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विश्वास - भाग-२

एक रात मैं खाना खाकर अभी अपने कमरे में आया ही था कि मेरे फ़ोन की घंटी बज उठी | मैंने काँपते हांथो से फ़ोन उठाया और देखा तो वह मीनू का ही फ़ोन था | उसने बताया कि वह इस समय ऑफिस से घर जा रही है | मैं उससे कुछ पूछ पाता इससे पहले ही वह बोली अभी मैं कुछ ज्यादा बात तो नहीं कर पाउंगी बस मैं तुम्हें यह बताना चाहती थी कि कल मेरी छुट्टी है | अगर तुम भी कल छुट्टी करो तो हम मिल सकते हैं | मैं मिलकर ही तुम्हें कुछ बताना चाहती हूँ | मेरे काफी पूछने पर भी वह एक ही बात बोलती रही कि मिलोगे तभी बताउंगी | मैं भला उसके बुलाने पर कैसे ना कर सकता था | मेरे हाँ करते ही उसने फ़ोन काट दिया |

हर बार की तरह ही मैंने मीनू से बिना पूछे अपनी बाइक एम्बिएन्स मॉल की तरफ मोड़ दी | मॉल पहुँच कर मैं बाइक पार्किंग में लगा मीनू के साथ लिफ्ट की ओर चल दिया | मीनू ने पहली बार मेरा हाथ अपने हाथ में जैसे ही पकड़ा तो मैं हैरान हो उसकी तरफ मुड़ा ही था कि उसने मुझे लगभग खींचते हुए अपने गले लगा लिया | मैं हैरान हो इधर-उधर देख रहा था कि कोई आस-पास तो नहीं है | मुझे अपने साथ एक मूर्ति की तरह चिपके देख मीनू ने धीरे से मेरे कान में कहा ‘लल्लू इधर-उधर क्या देख रहे हो कम से कम मुझे एक मर्द की तरह गले तो लगाओ’ | उसकी बात सुन मैंने झेंपते हुए उसे अपने आलिंगन में कसते हुए बोला ‘कोई ख़ास बात’| मीनू मुस्कुराते हुए बोली ‘एक नहीं कई बाते हैं’ | मैं हैरान होते हुए बोला ‘जैसे’| वह मुझ से अलग होते हुए बोली ‘आओ पहले ऊपर चल कर कुछ ठंडा पीते हैं फिर बताउंगी’ | लिफ्ट तीसरे फ्लोर पर पहुँच कर रुकी तो जैसे ही मैं उतरने के लिए आगे बढ़ा तो उसने मेरा हाथ पकड़ कर रुकने का इशारा किया | मैं कुछ बोल इससे पहले ही लिफ्ट का दरवाज़ा बंद हो गया | जैसे ही लिफ्ट चौथे फ्लोर पर रुकी तो वह जल्दी से बाहर निकल गई | लिफ्ट से बाहर निकल वह मुस्कुराते हुए धीरे से बोली ‘क्या हुआ तुम परेशान क्यों हो’ | ‘नहीं, मैं भला क्यों परेशान होने लगा | लेकिन मुझे यह बात समझ नहीं आ रही है कि तुम इस फ्लोर पर क्यों आई हो | सारे रेस्टोरेंट तो नीचे के फ्लोर पर हैं’|

मेरी बात सुन वह मुस्कुराते हुए बोली ‘एक दिन इसी जगह मैंने तुम्हें कहा था कि मुझे ठंडा पीना है तो तुमने बोला था कि तुम्हे कम प्यास लगी है या ज्यादा तो मैंने बोला ज्यादा | यह सुन कर तुमने मुस्कुराते हुए बोला तो ठीक है फिर बीयर बार में चलते हैं और बीयर पीते हैं’ | मैंने सिर पर हाथ फेरते हुए बोला ‘मुझे याद नहीं, बाकि तुम कह रही हो तो जरूर कहा होगा’ | वह मुस्कुराते हुए बोली ‘आज मैं कह रही हूँ कि मुझे बीयर पीनी है’ | यह सुन कर मुझे मेरे कानों पर विश्वास ही नहीं हो रहा था | मैं हैरान होते हुए बोला ‘क्या कह रही हो | आज तुम्हें हो क्या गया है’ | वह इठलाती हुई बोली ‘जो तुमने सुना मैं वही कह रही हूँ | बोलो पिला रहे हो या नहीं’ | मैं हैरान होते हुए बोला ‘एक बार फिर सोच लो | मुझे क्या है | मैं तो ले चलूँगा’ | ‘चलो फिर’, वह मेरा हाथ पकड़ते हुए बोली |

