi

विश्वास - भाग-१

मीनल जब से इस कम्पनी में आई है तब से ही सिद्धार्थ के साथ एक सॉफ्टवेयर पर काम कर रही है | साथ में काम करते हुए मीनल ने महसूस किया कि सिद्धार्थ जानबूझ कर किसी भी पार्टी या हंसी-मजाक में हिस्सा नहीं लेता है | उसने महसूस किया कि सिद्धार्थ का स्वभाव इतना भी गंभीर नहीं है जितना कि वह दिखाता है | मीनल मौके की तलाश में थी जब वह अकेले में सिद्धार्थ से मिल पाए | और वह मौका उसे तब मिला जब एक दिन उनके टीम लीडर ने कहा कि आप दोनों आज शाम देर तक बैठ कर इस सॉफ्टवेयर में आने वाली मुश्किलों को दूर कर दो | हमें कल इस सॉफ्टवेयर को एक पार्टी को दिखाना है | यह बात सुन कर मीनल तो खुश थी लेकिन सिद्धार्थ को अच्छा नहीं लग रहा था | लेकिन वह कुछ बोला नहीं |

शाम आठ बजे जब काम खत्म हुआ तो सिद्धार्थ ने मीनल को बताया कि ऑफिस की कैब रात नौ बजे मिलेगी तो क्यों न वह अपनी कैब कर घर चलें | यह सुन कर मीनल बोली कि नहीं हम ऑफिस की कैब से ही चलेंगे | सिद्धार्थ को पहले-पहल तो यह सुन कर अजीब लगा | लेकिन मीनल की ख़ुशी देख वह समझ गया कि वह उसके साथ कुछ समय बिताना चाहती है | यह देख सिद्धार्थ बोला ‘चलिए जब तक कैंटीन में चल कर कुछ खा लेते हैं’| यह बात सुन कर मीनल का चेहरा ख़ुशी से चमक उठा और वह तेज स्वर में बोली ‘हाँ ! हाँ क्यों नहीं’|

कैंटीन में पहुँच कर सिद्धार्थ बोला ‘डिनर करना है या कुछ हल्का-फुल्का खाना है’ ?

मीनल जल्दी से बोली ‘माँ से बात हुई थी, उन्होंने डिनर बना दिया है | कुछ हल्का-फुल्का ही खा लेंगे’ |

‘ठीक है, आप बैठिए मैं लेकर आता हूँ’, कह कर सिद्धार्थ काउंटर की तरफ चला जाता है और मीनल एक कोने की खाली टेबल के पास आकर बैठ जाती है | सिद्धार्थ को बर्गर और कॉफ़ी लेकर आते देख मीनल मेज पर रखे अपने पर्स को साथ की कुर्सी पर रख देती है | सिद्धार्थ समान मेज पर रख मीनल के सामने बैठ कर बोला ‘लीजिए’ | दोनों कुछ देर खाने में मशगूल हो जाते हैं | बर्गर खाने के बाद कॉफ़ी पीते हुए बोला ‘जी मैडम पूछिए आप क्या पूछना चाहती हैं’ | यह सुन मीनल के हाथ से कॉफ़ी का कप छलकते-छलकते रह जाता है | वह अटकते हुए बोली ‘आ....आप को कैसे पता कि मैं आप से कुछ पूछना चाहती हूँ’ |

सिद्धार्थ मुस्कुराते हुए बोला ‘दिल की बात जानने की कला मैंने अपनी ख़ास दोस्त या कहें अपनी प्रेमिका से ही सीखी थी’ | यह सुन मीनल का चेहरा पीला पड़ जाता है | उसे समझ ही नही आता कि वह क्या बोले | उसने क्या सोच था और क्या हो गया | वह चाह कर भी कुछ नहीं बोल पाती है | वह चुपचाप कॉफ़ी पीती रहती है | कुछ देर के बाद सिद्धार्थ कुछ गम्भीर भाव से बोला ‘आप यही सुनना चाहती थीं या कुछ और....’ |

मीनल अटकते हुए बोली ‘उ...न...से मिलवाइए कभी, हम भी तो देखें कौन है वह खुशनसीब जिस पर आपका दिल आ गया है’ | यह सुन सिद्धार्थ गहरी साँस लेकर बोला ‘नहीं मैं उनसे नहीं मिलवा सकता’ | ‘क्यों’ मीनल के मुँह से अचानक निकल जाता है |

सिद्धार्थ कॉफ़ी पी कर कप एक तरफ रखते हुए बोला ‘यह एक लम्बी कहानी........’| मीनल जल्दी से बोल पड़ती है ‘कोई बात नहीं, हमारे पास काफी समय है | आज पहली बार तो आप कुछ बोले हैं | प्लीज बताइए न’ |

