jyako rakhe saaiya - 1 books and stories free download online pdf in Hindi

ज्याँकों राँखें साईंयाँ.. भाग 1

युवी केलेंडर की तारीख देखते हुवे.
"उस रात जो हुवा वह मरते दम तक याद रहेगा. पर उस रात न अमावस्या थी और नाही पूर्णिमा फिर भी यह घटना कैसे घटी. बस आसमान में दिनभर से बदली छाई थी,उस रोज मौसम भी कुछ बईमान सा था....आनेवाला कोई तूफान था.....!
हां... मेंरी जिंदगी में, एक तूफान अनदेखा,अनचाहा तूफान....!"

ठीक एक महीने बाद उस रात की घटना युवी को फिर याद आई थी
और युवी उस रात की गहरी डरावनी यादों में डूब गया.

गुरुवार का ही दिन था , देर रात युवी कि पत्नी उसे समझते हुए कह रही थी.
"अगले गुरुवार...दो बार चले जाना, साईबाबा के दर्शन करने.अभी बहोत रात हो गयी हैं, बाहर आसमान भी बादलो से भरा है बिजलियाँ भी चमक रही हैं ".

"नही जानू तुम्हे पता है ना, चाहे कुछ भी हो जाय में हर गुरुवार बाबा के दर्शन करता ही हूं, साईंचरणों के दर्शन बिना मेरे मन को शांति नही मिलती".अपनी पत्नी मधु को समझते हुए युवी बोला.
"मैं बस यूँ गया और यू आया"
कह कर युवी बाईक को स्टार्ट करते हुए निकल पड़ा.
घर के पास वाले फॉरेस्टि के ऊंचे टीले पर ही साईबाबा का एक सुंदर मंदिर बना था, जहाँ यूवी हर गुरुवार सवेरे दर्शन कर अपनी दिनचर्या में लग जाता. बाबा की कृपा से ही युवी की जिंदगी में खुशहाली छायी थी. कदम कदम पर युवी को बाबा के आशीर्वाद का साक्षत्कार और अनुभव मिलता. इसी कारण युवी साईंबाबा का निस्सीम भक्त बना था.
किसी कारण वश आज युवी सुबह साईंबाबा दर्शन नही कर पाया, दिनभर के कामकाज निपटाने में उसे काफी रात हो चुकी थी. रात बारा बजे के पहले दर्शन करलू यह विचार कर युवी ने बाईक निकाली, तब रात के ११:०० बज चुके थे. आसमान बादलोसे भरा था, रहरह कर बदलो में बिजली चमक उठती. उसने तेजी से अपनी बाइक चलाई.
मंदिर फॉरेस्ट के ऊंचे टीले पर होने के कारण रास्ता घनी झाड़ियों वाला गोलाकार घूमता, पथरीला तथा अचानक मोड़ वाला भी था. उस रास्ते से युवी पूर्ण परिचित था, मगर दिन के समय. वो रात्रि के समय पहली बार ही इस रास्ते जा रहा था. तभी अचानक एक मोड़ पर, पेड़ की बडिसी टहनी रास्ते पड़ी दिखी.जिस कारण आगे जाने का रास्ता बंद हो चुका था. युवी ने बाईक से उतर कर टहनी को एक किनारे करने लगा, असफल प्रयास के बाद युवी ने बाइक वही खड़ी कर दी. टीले के आधे रास्ते तक वह पोहोच चुका था, आगे पैदल जाना ही ठीक होगा यह विचार कर वह मंदिर की ओर निकल पड़ा. बादलो में बिजली का रहरह कर चमकती, रात बाराह से पहेले साईंनाथ के दर्शन करने की ओढ़ मन मे बढ़ रही थी. युवी ने मंदिर की ओर देखते हुए
"जय साईंनाथ" का जयकारा लगाया. मोबाईल टॉर्च के उजाले में चलना शुरू कर दिया. मन निर्भय था, कदमो में तेजी थी.
पर अचानक तभी बादलो में बिजली चमक उठी,उस बिजली की चमक में उसे एक विचित्र भयावह झलक दिखी और उसे देख युवी मानो एक जगह जम ही गया....!
उसके आगे बढ़ते कदम मानो जमीन मे धस गये, दिलकी धड़कन बढ़ गयी क्यो कि सामने नजारा ही ऐसा दिखाई पड़ा था. अब तक न सुनाई देने वाले पत्तो कि सरसराहट उसे डराने लगी, रातकीड़ो की आवाज और भी तेज हो गयी.
माथे का पसीना पोछता हूवा युवी,अपने मोबाइल की टोर्च को उस दिशा में मोडने के लिए भी घबरा रहा था. क्यों कि
उस चमकती हुई बिजली में युवी ने जो देखा, उसकी एक झलक ही इतनी क्रूर , भयंकर,डरावनी थी.