मेरी मनःस्थिति बहुत अजीब हो गई थी | मुझे यह समझ नहीं आ रहा था कि आज मीनू को क्या हो गया है | लेकिन मरता क्या न करता | मैं चुप-चाप उसे बीयर बार में ले गया | दो बीयर और खाने के लिए आर्डर करने के बाद मैं अपने आप को संतुलित करते हुए बोला ‘आज बात क्या है तुम कुछ अलग ही ड्रेस्ड भी हो | और तुम्हारा मिजाज भी आज कुछ अलग है....’| वह बीच में ही मेरी बात कटते हुए बोली ‘चलो फिर एक बात और नई करते हैं’ | मैं हँसते हुए बोला ‘अब और क्या नया करने का इरादा.....’ | मीनू मुस्कुराते हुए बोली ‘क्यों मेरे इस स्वाभाव से तुम्हें डर लग रहा है’ | ‘डर क्यों नहीं लगेगा | मैं ठहरा शरीफ़ आदमी....’,अपनी बात पूरी भी नहीं कर पाया था कि वेटर सामान लेकर आ जाता है | वेटर को देख मीनू बोलते-बोलते चुप हो जाती है |

वेटर के जाते ही वह बीयर का गिलास चिअर्स करने के लिए उठा लेती है | चिअर्स कर बीयर का घूट पीते हुए मेरी नज़र मीनू पर पड़ती है | इधर-उधर देखते हुए मीनू बोली ‘कान पास लाओ मुझे एक राज की बात बतानी है’ | मैं जैसे ही अपना मुंह उसके पास करता हूँ वह जल्दी से मेरे गाल पर एक चुम्बन करते हुए बोली ‘I love you’ | मैं इससे पहले कुछ कहता वह इशारे से कहती है कि पहले खाने-पीने का मजा लो बाद में इस बारे में बात करेंगे | हम दोनों ने एक-एक बोतल पीने के बाद एक और ली | उस दिन उसने मेरा पूरा-पूरा साथ दिया | हम जब बीयर-बार से बाहर आये तो तो मीनू की स्थिति देख मुझे हैरानी हो रही थी | मीनू जब टेबल से उठी थी तो कुछ लड़खड़ाई जरूर थी लेकिन बाहर आते-आते तक लगभग नार्मल हो गई थी | मैं हैरान था कि मुझे उससे कुछ ज्यादा नशा लग रहा था और वह पहली बार पी कर भी मुझ से अच्छी स्थिति में थी |

बीयर-बार से बाहर निकलते ही मीनू तेजी से सीढ़ियों की ओर चल दी | मैं हैरान-परेशान उसके पीछे-पीछे चल दिया | वह तेज चाल से सीढ़ियाँ उतरकर कर फ़ूड कोर्ट में आकर एक कोने की टेबल पर बैठ जाती है | मैं लगभग हाँफते हुए उसके पास आकर कुछ बोलता उससे पहले ही वह धीरे से बोली ‘कुछ भी खाने के लिए ले आओ | अभी हम यहाँ काफी देर बैठेंगे’ |

मैं चुपचाप खाने का सामान लाकर मेज पर रखते हुए बोला ‘आज तुम्हें हुआ क्या है’ ? मीनू कुछ गंभीर भाव में बोली ‘कुछ ख़ास नहीं लेकिन फिर भी कुछ ख़ास’ |

मैं लगभग खीजते हुए धीमे से बोला ‘अरे यार पहेलियाँ क्यों बुझा रही हो | बात क्या है वो बोलो’ |