यह सुन सिद्धार्थ कैंटीन की खिड़की के शीशे से बाहर देखते हुए बोलने लगा ‘मैं बीटेक की डिग्री लेकर जब बैंगलोर से दिल्ली आया तो यहाँ आकर नौकरी की तलाश में जुट गया | नौकरी तो मिलती थी लेकिन कोई भी कंपनी दस हजार से ज्यादा देने को तैयार नहीं थी | सब कम्पनी वालों का यह कहना था कि बिना अनुभव के आपको इतने ही मिलेंगे | मैं लगभग रोज इंटरव्यू के लिए जाता और खाली हाथ वापिस आ जाता | मेरी माँ मुझे कहा करती थीं कि तू भगवान् पर विश्वास नहीं करता यह सब उसी का नतीज़ा है | काफी दिन भटकने के बाद मुझे माँ की बात में कुछ दम दिखा | मैं अंतर्मन में सोचने को मजबूर हो गया कि मुझे मेरी पसंद की नौकरी तो मिल नहीं रही है क्यों न माँ की बात मान ही ली जाए | बस इसी उधेड़बुन के चलते एक दिन मैं माँ के साथ मंदिर चला गया | मंदिर से घर आने बाद माँ को ख़ुश देख मुझे भी एक अजीब-सा सुकून महसूस हो रहा था |

एक दिन जब मैं एक कम्पनी में इंटरव्यू देने के लिए गया तो वहाँ मेरी मुलाकात एक लड़की से हुई जिसने मेरी ही तरह बीटेक किया हुआ था और वह भी एक अच्छी नौकरी की तलाश में थी | उस लड़की से मेरी बात-चीत कुछ समय ही हुई लेकिन उससे बात-चीत करते हुए पता नहीं क्यों मुझे ऐसा महसूस हो रहा था जैसे उसे मैं सदियों से जानता हूँ | इंटरव्यू देने के बाद जब मैं बाहर आया तो वह मुझे नहीं मिली | शायद चली गई थी | उस दिन भी वही हुआ जो हर बार होता था लेकिन आज उस होने का इतना दुःख नहीं हो रहा था जितना उसके चले जाने का हो रहा था |

अगले काफी दिनों तक मैं हर इंटरव्यू अच्छी नौकरी के साथ-साथ उसके मिलने की चाहत में देता रहा | किस्मत ऐसी की, न अच्छी नौकरी मिली और न वह ही मिली | हर बार घर आने पर माँ एक ही बात बोल कर तसल्ली देती कि बेटा भगवान् तेरी परीक्षा ले रहा है | तू चिंता मत कर सब ठीक हो जाएगा | ऐसे ही एक दिन मैं फिर से इंटरव्यू देने के लिए एक कम्पनी में पहुंचा तो मेरी नजरें सब लोगों के बीच उसे ही ढूंड रही थीं लेकिन वह नहीं दिखी | मैं हताश हो अपनी बारी का इन्तजार कर ही रहा था कि अचानक मुझे ‘हेलो’ की आवाज सुनाई दी | मैंने पलट कर देखा तो वह मेरे सामने खड़ी थी | मैं उसे एकाएक देख कर स्तब्ध हो गया था | मैं न तो हंस कर अपनी ख़ुशी दिखा पा रहा था और न ही मेरे मुंह से कुछ शब्द ही निकल पा रहा था|

वह मुस्कुराते हुए बोली ‘क्या हुआ आप इतने हताश क्यों लग रहे हैं’ | मैं उसकी बात सुन सकपकाते हुए बोला ‘नहीं ऐसी कोई बात नहीं है’ | लेकिन वो कहाँ मानने वाली थी | मैं कुछ और बोल पाता इससे पहले ही उसने दूसरा प्रश्न दाग दिया ‘कुछ तो बात है, कह कर वह मेरे पास ही बैठ गई | मैं सोच नहीं पा रहा था कि वह कब कैसे और कहाँ से आ गई थी | अभी कुछ देर पहले तक तो वह नहीं थी | मैं अभी यह ही सोच रहा था कि वह मुझे इस तरह गुमसुम देख कर फिर बोली ‘देखो इतने हताश होने की कोई बात नहीं है | मैं भी आपकी तरह कोशिश कर रही हूँ | लेकिन मुझे भगवान् पर विश्वास है कि मुझे अवश्य ही कोई न कोई अच्छी नौकरी जल्द ही मिल जाएगी | मेरी हर प्रार्थना भगवान् स्वीकार करते हैं मैं आपके लिए भी प्रार्थना करुँगी’, कह कर वह मुस्कुरा दी |