मीनू उसी गंभीर भाव से बोली ‘आजकल मुझे तुम्हारी याद हर समय सताती रहती है लेकिन चाह कर भी मैं तुमसे न तो बात कर पा रही थी और न ही मिल नहीं पा रही थी | इसके पीछे न सिर्फ व्यस्तता थी बल्कि कुछ और भी कारण थे | उन्हीं और कारणों के बारे में तुमसे बात करने और हिम्मत जुटाने के लिए आज मैंने पी है’, कहते हुए उसकी आँखें नम हो आई थीं | वह कुछ रुक कर अपने पर्स में से एक लिफाफा निकाल कर मुझे थमाती हुई बोली ‘दूसरा कारण मेरे पीने का यह भी है’ |

मुझे अभी तक तो उसकी हरकतें मज़ाक भर ही लग रही थी | लेकिन उसका गंभीर भाव देख कर मुझे अंदर ही अन्दर एक अनजाना-सा डर लगने लगा था | उसके हाथ से वह लिफाफा पकड़ते हुए मुझे ऐसे लग रहा था जैसे मेरी दुनिया ही लुट गई हो | मुझे लगा जैसे वह अपनी शादी का कार्ड मुझे दे रही है | मैं कांपते हाथों से लिफ़ाफ़ा खोलने लगा | मेरी स्थिति देख वह हँसते हुए बोली ‘यह मेरी शादी का कार्ड नहीं है जो तुम खोलते हुए इतना घबरा रहे हो’ | आज एक बार फिर से उसने मेरे दिल की बात पकड़ ली थी |

मैं अपनी झेंप मिटाते हुए मुस्कुरा कर बोला ‘मैडम नशा है घबराहट नहीं है’ | मैं लिफ़ाफे में रखे कागच को पढ़ कर शून्य हो गया था | मुझे चुप बैठे देख मीनू चेहकते हुए बोली ‘क्या हुआ महाशय | कहाँ खो गए’? मैं गुस्सा दिखाते हुए बोला ‘इतनी बड़ी बात तुमने मुझसे अभी तक छुपाई रखी | बहुत गलत बात है’ |

मीनू अभी भी गंभीर भाव से बोली ‘तभी तो मैंने आज छुट्टी की और तुम्हें यहाँ बुलवाया’ | मैं कुछ तेज स्वर में बोला ‘तुम तो अचानक किये एक चुम्बन से छूटना चाहती हो और वो भी बिना ख़ुशी बताए’ | मीनू उसी भाव से बोली ‘हिम्मत है तो ले लो जितने लेने हैं | मेरी हिम्मत थी मैंने कर ली’|

मैं चुप रहा क्योंकि जो उसने किया वो मेरे बस की बात नहीं थी | हाँ अकेले की बात अलग है लेकिन इस भीड़-भाड़ में तो सवाल ही नहीं पैदा होता | लेकिन फिर भी मैं हिम्मत करते हुए उठा और उसे गले लगाते हुए बोला ‘I love you too ‘, कह कर मैं अपनी कुर्सी पर बैठ जाता हूँ |

मीनू मुस्कुराते हुए बोली ‘यह तो मुझे पता है कि तुम भी करते हो लेकिन इस बात के लिए सिर्फ गले ही लगाओगे’ | मैं बात को पलटते हुए बोला ‘आज लगता है तुम एक साथ कई झटके देने आई हो | प्रमोशन की बहुत-बहुत बधाई और तुम प्रमोशन के लिए ऐसे ही नहीं छूट सकती हो’ |

मीनू हँसते हुए बोली ‘डरपोक आदमी चलो कहाँ चलना है | करो अकेले में जो करना है | बोलो क्या हुआ | तुम्हें कोई देगा ऐसी ऑफर’ |

मैं अपनी झेंप मिटाते हुए बोला ‘अच्छा ठीक है | तुम महान हो | अब अगला झटका तो दो | यह बात सुन उसने फिर से अपने पर्स में हाथ डाला और एक और लिफाफा निकाल कर मुझे थमा दिया | मैं अबकि बार बिना झेंपे बहुत ही अंदाज से लिफाफा खोलता हूँ | लिफाफे में रखे कागच को पढ़ कर मेरे पैरों तले जमीन खिसक जाती है | मेरी ख़ुशी का ठिकाना ही नहीं रहता है | मेरी आँखों से आंसू निकल आते हैं | मैं अपने आंसू पोंछते हुए भर्राए गले से बोला ‘मतलब एक साथ दो झटके | तुम्हारी प्रमोशन भी हो गई और मेरी नौकरी भी तुम्हारी कंपनी में लग गई | इससे ज्यादा ख़ुशी की और क्या बात हो सकती है | वाह यह तो कमाल ही हो गया | तुम सही कहती थीं तुम्हारी भगवान् जरूर सुनता है’ |

मीनू गंभीर भाव से बोली ‘हाँ’ | ‘अभी और कुछ भी है या आज के लिए बस’, मैं खुश होते हुए बोला |

मीनू कुछ सोचते हुए बहुत गंभीर भाव से भर्राई आवाज में बोली ‘हम एक साथ नहीं जा पाएंगे’ | मैं हैरान होते हुए बोला ‘क्यों’ ? वह अपनी आँखे पोंछते हुए बोली ‘मेरी प्रमोशन के बाद मेरी ट्रांस्फर नॉएडा ऑफिस में हो गई है’ |

‘तुमने कुछ बोला नहीं’, मैं उसे देखते हुए बोला | वह उसी गंभीर भाव से बोली ‘मैंने तो यहाँ तक बोल दिया था कि मैं प्रमोशन नहीं लेना चाहती हूँ | लेकिन उनका कहना था कि दो जान-पहचान वाले एक साथ एक ऑफिस में नहीं रह सकते हैं | यह कम्पनी की पॉलिसी है और हम मजबूर हैं | हाँ कुछ-एक महीने के बाद यह हो सकता है लेकिन अभी नहीं’ |

मैं खुश होते हुए बोला जहाँ इतने महीने इन्तजार किया है तो कुछ महीने और सही | अभी तो तुम इतनी खुश थीं अचानक इतनी उदास क्यों हो गई हो | यह सब बातें तो ख़ुशी की हैं लेकिन फिर भी तुम...... तुम कुछ मुझसे छिपा तो नहीं रही हो | क्या कुछ और बात भी है | बोलो, कुछ और भी है क्या....’|

मीनू नजरें झुकाए हुए बोली ‘नहीं ऐसा कुछ नहीं है जैसा तुम सोच रहे हो’ |

‘फिर क्या बात है | तुम इतनी खुश हो कर भी दुखी क्यों हो’, कह कर मैं उसके साथ वाली कुर्सी पर बैठ गया और उसके कंधे पर हाथ रखते हुए बोला ‘क्या बात है बोलो’ |

‘पता नहीं क्यों मुझे कुछ दिन से लग रहा है जैसे हमारा साथ बस यहीं तक ही था’, कह कर वह रो पड़ी | फिर अपने आंसू पोंछते हुए बोली ‘तुम तो जानते ही हो मैं अपनी सब परेशानियाँ और ख़ुशी अपने भगवान् को बताती हूँ | और तुमने देखा भी है कि भगवान् मेरी सुनता भी है लेकिन......’, उसकी आवाज फिर से भर्रा गई लेकिन फिर दूसरे ही पल वह अपने पर संतुलन रखते हुए बोली ‘मुझे पिछले लगभग एक-डेढ़ महीने से लग रहा है जैसे कहीं कुछ होने वाला है | मुझे कभी भी किसी भी बात से डर नहीं लगता है लेकिन फिर भी एक अजीब-सा डर अंदर ही अंदर मुझे खाने लगा है’, कह कर वह फिर से रोने लगी |