उसकी मुस्कराहट बहुत ही अच्छी थी | वह आज काफी सुन्दर भी लग रही थी | मैंने भी मुस्कुराते हुए उसे जवाब दिया ‘मैं इंटरव्यू दे-दे कर हताश नहीं हूँ | काफी दिनों से आपको देखा नहीं था बस इसलिए हताश हो गया था | बाकि अब आप ही गई हैं | सब अपने आप ही ठीक हो जाएगा’ | यह सुन कर वह खिलखिलाते हुए हँस कर बोली ‘अरे वाह ! आपकी शक्ल देख कर तो नहीं लगता कि आप इतनी अच्छी-अच्छी बातें भी कर सकते हैं’ | फिर एक लम्बी सांस खींचते हुए बोली ‘पहले मेरी माँ को और फिर मुझे कुछ दिनों के लिए फ्लू हो गया था बस इसीलिए मैं कहीं भी इंटरव्यू देने न जा सकी’ |

मेरे मुंह से बेसाख्ता ही निकल गया ‘ओह ! अब आपकी माँ और आप कैसी हैं’ | वह मुस्कुराते हुए बोली ‘सब कुछ ठीक है तभी तो मैं आज आई हूँ’ | इससे पहले मैं कुछ बोलता मेरा इंटरव्यू देने का नम्बर आ गया | मैं उसे बाय कर इंटरव्यू देने चला गया | उस दिन फिर से वही हुआ जो पहले से होता आ रहा था | मेरे बाहर आते ही वह मेरे पास आई और बोली ‘कैसा रहा’? मैं मुस्कुराते हुए बोला आपसे मिलने के बाद भी कुछ बदला नहीं वही ढाक के तीन पात | साला कोई भी कंपनी वाला दस बारह हजार से ज्यादा देने को तैयार ही नहीं है | क्या इसीलिए जिन्दगी के चार साल और माँ-बाप के लाखों रूपये खराब किए थे | चलिए कोई बात नहीं | मैं बाहर इन्तजार करता हूँ आप भी अपना इंटरव्यू दे आईये’ | वह ‘न’ में सिर हिलाते हुए बोली ‘कोई फायदा नहीं जब इन्होने भी इतने ही पैसे देने हैं तो मैं नहीं जा रही इंटरव्यू देने | चलिए मैं भी चलती हूँ’ |

मैं हैरान होते हुए बोला ‘अरे आप तो जाइए | इतनी दूर से इंटरव्यू देने आई हैं’ | वह मेरी बात को अनसुना करते हुए दरवाजे से बाहर निकल गई | मैं भी तेज चाल से उसके पीछे-पीछे बाहर आ गया | मैंने फिर से उसे कहा ‘आप तो इंटरव्यू दे देतीं’ | वह मुस्कुराते हुए बोली ‘बोला न, नहीं | चलिए’ |

उस दिन वह मेरे साथ दो घंटे रही | उन दो घंटों में मैं अपना सारा गम भूल चूका था | उसके साथ बात करते हुए मुझे पता चला कि उसका नाम मीनू है और वह भी मेरी माँ की ही तरह भगवान् पर बहुत विश्वास करती है | वह भी रोज मंदिर जाती है | सुबह-शाम पूजा पाठ करती है और हर हफ्ते व्रत भी रखती है | उसका मुस्कुराना और खिलखिला कर हँसना इतना सुन्दर था कि मैं सारा समय उसके चेहरे को ही देखता रहा | इस बात के लिए उसने मुझे कई बार टोका भी लेकिन दिल था कि मानता ही न था | फिर मिलने का वादा कर हमने अपने मोबाइल नंबर एक दूसरे को दिए और अपने-अपने घर की ओर चल दिए | इसके बाद हमने कई इंटरव्यू एक साथ दिए और फ़ोन पर भी अक्सर बात हो जाया करती थी |

एक दिन शाम के समय उसका फ़ोन आया | कुछ देर इधर-उधर की बात करने के बाद उसने बताया कि गुरुग्राम की एक कम्पनी में लगभग तीन महीने पहले उसने एक इंटरव्यू दिया था अभी-अभी वहाँ से मेल आई है | वह उसे फाइनल इंटरव्यू के लिए बुला रहे हैं और उसकी इच्छा है कि मैं उसके साथ चलूँ | यह बात सुन मैंने भी हाँ कर दी |