मैं हँसते हुए बोला ‘बस पगली इतनी सी बात है और मैं पता नहीं क्या-क्या सोच बैठा | तुम्हें ऐसा इसलिए लग रहा है क्योंकि हम दोनों चाह कर भी इतने दिन मिल नहीं पाए | चिंता मत करो जल्द ही सब ठीक हो जाएगा’ | मेरी बात सुन वह गुस्से से बोली ‘मैं कह रही हूँ न कहीं कुछ होने वाला है तो मतलब होने वाला है और भगवान् भी इसमें कुछ नहीं कर सकता | मुझे पहली बार लग रहा है कि असल में भगवान् कुछ कर ही नहीं सकता | वह कुछ करता ही नहीं है’ |

मेरे काफी रोकने के बाद भी वह बोलती रही और रोती रही | उसकी हालत देख मुझे ऐसा लगा कि डर ने पिछले कुछ समय में उसके अंदर घर कर लिया है | वह ऊपर से नार्मल जरूर लग रही है लेकिन अंदर से पूरी तरह से हिल चुकी है | मेरे काफी देर उसे समझाने के बाद वह कुछ हद तक नार्मल हो पाई | हम वहाँ काफी देर रहे लेकिन वह पूरे समय मेरे साथ या तो चिपकी रही या फिर हाथ पकड़े रही | जैसे ही हाथ छूटता था तो वह घबरा कर ऐसे पकड़ती थी जैसे छोटा बच्चा भीड़ में खोने के डर से करता है | मुझे उसकी स्थिति पर हँसी भी आ रही थी और दुःख भी हो रहा था |

उस दिन के बाद से वह हर रोज दिन में लगभग हर एक-दो घंटे में फोन कर लेती थी और सिर्फ हाल-चाल पूछ कर रख देती थी | एक शाम आठ बजे उसका फोन आया तो वह बोली कि जब वह कैब में बैठेगी तो फिर आराम से बात करेगी | वह कुछ परेशान व घबराई हुई थी | उसका कहना था कि पता नहीं क्यों आज उसे कुछ ज्यादा ही बैचैनी हो रही है | फिर अचानक उसने बोला कि तुम अपने सारे टेस्ट करवा लो | पता नहीं क्यों वह मेरी छोटी सी बिमारी व परेशानी से परेशान हो जाती थी | जब उसने कुछ ज्यादा ही जोर दिया तो मैंने कह दिया कि जब ईतवार को मिलेंगे तो तुम्हीं मेरे सारे टेस्ट करवा देना | यह सुन कर वह कुछ शांत हुई |

वह फ़ोन और बातचीत हम दोनों की आखिरी बातचीत बन कर रह गई | उस रात घर वापिस आते हुए उसकी कैब का एक्सीडेंट हो गया | ड्राईवर समेत बाकी सभी चार लोगों को हल्की-फुलकी चोट लगी लेकिन मीनू को सर में गहरी और अंदरूनी चोट लगने के कारण उसकी मृत्यु हो गई | उसे जो आभास कुछ दिन पहले से हो रहा था वह सही साबित हुआ | वह अलग होने का कारण मुझ में ढूंड रही थी जबकि वही मुझे छोड़ गई | आज मुझे महसूस होता है कि उसमें एक अंदरूनी शक्ति थी जिससे उसे होने वाली सब बातें पहले ही पता लग जाती थीं | यहाँ तक कि वह मेरे दिल की बात या सोच को मेरे बिना कहे भी समझ या बोल देती थी | उस दिन मॉल में उसने जो बोला शायद वही सच था कि ईश्वर हमारे अंदर ही है और वह हमें सब कुछ पहले ही बता देता है | लेकिन हम कभी उस पर गौर नहीं करते | हम उस निराकार को मूर्ति और पूजाघरों में ढूंढते फिरते हैं | जबकि हमारी अपनी पाजिटिविटी और अंतर्मन की ताकत यानी आत्मा सीधे ईश्वर से जुड़ी होती है’|

यह कह कर सिद्धार्थ अपनी आँखें पोंछते हुए उठ खड़ा होता है और भर्राई आवाज से बोलता है ‘उठो कैब का टाइम हो गया है’ | मीनल की आँखों से आंसू की अविरल धारा बह रही थी | वह मुश्किल से उठ कर सिद्धार्थ के पीछे-पीछे चल देती है |

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