मीनू का सिलेक्शन उस कम्पनी में हो गया और सैलरी भी जितना वह चाहती थी उतनी ही मिली | उस दिन हमने पहली बार एक साथ गुरुग्राम के एक माल में फिल्म देखी व दोपहर का खाना खाया | वह बार-बार बोल रही थी कि देखा मेरी भगवान् ने सुन ली और तुम देखना कि अब जल्द ही तुम्हारी भी नौकरी लग जाएगी | उसके अटूट विश्वास के आगे मैं कुछ भी बोल न सका | उस दिन हम पांच घंटे एक साथ रहे | उन पांच घंटों में मुझे उसके परिवार व उसके बारे में काफी कुछ मालूम हुआ | उसकी भोलीभाली बातें सुन मुझे एहसास हुआ कि वह आज के समय से कुछ अलग है | वह मॉडर्न होकर भी भारतीय संस्कृति, परम्परा और धर्म में काफी विश्वास रखती है | उस दिन मेरी नजर में उसकी इज्जत और भी बढ़ गई थी |

कुछ ही दिन के बाद मेरी भी नौकरी एक कम्पनी में लग गई | कम्पनी और तनख्वाह ज्यादा अच्छी तो न थी लेकिन खाली बैठने तो अच्छा ही था | मीनू काफी खुश थी उसका कहना था कि देखा भगवान् ने उसकी सुन ली | जब भी बात होती तो वह यही कहती कि देख लेना अगले तीन-चार महीने के अंदर ही आप को आपकी मनपसन्द की नौकरी भी मिल जाएगी | हम दोनों नौकरी करने के बावजूद वादे के मुताबिक हफ्ते में एक बार शाम साथ-साथ गुजारते थे | दिन-प्रतिदिन हमारी दोस्ती गहरी होती जा रही थी | बहुत बार मुझे हैरानी होती थी कि वह मेरी काफी बातों को बिना कहे ही जान जाती थी |

मेरी नौकरी लगे तीन महीने हो चुके थे और सब कुछ ठीक चल रहा था | एक दिन जब मीनू ने रात को फ़ोन किया तो वह पहली बार काफी उदास लग रही थी | मेरे काफी पूछने के बाद उसने बताया कि वह शायद अगले एक दो महीने रात को फ़ोन पर बात न कर पाए क्योंकि उसकी ड्यूटी का समय बदल रहा है और शायद शनिवार भी जाना पड़ेगा | वह बार-बार कह रही थी कि अब हम कब बात करेंगे और कब मिलेंगे पता नहीं | यह बात मेरे लिए भी काफी उदासी भरी थी लेकिन फिर भी मैंने अपनी भावनाओं पर काबू पाते हुए उसे भगवान् पर भरोसा करने को कहा | उसे याद दिलाया कि वह तो भगवान् पर इतना विश्वास करती है तो उसे चिंता करने की क्या जरूरत है | मेरी इस बात का उस पर काफी असर हुआ और वह खुद ही बोली ठीक है मैं भगवान् जी से प्रार्थना करती हूँ और आप भी करना | अवश्य ही सब कुछ जल्द ही ठीक हो जाएगा कह कर उसने भारी मन से फ़ोन रख दिया | उसकी कही बात सही साबित हुई | हम अगले दो महीने में एक बार ही मिल पाए और फ़ोन पर बात भी न के बराबर ही हुई | मैं परेशान तो था लेकिन मुझ से ज्यादा वह परेशान थी |

काफी दिन के बाद मीनू का फ़ोन आया | उसने बताया कि उसकी कम्पनी में इंटरव्यू होने वाले हैं और उसने बॉस से मेरे लिए बात कर ली है | इंटरव्यू तो बस एक फोरमैलिटी है | वह खुश होते हुए बोली कि भगवान् ने चाहा तो हम फिर से रोज मिल सकेंगे | वह काफी खुश थी | मैं मीनू की कम्पनी में इंटरव्यू देने के बाद पूरी तरह से आशस्वत था इसलिए मैंने अपनी कम्पनी में रिजाइन दे दिया था | यह बात मैंने मीनू को नहीं बताई थी | इंटरव्यू देने के बाद से मैं हर रोज मीनू के फोन का इन्तजार करता था | महिना खत्म होने को था और कहीं से भी कोई सूचना नहीं आ रही थी | कई बार लगता था कि मैंने मीनू की बात पर कुछ ज्यादा ही विश्वास कर लिया | फिर दिल में यह आता कि उसने थोड़ी कहा था कि मैं बिना बात के अपनी लगी लगाईं नौकरी को लात मार दूँ | इसी दुविधा में मेरे नोटिस पीरियड का समय समाप्त होने को तीन ही दिन बचे थे |